Call Now : 9302101186, 9300441615 | MAP
     
Arya Samaj Indore - 9302101186. Arya Samaj Annapurna Indore |  धोखाधड़ी से बचें। Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage Booking और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी अन्नपूर्णा इन्दौर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्दौर में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी के अतिरिक्त इन्दौर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Bank Colony Annapurna Indore is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Annapurna is the only Mandir in Indore controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust. We do not have any other branch or Centre in Indore. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
arya samaj marriage indore india legal
  • भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-3

    लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

    रामकृष्ण परमहंस व स्वामी विवेकानन्द- उस काल के धार्मिक महापुरुषों में रामकृष्ण परमहंस की उपेक्षा नहीं की जा सकती। किन्तु तत्कालीन समाज-सुधारकों में उनका कोई स्थान नहीं था। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार श्री रामकृष्ण जगत्‌ में कुछ भी बुराई नहीं देख पाते थे। इसलिए उनके लिए किसी बुराई को दूर करने का प्रश्न ही नहीं था। देशभक्ति, समाज सुधार आदि उनकी दृष्टि में दम्भमात्र थे। यदा-कदा प्रसङ्ग आने पर वे उन समाज-सुधारकों की खिल्ली ही उड़ाते थे जो आत्मोद्धार की बलि देकर समष्टि के हित की चिन्ता करते थे। वस्तुत: रामकृष्ण तथा उनके शिष्य विवेकानन्द जी का विचार और कार्यक्षेत्र अद्वैत वेदान्त के विचार तक सीमित था। समाजहित या देश-सेवा से उनका कुछ लेना-देना नहीं था। देश के स्वाधीनता संग्राम में उनके योगदान का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता। वास्तव में-

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    दिव्य मानव निर्माण की वैदिक योजना
    Ved Katha Pravachan _28 (Vedic Secrets of Happy Life & Happiness) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    “The policy of Ramkrishna mission has always been faithful to (its founder) Swami Vivekanand’s intention. In the early twenties when India’s struggle with England had become intense and bitter, the mission was harshly criticised for refusing to allow its members to take part in the freedom struggle.”- Teachings of Swami Vivekanand, P. 38

    परन्तु उनके जीवनीकार कहते हैं-“Ramkrishna and Vivekanand were the first awakeners of India’s National Consciousness. They were India’s first nationalist leaders in the true sense of the term. The movement for India’s libration started from Dakshineswar.” - Bio. 231

    अर्थात्‌ रामकृष्ण और विवेकानन्द भारत की राष्ट्रीय चेतना के अग्रदूत थे। वे यथार्थ में भारत के सबसे पहले राष्ट्रीय नेता थे। भारत के स्वाधीनता आन्दोलन का प्रारम्भ दक्षिणेश्वर से ही हुआ था।

    यह कितना बड़ा झूठ हैयह स्वयं स्वामी विवेकानन्द के कथन से प्रमाणित है-

    “Let no political significance ever be attached falsely to my writings. What nonsense!” He said as early as September 1894. A year later he wrote: “I will have nothing to do with that nonsense. I do not believe in Politics. God and truth are the only politics in the world. All else is trash.” - Bio., 232

    अर्थात्‌ मेरे लेख या कथन का झूठमूठ कोई राजनीतिक महत्त्व न समझा जाए- यह सब बकवास है। राजनीति की बातों से मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है। ईश्र्वर और सत्य ही संसार में एकमात्र रीति है और सब बेकार हैं।

    वस्तुत: इन दोनों का समाज से कोई लगाव न था। श्री रामकृष्ण की साधना आत्मकेन्द्रित थी। समाजसेवादेशभक्तिसमाज-सुधार आदि को वे पाखण्ड मानते थे। इतना ही नहींसमाज या देश की सेवा में प्रवृत्त लोगों की वे खिल्ली उड़ाते थे। उनका चिन्तन भावना प्रधान थातर्क के लिए उसमें कोई स्थान नहीं था। वेदान्ती होते हुए भीवेदान्त में निषिद्ध मूर्त्तिपूजा में उनकी पूर्ण श्रद्धा थी। उससे जुड़े अन्धविश्वासोंचमत्कारों तथा क्रियाकलापों आदि के प्रति भी वे पूर्ण आस्थावान्‌ थे। वे अपने को राम और कृष्ण के समान ईश्वर का अवतार मानते थे। इससे सम्बन्धित एक घटना का विवरण Complete Works of Swami Vivekanand (Vol. I, P. 66-67)  में इस प्रकार दिया है-

    “Two days before the death of Ramkrishna, Narendra (Vivekanand) was studying by the bedside of the master when a strange thought flashed into his mind. Was the Master (R.K.) truly an incarnation of God? He said to himself that he would accept Shri R.K.‘s divinity if the Master declared himself to be an incarnation. He stood looking intendedly at the master’s face. Slowly Shri R.K.’s lips parted and he said in a clear voice- “O my Narendra! Are you still not convinced? He who in the past was born as Ram and Krishna is now in this body as R.K.” Thus R.K. put himself in the catagory of Ram and Krishna who are recognised by the Hindus as Avtars or icarnations of God.”

    इस प्रकार श्री रामकृष्ण ने स्वयं अपने को राम और कृष्ण के समान अवतार घोषित कर दिया। इतना अहङ्कार था रामकृष्ण को और इतने भोले थे स्वामी विवेकानन्द।श्री रामकृष्ण शास्त्र ज्ञान से सर्वथा वञ्चित थे। तन्त्रशक्ति से परिचय रखनेवाली एक ब्राह्मण संन्यायिनी उनकी मार्गदर्शिका थीपरन्तु उनकी प्रसिद्धी का श्रेय उनके प्रमुख शिष्य स्वामी विवेकानन्द को हैजिन्होंने कल्पित घटनाओं के सहारे उनके जीवन को अलौकिकता प्रदान करने का प्रयास किया। श्रीरामकृष्ण ने सारा समय काली को अपनी और विश्व की माता=जगज्जननी मानकर उसी की स्तुतिउपासना और कीर्तन में व्यतीत किया। ईश्वर-स्मरण अथवा ईश्वरोपासना में उनकी कोई रुचि नहीं थी। उन्होंने अपने जीवन और व्यवहार से इस बात को झुठला दिया कि मूर्त्तिपूजा ईश्वर-प्राप्ति की सीढी हैऔर समाधि लगाने में सहायक ध्यान का अभ्यास करने का साधन है। अन्त समय में भी वे प्रभु का नाम न ले सके। स्वामी विवेकानन्द की जीवनी (Vivekanand-A Biography by Swami Nikhilanand) के लेखक के अनुसार श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द दोनों अन्तिम श्वास तक पहली सीढी पर ही खड़े रहे। उनके जीवनीकार ने श्रीरामकृष्ण के विषय में लिखा है-

    “At two minutes past one, early in the morning of August 16, 1886 Shri Ramkrishna uttered three times in ringing voice the name of his beloved Kali and entered into the Samadhi from which his mind never again returned to the physical world.” - page 66

    अर्थात्‌ मृत्यु के दिन प्रात: एक बजकर दो मिनट पर श्रीरामकृष्ण ने तीन बार अपनी प्यारी काली का नाम लिया और उस समाधि में चले गये जिससे वे फिर कभी भौतिक जगत्‌ में नहीं लौटे। इसी प्रकार स्वामी विवेकानन्द की मृत्यु का वर्णन करते हुए लेखक ने लिखा है-

    “One the supreme day he (Vivekanand) expressed his desire to worship Mother Kali at the Math and asked his disciples to procure all the necessary articles for the worship.” - page 339

    अर्थात्‌ मृत्यु के दिन स्वामी विवेकानन्द ने मठ में स्थित काली की पूजा करने की इच्छा व्यक्त की और अपने शिष्य को पूजा की सारी सामग्री लाने को कहा।

    उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि मरते समय भी गुरु और शिष्य दोनों को मठ में बैठी काली की ही याद आईघट-घट व्यापी भगवान्‌ की नहीं। यदि उन्होंने उपनिषदों का कुछ भी अध्ययन किया होता तो काली को भगवान्‌ मानकर कभी उसकी अर्चना-उपासना न करते-"ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति" (गीता) ईश्वर तो प्राणिमात्र के हृदय में विद्यमान है? "न तत्र चक्षुर्गच्छति" (केन. 1.3), "यच्चक्षुषा न पश्यति". (केन. 1.6), "यत्तद्‌द्वश्यम्‌" (मुण्डक. 1.1.6)- परमेश्वर तो आँखों से दिखाई नहीं देता। तब आँखों से दीखनेवाली काली ईश्वर कैसे हो सकती हैं?

    मूर्त्तिपूजा के विषय में स्वामी विवेकानन्द की मान्यता-

    God is eternal, without any form, omnipresent. To think of him as possessing any form, is blasphemy. - VII, 411 परमेश्वर नित्यनिराकार या अकाय तथा सर्वव्यापक हैउसे साकार मानना उसकी निन्दा करना है।

    "वैदिकयुग में प्रतिमापूजन का अस्तित्व नहीं था। उस समय लोगों की यह धारणा थी कि ईश्वर सर्वत्र विराजमान हैकिन्तु बुद्ध के प्रचार के कारण हम जगत्स्रष्टा तथा अपने सखास्वरुप ईश्वर को खो बैठे और उसकी प्रतिक्रियास्वरूप मूर्तिपूजा की उत्पति हुई । लोगों ने बुद्ध की मूत्ति बनाकर उसकी पूजा करना आरम्भ किया।" (देववाणी 75) "पहले बौद्ध चैत्यफिर बौद्ध स्तूप और उससे बुद्धदेव का मन्दिर बना। इन बौद्ध मन्दिरों से हिन्दू मन्दिरों की उत्पत्ति हुई।" -विवेकानन्द से वार्तालाप 110

    "वेदों के अनुसार बाह्यपूजा या मूर्त्तिपूजा सबसे नीची अवस्था है- बहि: पूजाऽधमाधमा और निष्कर्ष यह है कि मूर्त्तिपूजा हिन्दू धर्म का आवश्यक अङ्ग नहीं है।" अन्यत्र वे लिखते हैं-

    “Idolatory si the attempt of undeveloped minds to grasp spiritual truths.” -Teachings of Swami Vivekanand, P. 142अर्थात्‌ मूर्त्तिपूजा अविकसित मस्तिष्क (अल्पबुद्धि) वाले लोगों के लिए आध्यात्मिक सचाइयों को ग्रहण करने में समर्थ होने में साधनरूप है। यदि ऐसा है अर्थात्‌ मूर्त्तिपूजा अविकसित मस्तिष्क वालों के लिए है तो जिनकी सारी आयु मूर्त्तिपूजा में ही बीती हो और मूर्त्तिपूजा करते-करते जिन्होंने भगवान्‌ की बजाय काली का नाम जपते-जपते ही प्राण त्यागे होंउन्हें क्या कहेंगे?

    अलवर-नरेश मूर्त्तिपूजा के विरोधी थे। स्वामी विवेकानन्द के जीवनीकार लिखते हैं-

    “The Maharaja of Alwar ridiculed the worship of images which to him were nothing but figures of stone, clay or metal. The Swami tried invain to explain to him that Hindus worshipped God alone, using images as symbols. The image is helpful for concentration, especially at the begining of spiritual life. The Maharaja was not convinced.”

    अर्थात्‌ अलवर-नरेश मूर्त्तियों को मिट्टीपत्थर या धातु की आकृतियों से अधिक नहीं मानते थे। स्वामी विवेकानन्द ने उन्हें समझाने का भरसक किन्तु व्यर्थ प्रयत्न किया कि मूर्त्तियॉं मन को एकाग्र करने में सहायक होती हैं और उनकी पूजा ईश्वर की प्रतीक के रूप में की जाती हैपरन्तु यह सब महाराजा के गले नहीं उतर सका। 

    किसी वस्तु को उसके यथार्थरूप में देखना ही ज्ञानी का लक्षण है। अलवर-नरेश ज्ञानी थे। अतएव वे मिट्टी को मिट्टी और पत्थर को पत्थर ही समझते थे। गारे को गारा समझना विद्या हैउसे हलवा समझना अविद्या है । हिरण निश्छल भाव से पूर्ण श्रद्धा के साथ बालू को जल समझता हैकिन्तु तब भी बालू से उसकी प्यास नहीं बुझती। साधन की आवश्यकता तभी तक रहती है जब तक साध्य की प्राप्ति नहीं होती और यथार्थ साधन भी उसी को माना जाता है जिससे साध्य की प्राप्ति होती है। यदि मूर्त्तिपूजा ईश्वर-प्राप्ति में सहायक होती तो जीवनभर मूर्त्तिपूजा करने वाले श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द को अन्तिम समय में समाधिस्थ होकर प्रभु का स्मरण करना चाहिए था और रामकृष्ण की वाणी को काली की जगह वेदोंउपनिषदों आदि में निर्दिष्ट "ओ3म्‌" को तीन बार उच्चारण करना चाहिए था।

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

     

    That is, Alwar-Naresh did not consider the idols more than the figures of clay, stone or metal. Swami Vivekananda tried his best to convince him that idols help to concentrate the mind and worship him as a symbol of God, but all this could not be embraced by the Maharaja.

    Bharata-Bhagyavarita Maharishi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Parbhani - Karauli - Kota - Jabalpur - Jhabua - Osmanabad  | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती -5 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-4

    लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

    वस्तुत: विवेकानन्द का मूर्त्तिपूजा के प्रति आग्रह उनके अनेक प्रकार के अन्धविश्वासों के कारण था। इसीलिए एक स्थान पर उन्होंने लिखा है- "यदि मूर्त्तिपूजा में नाना प्रकार के कुत्सित विचार भी प्रविष्ट हो जाएँ तो भी मैं उसकी निन्दा नहीं करूँगा।" - (विवेकानन्द-चरित, पृष्ठ 146)

    मूर्त्तिपूजा की बात करते समय स्वामी विवेकान्नद विवेक को ताक पर रख देते थे,यह निम्नलिखित घटना से स्पष्ट हो जाता है-

    “When Miss noble came to India in January 1898 to work for the education of India, he gave her the name of Sister Nivedita. At first he taught her to worship Shiva and then made the whole ceremony eliminate in an offering at the feet of Buddha.” - Vivekanand A Biography by Swami Nikhilanand, P. 260

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    सुखी जीवन के रहस्य
    Ved Katha Pravachan _27 (Vedic Secrets of Happy Life & Happiness) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    शिक्षासम्बन्धी कार्य के लिए आने वाली विदेशी महिला को पहले शिवजी की पूजा सिखाना और उसकी विधि पूरी हो जाने पर शिव-पूजा के विरोधी महात्मा बुद्ध के चरणों पर चढानाइन दो परस्पर विरोधी कृत्यों का विधान कहॉं मिलता है और किस प्रकार इनकी संगति बिठाई जा सकती है?

    श्रीरामकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द की आराध्य देवी की निर्दोष प्राणियों की हत्या से पूजा होना और उनका खून पीकर उसका तृप्त होना सर्वविदित है। उसके भक्तों में दया-ममता की कल्पना कैसे की जा सकती हैउक्त-जीवनी में उसके विषय में लिखा है- “One day in the Kali temple of Calcutta a western lady shuddered at the sight of blood of goats, sacrificed before the mighty, and exclaimed- ‘Why is there so much blood before the Godess?’ Quickly the Swami (Vivekanand) replied- ‘Why not a little blood to complete the picture?” -Ibid. 261

    स्वामी विवेकानन्द की फ्रैंच भाषा में प्रकाशित जीवनी के लेखक रोम्यॉं रोलॉं के अनुसार रामकृष्ण एक मुसलमान से प्रभावित होकर अपना धर्मपरिवर्तन करने और गोमांस खाने के लिए तैयार हो गये थे। इस प्रसंग में मैक्समूलन ने लिखा है-“For long days the (Ramkrishna) subjected himself to various kinds of discipline to realise the Mohammadon idea of all powerful Allah. He let his beard grow, he fed himself on Muslim diet, he ocmpletely repeated the Koran.” - A Real Mahatman, P. 35. 

    स्वामी विवेकानन्द के इस्लाम के गीत गाने का कारण अपने गुरु के प्रति अन्धभक्ति का अतिरेक था। रामकृष्ण मिशन ने अपने हिन्दु न होने के पक्ष में जो तर्क और प्रमाण कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रस्तुत किये थेउनका एक अंश अहमदाबाद से प्रकाशित होनेवाले Times of Indiaके 23 जनवरी 1886 के अंक से यहॉं उद्‌धृत किया जा रहा है-“During his practice of Islam he repeated the name of Allah and said Namaz thrice daily. During this while he dressed and ate like a Muslim. Another biographical work ‘Ramkrishna Panth’ by Akshoy Sen, provides some more details. A Muslim cook was brought who instructed the brahman cook how to wear a lungi and cook like the Muslim way. We are also told that at this time Ramkrishna felt a great urge to take beef. However, this urge could not be satisfied openly. But one day as he sat on the bank of the Ganges, a carcase of a cow was floating by. He entered the body of a dog astrally and tasted the flesh of the cow. His Muslim Sadhana was now complete.

    All this is highly comic but it holds an important position in the mission. The lawyears of mission did not forget to argue in the court that Ramkrishna was on the verge of eating beef. This was meant to prove that he was an indifferent Hindu and not far from being a devout Muslim.” The mission won the case.

    उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि रामकृष्ण में इस्लाम और गोमांसभक्षण के प्रति ललक थी। इसी प्रयोजन से वे अल्लाह का नाम जपते थे और दिन में तीन बार नमाज पढते थे। मुसलमानों-जैसी वेशभूषा भी उन्होंने अपना ली थी। एक मुस्लिम रसोइया उनके ब्राह्मण रसोइये को मुस्लिम खाना बनाना सिखाता था। उस समय रामकृष्ण को गोमांस खाने की इच्छा हुई। इस इच्छा को खुलकर पूरा करना सम्भव नहीं था। कालान्तर में तो उनके परम शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने खुलकर मांस खाया हीदूसरों को भी वैसा ही करने की प्रेरणा दी। इतना ही नहींवैदिक कालीन ब्राह्मणों पर गोमांस भक्षक होने का आरोप लगाया।

    एक दिन जब रामकृष्ण गंगातट पर बैठे थे तो उन्होंने एक गाय के शव को गंगा में बहते देखा। उसे देखते ही उनके मुँह से लार टपकने लगी। तभी उन्होंने पास ही एक मरे हुए कुत्ते को देखा। झट से उस कुत्ते के शरीर में प्रवेश करके उन्होंने गोमांस का रसास्वादन किया । इस प्रकार उनकी मुस्लिम साधना पूर्ण हुई।

    स्वामी विवेकानन्द एक स्थान पर लिखते हैं-“Too much faith in personality has a tendency to produce weakness and idolatory.” - II, 84-85

    व्यक्तिविशेष में श्रद्धा का अतिरेक बौद्धिक निर्बलता तथा मूर्त्तिपूजा को जन्म देता हैपरन्तु जब रामकृष्ण की बात आती है तो उनकी (विवेकानन्द की) श्रद्धा का अतिरेक सब अतिरेकों की सीमा को लॉंघ जाता है और तब वे कहते हैं-“Through thousands of years the lives of the great prophets of yore came down to us, and yet, none stands so high in brilliance as the life of Ramkrishna Paramhansa.” - II,312

    हजारों वर्षों में प्राचीनकाल के अनेक सिद्ध पुरुषों के जीवन हमारे सामने आयेपरन्तु उनमें से एक भी रामकृष्ण की ऊँचाई को न छू सका।

    इतना ही नहींपत्रावली भाग 1पृष्ठ 138 पर संस्कृत के एक श्लोक को उद्धृत कर विवेकानन्द जी अपने आराध्यदेव रामकृष्ण को ब्रह्माविष्णु और शिव तीनों से बढाकर साक्षात्‌ नारायण का अवतार कहते हैं। गुरु के प्रति श्रद्धा के इस अतिरेक ने उन्हें उनकी अपनी ही मान्यता के विपरीत मूर्त्तिपूजक और इतना निर्बल बना दिया कि वे विवेकशून्य हो गये और मन्दिरों में स्थापित मूत्तियों के स्थान पर वे रामकृष्ण की पादुकाओं को पुष्प अर्पित कर उनकी प्रतिमा पर क्षीरभोग चढाने लगे। -विवेकानन्दजी के सङ्ग मेंपृ. 139

    "भगवान्‌ रामकृष्ण परमहंस ईश्वर के अवतार थेइसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है। भगवान्‌ श्रीकृष्ण का जन्म हुआ ही थायह हम निश्चितरूप से नहीं कह सकते और बुद्ध व चैतन्य-जैसे अवतार पुराने हैंपर श्री रामकृष्ण सबकी अपेक्षा आधुनिक और पूर्ण है" (पत्रावली 256)। इस प्रकार रामकृष्ण और बुद्ध की ऐतिहासिकता को नकारते हुए उन्हें रामकृष्ण से हीन सिद्ध करने के लिए वे यह कहने में संकोच नहीं करते कि "उनकी (रामकृष्ण की) पवित्रताप्रेम और ऐश्वर्य का कणमात्र प्रकाश ही रामकृष्णबुद्ध आदि में था।" - पत्रावली भाग 1187

    स्वामी विवेकानन्द इतना भी नहीं सोच सके कि अन्य सभी महापुरुष रामकृष्ण के पूर्ववर्ती थे। पूर्ववर्तियों में पश्चाद्वर्ती का प्रकाश आएगा या पश्चाद्वर्ती में पूर्ववर्ती का।

    श्री रामकृष्ण के सम्बन्ध में विवेकानन्द जी के अधिकांश कथन सर्वथा हास्यास्पद तथा अविश्वसनीय हैं। अन्यान्य महापुरूषों की तुलना करने में तो वे औचित्य की सभी सीमाओं का अतिक्रमण कर जाते हैं और उन्हें चमत्कारी पुरुष सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं। उदाहरणार्थ- "उन-(रामकृष्ण)- पर जिनका विश्वास नहीं है और उनमें जिनकी भक्ति नहीं हैउनका कुछ नहीं होगा।" -पत्रावली भाग 1पृ.188

    रामकृष्ण को महिमामण्डित करने के लिए विवेकानन्द इतिहास को यदृच्छया बदलने और अपने को उपहास का पात्र बनाने में भी संकोच नहीं करते। उनके अनुसार "सत्ययुग का आरम्भ रामकृष्ण के अवतार की जन्मतिथि से हुआ।" - पत्रावली भाग 1पृ. 188

    विवेकानन्द को इतना भी ज्ञान नहीं कि सत्ययुग का आरम्भ और अन्त हुए लाखों वर्ष बीत चुकेजबकि कलयुग का आरम्भ हुए लगभग पॉंच हजार और रामकृष्ण को पैदा हुए केवल 60 वर्ष बीते थे।

    जैसाकि हम स्वयं विवेकानन्द के ग्रन्थों के सम्पादक के शब्दों में स्पष्ट करेंगेउनके लेखों तथा व्यक्तव्यों में परस्पर विरोधी वचनों की भरमार है। इस कारण उनकी कथनी और करनी में सामंजस्य का अभाव है। स्वामी जी लिखते हैं-

    “The dead never return, the past night does not reappear. Neither does man inhabit the same body ever again.” - II, 185

    अर्थात्‌ मरनेवाला वापस नहीं आता। मरने के बाद मनुष्य उसी शरीर में फिर नही आताकिन्तु रामकृष्ण को लोकोत्तर अवतारी पुरूष अथवा ईश्वर का अवतार सिद्ध करने के लिए विवेकानन्द रामकृष्ण के शव को भस्म करने के बाद भी उनका अपने उसी शरीर में दर्शन देना स्वीकार करते हैं-“Within a week of the Master’s passing away Narendra was one night strolling in the garden with a brother disciple, when he saw a luminous figure. There was no making. It was Shri Ramkrishna himself. Narendra remained silent, regaridng the phenomenon as an illusion. But his brother disciple exclaimed in wonder. ‘See, Naren! See?’ There was no room for further doubt. Narendra was convinced that he was Ramkrishna who appeared in a luminous body. As he called the other brother discipes to behold, the Master, disappeared. - Bio. 69

    श्री रामकृष्ण की मृत्यु के एक सप्ताह के बाद एक दिन वे अपने एक गुरुभाई के साथ बाग में घूम रहे थे कि उन्हें अपने सामने एक द्युतिमान शरीर दिखाई दिया। इसमें भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं थी। निश्चय ही वे स्वयं रामकृष्ण थेपरन्तु हो सकता हैयह उनके मन का भ्रम ही होइसलिए वे मौन रहे। इतने में उनका गुरुभाई आश्चर्यचकित हो चिल्लाया-"देखो ! नरेन्द्र देखो।" अब सन्देह के लिए कोई स्थान नहीं था। नरेन्द्र को विश्वास हो गया कि द्युतिमान शरीर में प्रकट होनेवाले रामकृष्ण ही थे।

    जब स्वयं विवेकानन्द के अपने कथनानुसार आत्मा पुन: उसी शरीर में नहीं आती तो रामकृष्ण कैसे आ गयेशरीर के भस्म होने के बाद उसके परमाणु अथवा अन्य कोई परमाणु स्वत: रामकृष्ण का शरीर धारण कर सकते हैं तो सृष्टिरचयिता चेतन ब्रह्म की आवश्यकता क्या रहीऐसी ऊटपटाङ्ग बात विवेकानन्द-जैसे मस्तिष्क में ही आ सकती हैअन्यथा कोई अबोध बालक भी इसे स्वीकार नहीं करेगा।

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

     

    One day when Ramakrishna was sitting on the Ganges, he saw the body of a cow flowing into the Ganges. Seeing him, saliva started dripping from his mouth. Then he saw a dead dog nearby. He quickly tasted the beef by entering the body of the dog. Thus his Muslim practice was completed.

     

    Bhagyavarita Maharishi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Karauli - Kota - Jabalpur - Jhabua - Osmanabad - Parbhani | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती -5 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-5

    लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

    स्वामी विवेकानन्द– स्वामी विवेकानन्द का परिचय देने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें समन्वयवादी प्रवृत्ति का महापुरुष माना जाता है, परन्तु उनके ग्रन्थों से उनका वैसा स्वरूप उभरकर सामने नहीं आता। उनके भाषणों तथा लेखों में परस्पर विरोधी विचारों की भरमार है। पदे-पदे वदतोव्याघात के उदाहरण के उदाहरण मिलते हैं। इस बात को ध्यान में रखकर ‘Teaching of Swami Vivekanand’ के सम्पादक ने अपनी भूमिका में लिखा है-

    “Vivekanand was the last person to worry about formal consistency. He almost always spoke extempore, fired by the circumstances of the moment, addressing himself to the condition of a particular group of hearers, reacting to the intent of a certain question. That was his nature and he was supremly indifferent if his words of today seemed to contradict those of yesterday.”

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    धार्मिक शंका समाधान - प्रश्नों के उत्तर
    Ved Katha Pravachan _26 (Vedic Remedies for Wealth) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    स्वामी विवेकानन्द के विचार- यहॉं हम विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत स्वामी जी के विचारों को उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत कर रहे हैं। हमारे उद्धरणों का स्रोत अद्वैत आश्रम कलकत्ता से प्रकाशित निम्नलिखित दो प्रामाणिक ग्रन्थ हैं-

    1. Vivekanand- A Biography by Swami Nikhilanand Saraswati.

    2. Teachinngs of Swami Vivekanand.

    सुविधा के लिए हमने बार-बार पुस्तक का नाम न लिखकर उपर्युक्त क्रम के अनुसार I और II लिखकर पृष्ठ सं लिख दी है।

    खान-पान1. “To the accusation from some Hindus that the Swami was eating forbidden food, he retorted- ‘If the people of India want me to keep strictly to Hindu diet, please tell them to send me a cook and money enough to keep him.”  -I, 129

    जब कुछ लोगों ने स्वामी विवेकानन्द के गोमांस खाने पर आपत्ति की तो उन्होंने कहा कि यदि भारत के लोग चाहते हैं कि मैं हिन्दूधर्म में निषिद्ध भोजन न करूँ तो उनसे कह दो कि मुझे एक रसोइया भेज दें और उसके वेतन की भी व्यवस्था कर दें ।

    किसी शाकाहारी महापुरुष ने कभी ऐसी बेहूदा मॉंग नहीं की होगी।

    2. “Orthodox Brahmans regarded with abhorrance the habit of animal food. The Swami told them about the habit of beef eating by Brahmans in Vedic times.” - I, 260

    ब्राह्मण मांसाहार से घृणा करते थे। स्वामी जी ने बताया कि वैदिक काल में ब्राह्मण गोमांस खाते थे। एक समय ऐसा भी था कि इसी भारत में मांस न खानेवाला ब्राह्मण नहीं माना जाता था। तुम वेद पढोतुम देखोगे कि जब कोई संन्यासी या राजा किसी के घर जाता था तब किस तरह और कैसे बकरों और बैलों के सिर धड़ से जुदा होते थे। - स्वामी विवेकानन्द से वार्तालाप - अनुवादस्वामी ब्रह्मस्वरूपानन्द

    बिना वेद पढे और बिना प्रमाण प्रस्तुत किये इस प्रकार के अनर्गल प्रलाप से स्वामी विवेकानन्द अपने गोमांस खाने और अपने गुरु द्वारा एतदर्थ प्रयत्न करने के कार्य को शास्त्रसम्मत सिद्ध करना चाहते थे।

    3. “He advocated animal food for the Hindus, if they were to cope at all with the rest of the world and find a place among the great nations.” - I,96

    उनका कहना था कि यदि हिन्दू समस्त संसार का मुकाबला करना चाहते हैं और बड़े-बड़े राष्ट्रों में अपना स्थान  चाहते हैं तो उनके लिए मांसभक्षण अनिवार्य है।

    4. “So long as vegetable food is not made suitable for human system there is no alternative to meat eating. What we now want is an immense awaking of Rajasik Shakti. So, I say, eat large quantities of flesh and meat.” - II, 70

    जब तक शाकाहार मानव शरीर के लिए उपयुक्त नहीं बन जाता तब तक मांसाहार ही उसका विकल्प है। अब हमें राजस शक्ति की आवश्यकता हैइसलिए मैं कहता हूँखूब मांस खाओ।

    यदि स्वामी विवेकानन्द को शरीर-शास्त्र का तनिक-सा भी ज्ञान होता तो कभी ऐसी मूर्खतापूर्ण बात न कहते। प्रकृति ने मनुष्य को जिस प्रकार के दॉंत और आँत दी हैंउनके अनुकूल शाकाहार ही हैमांसाहार कदापि नहीं। जहॉं तक शक्ति का सम्बन्ध है वह शाकाहारी Horse- Power के नाम से प्रसिद्ध हैमांसाहारी Lion-Powerके नाम से नहीं।

    5. एक भक्त ने स्वामी जी से पूछा-"मांस तथा मछली खाना क्या उचित और आवश्यक है?" स्वामीजी ने उत्तर दिया- "खूब खाओ भाईइससे जो पाप होगावह मेरा होगा.... वैदिक तथा मनु के धर्म में मछली और मांस खाने का विधान है।.... घास-पात खाकर पेट-रोग से पीड़ित बाबाजी के दल से देश भर गया है..... अत: अब देश के लोगों को मछलीमांस खिलाकर उद्यमशील बनाना होगा।" - विवेकानन्द के सङ्ग में267-70

    मांसाहार के सम्बन्ध में इस प्रकार के कुत्सित विचार उसी व्यक्ति के हो सकते हैं जिसने न वेद पढे हैं और न मनुस्मृति आदिन जिसे भारतीय संस्कृति का ज्ञान है और न शरीर-विज्ञान या चिकित्सा-शास्त्र की जानकारी।

    इस्लाम व ईसाइयत-1. “The vast majority of perverts to Islam and Christianity are perverts by the sword or descendents of those.” - Ibid. II. 13.

    मुसलमान और ईसाइयों में बहुत बड़ी संख्या उन लोगों की है जिनका धर्म-परिवर्तन तलवार के जोर से किया गया था या जो ऐसों की सन्तति हैं।

    2. “The Mohammdon religion allows Mahammdons to kill all those who are  not of their religion. It is clearly stated in Koran- ‘Kill the Infidles if they do not accept Islam. They must be put to fire and sword.” - II, 180

    इस्लाम उन लोगों को कत्ल करने की आज्ञा देता है जो उनके धर्म के मानने वाले नहीं हैं। कुरान में स्पष्ट लिखा है- काफिरों को मार डालो अगर वे इस्लाम को स्वीकार न करेंया तो उन्हें तलवार के घाट उतार देना चाहिए या आग में झोंक देना चाहिए।

    3. “The Mohammdons came upon the people of India always killing and slaughtering. Slaughtering and killing, they over-ran them.” - II, 151.

    वस्तुत: इस्लाम के खलीफा एक हाथ में कुरान और दूसरे में तलवार लेकर यही करते थे- "या इस्लाम स्वीकार करो या मौत को गले लगाओ।"

    इतना सब होने पर भी स्वामीजी कहते  हैं-

    1. “It is the followers of Islam and Islam alone who look upon and behave towards all mankind as their own soul.” - I, 254.

    केवल इस्लाम के अनुयायी ही ऐसे लोग हैं जो मनुष्य मात्र को अपनी आत्मा के समान मानते और वैसा ही व्यवहार करते हैं।

    2. “Without the help of Islam the theories of Vedant, however fine and wonderful they may be, are entirely valueless.” - I, 255.

    वेदान्त के सिद्धान्त कितने ही अच्छे और विलक्षण क्यों न होंइस्लाम की सहायता के बिना किसी काम के नहीं।

    3. “The spirit of democracy and equality in Islam appealed to Narendra’s (Vivekanand’s) mind and he wanted to create a new India with Vedantic brain and Islamic body.”    

    -I, 79.

    इस्लाम की लोकतन्त्र और समानता की भावना से विवेकानन्द बड़े प्रभावित थे और वे एक नया भारत बनाना चाहते थेजिसका शरीर इस्लाम का हो और मस्तिष्क वेदान्त का।

    4. एक ओर वे इस्लाम के थोथे भ्रातृभाव और उसकी तथाकथित सार्वभौमता की आलोचना करते हुए कहते हैं-"मुसलमान सार्वजनिक भ्रातृभाव का शोर मचाते हैंकिन्तु  वास्तविक भ्रातृभाव से कितनी दूर हैं। जो मुसलमान नहीं हैं वे उनके भ्रातृसंघ में शामिल नहीं हो सकते। उनके गले काटे जाने की ही अधिक सम्भावना है।" - धर्मरहस्यपृष्ठ 43

    दूसरी ओर स्वामीजी कहते हैं-

    “For our own motherland a junction of two great religious systems - Hinduism and Islam, is the only hope.” - I, 255. II, 218.

    हमारी अपनी मातृभूमि के लिए संसार के दो महान्‌ धर्मों हिन्दूधर्म व इस्लाम का मेल ही एकमात्र आशा है।

    “I see in my mind’s eye the future perfect India rising out of this chaos and strife, glorious and invincible, with a Vedantic brain and Islami body.” - II, 415-16.

    एक ओर "वसुधैव कुटुम्बकम्‌" का उद्‌घोष करने वाला भारत और मनुष्य को ही नहींप्राणिमात्र को ब्रह्म का रूप माननेवाला वेदान्त और दूसरी ओर मतभेद के कारण दूसरों की गर्दन काटने का आदेश देनेवाला (स्वयं स्वामी विवेकानन्द के पूर्वोद्‌धृत शब्दों में) इस्लाम इन दोनों में 36 का सम्बन्ध होने से मेल होना असम्भव है। संसार के सभी देशों में (विशेषत: भारत में) इसलाम के कारण जो खून की नदियॉं बही हैं और आज भी बह रही हैंइसका थोड़ा-सा भी ज्ञान यदि स्वामी विवेकानन्द को होता तो कभी ऐसी व्यर्थ की बातें न कहते।

    फिर एक जगह वे कह देते हैं- I want to lead mankind to the place where there is neither is neither Veda, nor the Bible, nor the Koran.” (I, 255.)अर्थात्‌ मैं संसार के लोगों को वहॉं ले-जाना चाहता हूँ जहॉं न वेद होन बाइबल और न कुरान।

    ऐसे स्थान का अता-पता उन्होंने नहीं दिया। वस्तुत: स्वामी विवेकानन्द के विचारों में सामंजस्य नहीं है। इसलिए उनके सम्पादक ने पहले ही कह दिया- “Vivekanand was the last person to worry about formal consistency.... That was his nature- and he was supremely indifferent if his words of today seemed to contradict those of yesterday.”

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

     

    On the one hand, he criticizes the slight fraternity of Islam and its so-called universality - "Muslims make a noise of public fraternity, but how far away from genuine fraternity is. Those who are not Muslims cannot join their fraternity. Their throats It is more likely to be cut. " - Religion, page 43

    Bharata-Bhagyavarita Maharishi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Parbhani - Karauli - Kota - Jabalpur - Jhabua - Osmanabad | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-6 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-6

    लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

    देशप्रेम-“There are people whose brains have become turn by western luxurious ideals and who have drunk deep of enjoyment, this is curse of the west.” -II,159.

    ऐसे लोग भी हैं जिनके दिमाग पश्चिम के भोगवादी विचारों से दूषित हैं और जो पश्चिम के इस भोगवाद में आकण्ठ डूब गये हैं। इतने पर भी-“On April, 1897 in the course of a letter to the lady editor or an Indian Magazine, he wrote- It has ever been my conviction that we shall not be able to rise unless the western countries come to our help.” -I,255.अर्थात्‌ मेरा सदा से यह विश्वास रहा है कि पाश्चात्य देशों की सहायता के बिना हम ऊपर नहीं उठ सकते।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    धन प्राप्ति के वैदिक उपाय

    Ved Katha Pravachan _25 (Vedic Remedies for Wealth) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    “When his spiritual daughter, M.E. Noble, expressed her desire to come to India, the Swami wrote to her on July 29, 1897- ‘India cannot produce great women. She must borrow them from other nations of the west. Your education, sincerity and above all your celtic blood make you just the woman wanted.” -I, 259.

    जब उनकी आध्यात्मिक पुत्री एम.ई. नोबल ने भारत आने की अपनी इच्छा व्यक्त की तो उत्तर में स्वामीजी ने 29 जुलाई 1897 को लिखा- "भारत में महान्‌ स्त्रियॉं पैदा नहीं हो सकतीं। भारत को ऐसी स्त्रियॉं पश्चिम के देशों से उधार लेनी होंगी। अपनी शिक्षानिष्ठा और सबसे अधिक अपने कैल्टिक रक्त के कारण आप बिल्कुल वैसी ही स्त्री हैंजैसी भारत को चाहिएँ।"

    अगले ही क्षण वे कह उठते हैं-“I should very much like our women to have your intellactuality, but not, if it must be at the cost of purity. Intellactuality is not the highest good. Morality and spiritualty are the things for which we strive. Our woman are not so learned, but they are more pure.”

    “Your men bow and offer a chair, but in another breath they offer compliments. They say- ‘O Madam! how beautiful are your eyes! what right have they to do this? How dare a man venture so far and how can your woman permit it?”

    “No sooner are a young man and a young woman left alone then he pays compliments to her, and perhaps before he takes a wife he has courted two hundred women.” - V, 412-13.

    मैं अपने देश की नारियों को आपकी तरह विदुषी देखना चाहूँगाकिन्तु उनकी पवित्रता को खोकर नहीं। वैदुष्य सर्वोच्च गुण नहीं है। नैतिकता और आध्यात्मिकता वे गुण हैं जिनके लिए हम प्रयत्नशील हैं। हमारी नारियॉं इतनी (तुम्हारे जितनी) विदुषी नहीं हैपर वे अधिक पवित्र हैं।

    आपके यहॉं के पुरुष महिला को नमन करते हैं और कुरसी पेश करते हैंपरन्तु दूसरे ही सॉंस में उसकी प्रशंसा करते हैं। वे कहते हैं- आपकी आँखें कितनी सुन्दर हैं... ज्यों ही एक युवक और युवती को एकान्त में छोड़ दिया जाता है.... किसी एक को पत्नी बनाने से पहले दो सौ नारियों से सम्बन्ध कर चुका होता है।

    पश्चिम में तो नारीनारी रूप में ही दिखाई नहीं देती। वह पुरुष का ही प्रतिरूप जान पड़ती है। वह गाड़ी चलातीकार्यालय में काम करती और इसी प्रकार के अन्य व्यावसायिक कार्यों में लगी रहती है। स्त्रियोचित नम्रता तथा मर्यादा के दर्शन तो भारत में ही होते हैं।

    यह सब जानते और मानते हुए भी वे कहते हैं-

    “India cannot produce great women. Now here in the world are women like those in this country (America). How pure and kindhearted.”

    इतनी अति प्रशंसा किस लिएऔर क्यों वे अमरीका में ही बस जाना चाहते थे?

    “They (women of America) are Laxshmi (The Godess of fortune) in beauty and like Saraswati (Godess of learning) in virtue- they are the Divine Mother incarnate and by worshipping them one verily attains perfection in everything. I am really struck with wonder to the women here- most wonderful women are these.” - II, 136

    जिस देश ने शास्त्रार्थ-समर में विश्वविजयी जगद्‌गुरु आदि शंकराचार्य को पराजित करने वाली भारती देवी कोजनक की सभा में महर्षि याज्ञवल्क्य को चुनौती देनेवाली वाचक्नवी गार्गी कोकालिदास के समकालीन देशभर के विद्वानों को धूल चटानेवाली विद्योत्तमा कोयुद्धक्षेत्र में बड़े-बड़े शूरवीरों के दॉंत खट्‌टे करने वाली महारानी दुर्गावती और झॉंसी की रानी लक्ष्मीबाई कोराष्ट्रहित में अपने इकलौते पुत्र का बलिदान करने वाली पन्नाधाय कोअपने पति चूड़ावत को पत्नी-मोह में ग्रस्त देखकर अपने हाथों से अपना सिर काटकर बिदा करने वाली सद्योविवाहिता अनुपम सुन्दरी हाड़ा रानी कोअपने सतीत्व की रक्षार्थ जलती चिता में कूदकर प्राण देनेवाली पद्मिनी जैसी वीरांगनाओं को तथा गणितविद्या में अद्‌भुत नैपुण्य प्राप्त लीलावती को जन्म दिया उसके विषय में विवेकानन्द के भारत-विरोधी उपर्युक्त कथन को पढकर यही कहना पड़ता है-"घर से बैर अपर से नाताऐसी बहू मत देहु विधाता।"

    पर "जादू वह जो सिर पर चढकर बोले।" विवेकानन्द को अमरीकन स्त्रियों का उत्कर्ष दिखाने की दृष्टि से उनका गुणगान करने के लिए उपमान के रूप में भारतीय नारियों-सरस्वती और लक्ष्मी को ही अपनाना पड़ा। उपमेय से उपमान का आसन ऊँचा होने से न चाहते हुए भी उन्हें भारतीय नारियों को उत्कृष्ट मानना पड़ा।

    4. “I belong to the world as much as to India. No country has a special claim on me. Am I India’s slave?”

    मैं जितना भारत का हूँ उतना ही संसार का । किसी देश-विशेष का मेरे ऊपर विशेष अधिकार नहीं है। मैं भारत का गुलाम नहीं हूँ।

    ब्रिटिश सरकार को दृष्टि में रखकर ही उन्होंने अपने सहयोगियों को निर्देश दिया था कि "मेरा भाषण तैयार करते समय ऐसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया जाए जिनसे महाराणी विक्टोरिया के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट हो"। - भारतीयमहर्षि दयानन्द और स्वामी विवेकानन्दपृष्ठ 300 

    उन्हें (स्वामी विवेकानन्द को) भारत की अपेक्षा अमरीका में रहना अधिक पसन्द था। उनकी स्पष्टोक्ति थी कि "यहॉं मुझे खाने-पीने और कपड़े-लत्ते की सभी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। फिर मैं कृतघ्नियों और बुद्धिहीनों के देश में क्यों लौटूँं?" - वही पृ.306

    "अंग्रेजीराज का गुणगान करने के कारण ही विवेकानन्द को सर्वप्रथम अंग्रेजों ने ही उठाने का प्रयास किया। उन्हें यह उनकी राजभक्ति का पुरस्कार था।बी.बी.मजूमदार - "हिस्ट्री आफ सोशल एण्ड पोलिटिकल आइडियाज" पृष्ठ 267

    "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"- सर्वमान्य सिद्धान्त रूप है। स्वामी विवेकानन्द इसका अपवाद थे। उन्हें यह स्वीकार्य नहीं था।

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

     

    "It was the British who tried to raise Vivekananda for the first time due to the praise of the English king. This was his award of royalty. - BB Majumdar -" History of Social and Political Ideas " Page-267

    Bharata-Bhagyavarita Maharishi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Osmanabad - Parbhani - Karauli - Kota - Jabalpur - Jhabua | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-6 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-7

    लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

    मैक्समूलरमैक्समूलर ही वह व्यक्ति था जिसने क्रीतदास के रूप में लार्ड मैकाले से प्रेरणा पाकर घोषणापूर्वक भारतीय साहित्य को जानबूझकर विकृतरूप में प्रस्तुत किया। उसी विषवृक्ष के फलों का यह परिणाम है कि आज का शिक्षित समाज अपने साहित्य,सभ्यता,संस्कृति और इतिहास को हेय दृष्टि से देखता है। स्वामी विवेकानन्द की दृष्टि में इसी मैक्समूलर से बढकर देशभक्त हमारे देश में नहीं हुआ। उनके जीवनीकार ने लिखा है-

    The Swami was deeply affected to see Maxmuller’s love for India. He wrote enthusiastically- “I wish I had a hundred part of that love for my motherland. Endowed with an extra-ordinary and at the same time, an intensely active mind, he has lived and moved in the world of Indian thought for fifty years or more.”-I,192

    मैक्समूलर के वैदुष्य का बखान करते हुए स्वामी विवेकानन्द ने यहॉं तक कह डाला कि "कभी-कभी मुझे ऐसा अनुमान होता है कि स्वयं सायणाचार्य ने ही अपने भाष्य का पुनरुद्धार करने के लिए मैक्समूलर के रूप में जन्म लिया है।"- विवेकानन्द के संग में,पृ.91

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    वेद में धन प्राप्ति के मन्त्र
    Ved Katha Pravachan _24 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    स्वामी विवेकानन्द के मैक्समूलर की प्रशंसा में युक्ति और तर्क की सीमा को लांघ जाने का कारण यह था कि उसने स्वामीजी के गुरु रामकृष्ण परमहंस की जीवनी और उपदेशों पर एक बड़ा सुन्दर ग्रन्थ लिखा था- ‘Ramkrishna : His life and sayings’

    Maxmuller invited Vivekanand to lunch with him in Oxford on May 28,1896. The Swami asked Maxmuller- “When are you coming to India? All men there would welcome one who has done so much to place the thoughts of their ancestore in a true light. -I, 193.

    मैक्समूलर ने स्वामी विवेकानन्द को 28 मई 1896 को आक्सफोड में भोजन पर आमन्त्रित किया। वहॉं स्वामीजी ने मैक्समूलर से पूछा- "आप भारत कब आ रहे हैंवहॉं के लोग उस व्यक्ति का स्वागत करेंगे जिसने उनके पूर्वजों के विचारों को उनके सही रूप में प्रस्तुत करने में इतना परिश्रम किया हैं?"

    यदि स्वामी विवेकानन्द ने मैक्समूलर के जीवनवृत्त को और उसके ग्रन्थों को पढा होता तो कभी इस प्रकार की बात कहने का दुस्साहस न करते। मैक्समूलर ने जो किया उसका उद्‌देश्य हिन्दुओं को ईसाई बनाकर भारत की दासता की जंजीरों को सुदृढ करना था। इस बात की पुष्टि में यहॉं मैक्समूलर के दो पत्रों का उल्लेख किया जा रहा है। वेदों के अनुसन्धान के कार्य में लगने के अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए मैक्समूलर ने सन्‌ 1866 में अपनी पत्नी को भेजे पत्र में लिखा था-

    “This edition of mine and the translation of the Vedas will, hereafter, tell to a great extent on the fate of India. It is the root of their religion and to show them what the root is, I feel sure, is the only way of uprooting all that has sprung from it during the last three thousand years.” -Life and Letters of Frederick Maxmuller, Vol. I, chap. XV, P.34

    मेरा यह संस्करण और वेदों का अनुवाद कालान्तर में भारत के भाग्य को दूर तक प्रभावित करेगा। यह उनके धर्म का मूल है। मेरा यह निश्चित मत है कि उन्हें यह दिखाना कि यह मूल कैसा हैगत तीन हजार वर्षों में इससे उत्पन्न होने वाली सब चीजों को जड़ समेत उखाड़ फेंकने का एकमात्र उपाय है।

    और 16 दिसम्बर 1868 को भारत सचिव ड्यूक आफ आर्गाइल के नाम भेजे पत्र में मैक्समूलर ने लिखा था-

    “The ancient religion of India is doomed. Now, if Christianity does not take its place, whose fault will it be?” - Ibid, chap. 16, P. 378

    भारत का प्राचीन धर्म नष्टप्राय है। अब यदि उसका स्थान ईसाइयत नहीं लेती तो उसके लिए कौन दोषी होगा?

    मैक्समूलर की स्तुति करके स्वामी विवेकानन्द ने जाने-अनजाने परोक्षरुप से अपने को इस पापकर्म में भागीदार बनाया।

    शायद मैक्समूलर से प्रभावित होकर ही स्वामी विवेकानन्द ने लिखा होगा-

    1. “By the Vedas I do not mean any particular books, containing the words of a prophet or deriving sanction from supernatural authority, but the accumulated treasure of spiritual laws, discovered by various Indian seers in different times.- Bio. 122

    अर्थात्‌ वेदों से मेरा अभिप्राय किसी पुस्तक विशेष से नहीं है। वेद का अर्थ है भिन्न-भिन्न कालों में अनेक व्यक्तियों द्वारा अनुभूत आध्यात्मिक तत्त्वों का संचित कोश।

    2. मैं वेद का उतना ही अंश मानता हूँ जितना युक्तिसंगत हैऽ वेद के अनेक अंश तो स्पष्टत: परस्पर विरोधी (बचकाना व मूर्खतापूर्ण- मैक्समूलर) हैं। -विवेकानन्द की कथाएँपृ.125

    3. वेदों में बहुत-से ऐसे मन्त्र हैं जो प्राणिमात्र को पीड़ा पहुँचाने के लिए अनेक प्रकार के अशुद्ध कर्मों का विधान करते हैं। - स्वामी विवेकानन्द से वार्तालाप पृ.47

    4. कुछ मन्त्रों में हो हास्यास्पद कथाएँ भी वर्णित हैं। - भारत में विवेकानन्द पृ. 95

    5. वे (आर्य) यज्ञवेदी बनाते हैं और पशुबलि देकर उनके पके मांस का नैवेद्य इन्द्र को अर्पण करते है। - हिन्दूधर्म पृ. 31

    6. वेद के संहिताभाग में अनन्त स्वर्ग का वर्णन हैजिस प्रकार ईसाइयों के धर्मग्रन्थों में है। -व्यावहारिक जीवन में वेदान्त पृ. 39

    श्रीरामकृष्ण ईश्वरावतार- 1. “Bhagwan Shri Ramkrishna incarnated himself in India.”- भगवान्‌ श्रीरामकृष्ण ने भारत में अवतार लिया।

    2. “Krishna was the greatest incarnation of God.”

    3. On April 4, 1896 he wrote to India that R.K. was God. If people worship him as God, no harm.

    4. “If I has written about R.K. I would have proved qouting form scriptures and even the holy books of Christians that R.K. was the greatest of all the prophets of the world.” -I, 193

    5. “Of Buddha he said that he was the greatest man that ever lived.” -I, 269

    6. “The Omnipresent God of the unvierse cannot be seen, until he is reflected by prophets, the incarnations, the embodiment of God.” - I, 146

    7. “On August 2,1896 Swami Vivekanand entered the cave of Amarnath. He had a vision of Shiva himself. The details of the experience he never told to anyone, except that he had been granted the grace of Amarnath not to die untill he himself willed it. For days he spoke of nothing but Shiva. He said- ‘The Image was the lord himself.”-I, 272

    क्या स्वामी विवेकानन्द अपनी इच्छा से मरे थे?

    चंगेज खॉं“One day he spoke of Chenghis Khan and declared that he was not a vulgar oppressor. He compared him to Nepoleon and Alaxander, saying that they all wanted to unify the world and it was the same soul that had incarnated itself three times in the hope of bringing about human unity through political conquest. In the same way one soul might have come again and again as Krishna, Buddha and Christ to bring about unity of mankind through religion.”-I, 266-67

    अर्थात्‌ एक दिन स्वामीजी ने चंगेज खॉं के विषय में कहा था कि वह कोई आतंकवादी या अत्याचारी नहीं था। उसकी तुलना नेपोलियन और सिकन्दर से करते हुए उन्होंने कहा कि वे सब संसार को एक करना चाहते थे। एक ही आत्मा ने राजनैतिक विजय के द्वारा मनुष्यमात्र को एकता के सूत्र में बॉंधने की आशा में तीर बार अवतार धारण किया। इसी प्रकार एक ही आत्मा धर्म के द्वारा संसार में एकता स्थापित करने के लिए बार-बार कृष्णबुद्ध और ईसा के रूप में आया होगा।

    इस पर किसी टिप्पणी की अपेक्षा नहींसिवा इसके कि बहुरूपिया बनकर भी सर्वशक्तिमान्‌ परमेश्वर संसार में एकता स्थापित नहीं कर सकाउस संसार में जो स्वामी विवेकानन्द के मत में स्वयं उसी का रूप था।

    स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म समभाव का प्रतीक माना जाता हैकिन्तु उनके ग्रन्थों को पढने से पता चलता है कि खण्डन करने में वे अपनी मिसाल आप ही थे। पौराणिकों की आलोचना के सन्दर्भ में उन्होंने लिखा है-

    1."और भला चाहते हो तो घण्टा-सण्टा गंगा में बहाकर साक्षात्‌ भगवान्‌ के नर-देहधारी प्रत्येक मनुष्य की पूजा करो। करोड़ो रुपये खर्च कर बनाये गये काशी और वृन्दावन के श्रीठाकुर के दरवाजे खुलते और बन्द होते रहते हैं। अब ठाकुरजी कपड़े बदलते हैं और अब ठाकुरजी भोग पाते हैं और अब ठाकुरजी निपूतों के बाप-दादा के श्राद्ध में पिण्डा निगलते हैंऔर इधर जीते-जागते ठाकुर अन्न के बिना मर रहे हैं।" -पत्रावलीभाग 2पृ.199

    मूर्त्तिपूजकों के आडम्बरों से क्षुब्ध होकर उन्होंने यह सब एक पत्र में लिख डाला। अन्यथा "पर अपदेश कुशल" श्रीरामकृष्ण तथा उनके अन्धभक्त विवेकानन्द जीवनभर निरीह प्राणियों के रक्त मांस पर जीनेवाली काली की उपासना करते रहे और अब उनके शिष्य अपने आश्रमों में काली के साथ-साथ श्री रामकृष्ण को ईश्वर का अवतार मानकर उनकी षोडशोपचार पूजा-अर्चना में सर्वात्मना प्रवृत्त हैं। इस प्रकार की पूजा में रहते मूर्त्तिपूजा की उनकी दार्शनिक व्याख्या को सुनकर ईसाइयों ने स्वामी के शिकागो भाषण की आलोचना कुछ इन शब्दों में की होगी- "सूक्ष्म तर्क व युक्ति के द्वारा मूर्तिपूजा की दार्शनिक व्याख्या करके वे पाश्चात्य जगत्‌ की आँखों में धूल झोंकने के लिए उद्यत हुए हैंक्योंकि जड़ के उपासक हिन्दू उक्त प्रकार की व्याख्या स्वप्र में भी नहीं सोच सकते।" - विवेकानन्द-चरित पृ. 193

    2. "जैन और बौद्ध आदि के फेर में पड़कर हम लोग तामसिक लोगों का अनुसरण कर रहे हैं। बुद्ध ने हमारा सर्वनाश किया और ईसा ने ग्रीस और रोम का सर्वनाश किया।" - प्राच्य और पाश्चात्यपृ.13-15

    "जहॉं कहीं भी बुद्ध पहुँचेवहीं उन्होंने हिन्दुओं द्वारा पवित्र मानी जाने वाली सभी वस्तुओं को मिट्‌टी में मिलाने का यत्न किया।" - हिन्दूधर्मपृ.38

    ईसाई- (1) "सार्वजनिक भ्रातृभाव की बातें करते हैंकिन्तु जो ईसाई नहीं हैंउनके लिए नरक का द्वार खुला बताते हैं। इसलिए ईसाईयों का यह विश्वास कि कोई भी व्यक्ति तब तक अच्छा या भला नहीं हो सकता जब तक वह ईसाई न बन जाएउनकी सार्वजनिक उदारता का पर्दाफाश कर देता हैं।" - धर्मरहस्य पृ. 34

    2. एक दिन ईसाइयों की एक सभा को सम्बोधित करते हुए स्वामीजी ने कहा कि तुम लोग हमारे देश के लागों को प्रशिक्षण देते होकपड़ा देते होपैसे देते होपर किस लिएइसलिए कि यहॉं आकर तुम हमारे पूर्वजों कोहमारे धर्म को कोसो और गालियॉं दो। तुम एक मन्दिर से गुजरते होयह कहते हुए-"ऐ मूर्त्तिपूजकों ! तुम सब नरक में जाओगेपरन्तु हिन्दू भोला हैइसलिए हॅंस देता हैयह कहते हुए कि मूर्खों को बकने दोपरन्तु तुम्हारे मिशनरियों को ध्यान रखना चाहिए कि यदि सारा भारत उठ खड़ा हुआ और हिन्द महासागर के तल में जमी सारी कीचड़ पाश्चात्य देशों के ऊपर फेंकने लगा तो जितना तुम हमारे साथ कर रहे होउसकी तुलना में वह कुछ भी नहीं होगा।" -ा127-29

    नीचे के दो उदाहरण स्वामीजी के मौलिक एवं अलौकिक चिन्तन के उदाहरण हैं-

    1. "बाल-विवाह से जाति अधिक पवित्र बनती है। बाल-विवाह ने हिन्दूजाति को सतीत्व धर्म से विभूषित किया है। बाल-विवाह की भावना को ग्रहण करने से ही यथार्थ सभ्यता का संचार हो सकता है।" - भारत में विवेकानन्दपृ. 430

    2. "पिछले सौ वर्षों में समाज-सुधार के लिए जो आन्दोलन हुएउनसे देश का कोई हित नहीं हुआ। केवल निन्दा और विद्वेषपूर्ण साहित्य की रचना से क्या लाभ?"- वहीपृ. 126-27

    स्वामी विवेकानन्द दूसरों की निन्दा करने में किसी से पीछे नहीं हैंकिन्तु वे इसका सर्वाधिकार अपने पास सुरक्षित रखना चाहते हैं। उनके विचार न तर्कप्रतिष्ठित हैं और न उनमें परस्पर कोई संगति या सामंजस्य है। न उनमें कहीं हिन्दुत्व के प्रति निष्ठा हैन भारतीयता के प्रति आग्रह। जैसे उनके गुरु आत्मकेन्द्रित थे वैसे विवेकानन्द गुरु-केन्द्रित थे। उनके द्वारा संस्थापित रामकृष्ण मिशन सन्‌ 1986 में कलकत्ता हाईकोर्ट में यह निर्णय कराने में सफल हो गया कि उन्हें हिन्दू न माना जाए। उनका तर्क है कि "हिन्दू वह होता है जो वेदों को मानता है। हमारे लिए वेदबाइबल व कुरान सब एक-समान हैंइसलिए हम हिन्दू नहीं हैं।"

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

     

    Christians- (1) "Speak of public fraternity, but for those who are not Christians, the gates of hell are open. Hence the belief of Christians that no man can be good or good unless he is a Christian. It exposes their public generosity. " - Religious page 34

    Bharata-Bhagyavarita Maharishi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Indore - Nandurbar - Nashik - Jhunjhunu - Jodhpur - Hoshangabad | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-8

    लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

    सर सैयद अहमद खॉं-19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के मुस्लिम नेताओं में सर सैयद अहमद खॉं अन्यतम थे। स्वामी दयानन्द के वे बड़े प्रशंसक थे। दोनों परस्पर मिल-बैठकर विभिन्न विषयों पर चर्चा में प्रवृत्त रहते थे। दिल्ली दरबार के अवसर पर आयोजित एकता सम्मेलन में स्वामीजी ने उन्हें आदरपूर्वक आमन्त्रित किया था। स्वामीजी के सम्पर्क में आनेवाला व्यक्ति उनके बौद्धिक वैभव से प्रभावित होकर उस दिशा में सोचने लगता था। सत्यार्थप्रकाश में मिथ्यार्थ की समीक्षा ने अनेक मुसलमान विद्धानों को कुरान अनुवाद और उसके आधार पर प्रचलित सिद्धान्तों में अपेक्षित संशोधन करने की प्रेरणा की। इस दिशा में सबसे पहले सर सैयद अहमद खॉं ने कदम बढाया और कुरान की बुद्धिगम्य व्याख्या करने का प्रयास किया,परन्तु जिस मजहब में मन्तक (Logic) की किताब के वर्क से पैर छू जाने से ही मनुष्य काफिर और इस कारण वाजिबुल कत्ल करार दे दिया जाता हो,वहॉं अक्ल को दखल कहॉं?मुसलमानों में उन्हें नास्तिक और प्रकृतिपूजक कहा जाने लगा। इस्लाम में काफिर तो वाजिबुल कत्ल है ही,जो इस्लाम के दायरे में हैं और अपने आपको मोमिन कहते हैं उनके सिर पर भी तलवार लटकती रहती है। यदि किसी ने थोड़ी-सी भी अक्ल की बात की या सुधार का नाम लिया या प्रचलित मान्यताओं या विश्वासों से वैमत्य प्रकट किया तो उसके विरुद्ध फतवा जारी कर उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। आज सन्‌ 1994 में‘Satanic Verses’ के लेखक ब्रिटिश नागरिक सलमान रुशदी और "लज्जा" उपन्यास की बंगलादेशीय लेखिका तसलीमा नसरीन के साथ यही हो रहा है और हम तो यहॉं 19वीं शताब्दी की बात कर रहे हैं।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    जैसा बोओगे वैसा काटोगे
    Ved Katha Pravachan _23 (Explanation of Vedas & Dharma) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    सर सैयद अहमद खॉं और उनके सहयोगियों ने इस्लाम का रूप सॅंवारना चाहा तो मुसलमान बौखला उठे। इस बौखलाहट के नमूने के तौर पर हम यहॉं उस पात्र को उद्‌धृत कर रहे हैं जो "तहजीबुल इखालाक" जिल्द अव्वल के पृष्ठ 261 पर छपा है। यह पत्र मजहरुल्मुल्क ने मौलवी महदी अली। (मोहसिनुल्मुल्क) को लिखा था -

    "हजरत न मुहत्सिब (हिसाब लेने वाला) हैजिसके दुर्रे का खौफ होन काजी है जिसके फतवे से दार (सूली) का डर हो। आजाद सरकार की हकूूमत हैवरना इस आजादी से बकबक करने की कैफियत मालूम हो जाती। अब तक कभी की आजादी आपको दुनिया से हासिल हो गई होती। इससे बेहतर है कि आप मजहवी तहरीरों से बाज आ जाएँवरना कोई जला हुआ मुसलमान कुछ कर बैठे तो सब खैरखाही इस्लाम की मालूम हो। दिलजले बुरे होते हैं।"

    सर सैयद अहमद खॉं के सहयोगियों पर इस प्रकार की धमकियों का क्या प्रभाव पड़ाहम नहीं कह सकतेपरन्तु सर सैयद क्या-से-क्या हो गयेयह यहॉं आगे दिये विवरण से पता लग जाता है। पंजाब के हिन्दुओं के सामने बोलते हुए सर सैयद अहमद खॉं ने कहा था-

    “The world ‘Hindu’ that you have used for yourself is, in my opinion not correct because that is not in my view the name of a religion. Rather, every inhabitant of Hindustan can call himself Hindu. I am, therefore, sorry that you do not regard me as a Hindu, though I am an inhabitant of Hindustan.”

    अर्थात्‌ आपने अपने लिए "हिन्दू" शब्द का प्रयोग करके ठीक नहीं किया। हिन्दू शब्द किसी मत या सम्प्रदाय का वाचक नहीं है। हिन्दुस्तान में रहनेवाला प्रत्येक व्यक्ति अपने को हिन्दू कह सकता है। मुझे खेद है कि आप लोग मुझे हिन्दू नहीं मानतेयद्यपि मैं हिन्दुस्तान का रहनेवाला हूँ।

    आज कौन विश्वास करेगा कि उपर्युक्त शब्द कभी इस देश में साम्प्रदायिकता की जननी अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद खॉं के मुँह से निकले थे। कुछ ही दिन बाद इन्हीं सैयद अहमद खॉं ने लिखा -

    “I object ot every Congress, in every shape or form, whatsoever, which regards India as one nation.”

    अर्थात्‌ मैं किसी भी रूप में हिन्दुस्तान को एक राष्ट्र मानने के लिए तैयार नहीं हूँ। इन शब्दों से स्पष्ट है कि सन्‌ 1947 में भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार द्विराष्ट्रवाद (Two Nation Theory) के प्रवर्त्तक सर सैयद अहमद खॉं थेन कि मुहम्मद अली जिन्नाह। अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी रूपी विषवृक्ष का बीजारोपण मुहम्मेडन एंग्लो ओरियण्टल कालिज (M.A.O. College) के रूप में सन्‌ 1875 में सर सैयद अहमद खॉं के द्वारा हुआ था।

    सन्‌ 1883 में बैक (Beck) नामक एक अंग्रेज की नियुक्ति कॉलिज में प्रिंसिपल के पद पर हुई। 1899 तक यह व्यक्ति अपने पद पर बना रहा। इन सोलह वर्षों में सर सैयद अहमद खॉं और उनका कालिज पूरी तरह मिस्टर बैक के प्रभाव में रहे। परिणामत: ये दोनों राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के केन्द्र बन गये। इंग्लैंड से भारत के लिए रवाना होने से पूर्व इन्हीं मि. बैक ने वहॉं एक भाषण दिया था। अपने भाषण में भारत के लिए प्रस्तावित संसदीय पद्धति का विरोध करते हुए मि.बैक ने कहा था कि इस प्रणाली के लागू हो जाने पर -

    “The Muslims will be under the majority opinion of the Hindus, a thing which will be highly resisted by the Muslims and which, I am sure they will not accept quietly.”

    इस प्रकार मुसलमानों को हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काकरहिन्दुओं और मुसलमानों को आपस में लड़ाने के इरादे से बैक ने इस देश की धरती पर कदम रक्खा और जब तक यहॉं रहा इस दिशा में प्रयत्न करता रहा। सन्‌ 1885 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हुई। इसके तीन वर्ष बाद 1888 में मि. बैक के परामर्श और सहयोग से सर सैयद ने ‘Patriotic Association’की स्थापना की जिसका उद्देश्य ब्रिटिश पार्लियामेंट को यह विश्वास दिलाना था कि स्वराज्य के लिए किये जा रहे आन्दोलन में भारत के मुसलमान हिन्दुओं के साथ नहीं है। इंगलैंड लौटने पर सन्‌ 1895 में मि. बैक ने एक भाषण दिया जिसका सार संक्षेप अलीगढ कालिज के मैगजीन में इन शब्दों में छपा था-

    “A friendship between the English people and Muslims was possible but not between the Muslims and followers of other religions.”

    अर्थात्‌ अंग्रेजों के साथ तो मुसलमानों का मेल हो सकता हैकिन्तु अन्य मत वालो के साथ नहीं। इस प्रकार की भावना के रहते साम्प्रदायिक सद्‌भाव तथा देशभक्ति का विचार भी मुसलमानों के भीतर कैसे पनप सकता था?

    सन्‌ 1898 में सर सैयद की और 1899 में बैक  की मृत्यु के बाद बैक के उत्तराधिकारी थियोडार मौरिसन ने बैक का काम जारी रक्खा। वह मुसलमान विद्यार्थियों को बराबर भड़काता रहता था कि भारत में लोकतन्त्र का अर्थ होगा-अल्पसंख्यक मुसलमानों को लकड़हारेघसियारे और पानी भरनेवालें झींवर बना देना।

    मौरिसन के बाद कालिज के प्रिंसिपल के पद पर आर्चिबाल्ड नामक अंग्रेज की नियुक्ति हुई। उन दिनों बंग विभाजन के कारण लोगों में भारी उत्तेजना था। उसे शान्त करने के लिए अंग्रेज सरकार शासन में कुछ सुधार करना चाहती थी। जैसे ही इस बात की भनक आर्चिबाल्ड को पड़ीवह तत्काल शिमला पहुँचा और वायसराय लार्ड मिण्टो से साम्प्रदायिक आधार पर मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की मॉंग की। इसी निमित्त 1 अक्टूबर 1906 को एक शिष्टमण्डल सर आगाखॉं के नेत्तृत्व में भेजा गया। ब्रिटिश सरकार तो "फूट डालो और राज्य करो" (Divide and rule) के अनुसार इसके लिए पहले से तैयार बैठी थी। उसी दिन शाम को वायसराय की पत्नी लेडी मिण्टो के नाम भेजे गये पत्र में एक अधिकारी ने लिखा था-

    “A big thing has happened today. A work of statesmanship that will affect India and Indian history for a long time has been done. It is nothing less than the pulling out of 63 million people from joining the ranks of seditous opposition.”

    इस प्रकार 6 करोड़ मुसलमानों को राष्ट्र की मुख्य धारा से काटकर हिन्दू और हिन्दुस्तान दोनों का कट्‌टर विरोधी बना दिया गया। उसी वर्ष इण्डियन मुसलिम लीग की स्थापना हुई।

    यह थे आधुनिक भारत के निर्माताओं और समाज-सुधारकों में अग्रणी माने जानेवाले सर सैयद अहमद खॉं।

    सर सैयद अहमद खॉं को खुश करने के लिए तत्कालीन ले. गवर्नर सर विलियम म्योर ने उन्हें अपना सलाहकार बना दिया। सर सैयद अहमद खॉं प्रभावशाली मुसलमान थे। अत: अंग्रेज जानबूझकर उन्हें बढावा दे रहे थे। सन्‌ 1871 में सरकार की ओर से बीस एकड़ भूमि पर एक विशाल भवन बनाकर उनके इलाहाबाद में स्थायी रूप से रहने के लिए दे दिया गया। सर सैयद ने अपने बेटे के नाम पर इस कोठी का नाम "महमूद मंजिल" रक्खा। वास्तव में यह देश में अंग्रेजी राज्य को सुदृढ करने लिए सुविचारित योजना के अन्तर्गत मुसलमानों को खुश करने की एक चाल थी। विधि की विडम्बना कहें या अंग्रेजों का दुर्भाग्य कि भारत में ब्रिटिश सत्ता को सुदृढ करने की नीयत से बनाई गई यह कोठी कालान्तर में पं. मोतीलाल नेहरू द्वारा बीस हजार रुपये में खरीदी जाकर "आनन्द भवन" के नाम से अंग्रेजी हकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए देश के क्रान्तिकारी नेताओं का जुझारू अड्‌डा बन गई और अन्तत: वह "स्वराज भवन" के नाम से प्रसिद्ध हुई।

    अंग्रेज कृतघ्न नहीं निकला। मार्च 1947 में वायसराय बनकर भारत के लिए रवाना होने से पूर्व लार्ड माउण्टबेटन भारत की स्वतन्त्रता के कट्‌टर विरोधी चर्चिल से मिलने गये। इंग्लैंड की सहायता करने के लिए मुसलमानों का कृतज्ञतापूर्वक स्मरण कराते हुए चर्चिल ने माउण्टबेटन से कहा-

    “I am not going to tell you how to do it. But I tell you one thihng- whatever arrangements you make, you must see that you don’t harm a hair on the head of a single Muslim. They are the people who have been our friends and they are the people Hindus are going to oppress. So you must take steps that they can’t do it.” -Indian Express Magazine, April 4, 1982.

    मैं यह नहीं बताऊँगा कि तुम कैसे करोपरन्तु मैं तुम्हें एक बात अवश्य कहूँगा कि तुम जो भी व्यवस्था करोइस बात का ध्यान अवश्य रखना कि किसी एक भी मुसलमान के सिर का बाल बॉंका न हो। यही वे लोग हैं जो हमारे मित्र रहे हैं और यही लोग हैं जिनका हिन्दू दमन करेंगे। अत: तुम ऐसी व्यवस्था करना जिससे वे ऐसा कुछ न कर सकें। 

    लार्ड माउण्टबेटन ने वैसा ही किया। आती हुई स्वाधीनता को तो वह न रोक सकाकिन्तु भारत का बंटवारा इस प्रकार किया कि भारत का एक भाग काटकर पाकिस्तान के रूप में एक स्वतन्त्र देश मिल गया और शेष भारत पर मुसलमानों का अधिकार ज्यों-का-त्यों बना रह गया। क्योंकि पाकिस्तान की सृष्टि ही मुसलमानों की मतान्धता के कारण साम्प्रदायिकता के आधार पर हुई थी । इसलिए भारत में ही नहीं भारत पाक सीमाओं पर भी हिन्दू-मुस्लिम समस्या और दो देशों के परस्पर वैमनस्य के कारण संघर्ष की स्थिति निरन्तर बनी रहती है। अल्पसंख्यकों के नाम पर मिलनेवाली अतिरिक्त सुविधाओं के कारण हिन्दू अपने को हीन-भावना से ग्रस्त अनुभव करने लगा है। कुल मिलाकर देश की स्थिति आज 1947 से पूर्व की अपेक्षा अधिक भयावह है।

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

     

    "Hazrat is neither a Muhtsib (accountant), who is not afraid of the Durre, nor is the Qazi, whose fatwa is afraid of Dar (the cross). You would have gained freedom from the world at any time. It is better that you get rid of the religious Tehirs, else if a burnt Muslim does something, then everyone knows about Khairikhahi Islam. Diljale is bad"

     

    Bharata-Bhagyavarita Maharishi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Hoshangabad - Indore - Nandurbar - Nashik - Jhunjhunu - Jodhpur | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-9

    लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

    ईसाइयत का आक्रमण- सन्‌ 1857 तक भारत पर अंग्रेजों का शासन ईस्ट इंडिया कम्पनी के माध्यम से होता था। कम्पनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन मिस्टर मैंगलस ने ब्रिटिश पार्लियामेंट में अपने भाषण में कहा था-

    “Providence has entrusted the extensive empire of Hindustan to England in order that the banner of Christ should wave triumphant from one end to the other. Every one must exert all his strength that there should be no dilatoriness on any account in continuing in the country the grand work of making all Indians Christians.”

    विधाता ने हिन्दुस्तान का विशाल साम्राज्य इंगलैंड के हाथों में इसलिए सौंपा है कि ईसा मसीह का झण्डा इस देश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक फहरा सके। प्रत्येक ईसाई का कर्त्तव्य है कि समस्त भारतीयों को अविलम्ब ईसाई बनाने के महान्‌ कार्य में पूरी शक्ति के साथ जुट जाए।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    परमात्मा के दर्शन एवं उसके कार्य
    Ved Katha Pravachan _22 (Introduction to the Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    भारतीय स्वाधीनता के प्रथम युद्ध की समाप्ति के दो वर्ष बाद इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमन्त्री लार्ड पामर्स्टन ने घोषणा की-

    “It is not only our duty but in our own interest to promote the diffusion of christianty as far as possible throughout the length and breadth of India.” - Christianity and Government of India. by Mayhew, P. 194.

    अर्थात्‌ यह हमारा कर्त्तव्य ही नहींअपितु हमारे हित में भी है कि भारतभर में ईसाइयत का अधिक-से-अधिक प्रसार हो।

    पंजाब के गवर्नर लार्ड री ने सन्‌ 1876 में ईसाई मिशनरियों के शिष्टमण्डल को प्रिंस ऑफ वेल्स के सामने प्रस्तुत करते हुए कहा था- “They are doing in India more than all those civilians, soldiers, judges and governers your highness has met.” जितना काम आपके सिपाहीजजगवर्नर और दूसरे अफसर कर रहे हैंउससे कहीं अधिक ये (मिशनरी) कर रहे हैं।

    विदेशी शासक और ईसाइयत का चोली-दामन का सम्बन्ध रहा है। हमारी दासता की बेड़ियों को सुदृढ करने में ईसाइयों ने अंग्रेजों के कंधे-से-कंधा मिलाकर काम किया है। आक्रमणकारी के रूप में जाने से पहले ईसाई मिशनरी भेजे जाते रहे। ईसाई मिशनरी द्वारा मैदान तैयार हो जाने के बाद सेनाएँ भेजी जाती रहीं। सैनिक शक्ति के बल पर शासन जम जाने पर सरकार की ओर से देश के ईसाईकरण में पूरी सहायता दी जाती थी। महात्मा गॉंधी जैसे समन्वयवादी तथा सर्वथा असाम्प्रदायिक व्यक्ति को भी स्वीकार करना पड़ा कि ईसाईयों द्वारा किये जा रहे सेवा-कार्यों का वास्तविक उद्‌देश्य असहाय लोगों की विवशता का लाभ उठाकर उन्हें ईसाई बनाना है। आज भी केरलनागालैंडमिजोरमअसम आदि में जहॉं-जहॉं ईसाईयों का जोर हैवहॉं-वहॉं राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का जोर है।

    मुसलमान इस देश में आततायी आक्रमणकारियों के रूप में आये और लगभग सात सौ वर्ष तक यहॉं राज्य किया। यह ठीक है कि भारत के मुसलमानों में प्राय: सभी इस देश के रहने वाले हैंकिन्तु उन्होंने स्वयं कभी भी इस देश पर शासन नहीं किया। यहॉं शासन करनेवाले - गुलामगौरतुगलकखिलजीलोधीमुगल-सभी विदेशी थेतथापि उनके विदेशी होने के कारण इस देश के मुसलमानों ने कभी उनका विरोध नहीं किया। इतिहास इस बात का साक्षी है। सच तो यह है कि कट्‌टर देशभक्त भी कलमा पढते ही देशविद्रोही बन जाता है। बड़े-से-बड़े राष्ट्रवादी (?) मुसलमान के हृदय में भी जो आदर विदेशी आक्रमणकारी मुहम्मद गजनवीमुहम्मद गोरी या बाबर के लिए है वह इस देश की धरती से उत्पन्न रामकृष्णप्रताप और शिवाजी के लिए नहीं है।

    भारत की अस्मिता पर प्रहारलार्ड मैकाले ने अपने मित्र मिस्टर राउस को लिखा था-

    "अब हमें केवल नाममात्र का नहींसचमुच नवाब बनना है और वह भी परदा रखकर नहींखुल्लमखुल्ला बनना है।"(मिल्स कृत "भारतीय इतिहास" खण्ड 4पृ.332)।

    इसी योजना के अन्तर्गत 1899 में आर्थर ए. मैक्डानल ने संस्कृत साहित्य का इतिहास लिखा। ईसाई मत के प्रचार से भारत के  उद्धार की बाद कहने से पहले यह सिद्ध करना आवश्यक था कि भारत के लोग सदा से बर्बर और असभ्य रहे हैं। कारणयदि उन्हें पहले से सभ्य मान लिया जाए तो वे उन्हें सभ्य बनाने का दावा कैसे कर सकते थेमैक्डानल रचित पुस्तक में जो कुछ लिखा गया उसके निर्देशनार्थ कतिपय वाक्य यहॉं उद्‌धृत किये जाते हैं-

    "इतिहासपूर्व काल में जिन आर्यों ने भारत को जीता था वे स्वयं पुराने समय में दूसरों से पराजित होते चले आये थे। (पृ.408)। भारत में इतिहास का अस्तित्व ही नहीं है। उन्होंने कभी इतिहास लिखा ही नहीं थाक्योंकि उन्होंने कभी कोई ऐतिहासिक कार्य किया ही नहीं था (पृ.10-11)। ईरान को भारत कीमती-कीमती भेंट दिया करता था।"

    नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जब दूसरे दशक में पढने के लिए इंगलैंड में रहे तो वहॉं से उन्होंने अपने सहपाठी संस्कृत के प्रख्यात विद्वान्‌ पण्डित क्षत्रेशचन्द्र चट्‌टोपाध्याय को बहुत-से पत्र लिखे थे। उनमें से उनके कैम्ब्रिज से 12 फरवरी 1921 को लिखे एक पत्र का कुछ अंश यहॉं उद्‌धृत कर रहे हैं-

    "साधारण अंग्रेज युवक (एवम्‌ वयस्क भी) भारत के सम्बन्ध में न अधिक जानता है और न जानना चाहता है। वह जानता है कि अंग्रेज जाति एक महान्‌ जाति है एवम्‌ भारतवासियों को सभ्य बनाने के लिए अपनी हानि सहकर भी अंग्रेज भारत गये हैं। इस धारणा के लिए जिम्मेदार हैं हमारे एंग्लो-इंडियन अफसर एवं पादरी लोग। क्रिश्चियन पादरी हैं हमारी संस्कृति के महाशत्रु। यह बात मैंने इस देश में आकर समझी। वे पैसा इकट्‌ठा करने के उद्‌देश्य से पब्लिक को यह समझाने का प्रयास करते है कि भारतवासी एक असभ्य जाति हैं और भील एवम्‌ कोल जातियों के फोटो मॅंगवाकर इस देश के लोगों को दिखाते हैं।   -नवभारत टाइम्सबम्बई22 जनवरी 1994

    इस प्रकार भारत सदा से एक पराभूत होनेवाला देश रहा है। यह सार-संक्षेप है उस इतिहास का जिसे मिथ्या होते हुए भी हमने अपनी मानसिक दासता के कारण स्वीकार किया हुआ है।

    हीनभावना से ग्रस्त कोई व्यक्तिसमाज अथवा राष्ट्र ऊपर उठने की सोच भी नहीं सकता। इसलिए दयानन्द ने सबसे पहले मैक्डानल की बातों का प्रत्याख्यान करते हुए लिखा-"यह आर्यावर्त ऐसा देश है जिसके सदृश भूगोल में कोई दूसरा देश नहीं है। इसीजिए इस भूमि का नाम "स्वर्ण भूमि" हैक्योंकि यही स्वर्ण आदि रत्नों को उत्पन्न करती है। पारस मणि पत्थर सुना जाता हैयह बात तो झूठ हैपरन्तु आर्यावर्त्त देश ही सच्चा पारसमणि है जिसको लोहेरूपी दरिद्र विदेशी छूते ही स्वर्ण अर्थात्‌ धनाढ्‌य हो जाते थे। सृष्टि के आरम्भ से लेके पॉंच सहस्त्र वर्षों से पूर्व समयपर्यन्त आर्यों का सार्वभौमिक चक्रवर्ती अर्थात्‌ भूगोल में सर्वोपरि एकमात्र राज्य था। अन्य देशों में माण्डलिक अर्थात्‌ छोटे-छोटे राजा रहते थे"। -सत्यार्थप्रकाश समुल्लास 11

    वैदिक धर्म में सार्वजनिक हित की भावना से प्रेरित मातृभूमि के प्रति अत्यन्त आदर का भाव होना स्वाभाविक है। (अथर्ववेद का भूमिसूक्त 12-1) इस दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अपने विषय का यह अनूठा गीत है। संसार के किसी भी साहित्य में वैसा सुन्दर गीत शायद ही मिले। उसकी एक झलक विष्णुपुराण के इस श्लोक में मिलती है-

    गायन्ति देवा: किल गीतकानिधन्यास्तु ये भारतभूमिभागे।
    स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूतेभवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्‌।।

    यह अपने मुंह मियॉं मिट्‌ठु बनने-जैसी बात नहीं है। ऋषि दयानन्द रचित ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पढने के बाद मैक्समूलर ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (Indian Civil Service= I.C.S.) में नियुक्त युवकों को इंगलैंड से भेजे जाते समय भारत का परिचय देते हुए कहा था- "आप अपने अध्ययन के लिए जो भी भाषा अपनाएँ-भाषाधर्मदर्शनविज्ञानकानूनपरम्पराएँ- हर विषय का अध्ययन करने के लिए भारत ही सर्वाधिक उपयुक्त क्षेत्र है। आपको अच्छा लगे या न लगेपरन्तु वास्तविकता यही है कि मानवता के इतिहास की बहुमूल्य एवं निर्देशक सामग्री भारतभूमि में संचित हैकेवल भारतभूमि में। (हम भारत से क्या सीखें)

    “We have all come from the East - what we value most has come to us from the East and by going to the East everybody ought to feel that he is going to this ‘old home’ full of memories, if only we can red them.” -Ibid

    अर्थात्‌ यह निश्चित है कि हम सब पूर्व से आये हैं। इतना ही नहींजो कुछ भी हमारे जीवन में मूल्यवान्‌ और महत्तवपूर्ण हैवह सब हमें पूर्व से ही मिला है। ऐसी स्थिति में जब भी हम पूर्व की ओर जाएँ तब हमें यही सोचना चाहिए कि हम अपनी पुरानी स्मृतियों को संजोए हुए अपने पुराने घर की ओर जा रहे हैं।

    फ्रांस के महान्‌ सन्त तथा विचारक क्रूजे (Cruiser) ने लिखा है-

    “If there is country which can rightly claim the honour of being the cradle of human race or at least the scane of primitive civilisation, the successive development carried in all parts of the ancient world, and even beyond, the blessings of knowledge which is the second life of man, that country assuredly is India.” -J. Beatie : Civilisation and Progress.

    अर्थात्‌ यदि कोई देश वास्तव में मनुष्यजाति का पालक होने और उस आदि सभ्यता का जिसने विकसित होकर संसार के कोने-कोने में ज्ञान का प्रसार कियास्त्रोत होने का दावा कर सकता है तो निश्चय ही वह देश भारत है ।

    जैकालियट संस्कृत के विद्वान्‌ थे। उन्होंने फ्रैंच भाषा में ‘La Bible dans la Inde’ (बाइबल इन इण्डिया) नामक एक विश्वविख्यात ग्रन्थ की रचना की थी। पं. भगवद्दत्तजी के अनुसार इस ग्रन्थ का प्रकाशन सन्‌ 1869 में हुआ था। "भारत में बाइबल" नाम से हिन्दी में इसका अनुवाद पं. सन्तराम बी.ए. ने किया था। जैकालिस्ट के अनुसार मिश्रजूडियायूनानरोम आदि सब देश अपने जातिभेदअपनी मान्यताओं और धार्मिक विचारों में भारत के ब्राह्मणों का ही अनुकरण करते थे और उसके ब्राह्मणों तथा याज्ञिकों को आज भी वैसे ही मानते हैं जैसे कभी पहले वैदिक समाज की भाषाधर्मशास्त्र और दर्शनशास्त्र को मानते थे।

    अमेरिकन विदुषी श्रीमती व्हीलर विल्लौक्स (Wheeler Willox) ने इस विषय में लिखा है-

    “It (India) is the land of the Great Vedas - the most remarkable works, containing not only religious ideas for a perfect life but also facts which science has since proved true. Electricity, Redium, Electrons, Airships - all seem to have been known to the seers who found the Vedas.”

    अर्थात्‌ यह (भारत) उन महान्‌ वेदों की भूमि हैजो अद्‌भुत ग्रन्थ हैंजिनमें न केवल पूर्ण जीवन के लिए उपयोगी धार्मिक सिद्धान्त बताये गये हैंअपितु उन तथ्यों का भी प्रतिपादन किया गया है जिन्हें विज्ञान ने सत्य प्रमाणित किया है। बिजलीरेडियमइलेक्ट्रॉनविमान आदि सभी कुछ वेदों के द्रष्टा ऋषियों को ज्ञात प्रतीत होता है।

    इस देश का निर्माण वही कर सकता था जिसे इसकी मिट्‌टी से प्यार होजो इस देश को अपना मानता होअर्थात्‌ अपने को इस देश पर बाहर से आकर बलात्‌ अधिकार करनेवाला विदेशी आक्रमणकारी न मानकर इस देश का मूल निवासी मानता हो। इसकी सभ्यता तथा संस्कृति में जिसकी आस्था हो,इसके इतिहास पर जिसे गर्व होइसके महापुरूषों के प्रति श्रद्धा हो और जो वैदिक मान्यताओं के आधार पर इसका निर्माण करने के लिए कटिबद्ध हो। गत सहस्त्रों वर्षों में इस प्रकार का अलौकिक व्यक्तित्व दयानन्द के रूप में अवतरित हुआ। वह न हुआ होता तो हिन्दुस्तानइण्डिया-जैसा नामधारी देश तो होताकिन्तु आर्यावर्त्त अथवा भारत कहीं देखने में न आता। इसलिए आधुनिक भारत का निर्माता दयानन्द के सिवाय कौन हो सकता है?

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

     

    That is, this (India) is the land of the great Vedas, which are wonderful texts, which not only contain the religious principles useful for the whole life, but also the facts which have been proved by science to be true. Electricity, radium, electrons, planes etc. all seem to be known to the seers of the Vedas.

     

    Bharata-Bhagyavarita Maharishi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Jodhpur - Hoshangabad - Indore - Nandurbar - Nashik - Jhunjhunu | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Contact for more info. | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Jalgaon - Jalna - Dholpur - Dungarpur - Damoh - Datia | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • भारतीय नारी के उत्थान में महर्षि का योगदान

    भारतीय नारी के उत्थान में महर्षि दयानन्द का क्या योगदान है? यह जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि सृष्टि के आरम्भ अर्थात्‌ वैदिक काल में नारी की क्या स्थिति थी। भारतीय नारी सृष्टि के आरम्भ से ही अनन्त गुणों की आगार रही है। पृथ्वी सी क्षमा, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की सी गम्भीरता, चन्द्रमा जैसी शीतलता, पर्वतों की सी मानसिक उच्चता हमें एक साथ नारी के हृदय में दृष्टिगोचर होते हैं। वह दया, करुणा, ममता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है और समय पड़ने पर प्रचण्ड चण्डी का रूप भी धारण कर सकती है। नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है । इसलिये प्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद जी ने कहा है-

    नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
    विश्वासरजत नग पग तल में
    पीयूष स्रोत सी बहा करो,
    जीवन के सुन्दर समतल में।।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    सुखी मानव जीवन के वैदिक सूत्र एवं सूर्य के गुण

    Ved Katha Pravachan -10 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    वैदिक काल में नारियों को उच्च स्थान प्राप्त था। मनु महाराज का कथन है-

    यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।
    यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।

    अर्थात्‌ जहॉं स्त्रियों की पूजा होती है वहॉं देवता निवास करते हैं। जहॉं उनकी प्रतिष्ठा नहीं होती वहॉं सब क्रियायें निष्फल हो जाती हैं। वैदिक काल में नारी को गृहलक्ष्मी कहकर पुकारा जाता था। उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे तथा वैसी ही शिक्षा मिलती थी। गृहस्थी का कोई भी कार्य उनकी सलाह के बिना नहीं किया जाता था। कोई भी धार्मिक कृत्य उनके अभाव में अपूर्ण समझा जाता था। सीता जी की अनुपस्थिति में श्री रामचन्द्र जी ने उनकी स्वर्ण प्रतिमा रखकर अश्वमेध यज्ञ को पूर्ण किया था। धार्मिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में ही नहींअपितु रणक्षेत्र में भी वे अपने पति को सहयोग देती थीं। देवासुर संग्राम में कैकेयी ने अपने अद्वितीय कौशल से महाराज दशरथ को भी चकित कर दिया था।

    अपनी योग्यताविद्वत्ता और बुद्धि के बल पर कई नारियों ने पुरुषों को भी शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया था। महर्षि याज्ञवल्क्य की पत्नी मैत्रेयी इसकी ज्वलन्त उदाहरण है। उस समय गृहस्थाश्रम का सम्पूर्ण अस्तित्व नारी पर आधारित था। बिना गृहिणी के गृह की कल्पना भी नहीं की जाती थी। मनु महाराज ने कहा है:-

    न गृहं गृहमित्याहु: गृहिणी गृहम्‌ उच्यते।
    गृहं हि गृहिणीहीनं अरण्यसदृशं मतम्‌।।

    गृहिणी के कारण ही घर वस्तुत: घर कहलाता है। गृहिणी के बिना घर जंगल के समान है। संसार परिवर्तनशील है। उसकी प्रत्येक गतिविधि में प्रत्येक क्षण परिवर्तन होता है। मुगलों के शासन काल में देश की परतन्त्रता के साथ-साथ स्त्रियों की भी स्वतन्त्रता का अपहरण हुआ। नारी का प्रेमबलिदान और सर्वस्व समर्पण की भावना उसके लिए घातक बन गई। उनको पर्दे में रहने के लिये विवश किया गया। उनकी शिक्षा का अधिकार भी उनसे छीन लिया गया । नारी की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया । वह घर की चार दीवारी में बन्द होकर अविद्या और अज्ञान के गहन अन्धकार में भटकने लगी। उसका पग-पग पर अपमान होताठुकरायी जातीपर वह अशिक्षित होने के कारण इन सभी यातनाओं को मौन होकर मूल पशु की तरह सहती रही। इस समय छोटी-छोटी कन्याओं का विवाह कर दिया जाता था तथा बेमेल विवाह होते थे । परिणामस्वरूप छोटी उम्र में ही कन्यायें विधवा हो जाती थीं और विधवा का हर क्षेत्र में तिरस्कार किया जाता था। पर्दा प्रथाबाल विवाहविधवाओं की हीन दशाशिक्षा का अभावअनमेल विवाह आदि कुरीतियों के कारण नारी की स्थिति बहुत शोचनीय थी।

    समय के अनुसार हमारे देश में राजनैतिक चेतना के साथ-साथ नारियों में भी जागृति हुई। भारतीय नेताओं का ध्यान सामाजिक कुरीतियों की तरफ गया। इन कुरीतियों को दूर करने के लिये सन्‌ 1824 में महर्षि दयानन्द एक देवदूत बनकर आये। जब महर्षि दयानन्द अज्ञानता और अन्धविश्वास को दूर करने के लिये निकले तो उन्होंने अनुभव किया कि जब तक नारी शिक्षित नहीं होगीतब तक हमारा समाज भी अज्ञान के अन्धकार में भटकता रहेगा।

    founder of arya samaj

    "मातृमानपितृमानआचार्यवान पुरुषो वेद" के अनुसार उन्होंने माता को प्रथम गुरु बताया। उनकी  प्रेरणा से कन्या गुरुकुलों की स्थापना की गई। स्त्रियॉं जो अब तक घर की चारदीवारी में बन्द थी अब पर्दा छोड़कर शिक्षा प्राप्त करने के लिये घरों से बाहर निकलीं। स्वामी जी ने कहा कि स्त्री और पुरुष दोनों समान शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। दोनों के अधिकार समान हैं।

    स्वामी जी से पहले हमारे देश के धार्मिक नेताओं का कहना था कि वेद पढने का अधिकार केवल सवर्ण पुरुषों को ही हैस्त्रियॉं तथा निम्न जाति के लोग वेद नहीं पढ सकते- स्त्री शूद्रौ नाधीयाताम्‌। परन्तु स्वामी जी ने इसका विरोध किया। वे स्त्री जाति को वैदिक काल वाली उन्नत और उज्ज्वल पदवी देना चाहते थेजिसमें सती साध्वी मातायें देश का मान थीं। स्वामी जी ने कहा कि चाहे कोई स्त्री हो या शूद्र जाति का व्यक्ति होसभी वेद पढ सकते हैं। यह सब स्वामी जी के प्रयास का ही परिणाम है कि आज महिलायें पुरुषों के साथ मिलकर देवयज्ञ करती हैं और देवमन्त्रों का सस्वर पाठ करती हैं।

    महर्षि दयानन्द का समय सामाजिक चेतना का समय था। उस समय राजा राममोहन राय सती प्रथा तथा विधवा विवाह के विरुद्ध आन्दोलन कर रहे थे । महर्षि स्वामी दयानन्द ने नारी के सर्वांगीण विकास पर बल दिया। उस समय बाल विवाह होते थेजिससे छोटी अवस्था में कन्यायें मां बन जाती थीं। स्वामी जी ने बाल विवाह की भर्त्सना की और सोलह साल से कम आयु की लड़कियों के विवाह को अनुचित बताया। इसके अतिरिक्त उन्होंने विधवा विवाह को भी प्रोत्साहन दिया। उन्होंने इस बाल पर बल दिया कि जो विधवा स्त्री संयम और एकान्त का शुद्ध जीवन व्यतीत न कर सकेउसके लिये पुन: विवाह करके गृहस्थाश्रम की शोभा बढाना उचित है। समाज में भ्रष्टाचार कम करने के लिये विधवा विवाह अत्यन्त आवश्यक है। स्वामी जी ने कहा कि यदि पुरुष विधुर हो जाने पर दूसरा विवाह कर सकता है तो एक स्त्री को भी अधिकार है कि वह विधवा हो जाने पर अपना दूसरा जीवन साथी चुन सके। इन सब कार्यों के लिये उन्होंने कई आन्दोलन भी किये।

    जब स्वामी जी ने आर्य समाज की स्थापना की तो आर्य समाजों ने धर्म प्रचार के साथ सर्वप्रथम स्त्रियों की अशिक्षा दूर करने की ही आवाज उठाई थी। यह स्वामी जी के परिश्रम का ही परिणाम हुआ कि श्रीमती सरोजिनी नायडू ने उत्तर प्रदेश के गर्वनर पद को सुशोभित किया तथा श्रीमती विजय लक्ष्मी पण्डित विदेशी राजदूत के पद पर आसीन हुई और श्रीमती इन्दिरा गान्धी ने सारे भारतवर्ष का भार अपने बलिष्ठ कन्धों पर सम्भाले रखा। यदि स्वामी जी नारी समाज में इतनी क्रान्ति न लाते तो नारी आज प्रधानमन्त्रीमुख्यमन्त्री आदि न बनकर घर की चार दीवारी में कैद होती। महर्षि दयानन्द के अथक प्रयासों के कारण आज नारी अबला नहीं है बल्कि वह सबला हैजो पुरुष को भी अन्धकार में भटकने से बचा सकती है और अपनी बुद्धिविवेक तथा विद्वता से अपने परिवारसमाज और यहॉं तक कि देश को भी उन्नत बना सकती है।

    स्वामी दयानन्द ने नारी समाज का इतना उद्धार किया कि उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। अब हमें देखना यह है कि भारतीय नारी के क्या आदर्श होने चाहिएंभारतीय सभ्यता का मूल मन्त्र "सादा जीवन उच्च विचार" था। परन्तु आज की नारियॉं सादे जीवन से कोसों दूर हैं। आज के इस समय में जब देश में हजारों व्यक्तियों के पास न खाने को अन्न हैन पहनने को कपड़ा। ऐसे समय में राष्ट्र की सम्पत्ति का एक बहुत बड़ा भाग श़ृंगार के साधनों में लुटा दिया जाता हैजिसका कोई भी महत्त्व नहीं है।

    आज की नारी तितली की तरह अपने शारीरिक  बाह्य सौन्दर्य को सुरक्षित रखने में हर समय तत्पर रहती है। पुरुष को मोहित करने के लिये अपने आपको सजाने की प्रवृत्ति में ही वह अपना अधिकांश समय और धन नष्ट कर देती है। जब तक नारी की यह आन्तरिक दुर्बलता दूर न होगीउसका भीतरी व्यक्तित्व नहीं बदलेगा। जब तक नारी अपनी विद्वत्ताशालीनतावैदिक ज्ञानसहनशीलतासदाचारिताआत्मसंयम आदि गुणों से अपने को अलंकृत नहीं करेगीतब तक नारी ओजस्विनी और तेजस्विनी नहीं बन सकती और वह पुरुष की काम वासना का शिकार बनती रहेगी जैसा कि आजकल हो रहा है। इन गुणों को धारण करने से ही नारी सच्चे अर्थों में आदर्श गृहिणी बन सकती हैजिसकी कल्पना महर्षि दयानन्द सरस्वती ने की अथवा जैसी नारी का स्वरूप हमारे वैदिक काल में था।

    स्वतन्त्र भारत में नारी का यह भी कर्त्तव्य है कि वह देश की सामाजिक कुरीतियों का बहिष्कार करे। दहेज प्रथाबाल विवाहविधवा विवाहअनमेल विवाह आदि कुछ ऐसी भयानक कुरीतियॉं समाज में चल रही है इन सब कुरीतियों को दूर करने के लिये सरकार चाहे कितने भी कानून बनाये पर तब तक यह पूर्णतया दूर नहीं हो सकती जब तक कि नारी जाति स्वयं जागरूक नहीं होगी। कृष्णा बाला (आर्यजगत्‌ दिल्ली26 अक्टूबर 1997)

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajonline.co.in 

     

    According to the time, there was awakening in our country along with political consciousness. The attention of Indian leaders went towards social evils. In 1824, Maharishi Dayanand came as an angel to remove these evil practices. When Maharishi Dayanand came out to remove ignorance and superstition, he realized that till the time the woman is educated, our society will also be wandering in the darkness of ignorance.

     

    Maharishi Dayanand's Contribution to the Upliftment of Indian woman | Arya Samaj Indore - 9302101186 Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Dindori - Guna - Mumbai City - Mumbai Suburban - Jaipur - Jaisalmer | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition

    Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | भारतीय नारी के उत्थान में महर्षि का योगदान | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | When the conduct of religion or the relationship with the soul was severed, another great evil was born. On the basis of birth, people became the contractors of religion. Just by being born in a Brahmin's house, even a person like black letter buffalo started to worship Guruvat in the society and a scholar and a pious person born in the house of Shudra also became disrespectful of disrespect and abuse | Documents required for arya samaj marriage in indore | Divya Matrimony in Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Official website of | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वेद | वैदिक संस्कृति संस्कृत | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • भाव परिवर्तन

    यदि आज आपने एक बार हॉं कहने का साहस बटोर लिया है, तो विश्वास कीजिये कि भविष्य पर आपका अधिकार हो चुका। फिर इस पृथ्वीमण्डल पर कोई शक्ति ऐसी नहीं है, जो आपको आपके इस अधिकार से अधिक समय तक वंचित रख सके। क्योंकि आप और आपके विचार अनन्त काल के लिये अमर हैं और भविष्य आपका अनुचर बन चुका है।

    जो पुरुष धैर्यवान्‌ है और जिसने एक बार प्रतिज्ञा कर ली है, उसके लिये पृथ्वीमण्डल घर के आंगने के समान है, समुद्र बरसाती गड्‌ढे के समान है और पाताल लोक भूमि के तुल्य तथा सुमेरु पर्वत बाम्बी के बराबर है।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    चारों वेदों के अलग अलग नाम क्यों

    Ved Katha Pravachan _58 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    क्या मनुष्य का जीवन इसलिये है कि वह सदा अपने भाग्य का रोना रोता रहे? उठो और देखो, पूरब में सूर्य अपनी पूर्ण प्रतिमा और सर्वकलाओं से उदय हो रहा है। सोचो, और बताओ! मनुष्य का मार्ग आज तक कौन रोक पाया है? क्या उच्च पर्वत श्रेणियॉं? क्या विशाल नदियॉं और अगाध तथा अनन्त समुद्र? नहीं!

    आप कहेंगे कि मृत्यु हमारे मार्ग का रोड़ा है। परन्तु ऐसा नहीं है। आप पुनः कहेंगे कि दरिद्रता, दासता, कलियुग रोग और ईर्ष्या हमारे मार्ग को अवरुद्ध करेंगे। परन्तु विश्वास करिये वे आपकी आज्ञानुसार बदलेंगे और सहायक होंगे, यदि आपने एक बार ही अपना सुमार्ग निश्चयपूर्वक सदा के लिये चुन लिया है और दूसरी इच्छाओं को स्थान न देने की प्रतिज्ञा कर ली है। आपको अपना उद्देश्य दृढ़ निश्चय की भूमि पर जमाना होगा और जब एक बार उसको भले प्रकार जमा लिया गया, तो बड़े से बड़े मोहक प्रलोभनों से वह आपकी रक्षा करेगा। जब ऐसा हो जाएगा तब संसार की प्रत्येक घटना, प्रत्येक प्राणी और प्रत्येक वस्तु आपके स्पर्श मात्र से आपके उद्देश्य से एकता प्राप्त करने के लिये बाध्य हो जाएगी । क्योंकि आपका उद्देश्य स्वयं सम्पूर्ण जीवन के प्रवाह के अनुकूल निर्माण किया गया है।

    इस प्रकार आप संघर्षमय जीवन को कलामय बनाने में, झाड़-झंकाड़पूर्ण वन को स्वर्ग-कानन बनाने में सफल मनोरथ होंगे।

    जिनकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन जैसी। -आचार्य डॉ.संजय देव

    जीवनोपयोगी चिन्तन

    1. किसी भी व्यक्ति पर कीचड़ उछालना बड़ा सरल काम है किन्तु अपने गिरेबान में झॉंककर देखना निश्चय ही टेढ़ी खीर है।
    2. किसी भी व्यक्ति की शिक्षा उसके संस्कारों के आधार पर प्रमाणित होती है, उपाधियों के आधार पर नहीं। सदाचारी एवं विचार-प्रधान नागरिक ही किसी देश की सबसे बड़ी पूंजी होती है।
    3. भाग्यवादी एवं आलसी में मानसिक अपंगता होती है।
    4. आत्मनिर्भरता ही जीवन है।
    5. किसी भी व्यक्ति का चिन्तन उसकी सच्चरित्रता (या चरित्रहीनता) का परिचय देता है।
    6. जो मॉं-बाप संस्कारविहीन सन्तानें समाज और देश पर थोपते हैं, वे निश्चय ही बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
    7. किसी भी व्यक्ति के आर्थिक स्तर एवं जीवन-स्तर का निर्माण उसके मानसिक स्तर के आधार पर होता है।
    8. अर्जित योग्यता सम्पन्न व्यक्ति "भूषण' होता है जबकि आरोपित योग्यता सम्पन्न व्यक्ति "दूषण'।
    9. व्यक्ति की जिजीविषा का आधार इसकी कर्मशीलता होती है।
    10.हर दम्पत्ति को अपनी गृहस्थी मिल-जुलकर चलानी चाहिए। आर्थिक दृष्टि से भी तथा गृहविज्ञान की दृष्टि से भी। आज के ज्ञान-विज्ञान प्रधान युग में दम्पत्ती को अकादमिक उपलब्धियॉं अर्जित करने के लिए सम्पूर्ण मन से सचेष्ट रहना चाहिए।
    11."गीता' जीने की कला का मार्गदर्शक ग्रन्थ है। - डॉ. महेशचन्द्र शर्मा

    Contact for more info.-

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajonline.co.in 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindorehelpline.com 

     

     

    Is the life of a man so that he always weeps for his fortune? Rise and see, in the east, the sun is rising with its full image and all the arts. Think and tell! Who has stopped the path of man till date? What high mountain ranges? What vast rivers and deep and everlasting seas? No!

     

    Emotion Change | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Gwalior - Harda - Nagpur - Nanded - Jalore - Jhalawar | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore |  Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Puran Gyan  | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi..

     Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya  | भाव परिवर्तन | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ | धर्म | दर्शन | संस्कृति | ज्ञान का अथाह भण्डार वेद

  • मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना

    आचार्य डॉ. संजयदेव के प्रवचनों से संकलित 

    आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्‌। जैसा व्यवहार हम अपने साथ चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करें। जैसा व्यवहार हम अपने साथ नहीं चाहते, उससे विपरीत व्यवहार दूसरों के साथ भी न करें । यदि मैं चाहता हूँ कि कोई मेरी मॉं-बहिन- बेटी को बुरी दृष्टि से न देखे, तो मैं भी किसी की मॉं-बहिन-बेटी को बुरी दृष्टि से न देखूं । क्योंकि जैसे कोई मेरी मॉं-बहिन-बेटी को बुरी दृष्टि से देखता है तो मुझे दुःख होता है, मुझे कष्ट होता है। ऐसे ही यदि मैं किसी की मॉं-बहिन-बेटी को बुरी दृष्टि से देखता हूँ तो उसके भी पिता, भाई या पुत्र को कष्ट होता है । धर्म की सबसे बड़ी कसौटी यही है कि हम सबके साथ अपनी आत्मा के साथ जैसा व्यवहार चाहते हैं, वैसा व्यवहार करें। आत्मवत्‌ सर्वभूतेषु पश्यति स पश्यति।  जो अपनी आत्मा के अनुकूल सबके साथ व्यवहार करता है, वही वास्तव में देखने वाला होता है। और जो ऐसा व्यवहार करता है, वही अपने जीवन में आत्यन्तिक सुख की प्राप्ति कर सकता है । त्रासदी यह है कि दुनिया के लोग दुःख से तो बचना चाहते हैं, परन्तु दुःखों के कारण पाप को छोड़ना नहीं चाहते । 

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    मनुष्य जन्म अत्यन्त दुर्लभ है

    Ved Katha Pravachan _57 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev



    दुनिया के लोग सुख प्राप्त करना तो चाहते हैं परन्तु सुख देने वाले 
    धर्म का आचरण करना नहीं चाहते। सुख के कारण धर्म को अपने जीवन में ढालोगे, धर्म का अपने जीवन में आचरण करोगे, तभी सुख प्राप्त होगा। नहीं तो सुख प्राप्त नहीं होगा। और यह भी निश्चित रूप से जान लीजिए कि मरने के बाद धर्म ही साथ जाता है। जैसा कि महर्षि कणाद कहते हैं वैशषिक दर्शन में- यतो अभ्युदय निःश्रेयस सिद्धि स धर्मः। जिससे इस लोक में और परलोक में उन्नति हो वो धर्म होता है । इस लोक में जैसे धर्म से उन्नति होती है, धर्म से ही परलोक में भी अभ्युदय होता है। मरने के बाद जो हमारे अच्छे-बुरे कर्म हैं, वही हमारे साथ जाएंगे। और हमारा कल्याण, हमारा उत्थान, हमारा उद्धार हमारे अच्छे कर्मों से ही होगा, जिसे शास्त्रों में धर्म कहा गया है। वेद से लेकर महर्षि वेदव्यास पर्यन्त, शंकराचार्य और दयानन्द पर्यन्त जितने भी ग्रन्थ और महापुरुष तथा ऋषि हुए हैं, उन सबका यह मानना है कि मरने के बाद धर्म ही एक साथी होता है। महर्षि मनु कहते हैं-

    एक एव सुहृद धर्मो निधनेऽप्युनुयाति यः।
    शरीरेण समं नाशं सर्वमन्यद्धि गच्छति।।

    एक ही जो धर्म है वही अपना सगा होता है, वही अपना परम मित्र होता है, जो मरने के बाद भी साथ जाता है। अन्य सब कुछ तो यहीं रह जाता है। जब यक्ष युधिष्ठिर से पूछते हैं महाभारत में, प्रश्न करते हैं कि मरने के बाद कौन मित्र होता है, मरने के बाद भी कौन साथ जाता है ? युधिष्ठिर कहते हैं मरने के बाद धर्म साथ जाता है। मरने के बाद धर्म ही सहयोगी होता है। जो हमारे अच्छे-बुरे कर्म हैं, जो हमारे द्वारा किया हुआ धर्म और अधर्म है, वो मरने के बाद साथ जाएगा और उन धर्म-अधर्म मेें से धर्म हमारा सहयोगी होगा। धर्म हमारा परम मित्र होगा। वही हमारा साथ देगा । कहते हैं -

    धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे नारी गृहद्वारि जनाः श्मशाने।
    देहश्चितायां परलोक मार्गे धर्मानुगो गच्छतिजीव एक।।

    धनानि भूमौ। जो आपने धन-धान्य कमाया है, वैभव-सम्पत्ति एकत्रित की है, वो सब या तो बैंकों में रखा रह जाएगा या भूमि में आपने गा़ड़ा है अथवा दबाया है वहॉं रखा रह जाएगा । आपके साथ नहीं जाएगा। पशवश्च गोष्ठे। और जो आपके पास गा़डियॉं-घोड़े, कारें या अन्य अच्छे-अच्छे वाहन हैं या पशु आदि हैं, वो सब जो आपकी जगह है गाड़ियों को रखने की या पशुशाला है वहीं रह जाएंगे। वो भी साथ नहीं जाएंगे। और नारी गृहद्वारि जनाः श्मशाने। यहॉं तक कि आपकी जो पत्नी है वह भी घर के दरवाजे तक साथ जाएगी। पत्नी भी घर के दरवाजे से आगे जाने वाली नहीं है। जिसको आपने प्राणों से प्यारी कहा है या जिसने आपको प्राणों से प्यारा कहा है, जिसने आपको प्राणप्रिय कहा है, वह भी मरने के बाद घर के दरवाजे तक ही साथ जाएगी। आगे नहीं जाएगी। और जनाः श्मशाने। जिनके लिए हम जान छिड़कते थे, जिनके लिए हम रात को दो बजे भी आने के लिए तैयार होते थे, वो लोग भी श्मशान तक ही साथ देंगे। आगे साथ नहीं देंगे। यावत्‌ जीवेत्‌ सुखं जीवेत्‌, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्‌। इस सिद्धान्त को लेकर के हम आगे बढ़े हैं कि जब तक जियें सुख से जियें, ऋण लेकर भी घी पीयें। इसको मानकर के हमने अपने शरीर को मोटा-तगड़ा बनाया है। ये शरीर भी हमारे साथ नहीं जाएगा। इसलिए कहते हैं देहश्चितायाम्‌। ये शरीर भी जलने तक, अग्नि तक साथ रहेगा। साथ में ये भी नहीं जायेगा। धर्मानुगो गच्छति जीव एक। केवल धर्म ही एक वो तत्व है जो जीव के साथ जाता है, मनुष्य के साथ जाता है। इसलिए कहते हैं-

    कमा ले धर्म-धन प्यारे साथ तेरे जो जाएगा।
    धन-वैभव और माल खजाना धरा यहीं रह जाएगा।।

    जो भी कुछ आपने कमाया है वह सब यहीं रखा हुआ रह जाएगा। यदि आपने अपने सब कर्त्तव्यों का निर्वहन धर्म के साथ किया है, धर्म के साथ अपने सब कर्त्तव्यों को पाला है तो वह धर्म निश्चित रूप से आपके अन्त समय में साथी होगा। आचार्य चाणक्य जिनका मैंने उदाहरण दिया था वो भी यही कहते हैं-

    विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च।
    व्याधिस्तस्योषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च।।

    यदि हम प्रदेश में है जहॉं हमारा कोई परिचय नहीं है, तो विद्या हमारी मित्र होती है। यदि हम विद्वान हैं, ज्ञानवान हैं तो विद्या हमारा साथ देती है। भार्या मित्रं गृहेषु च। घर में पत्नी मित्र होती है। व्याधिस्तस्योषधं मित्रम्‌। यदि हम बीमार हो जाते हैं तो उस अवस्था में औषधि हमारी मित्र होती है और क्या कहते हैं! मनु महाराज द्वारा और अन्य ग्रन्थों में जो कहा गया है, उनके स्वर मेें स्वर मिलाकर चाणक्य भी यही कहते हैं। दुनिया के सबसे बड़े अर्थशास्त्री, जिन्होंने धन-वैभव कमाने का अच्छा रास्ता दुनिया को बताया था, जिनका अर्थ-प्रबन्धन पर सबसे प्राचीन ग्रन्थ है अर्थशास्त्र। वो भी यही कहते हैं धर्मो मित्रं मृतस्य च। मरने के बाद तो धर्म ही मित्र होता है। इसलिए हमारे जितने भी शास्त्र हैं, धर्मग्रन्थ हैं, वो सब यही उपदेश देते हैं कि क्योंकि मरने के बाद धर्म ही साथ जाता है, इसलिए प्रयत्न से धर्म का संचय करो। 

    धर्म के मार्ग पर चलने के लिए और धर्म के लक्षणों में ईश्वर को मानना अनिवार्य शर्त नहीं है। ये बात ध्यान में रख लेना । ईश्वर को मानना धर्म के लिये अनिवार्य शर्त नहीं है। परन्तु ईश्वर को मानने से धर्म का जो मार्ग है वो सुगम हो जाता है। यह अवश्य है। यदि हम ईश्वर पर विश्वास करेंगे, यदि हममे आस्तिक भावना होगी, तो धर्म पर चलने में हमारा रास्ता सुगम हो जाएगा। धर्म पर चलने में हमें सहयोग मिलेगा। जो व्यक्ति ईश्वर को सर्वव्यापक मानता है, कोई भी कार्य करने से पहले जिसको ये मालूम है कि परमात्मा सर्वव्यापक है और मैं जो भी कार्य कर रहा हूँ वो सब देख रहा है। 

    क्योंकि जो व्यक्ति यह मान लेता है कि ईश्वर सब जगह है, जहॉं भी हम पाप कर्म करते हैं वो हमें सब जगह साक्षी भाव से देख रहा है, तो हम पाप कर्म से बच जाते हैं और अच्छे मार्ग की ओर चल पड़ते हैं। ईशोनिषद्‌ यजुर्वेद का अन्तिम अध्याय है। उसमें यही कहा गया है कि परम पिता परमात्मा को सब जगह व्यापक मानते हुए अपने कर्मों का निर्वहन करो, अपने कर्त्तव्यों को करो, तो जीवन में कभी भी दुःख नहीं उठाना पड़ेगा। ईशावास्यम्‌ इदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत्‌। इस संसार में जो कुछ भी है वो सब ईश्वर से ढका हुआ है। सब स्थानों में ईश्वर है। इसलिए यदि ईश्वर को साक्षी मानकर कर्म करोगे तो तुम कभी भी सन्देह भाव में नहीं पड़ोगे। 

    अगला मन्त्र यह कहता है कि ईश्वर को साक्षी मान करके-

    कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।
    एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे।।

    वेदोक्त धर्मयुक्त कर्मों को करते हुए सौ वर्ष तक जीने का प्रयास करो।  कैसे कर्म करो? धर्मयुक्त करो। वेदोक्त कर्म करो। उन कर्मों को करते हुए ही सौ वर्ष तक जीने का प्रयास करो। धर्मयुक्त कर्म करोगे, तो जैसे मैं अपने साथ व्यवहार करता हूँ वैसा ही दूसरों के साथ करूँ, तो दूसरे लोग भी मेरे साथ अच्छा व्यवहार करेंगे, मुझे अच्छा लगेगा,मुझे सुख मिलेगा। और मुझे सुख मिलेगा तो मेरी आयु भी सौ वर्ष हो जाएगी। क्योेंकि सब दृष्टियों से चाहे प्राकृतिक पदार्थों में सन्तुलन करने की दृष्टि हो, चाहे अन्य जल-वायु आदि पदार्थों में सन्तुलन करने की दृष्टि हो, चाहे प्राणियों के प्रति, मनुष्यों के प्रति मित्र की भावना की दृष्टि हो, सब दृष्टियों से हम धर्म का पालन करेंगे, तो उस धर्म का पालन करने से हमें सुख मिलता है।  दुनिया के जितने भी आज तक वेद से लेकर धर्मग्रन्थ हुए हैं वो सब धर्मयुक्त कर्म करने का उपदेश देते हैं। 

    मैंने बताया था कि धर्म का मतलब सम्प्रदाय, मजहब या पन्थ नहीं है। सम्प्रदाय, मजहब और पन्थ तो अनेकोें हो सकते हैं। परन्तु धर्म एक ही होता है।  और वो ईश्वर प्रणीत होता है। धर्म, सम्प्रदाय और पन्थ तो व्यक्ति स्थापित करते हैं। और धर्म को स्वयं ईश्वर स्थापित करते हैं। हमारे अन्तःकरण में धर्म के पालन की प्रेरणा देते हैं। हम जब कोई गलत काम करते हैं तो हमारे हृदय में जो आवाज आती है, भय, शंका और लज्जा उत्पन्न होती है, वह परमपिता परमात्मा की ओर से होती है। और जब हम कोई अच्छा कार्य करते हैं तो आनन्द और उत्साह की वृद्धि होती है। वह भी परमपिता परमात्मा की ओर से होती है। 

    धर्म में और सम्प्रदाय में मूलभूत अन्तर है। आज ये जो कहा जा रहा है कि संसार में धर्म के नाम पर लड़ाई-झगड़े हो रहे हैं, होते रहेंगे या होंगे, यह मिथ्या है। वर्तमान में लोगों को धर्म की परिभाषा समझ में ही नहीं आ रही है । धर्म क्या होता है यह जानते ही नहीं। और एक और बात का जोरों से प्रचार होता है। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना। एक तरफ तो यह कहते हैं कि धर्म के नाम से झगड़े होते हैं और एक तरफ उससे विपरीत बात कहते हैं कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना। 

    जबकि तथ्य यह है कि मजहब ही सिखाता आपस में बैर करना। दुनियॉं में जितनी भी लड़ाईयां हुई हैं या हो रही हैं या होंगी आगे भी, वो सब अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए होती हैं। अपनी बात को मनवाने के लिए होती हैं। और अपनी बात को मनवाने की जहॉं बाध्यता होती है, अपनी बात को मनवाने का जहॉं आग्रह होता है, अपनी विचारधारा की कट्‌टरता को जहॉं फैलाने की बात होती है, वही सम्प्रदाय होता है, वही मजहब होता है, वही पन्थ होता है। उसे ही मत कहा जाता है। यही कारण था कि हमारे देश भारतवर्ष में विदेशी लोग अपने एक हाथ में अपने सम्प्रदाय की पुस्तक को लेकर के और एक हाथ में तलवार लेकर के यहॉं आए थे। उस तलवार के बल पर और अपने उस सम्प्रदाय की पुस्तक के बल पर सारे देश को अत्याचार से युक्त कर दिया था।  सारे देश पर अन्याय ढाया था। वो धर्म के नाम पर नहीं हुआ, सम्प्रदाय के नाम पर हुआ। 

    धर्म तो यह सिखाता है, धर्म तो यह कहता है कि हे प्रभो! धर्म का अनुयायी, वेद का अनुयायी, सनातनधर्मी प्रातः उठते ही मैंने बताया था, कामना करता हैकि- हे प्रभो! सर्वे भवन्तु सुखिनः। सब सुखी रहें। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। सब अच्छा देखें, सर्वे सन्तु निरामयाः। सब निरोग हों। मा कश्चिद्‌ दुःखभाग्‌ भवेत्‌। किसी को कोई दुःख नहीं हो। सनातनधर्मी तो यह मानता है कि चाहे वेद को मानने वाला हो या न हो, आस्तिक हो या नास्तिक हो, राम को मानने वाला हो या रहीम को मानने वाला हो, कृष्ण को मानने वाला हो या अल्लाह को मानने वाला हो, हे प्रभो! सबका कल्याण करना। सनातन धर्म के जितने भी ग्रन्थ हैं, वो सब इसी धर्म पर चलने का उपदेश देते हैं। जब अत्याचार और अन्याय उत्पन्न होता है, जब अत्याचार और अन्याय का इस धरती पर प्रार्दुभाव होता है, तो इसी धर्म की रक्षा के लिए हमारे महापुरुष अवतरित होते हैं। गीता का आरम्भ तो धर्म से ही हुआ है। धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः, मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय। धर्मक्षेत्र में, कुरुक्षेत्र में पाण्डवों ने और कौरवों ने इकट्‌ठे होकर क्या किया, हे संजय! मुझे बताओ। धर्म से प्रारम्भ हुआ। क्योेंकि अन्याय और अत्याचार किया जा रहा था। कर्त्तव्यों का ठीक-ठीक पालन नहीं हो रहा था। दूसरे के भाग को, दूसरे के हिस्से को हड़पा जा रहा था। द्वेषाग्नि सुलग रही थी। भगवान कृष्ण ऐसी स्थिति में ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त होकर अवतरित हुए थे। और क्या कहते हैं गीता में- 

    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌।
    धर्मसंस्थापनार्थायसम्भवामि युगे युगे।।

     

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.allindiaaryasamaj.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

     

    There is a fundamental difference between religion and community. Today it is being said that in the name of religion in the world, there are fights and fights taking place in the name of religion, whether it will happen or will happen, it is false. Presently people do not understand the definition of religion. They do not know what religion is. And another thing is propagated loudly. Religion does not teach hating each other. On the one hand it is said that there are quarrels in the name of religion and on the one side it says the opposite thing that religion does not teach hating one another.

    Only Religion Teaches Hostility Among Themselves | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Jhalawar - Gwalior - Harda - Nagpur - Nanded - Jalore | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Puran Gyan  | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi.

     Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya  | मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ | धर्म | दर्शन | संस्कृति | ज्ञान का अथाह भण्डार वेद

  • मत-पंथों का कारण

    आज देश में जो नाना प्रकार के मत पन्थ चल रहे हैं उनका मूल कारण क्या है। यह क्रम कहीं पर भी रुका नहीं अपितु निरन्तर प्रवाहमान नदी की भांति आज भी चल रहा है और निरन्तर नये-२ मत-सम्प्रदाय जन्म ले रहे हैं। सदियों से चले आ रहे इस मानसिक रोग ने समाज की वह शक्ति छीन ली है कि जिसके विकलांगता के कारण लोग यह समझ ही नहीं पा रहे कि उनका हित किसमें है। आपको मेरे शब्द 'मानसिक विकलांग' पर कुछ अपनी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, व्यावसायिक समस्याओं का समाधान केवल इस बात में पाते हो कि 'अच्छा यह बताओ समोसा खाया था?' जी हां. खाया था। कब खाया था' जी एक सप्ताह पहले खाया था।' श्लाल की चटनी के साथ खाया था या हरी के साथ? 'जी लाल के साथ खाया था।' अच्छ जाओ अब हरी के साथ खाओ तुम्हारी सारी समस्यायें दूर हो जायेगी। ' अब ऐसे लोगों को (गुरु और चेले दोनों को) मानसिक विकलांग न कहें तो की कहें? जहां पर माता-पिता अपनी सन्तान को तांत्रिकों के कहने पर बलि तक देने को तैयार रहते हों, जहां पर प्रतिदिन नवयौवनाओं का बाबा लोग शारीरक शोषण करते हों, जहां पर धर्म के नाम पर कुछ भी चल सकता हों, ऐसे समाज को मानसिक विकलांग न कहें तो क्या कहें?

    Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
    Greatness of Vedas & India | गौरवशाली महान भारत - 2

    यह तो एक बहुत ही सामान्य सा उदहारण हमने दिया है जो समाज में ऐसी बातों की भरमार है कि जहां पर अशिक्षित मनुष्य तो क्या अपितु उच्च शिक्षा से प्राप्त एवं उच्च अधिकार प्राप्त लोग भी बुद्धि को ताक पर रखकर अनेकों ऐसे कर्म करते हुए देखे जा सकते है जो उनकी अन्धश्रद्धा का परिचय देने के लिए पर्याप्त हैं। 

    स्मरण रखना चाहिये कि कोई भी घटना अचानक नहीं होती। अचानक दुर्घटनाएं हुआ करती हैं। प्रत्येक घटना की भूमिका हमारे मस्तिष्क में विचार रूप में जन्म ले चुकी होती है और जब हमें विश्वास हो जाता है तो फिर वह घटना क्रियारूप में आ जाती है। इसी प्रकार से लोगों की तर्कशून्यता, विचारशून्यता, केवल आज के परिवेश का परिणाम नहीं है अपितु वर्षों से भूमिका तैयार हो चुकी है, वही उसका कारण है। उदारण के लिये मैं जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण जी महाराज के जीवन पर व्याख्यान दे रहा था। पौराणिक जगत में जो उनका प्रचलित रूप है उस पर बोलते हुए मैनें कहा कि श्रीकृष्ण जी महाराज एक अद्विदित्य महापुरुष थे। अजेय योद्धा, बहुत उच्च कोटि के विद्वान्, योगी, धर्मात्मा, नीतिवान, कुशल राजनीतिज्ञ, दूरदर्शी, स्पष्टवादी, वेद भक्त, गोभक्त, ईश्वर भक्त अदि-२ अनेक गुणों से युक्त ऐसे महापुरुष थे जिनकी जितनी बड़ाई की जाये, कम है।

    भागवतादि पुराण बनाने वालों ने उनको कहीं का न छोडा। मनमाने दोष लगाकर ईश्वर तो क्या साधारण मनुष्य भी रहने दिया। जब व्याख्यान समाप्त हुआ तो एक खड़ा हो गया और बोला कि मेरी कुछ शंकायें हैं। मैनें कहा कि बोलो क्या हैं? कहने लगा की श्रीकृष्ण तो ईश्वर थे, उनकी सोलह हजार एक सौ आठ रानियां थी, वे सभी के साथ एक ही समय में रह सकते थे, क्योंकि जो ईश्वर होता है वह कुछ भी कर सकता है उसे कोई दोष भी नहीं लगता लगता आदि। आप समझ सकते हैं कि ये विचार कहां से उदय हुए। उस व्यक्ति का इसमे उतना दोष नहीं है जितना दोष इन लोगों से उनकी बुद्धि हरने वालों का है। छल से, चालाकी से अर्थों के अनर्थ करके जो कुछ समाज के भोले-भोले लोगों के सामने परोसा, युगों तक परोसा गया लोगों ने उसका भरपूर स्वाद चखा और यह विष उनके गले से उतर कर उनके रक्त में सम्मिलित हो गया। अब यदि कोई उस विष की चिकित्सा करे तो शल्यक्रिया के समान कष्टदायक लगता है, यह है अनर्थों का बोझ। महर्षि दयानन्द जी महाराज ने इसी वेदना को अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में कुछ इन शब्दों में व्यक्त किया है, 'इस देश को रोग हुआ है, जिसका औषध तुम्हारे पास नहीं' (अर्थात् मेरे पास है) (सत्यार्थ प्रकाश ग्यारहवां सम्मुलास) वह रोग कौन सा है और उनका ओषध क्या है, इस पर फिर कभी स्वतन्त्र रूप से लिखने का यत्न करेगें। यहां हमारा अभिप्राय यह दिखाने का है कि धूर्त लोगों द्वारा चलाई गई अनुचित बातों ने समाज की मानसिकता ही बदल डाली। जन्मना जाति-पांति, छुआ-छूत, मूर्तिपूजा, भूत-प्रेत, अवतारवा, फलित ज्योतिष, चमत्कार, टोने-टोटके, मृतक श्राद्ध आदि-२ के विकृत साहित्य द्वारा जो जन साधारण की वृति बनी उसके प्रकाश में हम यह बलपूर्वक कह सकते है कि यह अर्थों के अनर्थ होने के कारण हुआ। जब तक लोगों की बुद्धि पर इन अनर्थों का बोझ रहेगा तब तक श्रेष्ठ समाज का निर्माण स्वप्न ही रहेगा। - रामफल सिंह आर्य

    Contact for more info. -

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmpcg.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

     

    What is the root cause of the many different types of schools of thought going on in the country today. This sequence has not stopped anywhere, but is still going on like a flowing river and new 2 schools are taking birth continuously. This mental disease that has been going on for centuries has taken away the power of society that due to disability people are unable to understand what is in their interest.

    Cause of creeds | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore | Arya Samaj Pandit Indore | Arya Samaj Indore for Garhwa - Abohar - Mumbai City - A.B. Road - Yeshwant Road Indore | Arya Samaj Mandir Annapurna Indore | Official Website of Arya Samaj Indore | Indore Arya Samaj | Inter Caste Marriage Helpline Indore | Inter Caste Marriage Promotion for Prevent of Untouchability | Arya Samaj All India | मत-पंथों का कारण | Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Marriage Rules Indore | Arya Samaj Wedding Ceremony Indore | Documents Required for Arya Samaj Marriage Annapurna Indore | Arya Samaj Legal Marriage Service Bank Colony Indore | Arya Samaj Pandits Helpline Indore. 

    Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Marriage For Agarmalwa - Alirajpur - Ahmednagar - Akola - Ajmer - Alwar | Query for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Plan for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Sanskar Kendra Indore | pre-marriage consultancy | Legal way of Arya Samaj Marriage in Indore | Legal Marriage services in Arya Samaj Mandir Indore | Traditional Vedic Rituals in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Mandir Wedding | Marriage in Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Pandits in Indore | Traditional Activities in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Traditions | Arya Samaj Marriage act 1937.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • मन और शरीर के रोग तथा उनका उपचार

    जब शरीर के किसी अंग में पीड़ा होती है, तो चित्त उसी अंग विशेष पर लगा रहता है और उसका स्मरण उसको बार-बार होता रहता है। इसी प्रकार जिसका शरीर रोगी है, वह सदा शरीर की भावना में व्यग्र रहेगा, उसकी अन्तर्दृष्टि नहीं रह सकती। अन्तदृष्टि के लिये शरीर का स्वस्थ रहना अत्यन्त आवश्यक है।

    यदि आपके शरीर में कोई रोग है, तो निश्चय मानिये कि इसका कारण आपमें आत्म-दृष्टि का अभाव ही है। अथवा यों कह सकते हैं कि आपकी दृष्टि बाह्य हो गई है। शारीरिक रोग उस चाबुक के घाव के समान है, जो अड़जाने के कारण घोड़े की पीठ पर पड़ा है। हमारा मन हमारी किसी इन्द्रिय के विषय में फंसा नहीं कि हम पर सवार का चाबुक पड़ने में देर नहीं लगती। निरन्तर क्रमबद्ध और तालबद्ध गति से आनन्द की ओर बढ़े चलना ही जीवन का लक्ष्य और सम्पूर्ण जीवन का नियम है। हमारी आत्मा और प्रकृति माता इसमें किसी प्रकार के व्यतिक्रम को कदापि सहन नहीं कर सकती।

    Ved Katha Pravachan _16 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    इस प्रकार स्थूल शरीर के समस्त विकार एवं रोग हमारे अन्तःकरण के विकारों की अभिव्यक्ति मात्र हैं। यदि हम नहीं जानते तो हमको जान लेना चाहिये कि हमारे स्थूल शरीर के अनेक रोगों का कारण मानसिक है, जिसको आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी मान लिया है। उदाहरण के लिये मन्दाग्नि, अनिद्रा, हिस्टीरिया, सामान्य शारीरिक शैथिल्य और सन्धिवात व गठिया के लिये वे मानसिक चिन्ता, सन्देह, अविश्वास और मनःसन्ताप तथा मन की डावांडोल अनिश्चित दशा को उत्तरदायी ठहराते हैं। अभी विज्ञान ने अपना अन्तिम निर्णय नहीं दिया है, उसकी खोज निरन्तर चल रही है।

    भारतीय संस्कृति तो इससे भी बहुत आगे समस्त ब्रह्माण्ड के शरीरों को तथा उसके सब प्रकार के विकारों और रोगों को समेटते हुये विश्वासपूर्वक यह घोषणा करती है कि जो विष विश्व-शरीर (ब्रह्माण्ड) में व्याप्त होकर अनेक प्रकारों और रूपों में अभिव्यक्त हो रहा है, जैसे महामारियॉं, विप्लव, अकाल और युद्ध। वही विष व्यक्ति के शरीर और मन के द्वारा अनेक प्रकार के शारीरिक रोगों और मानसिक उद्वेगों के रूपों में प्रगट हो रहा है। इस प्रकार समस्त विश्व के दुःखों और क्लेशों तथा मानव के सब प्रकार के विषाद और अवसादों का केवल एक ही कारण है और उस सबका उपचार भी एक ही है। एक रोग है और एक ही औषधि है।

    यदि आज का विज्ञान भारतीय संस्कृति के इस निर्णय के पूर्णतः अनुकूल नहीं है, तो कोई चिन्ता नहीं। आज नहीं तो कल उसे हमारा निर्णय मानना ही पड़ेगा। क्योंकि सत्य को किसी आधार की अपेक्षा नहीं।

    यहॉं पर उस एक औषधि, उपचार तथा पथ्यापथ्य के विषय में भी सामान्यतः कुछ निर्देश कर देना अनुपयुक्त न होगा। यह औषधि अन्तर्दृष्टि या आत्मदृष्टि अथवा अपने उद्देश्य के प्रति एकाग्रता के नाम से विख्यात है। इसको हम मन का संयम वा मानसिक विजय (मन पर विजय प्राप्त करना) के नाम से भी पहचानते हैं। इसका थोड़ा सा नियमित अभ्यास भी मानव के उन छोटे-छोटे रोगों को जिनकी यहॉं चर्चा की गई है, अच्छा करने में चमत्कारी सिद्ध हुआ है। ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, असन्तोष, वियर्यय, आत्म-प्रवंचना, अहंकार, क्रोध, लोभ, मात्सर्य और भय आदि इन सब हिंसक शत्रुओं से एक साथ बचने का एकमात्र सरल उपाय इसके अतिरिक्त दूसरा नहीं।

    जिस प्रकार हमारा आचार हमारे विचारों से प्रभावित होता है, उसी प्रकार हमारे मन पर अर्थात्‌ हमारे विचारों पर हमारे आचार का अच्छा-बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिये हमें अपने आचार पर कड़ी दृष्टि रखने की प्रतिक्षण आवश्यकता है। जब तक हम परिपक्वास्था में नहीं पहुंच जाएं, तब तक आचार और विचारों का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध मानना पड़ेगा। इसलिये हमारा आचार जिसमें हमारी दिनचर्या का अधिकांश भाग सम्मिलित है बड़ा नियमित, सात्विक और प्राकृतिक होना आवश्यक है, जिससे हमारे मन में तामस्‌ तथा राजस उद्वेगों और विकारों को प्रवेश न मिलने पावे।

    हमारे आचार में भोजन, वस्त्र, खेल-कूद-व्यायाम, स्नान, ध्यान, सन्ध्योपासन, स्वाध्याय, विद्यार्जन, निद्रा, सन्तानोत्पत्ति, सामाजिक व्यवहार एवं अन्य सांसारिक तथा नैसर्गिक सभी बातें और कार्य आ जाते हैं। - आचार्य डॉ.संजयदेव

    Contact for more info. -

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org  

     

    In this way all the disorders and diseases of the gross body are only manifestations of our internal disorders. If we do not know, then we should know that the cause of many diseases of our gross body is mental, which has been accepted by modern medical science. For example, for mental retardation, insomnia, hysteria, general physical discomfort and rheumatism and arthritis, they hold mental anxiety, suspicion, distrust and psychosis, and a precarious precarious state of mind. Science has not yet given its final decision, its search is going on continuously.

    Man or Shareer ke Rog Tathaa Unakaa Upachaar | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Ujjain - Umaria - Vidisha - Shivpuri - Sidhi - Tikamgarh | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | मन और शरीर के रोग तथा उनका उपचार | Diseases and their treatment of mind and body | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore |  Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati. 

    Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Query for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Plan for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Sanskar Kendra Indore | pre-marriage consultancy | Legal way of Arya Samaj Marriage in Indore | Legal Marriage services in Arya Samaj Mandir Indore | Traditional Vedic Rituals in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Mandir Wedding | Marriage in Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Pandits in Indore | Traditional Activities in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Traditions | Arya Samaj Marriage act 1937.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • मन की दिव्यशक्ति

    ओ3म्‌ वयं सोम व्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः।
    प्रजावन्तः सचेमहि।। ऋग्वेद 10.57.6

    ऋषिः बन्धुः सुबन्धु आदयः।। देवता विश्वेदेवाः।। छन्दः-गायत्री।। 

    विनय - हे सोम! तुम्हारा दिया हुआ तुम्हारी महाशक्ति का अंशभूत मन हमारे शरीरों में विद्यमान है। इस मन का, इस तुम्हारी अमूल्य देन का हमें गर्व है। इस मन के कारण ही हम मनुष्य हैं। इस मनशक्ति के कारण ही हम पशुओं से ऊँचे हुए हैं। तो क्या अपने शरीरों में मन जैसी प्रबल शक्ति को धारण किये हुए भी हम लोग तुम्हारे व्रत में न रह सकेंगे? बेशक तुम्हारे व्रत का पालन करना बड़ा कठिन है। तुमने जगत्‌ में जो उन्नति के नियम बनाये हैं, ठीक उनके अनुसार चलना बड़ा दुःसाध्य है। पर जहॉं तुमने ये कठिन नियम बनाये हैं, वहॉं तुमने ही हममें मन की अतुल शक्ति भी दी है। अतः हमारा दृढ़ निश्चय है कि हम अपनी मनःशक्ति के प्रयोग द्वारा सदा तुम्हारे व्रत में ही रहेंगे, कभी इसको भंग न करेंगे। कठिन से कठिन प्रलोभन व विपत्ति के समय में भी मनःशक्ति द्वारा हम व्रत में स्थिर रहेंगे। 

    Ved Katha Pravachan _89 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev



    पर यह सब व्रतपालन किसलिए है? यह तुम्हारी सेवा के लिए है। यह तुम्हारा दिया मन इसी काम के लिए है। हम चाहते हैं कि केवल यह हमारा मन ही नहीं, किन्तु हमारे मन की प्रजा भी तुम्हारी सेवा में ही काम आवे। मन में जो एक रचनाशक्ति है, उस द्वारा प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह कुछ रचना कर जावे, कुछ निर्माण कर जावे। यह रचना ही मन की प्रजा है। यदि हम, हे सोम! सर्वथा तुम्हारे व्रत में होंगे तो हमारी यह रचना (प्रजा) भी निःसन्देह तुम्हारी सेवा के लिए ही होगी, इसी में व्यय होगी। इस प्रकार हम और हमारी प्रजा सदा तुम्हारी सेवा में रहें, तुम्हारी सेवा में ही अपना जीवन बिता देवें। अब यही संकल्प है, यही इच्छा है, यही प्रार्थना है। 

    शब्दार्थ - सोम=हे सोमदेव! तनूषु=अपने शरीरों में मनः=मन को, मनःशक्ति को बिभ्रतः=धारण किये हुए वयम्‌=हम लोग तव व्रते=तुम्हारे व्रत में हैं, तुम्हारे व्रत का पालन करते हैं और प्रजावन्तः=प्रजा-सहित हम लोग सचेमहि=तुम्हारी सेवा करते रहें। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार

    आत्म जीवन निर्माण

    ओ3म्‌ अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रभ।
    अहं सूर्य इवाजनि।। (ऋग्वेद 8.6.10, साम. पू. 2.2.6.8, अथर्व. 20.11.1)

    ऋषिः काण्वो वत्सः।।देवता इन्द्रः।।छन्दः गायत्री।। 

    विनय - मैं सूर्य के सदृश हो गया हूँ। मैं अनुभव करता हूँ कि मैं मनुष्यों में सूर्य बन गया हूँ। मुझ सूर्य से सत्यज्ञान की किरणें सब ओर निकल रही हैं। जैसे इस हमारे सूर्य से प्राणिमात्र को ताप, प्रकाश और प्राण मिल रहा है, सबका पालन हो रहा है, इसी प्रकार मैं भी ऐसा हो गया हूँ कि जो कोई भी मनुष्य मेरे सम्पर्क में आता है उसे मुझसे ज्ञान, भक्ति और शक्ति मिलती है। मैं कुछ नहीं करता हूँ, पर मुझे अनुभव होता है कि मुझसे स्वभावतः जीवन की किरणें चारों ओर निकल रही हैं तथा चारों ओर के मनुष्यों को उच्च, पवित्र और चेतन बना रही हैं। इसमें मेरा कुछ नहीं है। मैंने तो प्रभु के आदित्य (सूर्य) रूप की ठीक प्रकार से उपासना की है। अतः उनका ही सूर्यरूप मुझ द्वारा प्रकट होने लगा है। मैंने बुद्धि द्वारा सूर्य की उपासना की है। मनुष्य का बुद्धिस्थान (सिर) ही मनुष्य में द्युलोक (सूर्य का लोक) है। मैंने अपनी बुद्धि द्वारा सत्य का ही सब ओर से ग्रहण किया है और ग्रहण करके इसे धारण किया है। धारण करने वाली बुद्धि का नाम ही "मेधा' है। इस प्रकार मैंने मेधा को प्राप्त किया है। द्युलोक के साथ अपना सम्बन्ध जोड़कर द्युलोक को अपने में ग्रहण किया है। इसीलिए मैं सूर्य के समान हो गया हूँ। द्युलोक में स्थित प्रभु का रूप ऋतरूप है, सत्यरूप है। मैंने अपनी सब बुद्धियॉं, सब ज्ञान, उन सत्यस्वरूप पिता से ही ग्रहण किये हैं। मैंने इसका आग्रह किया है कि मैं सत्य को ही, केवल सत्य को ही अपनी बुद्धि में स्थान दूँगा। इस तरह मैंने प्रभु के द्युरूप की सतत उपासना की है, ऋत की मेधा का परिग्रह किया है। इस सत्यबुद्धि के धारण करने के साथ-साथ मुझमें भक्ति और शक्ति भी आ गई है। मेरा मन और शरीर भी तेजस्वी हो गया है। पालक पिता के सब गुण मुझमें प्रकट हो गये हैं। मैं सूर्य हो गया हूँ। हे मुझे सूर्यसमान करने वाले मेरे कारुणिक पिताः! तुझ ऋत की मेधा को सब प्रकार से पकड़े हुए मैं तेरे चरणों में पड़ा हुआ हूँ। 

    शब्दार्थ - अहम्‌ इत्‌=मैंने तो हि=निश्चय से पितुः=पालक पिता ऋतस्य=सत्यस्वरूप परमेश्वर की मेधाम्‌=धारणावती बुद्धि को परिजग्रभ=सब ओर से ग्रहण कर लिया है, अतः अहम्‌=मैं सूर्यः इव=सूर्य के समान अजनि=हो गया हूँ। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार

    Contact for more info. -

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajonline.co.in 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org  

     

    Vinay- I have become like the sun. I feel that I have become the sun in humans. The rays of Satyagyan are emanating from me all over the sun. Just like this our sun is getting heat, light and life, all are being followed, similarly I have also become such that any person who comes in contact with me gets knowledge, devotion and strength from me. I do not do anything, but I feel that the rays of life are naturally coming out from me and making the people around them higher, pure and conscious. I have nothing in it. I have worshiped Lord Aditya (Sun) form properly.

     

    The Divine Power of The Mind | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Mandla - Ratnagiri - Sangli - Pratapgarh - Rajsamand - Khargone | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Ved Mantra explaination in Hindi | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi. 

    Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | मन की दिव्य शक्ति | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ

     

  • मन्यु का पात्र

    ओ3म्‌ समस्य विशो विश्वा नमन्त कृष्टयः।
    समुद्रायेव सिन्धवः।। (ऋग्वेद 8.6.4 साम. पू. 2.1.5.3. अथर्व. 20.107.1)

    ऋषिः काण्वो वत्सः।।देवता इन्द्रः।। छन्दः गायत्री।। 

    विनय - इन्द्र परमेश्वर जहॉं हमारे पिता हैं, उत्पादक और पालक हैं, वहॉं वे हमारे कल्याण के लिये रुद्र भी हैं, संहारकर्त्ता भी हैं। जब जगत्‌ में किसी स्थान पर संहार की आवश्यकता आ जाती है तो प्रभु अपने मन्यु को प्रकट करते हैं। मानो अपना तीसरा नेत्र खोल देते हैं, अपने तीसरे रूप को प्रकाशित करते हैं। उस कल्याणकारी शिव के मन्यु का तेज जब देदीप्यमान होने लगता है, तो नाश होने योग्य सब संसार पतङ्गे की भॉंति आ-आकर उसमें भस्म होने लगता है। मन्यु का पात्र कोई भी व्यक्ति इससे बच नहीं सकता, सब बहे चले आते हैं। देखो, समय-समय पर बड़े-बड़े संग्राम, दुष्काल या महामारी आदि रूपों में प्रभु का वह महाबलवाला मन्यु जगत्‌ में प्रकट होता रहता है। 

    सब मनुष्य अपने विनाश की ओर खिंचे चले जा रहे होते हैं, पर उन्हें यह मालूम नहीं होता। जैसे सब नदियॉं समुद्र की ओर बही चली जा रही हैं व उसमें जाकर समाप्त हो जाएँगी, लीन हो जाएंगी, उसी प्रकार प्रभु का मन्यु काल-समुद्र बनकर उन सब प्राणियों को अपनी ओर खींचता जा रहा है, जिनका कि समय आ गया है। मनुष्यों के किये हुए पाप उन्हें विनाश की ओर वेग से खींचे ले जा रहे हैं। जिन्होंने इस संसार को जरा भी तह के अन्दर घुसकर देखा है, वे देखते हैं कि किस-किस विचित्र ढंग से मनुष्य अपने मृत्युस्थल की ओर खिंचे चले जा रहे हैं। धन्य होते हैं अर्जुन जैसे दिव्यदृष्टिपात पुरुष जिन्हें कि काल का यह आकर्षण दिखाई दे जाता है और जो देखते हैं- यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति। तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।। हम लोग तो मौत के मुँह में घुसे जा रहे होते हैं, पर कुछ पता नहीं होता। हममें से अपनी शक्तियों का बड़ा गर्व करने वाले बड़े-बड़े प्रख्यात लोग जिस समय संसार को जितने अभिमान के साथ अपना पराक्रम दिखा रहे होते हैं, उसी समय वे उतने ही वेग से मृत्यु की ओर दौड़े जा रहे होते हैं, पर उन्हें कुछ पता नहीं होता है। जब उनका सब ठाठ एक क्षण में गिर पड़ता है, सामने मौत खड़ी दिखती है, तब जाकर प्रभु का रूद्ररूप उन्हें दीख पड़ता है। प्यारो! तब तुम अभी से क्यों नहीं देखते कि उसके मन्यु के सामने जब संसार झुका पड़ा है। पापी होकर कोई भी मनुष्य उसके सम्मुख खड़ा नहीं रह सकता, जिससे तुम अभी से उसके मन्यु का पात्र न बनने की समझ पा सको। 

    शब्दार्थ - अस्य = इस परमेश्वर की मन्यवे = मन्यु, "क्रोध', दीप्ति के सामने विश्वा विशः = सब प्रजाएँ कृष्टयः = सब मनुष्य सं नमन्त = ऐसे झुक जाते हैं समुद्राय इव सिन्धवः = जैसे कि नदियॉं समुद्र में समा जाने के लिए उधर स्वयं बही जाती है। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार

    arya samaj annapurna indore mp

    हे नाथ !

    ओ3म्‌ नामानि शतक्रतो विश्वाभिर्गीर्भिरीमहे।
    इन्द्राभिमातिषाह्ये।।ऋग्वेद3.37.3, अथर्व. 20.19.3।।

    ऋषिः गाथिनो विश्वामित्रः।। देवता इन्द्र ।। छन्दः गायत्री।।

    विनय - हे परमेश्वर! मुझे यह वाणी तेरे नामोच्चारण के लिए ही मिली है। मैं निरन्तर तेरे पवित्र नामों का उच्चारण करता रहता हूँ। तेरी दी हुई इस वाणी से मैं अन्य कुछ कर ही नहीं सकता। कोई भी निरर्थक बात, कोई भी अनीश्वरीय बात मेरी वाणी से नहीं निकल सकती। मेरे एक-एक कथन में तेरी ही धुन होती है, तेरा ही निवास होता है। हे इन्द्र! मैं इस प्रकार अपनी सब वाणियों से नानारूप में तेरे ही नामों का कीर्त्तन करता रहता हूँ। यदि मैं ऐसा न करूँ तो मैं अपने शत्रुओं को कैसे पराजित कर सकूँ? उनसे कैसे रक्षित रहूँ? तेरा पवित्र नामोच्चरण करता हुआ ही मैं निरन्तर सब शत्रुओं पर विजयी हुआ हूँ और हो रहा हूँ। मेरा सबसे बड़ा शत्रु "अभिमाति' है, अभिमान है। आजकल इस महाशत्रु को मार डालने के लिए विशेषतया तेरा नाम मेरा महा-अस्त्र हो रहा है। जब मनुष्य के काम-क्रोध आदि अन्य शत्रु जीते जा चुके होते हैं, मनुष्य आत्मिक उन्नति की ऊँची अवस्था को पहुँचा होता है, तब भी यह अभिमान, अस्मिता, अहंकार मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ता। यही है जो अविद्या का कुछ अंश शेष रहने तक भी आत्मा का मुकाबला करता रहता है। यही है जो कि हे मेरे परमेश्वर! मुझे अन्त तक तुमसे जुदा किए रहता है। जब मनुष्य खूब उन्नत हो जाता है, तब उसे और कुछ नहीं तो अपनी उन्नतावस्था का, अपने पुण्यात्मा होने का अभिमान हो जाया करता है। यह अभिमान ही मनुष्य को बिल्कुल पतित कर देने के लिए पर्याप्त होता है। इसीलिए हे शतक्रतो! हे अनन्तवीर्य! हे अनन्तप्रज्ञ! इसीलिए मैं निरन्तर तेरे नाम को जपता रहता हूँ, जीभ पर तेरा परमपवित्र नाम रक्खे फिरता हूँ। जब जरा भी अभिमान मन में आता है कि ""यह बड़ा भारी काम मैं कर रहा हूँ'', "यह मैंने किया'' तो तुरन्त मेरे हाथ जुड़ जाते हैं और मुख से तेरा नाम निकल पड़ता है। इस तरह इस महाशत्रु से मेरी रक्षा हो जाती है। तेरा नाम मुझे तुरन्त नमा देता है। तेरा स्मरण आते ही मैं अवनत-शिर होकर भूमि पर मस्तक टेक देता हूँ। तब उस महाबली अभिमान को क्षणभर में विलीन हो चुका पाता हूँ, चारों ओर कोसों दूर तक उसका पता नहीं होता, सब पृथिवी पर तुम ही तुम होते हो और मैं तुम्हारे चरणों में। मैं उस समय तेरे पृथिवीरूप विस्तृत चरणों में लगी हुई धूल का एक परम तुच्छ कण बनकर निरभिमानता के परम-पावन सात्त्विक सुख का उपभोग पाता हूँ। हे नाथ ! तेरे नाम की अपार महिमा का मैं क्या वर्णन करूँ ! 

    शब्दार्थ - शतक्रतो = हे अनन्तकर्म ! हे अनन्त प्रज्ञ ! विश्वाभिः गीर्भिः = मैं अपनी सब वाणियों से ते नामानि = तेरे नामों को ईमहे = लेता रहता हूँ। इन्द्र = हे परमेश्वर ! अभिमातिषाह्ये = शत्रु का, अभिमानरूपी शत्रु का पराभव करने के लिए तेरा नाम लेता हूँ। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार

    Ved Katha Pravachan _88 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


     

    Vinay- Indra Parmeshwar, where our father is our producer and foster, he is also Rudra for our welfare, also a savior. When there is a need to kill at some place in the world, God reveals his mind. As if we open our third eye, we publish our third form. When the glory of that welfare Shiva's manu becomes resplendent, then all the world that is perishable begins to devour in it like the husband. No person can avoid Manu, all of them come away. See, from time to time, in the form of big battles, droughts or epidemics etc., that great power of Lord Manu continues to appear in the world.

     

    Character of manu | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Khargone - Mandla - Ratnagiri - Sangli - Pratapgarh - Rajsamand | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Ved Mantra explaination in Hindi | Arya Samaj Mandir Indore| Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi. 

    Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | मन्यु का पात्र | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ

  • महर्षि दयानन्द की धर्म सम्बन्धी देन

    धर्म के सम्बन्ध में अज्ञान अभिशाप बन जाता है। यदि अशिक्षित व्यक्ति बिना जाने धर्म को ग्रहण करता है तो अन्ध विश्वासी बन जाता है और यदि शिक्षित व्यक्ति बिना जाने धर्म को ग्रहण करता है तो वह सर्वथा अविश्वासी नास्तिक बन जाता है। ऋषि दयानन्द के आगमन से पहले धर्म की यही दशा थी। एक ओर धर्म के नाम पर आडम्बर एवं पाखण्ड पनप रहे थे तो दूसरी ओर नास्तिकता फैल रही थी। धर्म के अनुयायियों में विशेष दोष यह आ गया था कि उन्होंने धर्म को आत्मा से सर्वथा दूर कर दिया था। सीधे रूप में यह कहा जा सकता है कि धर्म पालन के लिये आचरण आवश्यक नहीं रह गया था और उसे एक व्यापारिक वस्तु बना दिया गया था।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    कोई भी राष्ट्र धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता -2

    Ved Katha Pravachan -6 (Explanation of Vedas & Dharma) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    जैसे व्यापार में पैसे से कोई चीज खरीदी जा सकती है या एजेन्टों के द्वारा सारा कारोबार चलता हैठीक इसी प्रकार पैसे से धर्म उपार्जन किया जा सकता है या स्वयं कुछ न करके अन्यों के द्वारा किया जा सकता है। धनिक लोग मद्य मांस तथा वेश्यागमन आदि पाप करते हुए भी दक्षिणा से खरीदे ब्राह्मणों के द्वारा यज्ञ तथा जप आदि कराते थे और उन धनक्रीत धर्माध्यक्षों के द्वारा धर्म के संरक्षक भी घोषित किये जाते थे। इस प्रकार टकों से धर्म संग्रह की सम्भावना बढ जाने पर क्यों कोई झंझट में पड़े तप या साधना के। धर्म के धन का दास बन जाने की एक प्रतिक्रिया हुई कि पापों के क्षमा हो जाने की व्यवस्था चल पड़ी। इतना दान-पुण्य करो और पाप से छुटकारा पा जाओ। इससे कर्म फल व्यवस्था का आधार ही नष्ट हो गया और धर्म की तो जड़ ही कट गई। समाज में कदाचार तथा कुप्रवृत्तियों का बोल-बाला हो गया। चोर डाकू आदि भी देवताओं से वरदान पाने लगेनिज कार्य की सिद्धि के लिये उनकी उपासना आराधना करने लगे। प्रत्येक जघन्य कर्म देव स्तुति से आरम्भ होने लगा। धर्म के नाम पर वाममार्ग की प्रतिष्ठा हो गयी। धर्म के सम्बन्ध में आचरण का जो अंश बचा था वह भी इतना उलझा दिया गया कि किसी भी मनुष्य के लिये उसका पालन सम्भव न रहा। उदाहरण के लिये साल भर में एक नैष्ठिक हिन्दू को 2000 व्रत उपवास करने होते थे। प्रतिदिन 6-7 का औसत पड़ता है। क्या कोई व्यक्ति ऐसे धर्म का अनुष्ठान करते हुए संसार का या अपना कोई अन्य कार्य भी कर सकता है?

    जब धर्म का आचरण अथवा आत्मा से सम्बन्ध विच्छिन्न हो गया तो एक और भारी बुराई पैदा हो गई। जन्म के आधार पर लोग धर्म के ठेकेदार बन गये। ब्राह्मण के घर में जन्म लेने मात्र से काला अक्षर भैंस बराबर व्यक्ति भी समाज में गुरुवत्‌ पूजा जाने लगा और शूद्र के घर में जन्मा विद्वान तथा पवित्राचरणशील व्यक्ति भी अनादर एवं दुर्व्यवहार का भाजन हो गया। इससे सारी सामाजिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयीसामाजिक मूल्य नष्ट हो गये। धर्माधिकारियों ने अपनी गद्दियों को सुरक्षित रखने के लिये ऐसे षडयन्त्र रचे कि अधिकांश जनता को अज्ञानान्धकार के गर्त में फेंक दिया गया। एक ने स्त्री जाति को शिक्षा के अधिकार से वंचित किया तो दूसरे ने शूद्रों की शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिये। अवस्था यहॉं तक पहुँची कि कुछ लोगों से धन मिल गया तो उन्हें उच्च कुलीनक्षत्रियवैश्य आदि घोषित कर दिया गया और जिनसे धन की प्राप्ति न हुईउन्हें नीच कुलीन शूद्र पतित आदि की क्षेणियों में धकेल दियागया।

    वैदिक संस्कृति तथा समाज का नारा था- धर्मादर्थश्च कामश्च। अर्थात्‌ धर्मपूर्वक अर्थ और काम की सिद्धि श्रेयसी होती है। अब इसके विपरीत होगा- अर्थाद्‌धर्मश्च कामश्च। धन से ही धर्म तथा काम की सिद्धि सुगम है। क्रान्तदर्शी ऋषि के सात्विक हृदय पर इस वाम मार्ग ने कड़ा आघात किया। उन्हें लगा कि सब अनर्थों का मूल धर्म सम्बन्धी अज्ञानता है। धर्म के वास्तविक स्वरूप को लोग भूल चुके हैंमूल धर्म से समाज का सूत्र विच्छिन्न हो गया है। ईश्वर और धर्म के वास्तविक स्वरूप का प्रतिपादन हुए बिना अविद्याग्रस्त मानव का कल्याण असम्भव है। इसी लगन और धुन में वे घर परिवार छोड़कर सच्चे ईश्वर की प्राति में जुट गए। निरन्तर 18 वर्ष की दीर्घ तपस्या तथा कठोर साधना के फलस्वरूप उन्होंने अपने अभीष्ट को पा लिया और फिर मानव कल्याण के लिए प्रचार में लग गये। अकाट्य तर्कों तथा युक्ति प्रमाणों के आधार पर सिद्ध किया कि ईश्वर एकनिराकारनिर्विकारसर्वज्ञसर्वव्यापक हैउसी की उपासना करनी चाहिये। जीव अल्पज्ञ हैकर्म करने में स्वतन्त्र हैपरन्तु फल भोग में पराधीन है। फल की व्यवस्था ईश्वराधीन है। ईश्वर भी न्यायकारी हैजीव के कर्मों के अनुसार ही सुख दु:ख रूपी फल देता है। बिना कर्म किए फल नहीं मिल सकता और जो कर्म किया है उसके फल से किसी भी प्रकार छुटकारा नहीं हो सकता। किसी दूसरे के किये हुए कर्म का किसी को कोई फल नहीं मिल सकता। 

    यद्यपि सन्त सुधारक इस देश में 14 वीं से 17 वीं शताब्दी तक अनेक हुए,जिन्होंने हिन्दू धर्म में सुधार तथा संशोधन के लिए सराहनीय प्रयत्न किये। परन्तु यह  तथ्य है कि वे समाज एवं जाति की धारा को न मोड़ सके। इसका कारण यही रहा कि वे जाति की ज्ञान चक्षुओं को न खोल सके। ऋषि दयानन्द की अपनी दो विशेषतायें थीं- अखण्ड ब्रह्मचर्य तथा अगाध विद्वत्ता। इन दोनों शक्तियों के बल पर उन्होंने सोये समाज को झिंझोड कर जगाया। संसार के सारे देशी-विदेशी मत-मतान्तरों का तर्क की कसौटी पर विश्लेषण किया। कोई भी धर्म पुस्तक या धर्म प्रवर्तक न बचा,जिसके ऊपर ऋषि की लेखनी न चली हो। ऐसा निर्भीक आचार्य सम्भवत: भूतल पर दूसरा नहीं उतरा जिसने इस प्रकार निर्मम शल्यक्रिया की हो। धर्म के क्षेत्र में श्रद्धा तथा विवेक का ऐसा सामंजस्य कहॉं देखने को मिलेगा,जैसा ऋषि दयानन्द में मिलता है। इसके साथ ही एक बहुत बड़ा उपकार उन्होंने यह किया कि धर्म तथा दर्शन की गूढतम गुत्थियों को जनता की सरल भाषा में ऐसा निबद्ध किया कि उनके महान ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश को पढकर ही मनुष्य धर्म एवं ईश्वर के सम्बन्ध में सब कुछ जान सकता है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं कि सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन से ही साधारण कृषक या दुकानदार धर्म के ऐसे व्याख्याता बन गये कि दूसरे मतों के अच्छे-अच्छे विद्वान्‌ भी उनके मुकाबले में न ठहर सकते थे। सार यह कि ऋषि दयानन्द ने धर्म और ईश्वर के नाम पर चलने वाले आडम्बर-पाखण्डों को छिन्न-भिन्न किया,अनर्थों का निराकरण किया। साथ ही इन दोनों का बुद्धिसम्मत तथा तर्कानुगत स्वरूप इस प्रकार जन भाषा में प्रस्तुत किया कि बुद्धिवादी लोग धर्म का आदर करने लगे और धर्म कुछ विशेष साधन सम्पन्न अथवा सुविधा प्राप्त लोगों की वस्तु न रहकर सर्व साधारण की धरोहर बन गया। उसका सम्बन्ध सीधा आत्मा से जुड़ गया और आचार के आधार पर वह पुन: प्रतिष्ठित हो गया। अन्ध विश्वास और नास्तिकता दोनों पर एक साथ प्रहार हुआ। यह धर्म के सम्बन्ध में ऋषि दयानन्द की देन है। आर्य समाज की स्थापना इसी देन के सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक प्रचार के लिए हुई है। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिये विद्या का प्रचार और अविद्या का नाश करने तथा सत्य के ग्रहण करने और असत्य के परित्याग में प्रत्येक को सदैव समुद्यत रहना चाहिये। -रघुवीर सिंह शास्त्री

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.allindiaaryasamaj.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

     

    When the conduct of religion or the relationship with the soul was severed, another great evil was born. On the basis of birth, people became the contractors of religion. Just by being born in a Brahmin's house, even a person with a black letter buffalo started to worship Guruvata in the society and a scholar and a pious person born in a Shudra's house also became a victim of disrespect and abuse. Due to this, the entire social system was torn apart, social values ​​were destroyed. 

    Religious gift of Maharishi Dayanand | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Khandwa - Pune - Raigad - Nagaur - Pali - Katni | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore MP | Arya Samaj Mandir in Indore |  Arya Samaj Marriage | Arya Samaj in Madhya Pradesh - Chhattisgarh | Arya Samaj | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Hindu Matrimony | Matrimonial Service | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi.

    Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | महर्षि दयानन्द की धर्म सम्बन्धी देन | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | When the conduct of religion or the relationship with the soul was severed, another great evil was born. On the basis of birth, people became the contractors of religion. Just by being born in a Brahmin's house, even a person like black letter buffalo started to worship Guruvat in the society and a scholar and a pious person born in the house of Shudra also became disrespectful of disrespect and abuse | Documents required for arya samaj marriage in indore | Divya Matrimony in Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • महर्षि दयानन्द के उपकार-1

    मानव इतिहास का अवलोकन करने से यह ज्ञात होता है कि इस भूमण्डल पर वैदिक युग की समाप्ति के पश्चात्‌ प्रचलित हुए वेद विरुद्ध विभिन्न मतों-पन्थों ने सद्‌ज्ञान रूपी सूर्य को ढक दिया था, जिसके परिणामस्वरूप लगभग पॉंच सहस्त्र वर्षों तक सम्पूर्ण मानव समुदाय अज्ञानान्धकार में भटकता रहा । उस अन्तराल में जो तथाकथिक गुरु-आचार्य, सन्त-महात्मा, सर्वज्ञ, ईश्वर, पुत्र तथा सन्देश वाहक आदि कहलाये वे संसार का अधिक हित नहीं कर सके। क्योंकि उनके द्वारा मनुष्यों को शाश्वत सत्य का बोध नहीं हो पाया। अर्थात्‌ उनमें से किसी ने भी ईश्वरीयज्ञान "वेद" का प्रचार नहीं किया। वे महानुभाव तो केवल स्वकल्पित  मतों को मनवाने में ही लगे रहे।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    बालक निर्माण के वैदिक सूत्र एवं दिव्य संस्कार-2
    Ved Katha Pravachan -13 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    उनके अनुयायियों में से किसी ने कहा कि हमारे धर्मशास्त्र स्वयं ईश्वर ने मनुष्य का तन धारण करके अपने हाथ से लिखे हैं। किसी ने अपने मान्य आचार्यों द्वारा लिखित ग्रन्थों को सर्वज्ञों की कृति बताया। किसी ने गुरुओं की वाणी को स्वीकारने पर बल दिया। किसी ने प्रभु के पुत्र द्वारा प्रदत्त विचारों की महानता पर विश्वास दिलाने का यत्न किया तो किसी ने अपनी मान्य पुस्तक के माध्यम से ईश्वरीय सन्देश की पुष्टि की, इत्यादि.. जबकि आदि सृष्टि में उत्पन्न हुए अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा नामक उपाधिधारी ऋषियों से लेकर महाभारतकालीन जैमिनि ऋषि तक की अवधि के सभी ऋषियों ने सत्य-शाश्वत वेद और वेद प्रतिपादित मान्यताओं को ही प्राणीमात्र के लिये कल्याणकारी माना था।

    महर्षि जैमिनि के पश्चात्‌ सर्वप्रथम आर्ष शैली में वेद का प्रचार-प्रसार करने वाले महर्षि दयानन्द ही थे। इतिहासविद्‌ यह भली भॉंति जानते हैं कि महर्षि दयानन्द से पूर्व हुए मध्यकालीन विद्वान्‌ सायणमहीधरउबट आदि ने मद्यपानमांसाहारव्यभिचारयज्ञ में पशुबलि जैसे पापोंभूत-प्रेतजादू-टोनों जैसे अन्धविश्वासों और सृष्टिक्रम के विरुद्ध मान्यताओं को वेद सम्मत बताया। इसलिये उस काल में हुए लगभाग सभी मनीषी वेद के विरोधी बन गये। वर्तमान में भी उपर्युक्त  विद्वानों की मान्यताओं पर आधारित पश्चिमी और पूर्वी लेखकों द्वारा किया गया वेदार्थ जिन विद्यालयों में पढाया जाता है उससे वहॉं के अधिकांश विद्यार्थियों के हृदय में वेद के प्रति जो चाहिये वह श्रद्धा नहीं हो पा रही है।

    वेद प्रचारक महर्षि दयानन्द-  महर्षि दयानन्द ने वेदमन्त्रों के अर्थ परम्परागत ऋषि शैली में करके वेद विषयक फैली भ्रान्तियों को मिटा दिया और वेद को ईश्वरीय ज्ञान तथा स्वत: प्रमाण बताते हुए दृढता पूर्वक कहा-"वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है, वेद का पढना पढाना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।" (आर्यसमाज का तीसरा नियम) उन्होंने वेद के सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त करते हुए लिखा-"चारों वेदों (विद्या धर्मयुक्त ईश्वर प्रणीत संहिता मन्त्र भाग) को निर्भ्रान्त स्वत: प्रमाण मानता हूँ।  वे स्वयं प्रमाण रूप हैं कि जिनके प्रमाण होने में किसी अन्य ग्रन्थ की अपेक्षा नहीं। जैसे सूर्य वा प्रदीप स्वरूप के स्वत: प्रकाशक और पृथिव्यादि के भी प्रकाशक होते हैं वैसे चारों वेद है।".

    इसी प्रकार से वे स्वरचित आर्योद्‌देश्य रत्नमाला के 15 वें "रत्न" में भी यही स्पष्ट करते हैं कि-"जो ईश्वरोक्तसत्य विद्याओं से युक्त ऋक्‌ संहितादि चार पुस्तक हैंजिनसे मनुष्यों को सत्यासत्य का ज्ञान होता हैउसको वेद कहते हैं।" महर्षि दयानन्द ने आर्ष शैली में वेद का प्रचार कियाउससे वेद के विषय में अनर्गल प्रलाप करने वालों के मुँह बन्द हो गये। अनेक वेद निन्दक वेद के समर्थक बने और वेदों को गडरियों के गीत बताने वाले लज्जा की अनुभूति करने लगे।

    आर्ष पद्धति को अपना कर किया विश्व में वेद प्रचार।
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार ।।

    वेद ही ईश्वरीय ज्ञान हैइस मान्यता की पुष्टि करते हुए महर्षि दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश के सातवें समुल्लास में लिखते हैं-

    (1)  "जैसा ईश्वर पवित्र, सर्व विद्यावित्‌, शुद्धगुणकर्मस्वभाव, न्यायकारी, दयालु आदि गुण वाला है, वैसे जिस पुस्तक में ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभाव के अनुकूल कथन हो, वह ईश्वरकृत, अन्य नहीं।

    (2)  और जिसमें सृष्टिक्रम, प्रत्यक्षादि प्रमाण, आप्तों के और पवित्रात्मा के व्यवहार से विरुद्ध कथन न हो, वह ईश्वरोक्त।

    (3)  जैसा ईश्वर का निर्भ्रम ज्ञान वैसा जिस पुस्तक में भ्रान्ति रहित ज्ञान प्रतिपादन हो, वह ईश्वरोक्त।

    (4)  जैसा परमेश्वर है और जैसा सृष्टिक्रम रक्खा है, वैसा ही ईश्वर, सृष्टि, कार्य, कारण और जीव का प्रतिपादन जिसमें होवे।

    (5) और जो प्रत्यक्षादि प्रमाण विषयों से अविरुद्ध शुद्धात्मा के स्वभाव से विरुद्ध न हो, वह परमेश्वरोक्त पुस्तक होता है।"

    महर्षि दयानन्द ने ऋक, यजु, साम और अथर्व नामक चार सहिताओं को ही वेद माना है, पौराणिक विद्वानों की भॉंति ब्राह्मणग्रन्थादि को नहीं। उन्होंने स्वलिखित ग्रन्थ "ऋग्वेदादि भाष्यभूमिका" के वेद संज्ञा विचार में स्पष्ट कर दिया-"ब्राह्मणग्रन्थ वेद नहीं हो सकते, क्योंकि उन्हीं का नाम इतिहास, पुराण, कल्प, गाथा और नाराशंसी भी है। वे ईश्वरोक्त नहीं हैं..।" अपने इस कथन की पुष्टि हेतु प्रमाण प्रस्तुत करते हुए वे आगे लिखते हैं- "ब्राह्मणग्रन्थों की वेदों में गणना नहीं हो सकती, क्योंकि इषे त्वोर्जे त्वा. इस प्रकार से उनमें मन्त्रों की प्रतीक धर-धर के वेदों का व्याख्यान किया है। और मन्त्र भाग संहिताओं में ब्राह्मणग्रन्थों की एक भी प्रतीक कहीं नहीं देखने में आती। इससे जो ईश्वरोक्त मूलमन्त्र अर्थात्‌ चार संहिता है वे ही वेद है, ब्राह्मणग्रन्थ नहीं।"

    यह भी जानने योग्य है कि महर्षि दयानन्द ने वेद के अतिरिक्त अन्य किसी भी ग्रन्थ को स्वत: प्रमाण नहीं माना।  इस सम्बन्ध में उन्होंने यह लिख कर "स्वमन्तव्यामन्तव्य प्रकाश" में अपना मत व्यक्त किया है-"चारों वेदों के ब्राह्मण (ऐतरेय, शतपथ, साम और गौपथ), छ: अंग (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष), छ: उपांग (मीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य और वेदान्त), चार उपवेद (आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद और अर्थवेद) और 1127 (ग्यारह सौ सत्ताइस) वेदों की शाखा जो कि वेदों के व्याख्यान रूप ब्राह्मादि महर्षियों के बनाये ग्रन्थ हैं, उनको परत: प्रमाण अर्थात्‌  वेदों के अनुकूल होने से प्रमाण और जो इन में वेद विरुद्ध कथन है उनका अप्रमाण करता हूँ।"

    ज्ञान शाश्वत बता ईशका किया वेद मत का विस्तार |
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार ।।

    महर्षि दयानन्द ने वेद के प्रचार का कार्य आरम्भ कियाउस समय तक पौराणिक विद्वान्‌ वेदमन्त्रों का उपयोग केवल तथाकथित पूजा पाठ के लिये ही करते थे। अर्थात्‌ उनकी मान्यतानुसार वेदमन्त्रों के उच्चारण का उद्‌देश्य मात्र स्वकल्पित देवी-देवताओंं को रिझाना था। वेद में ईश्वर की ओर से हम मनुष्यों के लिये कोई आदेशनिर्देशउपदेशसन्देशसम्मतिसत्प्रेरणादि भी हैंउनमें से अधिकांश महानुभावों को यह जानकारी नहीं थी। इसके अतिरिक्त वेद को वे जन्मजात ब्राह्मण समुदाय तक ही सीमित मानते थे। स्त्रियों और शूद्रों को तो उन्होंने वेद सुनने तक से वञ्चित कर दिया था। ऐसी दुरावस्था में महर्षि दयानन्द ने यजुर्वेद के 26 वें अध्याय का यह दूसरा मन्त्र-यथेमां वाचं कल्याणीमावदानि जनेभ्य:।ब्रह्मराजन्याभ्यां शूद्राय चार्याय च चारणाय।।  उद्‌धृत करते हुए "सत्यार्थ प्रकाश" के तृतीय समुल्लास में लिखा -"परमेश्वर कहता है कि (यथा) जैसे मै (जनेभ्य:) सब मनुष्यों के लिये (इमाम्‌) इस (कल्याणीम्‌) कल्याण अर्थात्‌ संसार और मुक्ति के सुख देनेहारी (वाचम्‌) ऋग्वेदादि चारों वेदों की वाणी का (आ वदानि) उपदेश करता हूँ वैसे तुम भी किया करो।"...

    (ब्रह्म राजन्याभ्याम्‌) हमने ब्राह्मण, क्षत्रिय (अर्य्याय) वैश्य (शूद्राय) शूद्र और (स्वाय) अपने भृत्य वा स्त्रियादि (अरणाय) और अति शूद्रादि के लिये भी वेदों का प्रकाश किया है,... वे आगे लिखते हैं- .. "जो परमेश्वर का अभिप्राय शूद्रादि के पढाने-सुनाने का न होता तो इनके शरीर में वाक्‌ और श्रोत्र-इन्द्रिय क्यों रचता? जैसे परमात्मा ने पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, चन्द्र, सूर्य और अन्नादि पदार्थ सबके लिये बनाये हैं, वैसे ही वेद भी सबके लिये प्रकाशित किये हैं। और जो स्त्रियों के पढने का निषेध करते हो, वह तुम्हारी मूर्खता, स्वार्थता और निर्बुद्धिता का प्रभाव है।"

    आगे उन्होंने शतपथ ब्राह्मण का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए बताया कि "भारतवर्ष की स्त्रियों में भूषण रूप गार्गी आदि वेदादि शास्त्रों को पढके पूर्ण विदुषी हुई थी।" महर्षि दयानन्द की कृपा से ही अनेक विदुषी महिलाएं वेदाचार्य की उपाधि प्राप्त कर पाई और शूद्र कुलोत्पन्न अनेकानेक बन्धु वेद के विद्वान्‌ बनकर ईश्वरीय वाणी का प्रचार कर रहे हैं। 

    मनुज मात्र को वेद पठन का पुन: प्राप्त हुआ अधिकार। 
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार ।।

    ब्र्रह्मवेता महर्षि दयानन्दमहाभारत काल के पश्चात्‌ प्रचलित हुए अवैदिक मत-पन्थों की ओर से ईश्वर के सम्बन्ध में जो कहा और लिखा गया उसे हम कल्पना पर आधारित मानते हैं। इसलिये कि उनके प्रवर्तक वेद के विद्वान्‌ नहीं थे। उन्होंने अध्यात्त्म विषयक जो मत व्यक्त किये वे ऋषियों की (अवैदिक) मान्यता के अनुकूल नहीं हैं।

    यद्यपि उनमें से अनेक महानुभावों ने ऋषियों द्वारा लिखे गये उपनिषदोंदर्शन शास्त्रों आदि को अपने मत की पुष्टि में सहायक बतायाकिन्तु वे उन ग्रन्थकारों की भावनाओं को ठीक से समझ नहीं सके। यही कारण है कि तब से अब तक अध्यात्म के नाम पर जिन मान्यताओं का प्रचार-प्रसार हुआ और हो रहा हैउनमें समानता नहीं पाई जाती।

    यह सर्वविदित है कि अपने आपको अध्यात्म से सम्बन्धित मानने वाले अनेक मत-पन्थ जो ईश्वर को मानते हैंवे उसके स्वरूपनामस्थानकार्य आदि की दृष्टि से परस्पर भिन्न विचार रखते हैं। ये मतभेद प्रमाणित करते हैं कि वेद विरुद्ध मत पन्थों का ईश्वर काल्पनिक हैवास्तविक नहीं। अत: यह निश्चयपूर्वक लिखा जा रहा है कि लगभग पॉंच सहस्त्र वर्षों के पश्चात्‌ मानव समुदाय को वेद में वर्णित ईश्वर सम्बन्धी यथार्थ ज्ञान महर्षि दयानन्द ने ही कराया।

    सदियों के पश्चात्‌ ईश को पुन: जान पाया संसार ।
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार ।।

    "सत्यार्थ प्रकाश" सप्तम समुल्लास का आरम्भ करते हुए महर्षि दयानन्द लिखते हैं जो सब दिव्य गुण-कर्म-स्वभाव विद्या युक्त और जिसमें पृथिवी सूर्यादि लोक स्थित हैं और जो आकाश के समान व्यापकसब देवों का देव परमेश्वर हैउसको जो मनुष्य न जानते न मानते और उसका ध्यान नहीं करते वे नास्तिक मन्दमति सदा दु:ख सागर में डूबे ही रहते हैं।

    महर्षि दयानन्द ने वेद प्रचार का कार्य आरम्भ किया उस समय इस भूमण्डल पर अनेक ईश्वर माने जाते थे। अत: उन्होंने बलपूर्वक यह घोषणा की कि-"चारों वेादें में ऐसा कहीं नहीं लिखा जिससे अनेक ईश्वर सिद्ध हों। किन्तु यह तो लिखा है कि ईश्वर एक ही है ।"

    आगे ईश्वर की सिद्धि के लिये प्रत्यक्षादि प्रमाणों का न्यायदर्शन के एक सूत्र से समर्थन करते हुए वे स्पष्ट करते हैं कि- "जो श्रोत्रत्वचाचक्षुजिह्वाप्राण और मन काशब्दस्पर्शरूपरसगन्धसुखदु:खसत्यासत्य विषयों के साथ सम्बन्ध होने से ज्ञान उत्पन्न होता हैउसको "प्रत्यक्ष" कहते हैंपरन्तु वह निर्भ्रम हो। जैसे चारों त्वचा आदि इन्द्रियों से स्पर्शरूपरस और गन्ध का ज्ञान होने से गुणी जो पृथिवी उसका आत्मा युक्त मन से प्रत्यक्ष किया जाता हैवैसे इस प्रत्यक्ष सृष्टि में रचना विशेष आदि ज्ञानादि गुणों से प्रत्यक्ष होने से परमेश्वर का भी प्रत्यक्ष है। और जब आत्मा मन इन्द्रियों को किसी विषय में लगाता वा चोरी आदि बुरी वा परोपकार आदि अच्छी बात के करने का जिस क्षण में आरम्भ करता हैउस समय जीव के इच्छा ज्ञानादि उसी इच्छित विषय पर झुक जाते हैं। उसे क्षण में आत्मा के भीतर से बुरे काम करने में भयशङ्क ा और लज्जा तथा अच्छे कामों के करने में अभयनि:शंकता और आन्दोत्साह उठता हैं। वह जीवात्मा की ओर से नहीं किन्तु परमात्मा की ओर से है। और जब जीवात्मा शुद्धान्त:करण से युक्त योग समाधिस्थ होकर आत्मा और परमात्मा का विचार करने में तत्पर रहता है तब उसको उसी समय दोनों प्रत्यक्ष होते हैं। जब परमेश्वर का प्रत्यक्ष होता है तो अनुमानादि से परमेश्वर के ज्ञान होने में क्या सन्देह हैक्योंकि कार्य को देख के कारण का अनुमान होता है।"

    ईश्वर निराकार हैइस वैदिक मान्यता की पुष्टि करने के लिये महर्षि दयानन्द ने यह हेतु दिया कि- "जो साकार होता तो व्यापक नहीं हो सकताजब व्यापक न होता तो सर्व ज्ञादि गुण भी ईश्वर में न घट सकते क्योंकि परिमित वस्तु में गुण-कर्म-स्वभाव भी परिमित रहते हैं तथा शीतोष्णक्षुधातृषा और रोगदोषछेदनभेदन आदि से रहित नहीं हो सकता। इससे यही निश्चित है कि ईश्वर निराकार है। जो साकार हो तो उसके नाककानआँख आदि अवयवों का बनाने वाला दूसरा होना चाहिये। क्योंकि जो संयोग से उत्पन्न होता हैउसको संयुक्त करने वाला निराकार चेतन अवश्यक होना चाहिये। जो कोई यहॉं ऐसा कहे कि ईश्वर ने स्वेच्छा से आप ही आप अपना शरीर बना लिया तो भी वही सिद्ध हुआ कि शरीर बनने के पूर्व निराकार था।"

    "जब परमेश्वर के श्रोत्रनेत्रादिइन्द्रियॉं नहीं हैंफिर वह इन्द्रियों का काम कैसे कर सकता हैं?" इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने श्वेताश्वतर उपनिषद्‌ के आधार पर यह दिया कि-"परमेश्वर के हाथ नहीं परन्तु अपनी शक्ति रूप हाथ से सबका रचना ग्रहण करतापग नहीं परन्तु व्यापक होने से सबसे अधिक वेगवान्‌चक्षु का गोलक नहीं परन्तु सबको यथावत्‌ देखताश्रोत्र नहीं तथापि सबकी बातें सुनताअन्त:करण नहीं परन्तु सब जगत्‌ को जानता है और उसको अवधि सहित जानने वाला कोई भी नहींउसी को सनातनसबसे श्रेष्ठसबमें पूर्ण होने से "पुरुष" कहते हैं। वह इन्द्रियों और अन्त:करण के बिना अपने सब काम अपने सामर्थ्य से करता है।"

    सप्रमाण कर दिया सिद्ध आकृति रहित है सरजनहार।
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार ।।

    ईश्वर अवतार की पौराणिक मान्यता के सम्बन्ध में महर्षि ने अपनी असहमति व्यक्त की और यह पूछे जाने पर कि-"जो ईश्वर अवतार न लेवे तो रावणादि दुष्टों का नाश कैसे हो?" बताया कि-"प्रथम तो जो जन्मा हैवह अवश्य मृत्यु को प्राप्त होता है। जो ईश्वर अवतार शरीर धारण किये बिना जगत्‌ की उत्पत्तिस्थितिप्रलय करता हैउसके सामने कंस और रावणादि एक कीड़ी के समान भी नहीं। वह सर्वव्यापक होने से कंस-रावणादि के शरीरों में भी परिपूर्ण हो रहा हैजब चाहे उसी समय मर्मच्छेदन कर नाश कर सकता है। भला इस अनन्त गुण-कर्म-स्वभाव युक्त परमात्मा को एक शुद्र जीव को मारने के लिए जन्म-मरण युक्त कहने वाले को मूर्खपन से अन्य कुछ विशेष उपमा मिल सकती हैऔर जो कोई कहे कि भक्तजनों के उद्धार करने के लिये जन्म लेता है तो भी सत्य नहींक्योंकि जो भक्तजन ईश्वर की आज्ञानुकूल चलते हैं उनके उद्धार करने का पूरा सामर्थ्य ईश्वर में है। क्या ईश्वर के पृथिवीसूर्यचन्द्रादि जगत्‌ को बनानेधारण और प्रलय करने रूप कर्मों से कंस रावणादि का वध और गोवर्धनादि पर्वतों का उठाना बड़े कर्म हैंऔर युक्ति से भी ईश्वर का जन्म सिद्ध नहीं होता। जैसे कोई अनन्त आकाश को कहे कि गर्भ में आया वा मूठी में धर लियाऐसा कहना कभी सम्भव नहीं हो सकताक्योंकि आकाश अनन्त और सबमें व्यापक है। इससे न आकाश बाहर आता और न भीतर जातावैसे ही अनन्त सर्वव्यापक परमात्मा के होने से उसका आना-जाना कभी सिद्ध नहीं हो सकता। जाना वा आना वहॉं हो सकता हैजहॉं न रहे। क्या परमेश्वर गर्भ में व्यापक नहीं था जो कहीं से नहीं आयाऔर बाहर नहीं था जो भीतर से निकलाऐसा ईश्वर के विषय में कहना और मानना विद्याहीनों के सिवाय कौन कह और मान सकेगा। इसलिये परमेश्वर का आना-जाना जन्म मरण कभी सिद्ध नहीं हो सकता।कमलेश कुमार अग्निहोत्री

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindorehelpline.com 

     

    Although many of them had said that the Upanishads, philosophies etc. written by the sages were helpful in confirming their views, but they could not understand the feelings of those authors properly. This is the reason that since then till now, there is no equality in the beliefs which have been propagated and practiced in the name of spirituality.

    Sub-1 of Maharishi Dayanand  | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Nagpur - Nanded - Jalore - Jhalawar - Gwalior - Harda | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | महर्षि दयानन्द के उपकार-1 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

     

  • महर्षि दयानन्द के उपकार-2

    ईश्वर के जन्म लेने और गर्भ में आने की पौराणिक साहित्य में पुष्टि-  जो पौराणिक विद्वान्‌ यह कहते हैं कि ईश्वर जन्म नहीं लेता, वह तो प्रकट होता है। उन्हें अपने मान्य ग्रन्थों को ध्यान से पढना चाहिये। उदाहरणार्थ- श्रीरामचरित मानस के बालकाण्ड में गोस्वामी तुलसीदास जी ने शिवजी के मुँह से कहलवाया "जो दिन तें हरि गर्भहिं आए" तथा स्वयं अपने आराध्य देव श्रीराम से बुलवाया- "जन्मे एक संग सब भाई।" इसी प्रकार श्रीमद्‌भगवद्‌गीता चतुर्थ अध्याय श्लोक पॉंच में "बहुनि मे व्यतीतानि तव चार्जुन" आदि अकाट्‌य प्रमाणों से पौराणिक ईश्वर श्रीराम और श्रीकृष्ण के जन्म लेने की पुष्टि होती है।

    बतलाया प्रभु सर्वव्यापक लेता नहीं कभी अवतार।
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार ।।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    बालक निर्माण के वैदिक सूत्र एवं दिव्य संस्कार-1
    Ved Katha Pravachan -12 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    "ईश्वर अपने भक्तों के पाप क्षमा करता हैवा नहीं?" इस प्रश्न का उत्तर महर्षि दयानन्द ने यह लिखकर दिया-"नहीं। क्योंकि जो पाप क्षमा करे तो उसका न्याय नष्ट हो जाये और सब मनुष्य महापापी हो जायें। क्योंकि क्षमा की बात सुन ही के उनको पाप करने में निर्भयता और उत्साह हो जाये। जैसे राजा अपराधियों के अपराध को क्षमा कर दे तो वे उत्साह पूर्वक अधिक-अधिक बड़े-बड़े पाप करें। क्योंकि राजा अपना अपराध क्षमा कर देगा और उनको भी भरोसा हो जाये कि राजा से हम हाथ जोड़ने आदि चेष्टा कर अपने अपराध छुड़ा लेंगे। और जो अपराध नहीं करतेवे भी अपराध करने से न डरकर पाप करने में प्रवृत्त हो जायेंगे। इसलिये सब कर्मों का फल यथावत्‌ देना ही ईश्वर का काम हैक्षमा करना नहीं।"

    महर्षि दयानन्द ने ईश्वर को सगुण और निर्गुण  (दोनों गुणों से मुक्त) माना हैं। वे इस वेदोक्त मान्यता के समर्थन में लिखते हैं- "जैसे जड़ के रूपादि गुण हैं और चेतन के ज्ञानादि गुण जड़ में नहीं हैंवैसे चेतन में इच्छादि गुण हैं और रूपादि जड़ के गुण नहीं हैं। इसलिए जो गुण से सहित वह सगुण और जो गुणों से रहित वह "निर्गुण" कहाता है। अपने-अपने स्वाभाविक गुणों से सहित और दूसरे विरोधी के गुणों से रहित होने से सब पदार्थ सगुण और निर्गुण हैं। कोई ऐसा पदार्थ नहीं है कि जिसमें केवल निर्गुणता वा केवल सगुणता हो किन्तु एक ही में सगुणता और निर्गुणता सदा रहती है। वैंसे ही परमेश्वर अपने अनन्त ज्ञान-बलादि गुणों से सहित होने से सगुण और रूपादि जड़ के तथा द्वेषादि जीव के गुणों से पृथक्‌ होने से "निर्गुण" कहाता है।"

    जब उनसे यह कहा गया कि- "संसार में निराकार को निर्गुण और साकार को सगुण कहते हैं।" तो उन्होंने बताया- "यह कल्पना केवल अज्ञानी और अविद्वानों की है। जिनको विद्या नहीं होतीवे पशु के समान यथा-तथा बर्ड़ाया करते हैं। जैसे सन्निपात ज्बरयुक्त मनुष्य अण्डबण्ड बकता हैवैसे ही अविद्वानों के कहे व लेख को व्यर्थ समझना चाहिये।"

    महर्षि दयानन्द ने ईश्वर को न तो रागी माना और न विरक्त। इस सम्बन्ध में उनका मत यह है कि- "राग अपने से भिन्न उत्तम पदार्थों में होता हैसो परमेश्वर से कोई पृथक्‌ वा उत्तम नहीं हैइसलिये उसमें राग का सम्भव नहीं। और जो प्राप्त को छोड़ देवेउसको विरक्त कहते हैं। ईश्वर व्यापक होने से किसी पदार्थ को छोड़ ही नहीं सकताइसलिये विरक्त भी नहीं।"

    ईश्वर में इच्छा है वा नहीं?" इस प्रश्न के उत्तर में वे लिखते हैं कि- "इच्छा भी अप्राप्त उत्तम और जिसकी प्राप्ति से सुख-विशेष होवे उसकी होती हैतो ईश्वर में इच्छा (कैसे) हो सकेन उससे कोई अप्राप्त पदार्थन कोई उससे उत्तम और पूर्ण सुखयुक्त होने से सुख की अभिलाषा भी नहीं हैइसलिये ईश्वर में इच्छा का तो सम्भव नहीं किन्तु ईक्षण अर्थात्‌ सब प्रकार की विद्या का दर्शन और सब सृष्टि का करना कहाता हैवह ईक्षण है।"

    जान स्वरूप सत्य ईश का भ्रम से मुक्त हुए नर नार।
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार।।

    अध्यात्म सम्बन्धी अनधिकार चेष्टा-  इन्द्रियों का विषय न होने से मध्ययुग में हुए वेद विहीन व्यक्तियों के लिये  ईश्वर पहेली बन गया। अत: अवैदिक मतों के प्रवर्तकों ने अपने-स्तर पर ईश्वर सम्बन्धी विभिन्न कल्पनाएँ की और अध्यात्म प्रेमियों को भटका दिया। अर्थात्‌ किसी ने अपनी कल्पना के आधार पर ईश्वर की सत्ता का निषेध किया तो किसी ने ईश्वर को एकदेशी और साकार बताया।

    जिन्होंने यह कहा कि संसार में ईश्वर नाम की कोई सत्ता नहीं है अथवा ईश्वर एक देशी और साकार हैउनमें से किसी ने भी ईश्वर साक्षात्कार वाला वेदोक्त मार्ग नहीं बताया तथा न ही महात्माभक्त आदि महानुभावों ने महर्षि पतंजलि वाले अष्टांग योग को आचरण से अपना कर ईश्वर विषयक अपना मत व्यक्त किया। उन्होंने तो ईश्वर के सम्बन्ध में अपनी कल्पना से जो निर्णय लियावही माना और मनवाया।

    यह सर्व विदित है कि ऋषियों द्वारा लिखे गये सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं। जबकि मध्यकालीन अनेक सन्त-महात्मा नामधारियों को संस्कृत भाषा का तनिक भी ज्ञान नहीं था। यही कारण है कि वे अपने मत की पुष्टि प्राचीन शास्त्रों से नहीं कर पाये और अपनी शैक्षणिक अयोग्यता पर पर्दा डालने के लिये वेद विरोधी बन गये। जो संस्कृत भाषा के विद्वान्‌ थे उन्हें ऋषियों की आर्ष परम्परा का बोध नहीं था। अत: वे वेद तथा वैदिक मान्यताओं को ठीक से जानने में असमर्थ रहे और अपने स्तर पर ईश्वर सम्बन्धी की गई कल्पनाओं को उचित मान बैठे। उनकी ये "अध्यात्म सम्बन्धी अनधिकार चेष्टा" थी। भले ही उन महानुभावों की भावनाएँ अच्छी रहीं होंकिन्तु यथार्थ ज्ञान के अभाव में वे संसार का उपकार नहीं कर सके।

    उदाहरण- डॉक्टर से रोगी को यह कहते हुए सुन कर कि मैं गरीब हूँऔषधियों का मूल्य और आपकी फीस देना मेंरे लिये सम्भव नहीं हैकिसी परोपकार प्रिय व्यक्ति को दया आ जावे और वह निर्धनों को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा देने की कामना से नगर में यह विज्ञापन करावे कि "मैं गरीबों का मुफ्त इलाज करूंगाकृपया मुझे सेवा का अवसर दीजियेगा।" जबकि उसे चिकित्सा सम्बन्धी कुछ भी जानकारी नहीं हैतो क्या उसके इस तथा कथित सेवा कार्य को उचित माना जायेगाहॉंयदि कोई दयालु किसी अभावग्रस्त रोगी का सुयोग्य चिकित्सक से अपने व्यय पर उपचार करवादे तो उसे उपकारी समझा जा सकता हैकिन्तु वह स्वयं ही इलाज करने लगे तो यह उसको "अनधिकार चेष्टा" ही कहलायेगी। मध्ययुग में अध्यात्म के नाम पर यही हुआ। जिसके परिणामस्वरूप मानव समुदाय भ्रमित हो गया।

    शिक्षित वर्ग यह जानता है कि अनधिकारी चिकित्सकों को अपराधी मान कर सरकार उन्हें दण्ड देती है। यदि अध्यात्म सम्बन्धी भी ऐसा कोई विधान होता तो ईश्वर के नाम पर परस्पर विरोधी मान्यताओं वाले ये मत-मतान्तर प्रचलित नहीं हो पाते। आश्चर्य है कि जिन्होंने वेदउपनिषद्‌दर्शनशास्त्र देखे तक नहीं उन्होंने आत्मा-परमात्मा से सम्बन्धित जानकारी देने का दुस्साहस कर लिया।

    अनधिकृत अध्यात्मज्ञान को दूषित सिद्ध किया ललकार।
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार।।

    ईश्वर सम्बन्धी मूल प्रश्न और यथोचित उत्तर-

    (1) ईश्वर की सत्ता है अथवा नहीं ?
    (2) यदि ईश्वर है तो वह कहॉं रहता है?
    (3) ईश्वर कैसा है?
    (4) ईश्वर के साथ हमारा क्या सम्बन्ध है?

    maharshi swami dayanand saraswati

    महर्षि दयानन्द ने इन प्रश्नों का यथोचित उत्तर देकर अध्यात्मप्रेमियों पर महान्‌ उपकार किया है, इस सत्य को सभी निष्पक्ष बुद्धिमान्‌ मनीषी स्वीकारते हैं। आदि सृष्टि से महर्षि दयानन्द द्वारा रचित ग्रन्थों का स्वाध्याय करने से ज्ञात होता है, संसार में दिखाई दे रहे नियम और हो रहे कार्य आदि नियामक, कर्त्ता ईश्वर के अस्तित्व की साक्षी दे रहे हैं। इस प्रथम का उत्तर है। द्वितीय और तृतीय प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने हेतु आर्यसमाज का दूसरा नियम ध्यान से पढना चाहिये। लिखा है, वह-"ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरुप, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र है।" चतुर्थ प्रश्न के उत्तर से जानकारी मिलती है  कि ईश्वर सृष्टि का निर्माण, पालन, संहार करता और हम जीवों को हमारे शुभाशुभ कर्मों का यथावत्‌ फल देता है। ईश्वर सम्बन्धी पॉंचवें प्रश्न का उत्तर महर्षि दयानन्द ने स्तुतिप्रार्थनोपासना के सातवें मन्त्र से दिया- "वह परमात्मा अपना गुरु, आचार्य, राजा और न्यायाधीश है" तथा "आर्य्याभिविनय" द्वितीय प्रकाश के प्रथम व्याख्यान में उन्होंने ईश्वर को सम्बोधित करते हुए लिखा- "हम आपको ही पिता, माता, बन्धु, राजा, स्वामी, सहायक, सुखद, सुहृद, परम गुरु आदि जानें।"

    उलझन सुलझादी ईश्वर सम्बन्धी करके कृपा अपार।
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार ।।

    भगवान्‌ भक्तों के वश में नहीं होता-  मध्ययुग में हुए तथा कथित भगवद्‌ भक्तों के नाम से अवैदिक मतों द्वारा यह प्रचार किया गया कि भक्तभगवान को वश में कर लेते हैं अर्थात्‌ वे भगवान्‌ से अपने इच्छित कार्य करवा सकते हैं। वेद विरुद्ध इस मान्यता की पुष्टि हेतु "भक्तमाल" जैसी पुस्तकों में विभिन्न काल्पनिक कथाएँ लिखी गईजिन्हें पढ-सुन कर भोले नर-नारी भ्रमित हो गये।

    महर्षि दयानन्द ने "सत्यार्थप्रकाश" के सप्तम समुल्लास में स्पष्ट कर दिया कि "कोई ऐसी भी प्रार्थना करेगा- हे परमेश्वर ! आप हमको रोटी बना कर खिलाइयेमकान में झाडू लगाइयेवस्त्र धो दीजिये और खेती बाडी कीजिए। इस प्रकार जो परमेश्वर के भरोसे आलसी होकर बैठे रहते वे महामूर्ख हैं।"

    "भगवान्‌ भक्तों के वश मेंे हो जाता है"इस अन्धविश्वास ने मानव समुदाय का बहुत अहित किया है। भगवान्‌ से किसी के पॉंव दबवानेखेत कटवाने तथा छप्पर बॅंधवाने वाली कल्पित कथाओं के लेखकों को ईश्वर सम्बन्धी कुछ भी ज्ञान नहीं था।

    "भक्त भगवान्‌ से अपने मनमाने कार्य करवा लेते है"इस मान्यता के समर्थन में जो कहानियॉं सुनायी जाती हैं उनमें से उदाहरणार्थ यहॉं एक कहानी का उल्लेख किया जा रहा है। किसी युवक की मृत्यु का दु:ख उसकी माता के लिये असहाय हो गया। वह तथाकथित एक "भगत" के पास जाकर बोली कि आप भगवान्‌ से कहकर मेरे पुत्र को जीवित करवा दीजिएआपकी बड़ी कृपा होगी। भक्त ध्यानावस्थित हो गया और फिर नेत्र खोलकर उस माता से बोला- "मैंने भगवान्‌ से पूछा तो उन्होंने मुझे बतलाया आपके पुत्र की आयु समाप्त हो चुकी हैइसलिये अब यह जीवित नहीं हो पायेगा।" जब "भगत" ने दुखी माता से यह सुना कि यदि भगवान्‌ आपकी इच्छा पूर्ण नहीं करेंगे तो भक्त और भक्ति पर किसी को विश्वास नहीं होगा । उसने पुन: नेत्र बन्द किये और भगवान से कहकर उस मृत युवक को जीवित करवा दिया। मध्ययुग से होती आ रही ऐसी मूर्खतापूर्ण कथाओं ने ईश्वर के न्याय-नियमों पर प्रश्न चिन्ह लगाया। यह ऐतिहासिक सत्य है।

    भक्तों के वश हुए प्रभु का करके दिखलाया उद्धार।
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार ।।

    ईश्वर अपरिवर्तनीय और एकरस है- परमात्मा की सत्ता को स्वीकारने वाले वेद विरुद्ध मतों से सम्बन्धित अनेक महानुभाव यह मानते और कहते हैं कि ईश्वर अपने भक्तों पर प्रसन्नदुष्टों पर कुपित और प्राणियों के शुभाशुभ कर्मों से प्रभावित होता है। जबकि वैदिक मान्यतानुसार ईश्वर की अवस्था सदैव एक-सी रहती है। उसमें किसी भी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ करता। अर्थात्‌ पापियों को दण्ड और पुण्यात्माओं को सुख देते समय वह परिवर्तित नहीं होता। हम अपने कर्म-फल उसकी न्याय व्यवस्था के अन्तर्गत भोगते रहते हैंउसके न्याय-नियम कभी नहीं बदलते।

    इसी प्रकार से चाहे कोई उसकी निन्दा करे अथवा स्तुतिवह प्रभावित नहीं होता और सर्दी-गर्मीभूख-प्याससुख-दु:खहानि-लाभअनुकूलता आदि का प्रभाव जीवों की भॉंति ईश्वर पर नहीं होता। अर्थात्‌ हम देखते हैंजड़ से जड़जीव से जीवजड़ से जीव और जीव से जड़ पदार्थ प्रभावित होते हैं। जैसे अग्नि से जललकड़ीवस्त्रादिजल से अग्निमिट्‌टीवनस्पति आदिशेर से हिरनखरगोशमनुष्यादिमनुष्यों से अनेक प्राणीसर्दी-गर्मी-भूख-प्यास आदि से देहधारी आत्माएँ और प्राणी जगत्‌ से जलवायु वस्त्रादि प्रभावित होते हैं ईश्वर नहीं।

    कहा सभी को अटल एक रस अपरिवर्तित है करतार।
    याद रहेगा सदा महर्षि दयानन्द का यह उपकार ।।

    कृतज्ञता- इस लेख माला में वैदिक मान्यताओं पर आधारित वेद तथा ईश्वर सम्बन्धी यथार्थ बोध कराने वाले महर्षि दयानन्द के उपकारों का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है। ऋषियुग की समाप्ति के पश्चात्‌ आये आचार्ययुग और सन्तयुग ने अध्यात्म को बहुत उलझाया है। अर्थात्‌ श्री आचार्य बृहस्पतिश्री शंकराचार्यश्री रामानुजाचायर्यश्री माधवाचार्यश्री राधवाचार्यश्री बल्लभाचार्य आदि आचार्यों तथा कबीरदासतुलसीदाससूरदासरविदास आदि सन्तों ने वेद एवं ईश्वर विषयक परस्पर विरोधी विचार व्यक्त करके मानव समुदाय को विभिन्न भागों में विभक्त कर दिया।

    लगभग पॉंच हजार वर्षों की अवधि में इस भूमण्डल पर आचार्यगुरुसन्तमहन्त नामधारी तो अनेक हुए किन्तु किसी ने ऋषित्व प्राप्त नहीं किया। अर्थात्‌ आर्ष परम्परा के अनुकूल वेद का महत्व तथा ईश्वर का सत्यस्वरूप कोई भी नहीं जान पाया। इस दृष्टि से सम्पूर्ण मानव समुदाय महर्षि दयानन्द का सदैव ऋणि रहेगा। यदि महर्षि दयानन्द का प्रादुर्भाव नहीं होता तो संसार सद्‌ज्ञान और सच्चे अध्यात्म को नहीं समझ पाता।कमलेश कुमार अग्निहोत्री

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmpcg.com 

     

    When he was told that- "In the world, the formless are called Nirguna and the corporeal is called Saguna". So he told- "This imagination is only for the ignorant and ignorant. Those who do not have knowledge, they do it like a beast and waste it. Just as a timid human being bumps, so should the words and articles of the ignorant be considered meaningless. "

    Sub-2 of Maharishi Dayanand  | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Nagpur - Nanded - Jalore - Jhalawar - Gwalior - Harda | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | महर्षि दयानन्द के उपकार-2 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

     

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • महर्षि दयानन्द के देशभक्ति से परिपूर्ण विचार

    महर्षि दयानन्द अपने देश पर कितना अभिमान करते थे और उसको कितना ऊंचा स्थान देते थे, इसकी झलक उनके इन विचारों से मिलती है- "यह आर्यावर्त देश ऐसा है, जिसके सदृश भूगोल में दूसरा कोई देश नहीं है। इसीलिए इस भूमि का नाम सुवर्ण भूमि है, क्योंकि यही सुवर्ण आदि रत्न को उत्पन्न करती है। भूगोल में जितने देश हैं, वे सब इसी देश की प्रशंसा करते और आशा रखते हैं। पारसमणि पत्थर सुना जाता है, वह बात तो झूठी है, परन्तु आर्यावर्त देश ही सच्चा पारसमणि है, जिसको लोहेरूप दरिद्र विदेशी छूते के साथ ही सुवर्ण अर्थात्‌ धनाढ्‌य हो जाते हैं।'' (सत्यार्थ प्रकाश, एकादश समुल्लास)

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    सम्पूर्ण विश्व के सुख व कल्याण की कामना, यजुर्वेद मन्त्र ३०.३
    Ved Katha Pravachan _29 (Vedic Secrets of Happy Life & Happiness) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    इस देश के वासी होते हुए भी जो लोग अपनी भाषा और संस्कृति के स्थान पर विदेशी भाषा और संस्कृति को अपनाते हैं, उनकी महर्षि इन शब्दों में भर्त्सना करते हैं- "उन लोगों में स्वादेशाभिमान बहुत न्यून है। भला जब आर्यावर्त देश में उत्पन्न हुए हैं और इसी देश का अन्न-जल अब तक खाया-पीया है और अब भी खाते-पीते हैं, तब अपने माता-पिता व पितामह आदि को छोड़कर दूसरे विदेशी मतों पर अधिक झुक जाते हैं और इस देश की संस्कृत विद्या से रहित अपने को विद्वान प्रकाशित करना तथा इंग्लिश भाषा पढ़के पण्डिताभिमानी होकर झटित एक मत चलाने में प्रवृत्त होना मनुष्य का स्थिर बुद्धिकारक काम क्यों कर हो सकता है।'' स्वदेश, स्वभाषा तथा स्वधर्म से प्रेम और अपने पूर्वजों के लिए गौरव एवं अभिमान महर्षि दयानन्द में कूट-कूटकर भरा था। 

    कितने दुःख, व्यथा और वेदना के साथ आप लिखते हैं कि - "विदेशियों के आर्यावर्त में राज्य होने का कारण आपस की फूट, मतभेद, ब्रह्मचर्य का सेवन न करना, विद्या न पढ़ना-पढ़ाना, बाल्यावस्था में अस्वयंवर विवाह, विषयासक्ति, मिथ्याभाषण आदि कुलक्षण, वेद विद्या का अप्रचार आदि हमारी अधोगति के कारण हैं। जब आपस में भाई-भाई लड़ते हैं, तभी तीसरा विदेशी आकर पञ्च बन बैठता है। आपस की फूट से कौरव-पाण्डव और यादवों का सत्यानाश हो गया सो तो हो गया, परन्तु अब तक भी वह रोग पीछे लगा है। न जाने यह भयंकर राक्षस कभी छूटेगा या आर्यों को सब सुखों से छुड़ाकर दुःखसागर में डूबो मारेगा। उसी दुष्ट मार्ग से आर्य लोग अब तक भी दुःख बढ़ा रहे हैं। परमात्मा कृपा करेे कि यह राज रोग हम आर्यों में से नष्ट हो जाये। जब तक एक मत, एक हानि-लाभ, एक सुख-दुःख परस्पर न माने, तब तक उन्नति होना बहुत कठिन है। 

    स्वदेशी का महत्व- "देखो! अंग्रेज लोग अपने देश के बने हुए जूते को कार्यालय (ऑफिस) और कचहरी में जाने देते हैं तथा देशी जूते को नहीं। इतने से ही समझ लो कि वे अपने देश के बने जूतों की जितनी मान-प्रतिष्ठा करते हैं, उतनी अन्य देशस्थ मनुष्यों की भी नहीं करते। देखो! कुछ सौ वर्ष से ऊपर इस देश में यूरोपियनों को आये हो गए। आज तक वे लोग मोटे कपड़े आदि पहिनते हैं, जैसा कि स्वदेश में पहिनते थे। उन्होंने अपने देश का चाल-चलन नहीं छोड़ा। और तुममें से बहुत लोगों ने उनका अनुकरण कर लिया। इसी से तुम निर्बुद्धि और वे बुद्धिमान ठहरते हैं। अनुकरण करना किसी बुद्धिमानी का काम नहीं।'' 

    भारतीयों को उनके गत गौरव का बोध कराते हुए महर्षि ने लिखा था कि हमारा देश प्राचीन समय में विदेशी शासकों के अधीन नहीं रहा था, अपितु हमारे देश के शासकों का ही सर्वत्र सार्वभौम राज्य था और अन्य देशों में माण्डलिक अर्थात्‌ छोटे-छोटे राजा रहते थे। महर्षि ने इस विषयक विचार निम्न प्रकार से व्यक्त किए हैं- "स्वायम्भुव राजा से लेकर पाण्डवों पर्यन्त आर्यों का चक्रवर्ती राज्य रहा। तत्पश्चात्‌ परस्पर के विरोध से लड़कर नष्ट हो गये। क्योेंकि इस परमात्मा की सृष्टि में अभिमानी, अन्यायकारी, अविद्वान लोगों का राज्य बहुत दिन नहीं चलता।'' 

    स्मरण रहे कि महर्षि दयानन्द ने अंग्रेजों के विरोध में ये विचार उस समय व्यक्त किये थे, जब उनके शासन का सूर्य मध्याह्न तक पहुंचा हुआ था और उस समय के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम को दानवी दमन से दबाकर सर्वत्र भय और आतंक की अवस्था उत्पन्न कर दी गई थी। इसीलिए महर्षि दयानन्द सरस्वती को देश में राष्ट्रीयता का भाव भरने वाला प्रथम महापुरुष माना जा सकता है। आचार्य डॉ. संजयदेव

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmpcg.com 

    ----------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

     

    Maharishi Dayanand was so proud of his country and gave him a very high status, this is reflected by his thoughts - "This Aryavarta country is like no other country in the geography like it. That is why this land is called Golden Land. Is, because this is the gold that generates the initial gem.

     

    Maharishi Dayanand's Patriotic Idea | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus | Annapurna Road | Indore (MP) | Arya Samaj Mandir Helpline Indore (9302101186) for Jabalpur - Jhabua - Osmanabad - Parbhani - Karauli - Kota | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती -5 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • महर्षि दयानन्द में शिव के दर्शन

    शिव का सीधा-सादा अर्थ है कल्याणकारी। पुराणों की शिव की कल्पना भी कल्याण की भावना से ही प्रेरित है। शिव सबका कल्याण व हित चाहने वाला देवता है। दूसरों का शुभचिन्तक व हित चाहने वाला व्यक्ति अधिकतर शुद्ध-पवित्र हृदय का तथा भोलापन लिए होता है। इसीलिए शिव को भोला बाबा भी कहा जाता है, जो थोड़ी सी उपासना करने से ही प्रसन्न होकर काफी वरदान देने वाला देवता है। शिव के बारे में अनेकों कहानियॉं व किस्से प्रचलित हैं। वह किसी को दुखी देखता है तो उसे सुखी बना देता है। इसीलिये दुखी को सुखी बना देने वाला देवता ही शिव माना गया है। कल्याण व उपकार सब गुणों में श्रेष्ठ व ज्येष्ठ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी इसी बात को अपने शब्दों में कहा है- परहित सरिस धर्म नहिं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई। इसीलिये शिव को सब देवी देवताओं से बड़ा देवों का देव महादेव भी कहते हैं। 

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    वेद मन्त्र व्याख्या - यजुर्वेद मन्त्र 25.15

    Ved Katha Pravachan _34 (Vedic Secrets of Happy Life & Happiness) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    बिना स्वार्थ के देने वाले को देव या देवता कहते हैं। देवता दो प्रकार के होते हैं, चेतन और जड़। दूसरे शब्दों में जीवित देव और निर्जीव देव भी कहे जाते हैं। जीवित या चेतन देवों में माता, पिता, आचार्य, विद्वान, वृद्धजन व अतिथि आते हैं, जो हमें उपदेश, सद्‌ज्ञान, अनुभव व आशीर्वाद देकर हमारे जीवन को सुखी व शान्तिप्रद बनाने का प्रयत्न करते हैं। निर्जीव या जड़ देवों में सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी, अन्न, फल व वनस्पति हैं, जिनसे हमारे शरीर को भोजन, गर्मी व शक्ति मिलती है। तभी हमारे शरीर को गति मिलती है और रक्षा होती है। यानी जड़ देवता हमें जीवित रखने में परम सहयोगी हैं। यहॉं प्रसंगवश यह बता देना उचित है कि जैसे हम अपने शरीर के सब अंगों को भोजन व रस पहुँचाने के लिए मुख से भोजन करते हैं, फिर उस भोजन का रस बनकर हमारी नस-नाड़ियों द्वारा शरीर के सभी अंगों को पहुँच जाता है, वैसे ही सभी जड़ देवताओं का मुख अग्नि है। इसीलिये हम यज्ञ द्वारा अग्नि में आहुति देते हैं। यज्ञ में डाली हुई सामग्री व घृत की सुगन्ध हजारों गुणी होकर हवा में फैलकर सब जड़ देवताओं सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, जल, अग्नि व वनस्पतियों को पहुँच जाती है तथा वह शुद्ध व पवित्र होकर प्राणी मात्र का कल्याण करती है और यज्ञ से ही वायुमण्डल हल्का हो जाने से वृष्टि भी होती है। वृष्टि से अन्न, फल व वनस्पतियॉं पैदा होती हैं, जिनको खाकर प्राणीमात्र जीवित रहता है। इसीलिये वेदों में "यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्मः' कहकर यज्ञ की महिमा कही गई है। वेदों में यज्ञ को विश्व की नाभि यानि केन्द्र भी बताया गया है। 

    पुराणों में शिव को सात आभूषणों से विभूषित किया गया है, जो उनके गुणों को प्रदर्शित करते हैं। वे सभी गुण महर्षि दयानन्द सरस्वती के जीवन में भी पूर्णतः घटित होते हैं। शिव की भॉंति ही महर्षि दयानन्द का पूरा जीवन भी परोपकार के लिये बीता। उनको अपना कोई स्वार्थ नहीं था। उन्होंने अपने जीवन में जो ज्ञान, बल व तेज अर्जित किया, वह सब परहित में ही लगा दिया। महर्षि का एक-एक क्षण और एक-एक श्वास प्राणीमात्र की भलाई के लिये ही बीता। ऐसे महान्‌ व्यक्ति का प्रादुर्भाव संसार में युगों के बाद होता है। शिव ने तो देवताओं व राक्षसों के झगड़े को मिटाने के लिये तथा देवी-देवताओं की रक्षा के लिये विषपान किया था और उस विष को गले में ही रोककर पेट में नहीं जाने दिया, जिससे शिव का गला नीला हो गया। इसीलिये शिव का एक नाम नीलकण्ठ भी है। परन्तु महर्षि दयानन्द ने तो प्राणिमात्र के कल्याण के लिये एक बार नहीं, दो बार नहीं, अनेकों बार विषपान किया और उसको न्यौली क्रिया द्वारा बाहर निकालते रहे तथा विष का प्रभाव शिव की भॉंति ही शरीर पर नहीं होने दिया। इस प्रकार शिव ने जो कार्य बड़े रूप में एक बार किया, वही कार्य महर्षि दयानन्द अनेक बार छोटे रूप में करके शिव के तुल्य बनने के पूरे अधिकारी बने। शिव के सातों आभूषण महर्षि के जीवन में कैसे घटित होते हैं, इसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है- 

    गंगा को जटा में धारण करना- पौराणिक मान्यता के अनुसार भागीरथ की प्रार्थना पर गंगा के वेग को रोकने के लिये शिव ने पहले गंगा को अपनी जटा में धारण किया। फिर जटा से पृथ्वी पर प्रवाहित किया, जिससे पृथ्वीवासियों का कल्याण व हित हुआ। वैसे ही हजारों वर्षों से वेदों को न पढ़ने से वेद ज्ञान प्रायः लुत हो गया था। सिर्फ ग्रन्थों में ही बन्द था। महर्षि दयानन्द ने गुरु विरजानन्द के चरणों में बैठकर सत्य ज्ञान को जाना और अपने परिश्रम से वेद ज्ञान रूपी गंगा को पुनः धरती पर प्रवाहित किया। यानी वेद ज्ञान का प्रकाश किया। यह कार्य शिव के कार्य के समान था। 

    मस्तिष्क में चन्द्रमा का होना- चन्द्रमा शीतलता यानी धैर्य का प्रतीक है। महर्षि दयानन्द महान्‌ धैर्यवान्‌ व्यक्ति थे। इसके अनेकों उदाहरण ऋषि के जीवन में आते हैं। परन्तु यहॉं दो घटनाएं लिखना ही पर्याप्त होगा। एक बार ऋषि कहीं व्याख्यान  दे रहे थे। उस समय एक विरोधी ने कुछ शरारती बच्चों को बुलाकर यह कहा कि तुम स्वामी जी पर ईंटें, पत्थर व धूल फेंको, मैं तुम्हें मिठाई दूँगा। बच्चों ने वही काम किया। ऋषि के भक्तों ने उन बच्चों को पकड़ लिया और ऋषि के पास लाये। ऋषि ने बच्चों से पूछा कि तुम ईंट, पत्थर क्यों फेंक रहे थे? तब बच्चों ने उस व्यक्ति का नाम लेते हुए कहा कि उसने हमें मिठाई का लोभ देकर यह काम करवाया। स्वामी जी ने अपने भक्तों से मिठाई मगंवाकर उन बच्चों को दी और उन्हें पुचकारते हुए जाने को कहा। बच्चे खुशी-खुशी अपने-अपने घर चले गये। यह थी महर्षि की सहनशीलता व धैर्य। 

    दूसरी घटना इससे भी कहीं ज्यादा हृदय को छूने वाली है जो मानव में नहीं, किसी महामानव में ही पाई जा सकती है। वह घटना  उस समय की है, जब ऋषि पुणे में कई दिनों से अपने धारावाहिक प्रवचन कर रहे थे। प्रवचनों से खिन्न होकर उनका अपमान करने के लिए एक आदमी का मुँह काला करके गधे पर उल्टा बिठाकर और उसके गले में जूतों की माला पहनाकर पीछे बीस-तीस विरोधी ढोल बजाते हुए जुलूस निकाल रहे थे और उस व्यक्ति की पीठ पर लिखा था "नकली दयानन्द''। ऋषि के भक्तों को यह बड़ा अशोभनीय लगा और वे ऋषि के पास गए तथा सारा वृत्तान्त कह सुनाया। ऋषि मुस्कुराते हुए बोले कि वे जुलूस ठीक ही तो निकाल रहे हैं, नकली दयानन्द की तो यही दुर्गति होनी ही चाहिये। असली दयानन्द तो यहॉं बैठा है। यह सुनकर ऋषि के भक्तों को बड़ा आश्चर्य हुआ। यह धैर्य की पराकाष्ठा नहीं तो क्या है? शिव का धैर्य का गुण भी महर्षि में अत्यधिक था। इसलिए उनकी शिव से तुलना करना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

    गले में सर्पों की माला रखना- गले में सर्पों की माला रखने का भावार्थ यह है कि परोपकार के लिये जीवन को हर समय संकट में रखना और प्रसन्नचित्त रहना। इसका एक दूसरा भाव है, दुष्टों को भी आदर देकर गले से लगाना। यह दोनों ही गुण महर्षि के जीवन में बहुत अधिक देखने को मिलते हैं। शिव के गले में सर्पों का रहना तो एक उपमा मात्र है। परन्तु ऋषि के ऊपर तो कितनी ही बार दुष्टों ने मरे हुए सॉंप फेंके, ईंट, पत्थर मारे। लेकिन वाह रे देव ऋषि! तू कभी भी क्रोधित नहीं हुआ और शान्त चित्त से सभी सहन करते हुए वेदों का प्रचार और परोपकारी कार्य करता रहा। धरती पर अनेकों मत संस्थापक व सन्त, ऋषि, महात्मा आये, जिनको विरोधियों का विरोध सहना पड़ा। ऋषि का तो पूरा जीवन ही संकटों से घिरा था। उनके ऊपर कितनी ही बार विरोधियों ने घातक हमले किये, फिर भी उन्होंने विरोधियों से प्रेम का व्यवहार किया। यहॉं तक कि विष देने वाले पाचक जगन्नाथ को भी पॉंचसौ रुपयों की थैली देकर नेपाल भाग जाने को कहा। 

    हाथ में त्रिशूल- हाथ में त्रिशूल, दुष्टों  के संहार तथा वीरता का सूचक है। ऋषि में जितनी सहनशीलता थी, उससे कहीं ज्यादा दुष्टों व अन्यायियों के दम्भ को चूर करने की भी उनमें शक्ति थी। कर्णवास प्रवास के दौरान राव कर्णसिंह महर्षि के वेद प्रचार से रुष्ट होकर उन्हें गाली-गलौच करने लगा। स्वामी जी ने राव को समझाया कि विचारों का मतभेद बातचीत से प्रेमपूर्वक मिटाया जा सकता है। लेकिन राव तो ताकत के नशे में चूर था। गाली बकते हुए तलवार लेकर महर्षि पर लपका। उसे महर्षि के अतुल्य बल का अनुमान नहीं था। महर्षि ने झपटकर उसके हाथ से तलवार छीन ली तथा भूमि पर टेककर दो टुकड़े कर दिये और शान्त मुद्रा में कहा- "मैं संन्यासी हूँ। तुम्हारी किसी भी गलत हरकत से चिढ़कर, मैं तुम्हारा अनिष्ट कभी नहीं करूंगा। जाओ! ईश्वर तुम्हें सुमति प्रदान करें।'' 

    हाथ में डमरू- हाथ में डमरू धर्म प्रचार का सूचक है। ऋषि ने जो सबसे ज्यादा कार्य किया, वह वैदिक धर्म का प्रचार कार्य है। उस समय वेद सरलता से उपलब्ध नहीं थे। बहुत अधिक परिश्रम करके वेद की कुछ प्रतियॉं दक्षिण भारत से और कुछ जर्मनी से मंगवाकर चारों वेद उपलब्ध करवाये। उनके प्रचार के लिये विरोधियों से कितने ही शास्त्रार्थ किये। सारे भारत में घूम-घूमकर कितने ही व्याख्यान व भाषण दिये। अनेकों ग्रन्थ लिखे। वेदों के भाष्य भी किये और वेद प्रचार करने के लिये ही आर्यसमाज की स्थापना सन्‌ 1875 में मुम्बई में की, जिसका मुख्य उद्देश्य मानव मात्र की सेवा करते हुए वेद प्रचार करना ही है। डमरू का कार्य जितना महर्षि दयानन्द ने किया, उतना शायद ही किसी अन्य धार्मिक विद्वान्‌ ने किया हो। 

    शरीर पर राख रमाना- शिव शरीर पर राख रमाते थे। इसका तात्पर्य एक तो यह हो सकता है कि राख जैसी महत्वहीन वस्तु को भी महत्व देना यानि निम्न, कमजोर, अनाथ व असहाय व्यक्तियों को गले लगाना और उनको सहयोग व सम्मान देना। दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि परहित के कार्यों में अपने तन, मन, धन को समर्पित करके त्याग द्वारा स्वयं को राख के समान बना देना। ये दोनों ही काम महर्षि दयानन्द ने अपने जीवन में बहुत अधिक मात्रा में किये। उन्होंने वेद प्रचार के बाद यदि कोई दूसरा काम अधिक-से अधिक किया था, तो वह था दुखित, असहाय, व अनाथ लोगों का जीवन सुखी बनाने हेतु जन-समाज को प्रेरित करना तथा समाज में अपमानित व निन्दित शूद्र वर्ग जिसे अछूत कहा जाता था, उसको हिन्दू समाज का अभिन्न अंग बताकर उसको सम्मान दिलाना और पढ़ने व धार्मिक स्थानों में प्रवेश का अधिकार दिलाना। 

    नारी जाति की भी उस समय दुर्दशा थी। उन्हें पढ़ाना तो दूर रहा, घर से बाहर निकालना भी दुष्कर्म समझा जाता था। उनका जीवन एक कैदी के समान था, बाहर की हवा भी नहीं लगने दी जाती थी। नारी घर का काम करने की केवल मशीन मात्र थी। ऐसे समय में महर्षि ने मनुस्मृति के श्लोक "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः' के आधार पर उन्हें परिवार व समाज में सम्मान दिलवाया और गार्गी जैसी विदूषियों का उदाहरण देकर उन्हें लौकिक शिक्षा ही नहीं, वेद पढ़ने व पढ़ाने तक का अधिकार दिलाया। महर्षि ने विधवा-विवाह का समर्थन कर विधवाओें को सुखी जीवन प्राप्त कराया। 

    बाघाम्बर धारण- शिव वस्त्रों की जगह पहनने व बिछाने में बाघ की खाल (बाघ-छाल) का ही प्रयोग करते थे। इसका तात्पर्य यह है कि अपनी हिंसक प्रवृत्तियों का दमन करके अपने वश में करना। महर्षि दयानन्द इस विषय में सर्वोपरि और बेजोड़ थे। वे बाल ब्रह्मचारी तो थे ही साथ ही त्यागी, तपस्वी, परोपकारी और प्रकाण्ड वेदज्ञ विद्वान भी थे। कोई ऐसा मानवीय गुण जैसे दया, उदारता, सहृदयता, निर्भयता, निष्पक्षता, ईमानदारी, विनम्रता, अहिंसा आदि नहीं, जो उनमें नहीं हो और अमानवीय दुर्गुण जैसे ईर्ष्या, द्वेष, राग, घृणा व अहंकार आदि तो उनसे कोसों दूर रहते थे। यदि यह कहा जाए कि हिंसक प्रवृत्तियों के दमन का कार्य महर्षि ने बाल ब्रह्मचारी होने के कारण शिव से भी बढ़कर किया, तो यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस प्रकार शिव के सातों आभूषणों के प्रतीक के रूप में सभी गुण महर्षि दयानन्द सरस्वती के जीवन में पूर्णरूपेण देखे जा सकते हैं। - खुशहालचन्द्र आर्य

    Contact for more info.-

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajonline.co.in 

    ----------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindorehelpline.com 

     

     

    Shiva simply means welfare. Shiva's imagination of the Puranas is also inspired by the feeling of well-being. Shiva is the deity who wants the welfare and well-being of all. The person who wishes the well-wishers and interests of others is mostly of pure and pure heart and innocence. That is why Shiva is also called Bhola Baba, who is a deity who is very happy with only a little worship.

     

    Maharshi Dayanand and Shiva | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Pali - Katni - Khandwa - Pune - Raigad - Nagaur | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore |  Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi.

    Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | महर्षि दयानन्द में शिव के दर्शन | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • महाराणा प्रताप और वीर छत्रसाल

    यह सुखद संयोग है कि मातृभूमि और धर्म की रक्षा करने वाले वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप और रक्ष बांकुरे छत्रसाल का जन्म एक ही तिथि ज्येष्ठ शुक्ल 3 को हुआ था। यद्यपि उनके जीवनकाल में लगभग 200 वर्षों का अन्तर था। महाराणा प्रताप का जन्म संवत 1540 में हुआ था। जब दिल्ली का बादशाह अकबर था जबकि छत्रसाल का जन्म संवत 1706 में हुआ जब दिल्ली में औरंगजेब का शासन था। इस वर्ष 22 मई को दोनों महापुरुषों की जयन्ति है। 

    महाराणा उदयसिंह की मृत्यु के पश्चात जब प्रतापसिंह गद्दी पर बैठे, भारत के बड़े भूभाग पर मुगल बादशाह अकबर का शासन था। बड़े-बड़े राजा महाराजाओं ने अकबर की आधीनता स्वीकार कर ली थी। वीरों की भूमि राजस्थान के अनेक राजाओं ने न केवल मुगल बादशाह की दासता स्वीकार की अपनी बहू बेटियोें की डोली भी समर्पित कर दी थी। महाराणा प्रताप इसके प्रबल विरोधी थे। उन्होंने मेवाड़ की पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रयास जारी रखा और मुगल सम्राट के सामने झुकना कभी स्वीकार नहीं किया। अनेक बार अकबर ने उनके पास सन्धि के लिए प्रस्ताव भेजे और इच्छा व्यक्त की कि महाराणा प्रताप केवल एक बार उसे बादशाह मान ले लेकिन स्वाभिमानी प्रताप ने हर प्रस्ताव को ठुकरा दिया। 

    Ved Katha Pravachan _76 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    इसके परिणाम स्वरूप राणा प्रताप को निरन्तर युद्ध करते रहना पड़ा। वे जंगल-जंगल भटकते रहे और करीब 25 वर्षों तक अकबर की विशाल सेना हर बार मुकाबला करते रहे। 

    महाराणा प्रताप और अकबर के बीच दिनांक 18 जून 1576 में हुआ हल्दीघाटी का युद्ध विश्व में प्रसिद्ध हुआ। इस युद्ध में अकबर की सेना का नायक आमेर का राजा मानसिंह था जो अत्यन्त वीर और पराक्रमी था। देवयोग से वह प्रताप के वार से बच निकला। इस युद्ध में प्रताप ने अकबर की विशाल सेना को तहस नहस कर दिया। विजय किसी की नहीं हुई। इसके पश्चात्‌ प्रताप ने छापामार युद्ध प्रणाली अपनायी और अपने जीवनकाल में ही मेवाड़ का अधिकांश भूभाग दुश्मन से मुक्त करा लिया। 

    महाराणा प्रताप के जीवन के कुछ प्रसंग उल्लेखनीय हैं। राणा प्रताप अपने अनुज शक्तिसिंह के साथ एक बार आखेट पर गए। शिकार किसने किया इस पर दोनों में विवाद हुआ और दोनों ने तलवार खींच ली। परिस्थिति विकट देखकर साथ गये राजपुरोहित ने कहा यदि लड़ाई बन्द नहीं हुई तो मैं आत्म हत्या कर लूंगा। चेतावनी का असर होता न देख विप्र ने कटार मारकर आत्महत्या कर ली। परिणाम में दोनों सान्त हुवे, युद्ध टल गया। यदि ऐसा न होता तो कल्पना कीजिए क्या स्थिति होती? इन राज पुरोहित का नाम नारायणदास पालीवाल था। उनके 4 पुत्र थे उनमें से 2 ने हल्दीघाटी युद्ध में भाग लिया था और खेत रहे थे। 

    जब राणा प्रताप जंगलों में भटक रहे थे। खाने का भी साधन नहीं था। भूखे राजकुमारों को देखकर उनका हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने सुलह के लिये अकबर को पत्र लिखा। तब बीकानेर के राजा अनुज पृथ्वीराजसिंह बादशाह के दरबार में थे। उन्हें प्रताप पर गर्व था। प्रताप का पढ़ पढ़कर उनकी आत्मा सिहर उठी। उन्होंने एक जोशीला पत्र प्रताप को भेजा जिससे प्रताप का स्वाभिमान जाग उठा और उन्होंने युद्ध करना निश्चित किया। पृथ्वीराज के पत्र की अन्तिम कड़ी थी-

    मैं आज सुनी है म्यानां में तलवार रेवेला सूनी
    म्हारो हिलडो कांपे है मूंछारी मोड़ मरोड़ गई
    पीथल ने राणा लिख भेजो आ बात कठा तक गिनूं सही

    राणा के पत्र की अन्तिम कड़ी थी-

    थे राखो मूंछ एठयोरी, लोई री नदी बहा दूंगा
    मैं तुर्क कहूंला अकबर ने उजड्‌यो मेवाड़ बसा लूंगा।                                      

    म्हूं राजपूत रो जायो हूँ, रजपूति करंज चुकाऊँगा
    यो शीश गिरे पर पाग नहीं म्हूँ दिल्ली आण झुकाउंगा

    जब हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप दुश्मनों से चारों और घिर गए और बचने की कोई आश नहीं थी। यह स्थिति देखकर झाला सरदार मानसिंह तुरन्त उनके पास पहुँचे। उनका राजचिन्ह अपने सिर पर रखा और राणाजी को घेरे से बाहर निकलने की राह बनाई। दुश्मनों ने मानसिंह को राणा समझकर घेर लिया और वे वीरगति को प्राप्त हुए। यदि समय पर झाला सरदार ऐसा न करते तो हल्दीघाटी का इतिहास ही और होता। 

    जब प्रताप घायल होकर घायल घोड़े चेतक पर बैठकर युद्ध क्षेत्र से बाहर निकले उन्हें देख दुश्मन के दो सवारों ने उनका पीछा किया। परिस्थिति को गम्भीरता को देखकर राणा के अनुज शक्तिसिंह ने पीछा किया और दोनों सैनिकों को मार गिराया और प्रताप से क्षमा मांगी यदि ऐसा न होता। 

    इसी प्रकार भामाशा ने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति राणा प्रताप को अर्पित कर राष्ट्र भक्ति का अद्वितीय कार्य किया। इतिहास में उनका नाम अमर रहेगा। 

    महाराणा प्रताप योद्धा ही नहीं महान व्यक्तित्व के धनी भी थे। वे अपने शत्रु से भी धर्मपूर्वक व्यवहार करते थे। जब प्रताप का देहान्त हुआ शहंशाह अकबर हैरान हो गया उसकी आँखें छलक उठी। उसके मुँह से निकला ऐ प्रताप तू महान था। तूने हिन्दुस्थां की शान रखी। 

    वास्तव में महान योद्धा, स्वाधीनता का पक्षधर, कर्मठ देशभक्त प्रताप इस देश की अस्मिता और स्वतन्त्रता के लिए जिए और अमर हो गये। 

    महाराज छत्रसाल - बुन्देलखण्ड के राजा चम्पतराय ने जीवनभर अपने देश की स्वतन्त्रता के लिये मुगलों से संघर्ष किया। वृद्धावस्था उनकी आकस्मिक मृत्यु के पश्चात, कर्त्तव्य का दायित्व उनके पुत्र छत्रसाल के कन्धों पर पड़ा। छत्रसाल की शिक्षा दीक्षा उनके माना के यहॉं हुई। 

    छत्रसाल ने हिन्दू धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए हिन्दू राजाओं को संगठित करने का प्रयास किया। परन्तु उसमें वे सफल नहीं हो सके। बुन्देलखण्ड के अनेक राजा मुगलों के साथ थे। ऐसी परिस्थिति में छत्रसाल ने विश्वस्त युवकों की एक सेना तैयार की और मुगलों से संघर्ष करते रहे। 

    कुछ वर्ष पश्चात छत्रसाल ने महाराष्ट्र जाकर शिवाजी महाराज से भेंट की। उन्होंसे राजनीति और रणनीति के गुर सीखे। छत्रसाल शिवाजी से बहुत प्रभावित थे। उनकी ही रणनीति से छत्रसाल ने बुन्देलखण्ड में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। यह उल्लेखनीय है कि छत्रपति शिवाजी की तरह महाराज छत्रसाल भी कभी युद्ध में नहीं हारे। छत्रसाल महान योद्धा और श्रेष्ठ कवि थे। साहित्यकारों का वे सम्मान करते थे। 

    बुन्देलखण्ड पर कब्जा करने के लिए बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में बहुत प्रयत्न हुए। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात्‌ उसका पुत्र फर्रुखसियर बादशाह हुआ। उस समय छत्रसाल वृद्ध हो गये थे। ऐसे समय में बादशाह ने अपार सेना महमदखां बंगश के अधीन भेजकर बुन्देलखण्ड पर आक्रमण किया। छत्रसाल ने उसे कई बार पीछे धकेला परन्तु उसकी सेना विशाल थी और उसे बराबर सहायता मिलती जा रही थी। 

    स्थिति संकटपूर्ण थी। तब छत्रसाल का शिवाजी को वह आश्वासन याद आया कि हिन्दूत्व की रक्षा के लिए जब आवश्यक हो महाराष्ट्र की सेना बुन्देलखण्ड सहायतार्थ आयेगी। इस समय मराठों का नेतृत्व बाजीराव के हाथ में था। छत्रसाल ने बाजीराव को सहायता के लिए मर्मस्पर्शी पत्र लिखा- उसने लिखा-

    जो गति गज की भई सो गति भई है आज।
    बाजी जात बुन्देल की राखो बाजी लाज। 

    पत्र पढ़कर बाजीराव सहायतार्थ पहुँच गए। बंगश पर घेरा डाल दिया गया। बाजीराव के आक्रमण से उसके कई सेना नायक मारे गये। अन्त में उसने प्राणों की भीख मांगी। तब युद्ध का व्यय देने और भविष्य में कभी बुन्देलखण्ड की तरफ नजर डालने की शपथ पर उसे प्राणदान दिया गया।

    इस संकट की घड़ी में सहायता करने वाले बाजीराव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए छत्रसाल ने बाजीराव को अपना तीसरा पुत्र माना और बुन्देलखण्ड राज्य का एक तिहाई भाग दिया। छत्रसाल की एक मुस्लिम स्त्री से उत्पन्न कन्या को भी छत्रसाल ने बाजीराव को दी जो इतिहास में मस्तानी के नाम से प्रख्यता हुई।

    छत्रसाल के राज्य में प्रजा सुखी थी बुन्देलखण्ड में आज भी प्रार्थना में कहा जाता है "छत्रसाल महाबली करियो सबकी भली। वीर छत्रसाल की वीरता से महाकवि भूषण इतने प्रभावित हुए थे कि शिवाजी की प्रशंसा करते हुए उन्हें कहना पड़ा- शिवा को सराहूँ कि सराहूँ छत्रसाल को। 

    महान योद्धा, धर्मरक्षक महाराणा प्रताप और वीर छत्रसाल को श्रद्धापूर्वक नमन। श्रीकृष्ण पुरोहित

    Contact for more info. -

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.allindiaaryasamaj.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindorehelpline.com 

     

    Maharana Pratap was not only a warrior but a rich man of great personality. They also used to treat their enemies religiously. Emperor Akbar was shocked when Pratap died. Ai Pratap came out of his mouth, you were great. You respected the Hindusthan.

     

    Maharana Pratap and Veer Chhatrashal | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Pune - Raigad - Nagaur - Pali - Katni - Khandwa | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore |  Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Puran Gyan  | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi. 

    Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | महाराणा प्रताप और वीर छत्रसाल | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ

Copyright © 2021. All Rights Reserved