Call Now : 9302101186, 9300441615 | MAP
     
Arya Samaj Indore - 9302101186. Arya Samaj Annapurna Indore |  धोखाधड़ी से बचें। Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage Booking और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी अन्नपूर्णा इन्दौर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्दौर में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी के अतिरिक्त इन्दौर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Bank Colony Annapurna Indore is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Annapurna is the only Mandir in Indore controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust. We do not have any other branch or Centre in Indore. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
arya samaj marriage indore india legal
  • आज के जीवन-जगत्‌ को आर्यसमाज की आवश्यकता

    आर्यसमाज की मौलिक विशेषता है सभी क्षेत्रों में वैचारिक क्रान्ति और वैज्ञानिक व व्यावहारिक चिन्तर। जीवन और जगत्‌ की सबसे बड़ी सम्पदा विचार है। विचारों से ही मानव उठता और गिरता है। विचारों से ही मानव देवता और राक्षस बनता है। आज का भौतिक जीवन-जगत्‌ परम सत्ता परमेश्वर पर अनास्था, अश्रद्धा एवं प्रश्नचिह्न लगा रहा है। नवशिक्षित-नवपीढी में नास्तिकता बड़ी तेजी और गहराई से फैलती जा रही है। इसके परिणाम सामने आ रहे हैं अशान्ति, असन्तोष, कोलाहल, अनुशासन-हीनता, अपराध प्रवृत्ति, मारकाठ आदि के रूप में। आर्यसमाज का चिन्तन इस सन्दर्भ में जीवन और जगत्‌ को आस्तिकता का अमर सन्देश दे सकता है। वैदिक विचारधारा में एकेश्वरवाद का सीधा-सच्चा सरल उपाय बताया गया है। जैसा कि वेद उपदेश देता है-ईशावास्यमिदं सर्वं यत्‌किंच जगत्यां जगत्‌। 

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    वेद - गीता का सन्देश - जैसा बोओगे वैसा काटोगे
    Ved Katha Pravachan - 103 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    इस सारे जगत्‌ में परमात्मा सर्वत्र अन्दर-बाहर ओतप्रोत है। उसी को साक्षी मानकर संसार का भोग करो। तभी अपने उद्देश्य तक पहुंचा जा सकता है। आज लोग परमात्मा का रूप-स्वरूप बिगाड़ते जा रहे हैं। संसार में परमात्मा के बारे में बड़ी भ्रान्तियॉं फैली हुई हैं। न जाने कितने पन्थ, पैगम्बर, भगवान पैदा हो रहे हैं। हर कोई अपनी मुट्ठी में परमेश्वर को बताता है। किन्तु ऋषि दयानन्द ने जो परमेश्वर का स्वरूप-चिन्तन, उपासना, प्रार्थना आदि की दृष्टि दी, वह आज के संसार को सत्य धर्म तक पहुंचा सकती है। आस्तिक बनकर ही मनुष्य मानवता के गुणों को धारण करता है। तभी सभी दोषों और बुराइयों से बचा जा सकता है। आज अधिकांश हमारा जीवन-जगत्‌ का प्रत्येक क्षेत्र यूरोपीय विचारधारा से गहराई से प्रभावित हो रहा है। खान-पान, रहन-सहन, घर-परिवार, बोलचाल, रिश्तेदार-सम्बन्ध, साज-सज्जा सभी में आधुनिकता का रोग तेजी से फैल रहा है। महानगरों का जीवन तो और भी अनेक प्रकार की विकृतियों से विकृत हो रहा है। सभी में भोगों के साधन एकत्र करने और भोगने की होड़ लगी हुईहै । सभी और-और के चक्कर में पागल-दौड़ में भागे जा रहे हैं। भोग-विलास और वासना की पूर्ति के नित्य नए साधनों का आविष्कार हो रहा है। फिर भी आज का मानव अतृप्त, असन्तुष्ट और भूखा हो रहा है। ऐसे वातावरण में आर्यसमाज का चिन्तन जीवन-जगत्‌ को वैचारिक प्रेरणा देकर सन्मार्ग दिखा सकता है। जब तक मन को आत्मा और परमात्मा की ओर नहीं मोड़ोगे, तब तक अन्तहीन भोगों की आग तुम्हें चैन नहीं लेने देगी। जितना भोगते जाओगे उतने ही अतृप्त और अशान्त होते जाओगे। शास्त्र कब से पुकार-पुकारकर कह रहे  है:- 
    न जातु काम: कामनामुपभोगेन शाम्यति। 
    हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाऽऽभिवर्धते।।

    विषयों के भोग की इच्छा विषयों के भोग से कभी शान्त नहीं हो सकती हैकिन्तु और भी बढती जाती हैजैसे आग में घी  डालने से आग और बढती है। जब तक ज्ञानविवेकवैराग्य और अभ्यास से मन को संयमित न किया जायेगातब तक न बुझने वाली भोगों की आग में जीवन-जगत्‌ जलता रहेगा। वैदिक-चिन्तन के पास महत्वपूर्ण जीवन दृष्टि हैजो दृष्टि आज के तनाव भरेअशान्तबेचैनअतृप्त मानव जीवन को सुखीशान्त आनन्दमय बना सकती है। हमारे ऋषि-मुनियों और पूर्वजों ने जीवन-जगत्‌ को गहराई से देखा-भोगा व अनुभव किया। तब उन्होंने सारपूर्ण निष्कर्ष दिए। जीवन में अतिभोगवादी दृष्टि खतरनाक है। जीवन में अति त्याग भी हानिकारक है। दोनों का समन्वय करके मध्ययममार्ग अपना लोजीवन सुखी हो जायेगा। ऋषि दयानन्द ने संसार को सन्देश दियाभागो नहीं जागो। शास्त्र कहते हैं  कि विचारों से ही जीवन-जगत्‌ स्वर्ग बन जाता है। विचारों से ही इसे नरक भी बनाया जा सकता है। आज हमारे विचारों में बड़ी तेजी से प्रदूषण फैल रहा हैजो बड़ा घातक बनेगा। चारों ओर पतन के बाजार गर्म हैं। गन्दे दृश्यगन्दे शब्दगन्दे भाव देखने-सुनने पड़ रहे हैं। यह तो तेजी से दिखावटीबनावटी कामवासना भरी कल्चर पनप रही है। यह हमारी संस्कृतिमूल्योंआस्थाओंपरम्पराओं व आदर्शों को गहरा धक्का दे रही है।

    ऐसे विषाक्त वातावरण को आर्य-चिन्तन कुछ ठोस जीवन-मूल्य दे सकता है। मनुर्भव की आदर्श मूलक जीवन-दृष्टि समूचे संसार को मानवता का पाठ पढा सकती है। वैदिक चिन्तन ने प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी गहराई और व्यापकता से सोचा है। इसकी सोच व्यावहारिकतर्कसंगतसृष्टिक्रम अनुकूल एवं वैज्ञानिक है। इसीलिए आज की दौड़ में कोई चिन्तन दौड़ सकता है तो वह है वैदिक-विचारधारा का चिन्तन। कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जिसमें हमारे पास देने को न हो। किन्तु यह तभी सम्भव होगा जब हम स्वयं सुधरेंगे तो जग सुधरेगा का भाव क्रियात्मक जीवन में लायेंगे।

    भारतीय संस्कृति त्याग-प्रधान रही है। त्याग से ही अमृत्व प्राप्त होता है। रामायण में आदि से अन्त तक त्यागप्रेम और कर्त्तव्य की भावना मिलती है। महाभारत में आदि से अन्त तक अधिकारअहंकार और एकाकी भोगने की प्रबल लिप्सा है। परिणाम हमारे सामने हैं। आज हमारा जीवन-जगत्‌ व्यक्तिपरिवार समाज-राष्ट्र संगठनसंस्थाएं सभी में अंतर्द्वन्द्वविद्रोहझगड़ेकलह व टूटन भरती जा रही है। क्योंकि मूल में भूल हो रही है। सभी एकाकी और अधिक देर तक सब जगह पद-सुविधा तथा अधिकार को भोगना चाहते हैं। झगड़ों की जड़ यह है। चाहे परिवार हो या संगठनमन्दिर हो या गुरुद्वारात्याग छोड़ने का भाव कहीं नहीं है। आर्यसमाज के चिन्तन में त्याग की महत्ता बहुत ऊंची रही है। यदि अतीत के उदाहरण रखे जाएं तो श्रद्धा भक्ति व सम्मान से सिर नत हो जाता है। हमारे मन्तव्यसिद्धान्त और जीवन-मूल्य स्वर्णिम हैं। वे आज भी इस वातावरण को नवजीवन चेतना दे सकते हैं।

    हमारे सभी शास्त्र-धर्मग्रन्थ तथा महापुरुषों के चरित्र जीवन के व्यावहारिक पक्ष से भरे पड़े हैं। निर्माण सदैव त्याग से ही होता है। मां त्याग करती है तो सन्तान का पालन-पोषण व निर्माण हो जाता है। संन्यासी त्याग करता है तो सारा संसार उसके चरणों में झुक जाता है। राजा त्याग करता है तो प्रजा उसकी भक्त बन जाती है। आज के इस वातावरण में त्यागसेवाप्रेम की गहरी आवश्यकता है। जिस परिवार में एक-दूसरे के लिए त्याग भावना हैपरस्पर प्रेम-भाव हैवह परिवार सच्चे अर्थ में स्वर्ग कहलायेगा। आज मन्दिरों में भी पद-लिप्साअधिकार व अहंकार की लड़ाई होने लगी है। झगड़ो से बचने के लिए शान्ति के लिए व्यक्ति मन्दिर में आता है। यदि मन्दिरों में भी झगड़े मिले तो कहॉं जायेगावहॉं तो त्याग व सेवाभाव से जाकर ही कुछ मिल सकता है।

    भारतीय चिन्तन में खान-पानरहन-सहन पर बड़ी बारीकी व गहराई से सोचा गया है। इस बारे में इतने दूर तक यूरोप नहीं सोच सका है। यहॉं के ऋषि-मुनियों ने यही निष्कर्ष निकाला है कि भोजन व रहन-सहन ही हमारे स्वस्थ मन और स्वस्थ विचारों का कारण है। जैसा भोजन होगा वैसा मन तथा विचार बनेंगे। जैसे विचार होंगे वैसा ही आचरण होगा। आज के जीवन-जगत्‌ का खान-पान बहुत ही दूषित,  विकृततामसिक तथा मन-बुद्धि-इन्द्रियों को विकृत करने वाला हो रहा है। इसीलिए रोगियों को लम्बी लाइनें बढती जा रही हैं। हास्पिटल छोटे पड़ते जा रहे हैं। प्रकृति ने मनुष्य को रोगी नहीं बनाया अपितु प्रकृति तो स्वास्थ्य बांट रही है। हमारी संस्कृति होम प्रधान रही हैहोटलप्रधान नहीं। खाने के साथ कपड़ों के बारे में श्रंगार भावना बढ रही है। जहॉं श्रंगार होगा वहॉं वासना जरूर भड़केगी। यह प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। आर्यसमाज का चिन्तन खान-पान के बारे में बड़ा स्पष्ट है। हमारे चिन्तन का मूल आधार ही खान-पान है। शुद्धसात्विकशाकाहारी भोजन ही मनुष्य का असली भोजन है। ऐसा भोजन ही जीवन-जगत्‌ को रोगमुक्तसरलताधार्मिकता व आस्तिकता दे सकता है। इसके प्रचार की बड़ी आवश्यकता है।

    सार रूप में कहा जा सकता है कि जीवन-जगत की इस अन्धी दौड़ में आर्यसमाज का वैचारिक-चिन्तन प्रकाश-स्तम्भ का कार्य कर सकता है। इस घायल कराहती अतृप्त मानवता के लिए वैदिक चिन्तन मरहम का कार्य कर सकता है। वैदिक विचारधारा आबाल-वृद्ध सभी में अपने विचारों की संजीवनी से नव-चेतना का जीवन संचारित कर सकती है। आर्य-चिन्तन जीवन-जगत्‌ के सभी क्षेत्रों में मार्गदर्शन बन सकता है। अन्त में आर्यो से- प्रशस्त पुण्य पंथ हैबढे चलोबढे चलो। लेखक-डॉ. महेश विद्यालंकार

    Contact for more info.- 

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com 

    ----------------------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com 

     

    There are big misconceptions about God in the world. Do not know how many texts, prophets, God are being born. Everyone tells God in his fist. But the sage Dayanand, who gave the vision of God in the form of thinking, worship, prayer, etc., can lead the world to the true religion. Only by becoming a believer, man bears the qualities of humanity.

     

    The Need of Arya Samaj | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj  Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for for Buldhana - Chandrapur - Bhilwara - Bikaner - Betul - Bhind  | Official Web Portal of Arya Samaj Mandir Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Marriage Helpline Indore India | Aryasamaj Mandir Helpline Indore | inter caste marriage Helpline Indore | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Indore | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj indore Bharat | human rights in india | human rights to marriage in india | Arya Samaj Marriage Guidelines India | inter caste marriage consultants in indore | court marriage consultants in india | Arya Samaj Mandir marriage consultants in indore | arya samaj marriage certificate Indore | Procedure Of Arya Samaj Marriage in Indore India. 

    Arya Samaj required | Fundamental feature of Arya Samaj | Ideological revolution | Disease of modernity | Religiosity and theism | Indulgence and fulfillment of lust | 

    Arya samaj wedding rituals in indore | validity of arya samaj marriage Indore | Arya Samaj Marriage Ceremony Indore | Arya Samaj Wedding Ceremony | Documents required for Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Legal marriage service Indore Bharat | inter caste marriage for prevent of untouchability in India | Arya Samaj Pandits Helpline Indore India | Arya Samaj Pandits for marriage Indore | Arya Samaj Temple in Indore India | Arya Samaj Pandits for Havan Indore | Pandits for Pooja Indore | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction Without Demolition Indore, Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Indore | Vedic Pandits Helpline Indore | Hindu Pandits Helpline Indore | Arya Samaj Hindu Temple Indore | Hindu Matrimony Indore | Arya Samaj Marriage New Delhi – Mumbai Maharashtra – Surat Gujarat - Indore – Bhopal – Jabalpur – Ujjain Madhya Pradesh – Bilaspur- Raipur Chhattisgarh – Jaipur Rajasthan Bharat | Marriage Legal Validity | Arya Marriage Validation Act 1937 | Court Marriage Act 1954 | Hindu Marriage Act 1955 | Marriage Legal Validity by Arya samaj.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आज के जीवन-जगत्‌ को आर्यसमाज की आवश्यकता | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • आर्य समाज और अन्तरजातीय विवाह - वर्तमान परिप्रेक्ष्य में

    मानव-जीवन के चार स्तम्भों में गृहस्थ-जीवन का द्वितीय स्थान है। अन्य तीन आश्रम भी इस पर आश्रित हैं। यह एक उत्तरदायित्वपूर्ण आश्रम है। इसी आश्रम में रहते हुए मानव सन्तानोपत्ति से लेकर पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा, विवाह आदि समस्त दायित्वों को पूर्ण करता है। इन दायित्वों में सबसे महत्त्वपूर्ण है विवाह। यह ऐसा उत्तरदायित्व है जो दो आत्माओं के मिलन का संयोग बैठाता है। परस्पर तालमेल न बैठ पाने के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने इस दायित्व के निर्वहन का जिक्र सत्यार्थ प्रकाश के चतुर्थ समुल्लास में किया है। उन्होंने वर्णानुकूल सुन्दर लक्षणयुक्त कन्या से विवाह करने का निर्देश दिया है।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    यजुर्वेद मन्त्र 1.1 की व्याख्या
    Ved Katha Pravachan - 98 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    जहॉं वर्ण है वहॉं जन्मना जाति नहीं। सत्यार्थ प्रकाश बल देता है कि विवाह गुण-कर्म- स्वाभावानुसार होने चाहिएं। यदि इस तथ्य पर विचार किया जाए तो पता चलेगा कि आर्यसमाजेतर समाजों में विवाह को लेकर अनेक कठिनाइयॉं है। जैसे- जन्मकुण्डली का मिलान, मंगला-मंगली का चक्कर, शिक्षा व रोजगार समस्या, खानपान, रहन-सहन, पारिवारिक स्थितियॉं आदि। यद्यपि आज लड़कियों का अनुपात लड़कों से कम है, फिर भी लड़की वाले बहुत परेशान हैं।

    आर्यसमाज में अधिकतर लोग एक सीमित दायरे में बन्धकर, जन्मपत्री मिलाकर अनमेल विवाह कर डालते हैं, जिसका परिणाम होता है आजीवन संघर्ष। इस समस्या से आर्य समाज के लोग भी नहीं बच पाते। वे सभी जन्मना जाति के प्रभाव में लड़के-लड़कियों का विवाह स्वजाति में करते हैं जिससे अनेक समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं। आर्य समाजी परिवार की लड़की आर्यसमाजेतर  परिवार में जाकर पूरा पौराणिक बन जाती है। यदि वह परिवार मांसाहारी है तो वह उससे भी नहीं बच पाती है। यदि आर्य समाजी परिवार में आर्यसमाजेतर परिवार की लड़की आती है तो आर्य सिद्धान्तों व संस्कारों के अभाव के कारण समायोजन करने में कठिनाई का अनुभव करती है। इससे परिवार में संघर्ष उत्पन्न होता है।

    जिनके घरों में युवा लड़के या लड़कियॉं हैं, उनके माता-पिता से उनके विवाह सम्बन्धी कठिनाई का पता किया जा सकता है। लड़कियॉं35-38-40 साल की हो जाती हैं। अच्छे वर ढूँढने के चक्कर में उम्र समाप्त हो जाती है। यही हाल लड़को में भी मिल जाएगा। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने स्पष्ट लिखा है कि24 वर्ष तक कन्या का विवाह अवश्य हो जाना चाहिए।

    एक तरफ ऐसा स्पष्ट निर्देश और दूसरी तरफ उन्होंने लिखा है- "चाहे लड़का-लड़की मरणपर्यन्त कुमार रहें परन्तु असदृश अर्थात्‌ परस्पर विरुद्ध गुण, कर्म, स्वभाव वालों का विवाह कभी न होना चाहिए।" जब लोग जाति के दायरे में सीमित रहेंगे तो निश्चित ही कठिनाइयॉं बढेंगीं। ऐसे में युवा-युवती का मन दूषित हो सकता है।

    आर्य समाज के लोग यदि इस दिशा में सहयोग करें तो बहुत कुछ लड़के-लड़कियों के विवाह से सम्बन्धित कठिनाई दूर हो सकती है। महर्षि दयानन्द सरस्वती के शब्दों पर विचार करें - "सज्जन लोग स्वंयवर विवाह किया करें। सो विवाह वर्णानुक्रम से करें और वर्णव्यवस्था भी गुण, कर्म, स्वभाव के अनुसार होनी चाहिए।" (सत्यार्थप्रकाश चतुर्थ समुल्लास) । ऋषि के शब्दों में कितनी कल्याण भावना है! वे वर्णव्यवस्था के कितने समर्थक हैं उन्हीं के शब्दों में-"रज वीर्य के योग से ब्राह्मण शरीर नहीं होता।" (सत्यार्थप्रकाश चतुर्थ समुल्लास) वे लड़का-लड़की के गुण-कर्म-स्वभाव के मेल पर बल देते हैं। उन्हीं के शब्दों में, "जब स्त्री-पुरुष विवाह करना चाहें तब विद्या, विनय, शील, रूप, आयु, बल, कुल, शरीर का परिमाण आदि यथायोग्य होना चाहिए। जब तक इनका मेल नहीं होता तब तक विवाह में कुछ भी सुख नहीं होता।" (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास4) इतना ही नहीं उन्होंने विवाह सम्बन्ध दूर करने पर बल दिया है। दूरस्थ विवाह में प्रेम की डोरी बढी रहती है। दोनों पक्ष के लोग एक-दूसरे के गुणावगुणों से अनभिज्ञ रहते हैं। महर्षि दयानन्द सरस्वती के शब्दों में "दूरस्थों के विवाह में दूर-दूर प्रेम की डोरी लम्बी बढ जाती है निकटस्थ विवाह में नहीं।" (स.प्र.4) खानपान, जलवायु आदि की दृष्टि से भी दूरस्थ विवाह उत्तम है। महर्षि जी के शब्दों में, "दूर देशस्थों के विवाह होने में उत्तमता है।" (स.प्र.4) हम आर्य समाज के लोग ऋषि की भावनाओं और उनकी कल्याण-कामना को समझें। आज विवाह की समस्या इतनी विकट होती जा रही है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इसका समाधान अन्तरजातीय विवाह से ही सम्भव है जो गुण, कर्म, स्वभाव से गृहीत है। यदि अपनी जाति में विवाह होने पर पति-पत्नी में संघर्ष है वह अच्छा है या अन्तरजातीय विवाह में गुण-कर्म-स्वभावानुसार सुखभोग अच्छा है? विपरीत स्वभाव वालों में विवाह का सर्वथा निषेध है। महर्षि दयानन्द के शब्दों में "कन्या को मरने तक चाहे वैसी ही कुमारी रखो, परन्तु बुरे मनुष्य के साथ विवाह न करो।" (उपदेश मंजरी)

    arya marriage indore

    इस दिशा में हम आर्य समाज के लोग सक्रिय कदम नहीं उठा पा रहें हैं व दु:ख झेल रहें हैं। विरोधाभास साक्षात्‌ देख रहे हैं पर साहस नहीं कर पा रहे हैं। हमारा आर्य समाज एक परिवार है। हम एक दूसरे से भावनात्मक सम्बन्ध से जुड़े हुए हैं। केवल कथनमात्र से कुछ नहीं होता। हमारा कार्य दूसरों के लिए बहुत बड़ा उपदेश है। आचरण और कर्म की भाषा मौन उपदेश देती है जो बहुत प्रभावकारी होती है। आर्यसमाज द्वारा सम्पन्न कराए जाने वाले अन्तरजातीय विवाहों का निश्चय ही भविष्य में अच्छा परिणाम होगा। रोटी और बेटी का सम्बन्ध आर्य समाज के लिए सुखद भविष्य है। इससे समाज का दायरा विस्तृत होगा। हम एक-दूसरे के निकट आएँगे। हमें संस्कारित लड़के-लड़कियॉं मिलेंगे। परिवार में सुख-शान्ति हो इसके अलावा और क्या चाहिए? हमारी जाति आर्य, हमारा धर्म वैदिक, हमारा राष्ट्र आर्यावर्त, हमारा नाम आर्य, हमारा उपास्य देव ओ3म्‌ यही तो हमारी पहचान है, इसे बनाना है। यदि सब लोग परस्पर लड़के-लड़कियों का गुण-कर्म-स्वभाव के अनुसार विवाह करना प्रारम्भ कर दें तो देश में आमूलचूल परिवर्तन आएगा और जन्मना जाति-पॉंति मिट जाएगी। इसे मिटाना अति आवश्यक है अन्यथा हम परस्पर विभक्त होते जाएँगे और हमारी राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ जाएगी। इसके लिए अन्तरजातीय विवाह एक सशक्त माध्यम है।

    आर्य समाज आर्यों का समाज है। हम अपने समाज में विवाह सम्बन्ध करें। इससे रूढियॉं, दिखावा समाप्त होगा। योग्य लड़के-लड़कियों का दायरा बढेगा तो विवाह सम्बन्धी समस्या स्वत: समाप्त हो जाएगी, अमीरी-गरीबी की खाई पटेगी, हमारा परिवार बड़ा होगा, अच्छे सम्बन्धों से मन में प्रसन्नता बढेगी। गृहस्थ जीवन स्वर्ग के समान होगा। गुरुकुलों के आचार्य/आचार्या से निवेदन है कि वे गुरुकुल के स्नातक/स्नातिका का ऐसा सम्बन्ध बनाएँ जिससे गुरुकुल के लड़के-लड़कियों में परस्पर विवाह सम्बन्ध हो सके। वे इस दिशा में मुख्य भूमिका निभा सकते हैं। विवाह में विचारों का मेल परमावश्यक है। यदि गुरुकुलीय शिक्षा प्राप्त युवक का कान्वेण्ट या विद्यालय से शिक्षा प्राप्त पौराणिक लड़की से विवाह होता है तो उसके जीवन में संघर्ष होगा। इसी प्रकार गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त लड़की का विवाह यदि कान्वेण्ट/विद्यालय से शिक्षा प्राप्त लड़के से होगा तो उसके भी जीवन में संघर्ष होगा। कारण यह है कि गुण-कर्म-स्वभाव मेल नहीं खाते हैेतो विचारधारा का मेल नहीं खाता है। वैदिक विचारधारा का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार हो, इसलिए यह विवाह-सम्बन्ध वैदिक विचारों के अनुरूप होना चाहिए।

    आर्य समाज को आदर्श समाज बनाएँ। योग्य स्त्री-पुरूषों से योग्य आदर्श समाज बनेगा, जिसका माध्यम अन्तरजातीय विवाह है। हमारे सामने कितने ही अन्तरजातीय विवाह सम्पन्न हुए हैं और वे युवक-युवती सुखद जीवन व्यतीत कर रहे हैंऔर कितने ही ऐसे सजातीय विवाह हुए हैं जिनके मध्य संघर्ष है। जन्मकुण्डली, मंगली-मंगला, राशि, गृह, मुहूर्त, शुभवाद, अच्छा-बुरा दिन, नाड़ी-मेल सबको तिलांजलि देकर समाज के समक्ष सत्य को प्रतिष्ठापित करना होगा। यह युग की मॉंग है।

    दि हम महर्षि दयानन्द के मिशन को आगे बढाना चाहते हैं तो अन्तरजातीय विवाह को स्वीकार करना होगा। इससे एक बहुत बड़ी सामाजिक क्रान्ति आएगी। (आर्यजगत्‌, दिल्ली, 29 दिसम्बर2013) 

    Contact for more info.- 

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

    ------------------------------------- 

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajonline.com 

    Among the four pillars of human life, householder is the second place of life. The other three ashrams also depend on it. It is a responsible ashram. While living in this ashram, human being fulfills all the responsibilities from parentage to upbringing, education, initiation, marriage etc. The most important of these obligations is marriage. It is a responsibility that coincides with the union of two souls. Many difficulties have to be faced due to lack of coordination. Maharishi Dayanand Saraswati has mentioned the discharge of this responsibility in the fourth group of Satyarth Prakash. He has instructed to marry a girl with a beautiful character.
    Arya Samaj and inter-caste marriage in Current perspective | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj  Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Beed - Bhandara - Barmer - Bharatpur - Balaghat - Barwani | Official Web Portal of Arya Samaj Mandir Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Marriage Helpline Indore India | Aryasamaj Mandir Helpline Indore | inter caste marriage Helpline Indore | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Indore | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj indore Bharat | human rights in india | human rights to marriage in india | Arya Samaj Marriage Guidelines India | inter caste marriage consultants in indore | court marriage consultants in india | Arya Samaj Mandir marriage consultants in indore | arya samaj marriage certificate Indore | Procedure Of Arya Samaj Marriage in Indore India. 
    Arya samaj wedding rituals in indore | validity of arya samaj marriage Indore | Arya Samaj Marriage Ceremony Indore | Arya Samaj Wedding Ceremony | Documents required for Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Legal marriage service Indore Bharat | inter caste marriage for prevent of untouchability in India | Arya Samaj Pandits Helpline Indore India | Arya Samaj Pandits for marriage Indore | Arya Samaj Temple in Indore India | Arya Samaj Pandits for Havan Indore | Pandits for Pooja Indore | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction Without Demolition Indore, Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Indore | Vedic Pandits Helpline Indore | Hindu Pandits Helpline Indore | Arya Samaj Hindu Temple Indore | Hindu Matrimony Indore | Arya Samaj Marriage New Delhi – Mumbai Maharashtra – Surat Gujarat - Indore – Bhopal – Jabalpur – Ujjain Madhya Pradesh – Bilaspur- Raipur Chhattisgarh – Jaipur Rajasthan Bharat | Marriage Legal Validity | Arya Marriage Validation Act 1937 | Court Marriage Act 1954 | Hindu Marriage Act 1955 | Marriage Legal Validity by Arya samaj.
    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • आर्य समाज का परिचय-2

    लेखक- आचार्य डॉ.संजय देव

    महर्षि स्वामी दयानन्द ने बचाव तो किया ही, साथ ही मुसलमानों और ईसाइयों के मत पन्थों पर प्रहार भी किया। यह हिन्दुत्व का शुद्ध रूप था और महर्षि दयानन्द की वाणी में, लेखों में, पुस्तकों में, शास्त्रार्थ और व्याख्यानों में सुधार की भावना तो थी ही, उन्होंने जागृत हिन्दुत्व का समरनाद घोषित कर दिया।

  • आर्यसमाज का मौलिक आधार

    लेखक - स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती

    सर्वश्रेष्ठ अध्येताओं के अनुसार हिमालय के आस-पास ही मनुष्य का अवतरण हुआ है। वहीं से उसकी संस्कृति का और मानव जाति की यात्रा का प्रारम्भ होता है। वेद के दिव्य वाक्य मानव जाति के जीवन के आधार बने। कुछ काल प्रेम और आनन्द से रहने के बाद यहीं से मनुष्य समस्त संसार में बिखर गये।

  • ऋषि दयानन्द का शिक्षादर्शन

    ऋषि दयानन्द ने मानव जीवन के सभी क्षेत्रों से सम्बन्ध रखने वाली सभी समस्याओं पर विचार किया है और वेद तथा वेदानुकूल अन्य शास्त्रों के आधार पर उन समस्याओं के इस युग के लिए सर्वथा नवीन और अनूठे समाधान अपने "सत्यार्थ प्रकाश" आदि ग्रन्थों में उपस्थित किये हैं। विभिन्न समस्याओं के सम्बन्ध में ऋषि दयानन्द ने जो विचार और समाधान दिये हैं यदि उनके अनुसार मानव का जीवन बीतने लगे तो धरती स्वर्गधाम बन सकती है और मनुष्य के व्यक्तिगत तथा सामाजिक सब प्रकार के कष्ट-क्लेश दूर होकर यह उन्नति और सुख समृद्धि की चरम सीमा पर पहुंच सकता है।

    शिक्षा समस्या मानव की एक बहुत बड़ी समस्या है। मनुष्य का सब-कुछ उसकी इस समस्या पर निर्भर करता है। मनुष्य का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन किस प्रकार का होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपने बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा देते हैं। ऋषि दयानन्द ने शिक्षा के सम्बन्ध में भी सर्वथा नये और निराले विचार दिये हैं। शिक्षा के सम्बन्ध में विचार करते हुए सबसे बड़ा प्रश्न यह उपस्थित होता है कि बालकों की शिक्षा संस्थाएँ किस प्रकार के वातावरण में हों, शिष्य और शिक्षकों के सम्बन्ध किस प्रकार के हों, बालकों को किस प्रकार पढाया जाए, बालकों का रहन-सहन तथा दिनचर्या किस प्रकार की हो और राष्ट्र के प्रत्येक बालक को बिना किसी भेदभाव के ऊंची से ऊंची शिक्षा मिल सके इसके लिए क्या व्यवस्था  की जाये। ऋषि ने शिक्षा विषयक सभी समस्याओं पर अपने ग्रन्थों में विस्तार से विचार किया है। ऋषि के इस सम्बन्ध में जो विचार हैं उनका अति संक्षिप्त उल्लेख किया जा रहा हैं।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    वैदिक विद्वानों की तपस्या के कारण वेद में प्रक्षेप नहीं हैं
    Ved Katha -15 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    शिक्षा संस्थाएँ नगरों से दूर प्राकृतिक सौन्दर्य से युक्त स्थानों में बनाई जानी चाहिएँ। जहॉं स्वाभाविक प्राकृतिक सौन्दर्य न हो वहॉं सुन्दर लता, वृक्षादि लगाकर शिक्षणालय के स्थान को हरा-भरा और शोभाशाली बना लेना चाहिए। जिसमें बालकों का शारीरिक स्वास्थ्य भी ठीक रहे और मानसिक भी। बच्चों को नगर का धुआँ, धूल-धमक्कड़ और दुर्गन्ध से भरी हवा में सांस न लेना पड़े और वे नगर निवासी गृहस्थों के शान-शौकत तथा श़ृंगार से भरे जीवन से भी पृथक रहें और इस प्रकार गृहस्थों के विलासमय जीवन को देखकर कच्ची उमर में ही उनके मन में विलास-प्रियता के निकम्मे विचार न उठने लगें। बालक शिक्षा समाप्ति से पूर्व नगरों में अपने घरों में नहीं जा सकेंगे। ये चौबीस घण्टे अपने गुरुओं के साथ शिक्षा संस्थाओं के आश्रमों में ही रह सकेंगे।

    गुरु और शिष्य एकान्त में रहेंगे। शिष्यों के चौबीस घण्टों के जीवन पर गुरुओं की दृष्टि रहेगी। गुरु शिष्यों के साथ रहकर उनके जीवन का निर्माण करेंगे। गुरु लोग शिष्यों को उनके हाल पर छोड़कर नगरों में रहने के लिए नहीं जा सकेंगे। गुरुओं का अपने शिष्यों के साथ इतना घनिष्ठ सम्बन्ध होगा जितना मॉं का अपने गर्भ में प़ल रहे बच्चे के साथ होता है। मॉं को अपने गर्भ में स्थित बच्चे के प्रति जितना प्यार और हितकामना होती है उतना ही प्यार और हितकामना गुरु में शिष्य के प्रति होनी चाहिए। मॉं को अपने गर्भ में स्थित बच्चे के प्रति जितनी एकात्मकता होती है उतनी ही एकात्मकता गुरु की शिष्य के प्रति होनी चाहिए। जिस प्रकार मॉं के गर्भ में स्थित बच्चे पर मॉं के अतिरिक्त बाहर का किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ सकता, उसी प्रकार गुरुओं के अतिरिक्त शिष्यों पर बाहर के लोगों का कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। गुरु लोग बाहर के जिन लोगों को व्याख्यान आदि के लिए बुलाना आवश्यक समझें उन्हीं का प्रभाव उनपर पड़ना चाहिए। जिस प्रकार मॉं को अपने गर्भ में बच्चे को सब प्रकार से श्रेष्ठ और बढिया बनाने की ही चिन्ता रहती है उसी प्रकार गुरुजनों को अपने छात्रों को सब प्रकार से श्रेष्ठ और उत्तम बनाने की चिन्ता रहती है।

    जब गुरुओं की शिष्यों के साथ इतनी गहरी घनिष्ठता होगी और वे शिष्यों की मॉं की तरह हित-कामना करेंगे तो शिष्य सदैव उनकी आज्ञाओं का पालन करेंगे और छात्रों में आज की सी अनुशासनहीनता की समस्या उत्पन्न नहीं होगी।

    बालकों को क्या पढना चाहिए, इस सम्बन्ध में भी ऋषि ने बड़े विस्तार से विचार किया है। सत्यार्थ प्रकाश, संस्कार विधि और ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका में किस प्रकार के ग्रन्थ पढने चाहिएँ और किस प्रकार के नहीं, इस विषय विस्तृत प्रकाश डाला है। ऋषि की उस पाठविधि का ध्यान से विश्लेषण करने पर एक बात तो यह स्पष्ट रूप से सामने आती है कि ऋषि की सम्मति में पाठविधि में भौतिकविद्याविज्ञान (फिजिकल साईंस) और आध्यात्मिक (स्प्रिचूवल साईंस) दोनों का ही समावेश होना चाहिए। ऋषि ने जिन ग्रन्थों का उल्लेख किया है उनमें रसायन, भौतिक, गणित, ज्योतिष, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्ध-विद्या, शिल्पकला, आयुर्वेदादि भौतिकविद्या विज्ञानों का भी वर्णन है। उस पाठविधि में संगीत के अध्ययन की व्यवस्था भी है। संस्कृत भाषा और उसके उच्च अध्ययन की व्यवस्था तो है ही, ऋषि दयानन्द ने यह भी लिखा है कि प्रारम्भ से ही बल्कि पाठशाला में जाने से पहले ही घर में ही बालकों को विदेशी भाषाओं का सिखाना आरम्भ कर देना चाहिए। इससे यह संकेत मिलता है कि विदेशी भाषा मे जो ज्ञान विज्ञान है उस के पठन-पाठन के पक्षपाती ऋषि दयानन्द भी थे। ऋषि दयानन्द की पाठविधियों में तर्क और दर्शनशास्त्र को पढाने की व्यवस्था है। चारों वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ और उपनिषदों के पठन-पाठन की व्यवस्था भी वहॉं है। वेदों में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की विद्याओं की व्यवस्था है। दर्शनों में, उपनिषदों में आध्यात्मिक विद्याओं का वर्णन है। इस प्रकार ऋषि की सम्मति में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की विद्याएँ साथ-साथ पढाई जानी चाहिएँ। तभी मानव का सन्तुलित विकास हो सकेगा। किसी एक प्रकार की ही विद्या को पढने-पढाने से व्यक्ति एकांगी हो जाएगा। इसके कारण व्यक्ति और समाज दोनों को हानि होगी। आज के संसार में जो कलह, लड़ाई-झगड़े, युद्ध, अशान्ति दिखाई देती है, वह शिक्षा में आध्यात्मिक विद्याओं को स्थान न देने का ही परिणाम है। ऋषि दयानन्द ने जो विस्तृत पाठविधि दी है वह सब विद्याओं के ज्ञाता, उच्चकोटि के महाविद्वान्‌ व्यक्ति के तैयार करने की दृष्टि से दी है। "सत्यार्थप्रकाश" के तृतीय समुल्लास के अन्त में उन्होंने एक न्यूनतम पाठविधि की ओर भी संकेत किया है। उन्होंने लिखा है कि जैसे पुरुषों को व्याकरण, निरुक्त, धर्म और अपने व्यवहार (आजीविकोपार्जन) की विद्या न्यून से न्यून अवश्य सीखनी चाहिए, वैसे ही स्त्रियों को भी व्याकरण, धर्म, वैद्यक, गणित, शिल्प विद्याएँ तो अवश्य सीखनी चाहिए। सुविधानुसार पाठविधि में अधिक से अधिक विषयों को पढाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

    maharshi dayanand saraswati

    ऋषि दयानन्द छात्रों में वासनाओं को भड़काने वाले काव्य, नाटक, उपन्यास आदि पढाने के घोर विरोधी थे। वे छात्रों के जीवन में ब्रह्मचर्य, संयम और पवित्रता पर अधिक बल देते हैं। ग्रीस के प्राचीन महान्‌ दार्शनिक प्लेटो ने भी इस प्रकार के कामोत्तेजक साहित्य को पढाने का घोर विरोध किया है। इसी प्रकार आधुनिक विद्वान एल्डस हक्सले ने भी इस प्रकार के साहित्य को पढाने का घोर विरोध किया है। इसी प्रकार ऋषिदयानन्द ने श्राद्ध, मूर्त्तिपूजा, अवतारवाद, भूत और प्रेतादि तथा अन्धविश्वास की शिक्षा देने वाले साहित्य का भी तीव्र विरोध किया है।

    बालकों को अन्य विषयों की शिक्षा के साथ-साथ योग की शिक्षा भी प्रारम्भ से ही देनी चाहिए। योगदर्शन आदि योग-विषयक साहित्य भी पढाया जाना चाहिए और योग के यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि इन आठ अंगों का क्रियात्मक अभ्यास भी कराना चाहिए। आसनों और प्राणायाम  के अभ्यास से उनमें मानसिक और आत्मिक पवित्रता उत्पन्न होगी, जिसके कारण वे सब प्रकार की बुराइयों और दोषों से बचे रहेंगेतथा योग के निरन्तर अभ्यास से वे परमात्मा के दर्शन के अधिकारी भी एक दिन हो जाएंगे। 

    योग के यम  नियमों में शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान ये पॉंच नियम कहलाते हैं। इन नियमों के पालन से छात्र (1) शरीर और वस्त्र की दृष्टि से स्वच्छ रहना सीखेंगे। (2) सफलता और असफलता में एकरस रहना सीखेंगे। (3) साज-सिंगार तथा बनाव-ठनाव से दूर रहकर सादगी और कष्ट सहने की तपस्या का जीवन बिताना सीखेंगे। (4) उनमें उत्तम और ज्ञानवर्द्धक ग्रन्थों के अध्ययन की क्षमता जाग्रत होगी। (5) वे ईश्वर के उपासक बनेंगे। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पॉंच यम कहलाते हैं। उन पॉंच यमों के पालन से छात्र (1) अपने स्वार्थ के लिए किसी प्राणी को किसी प्रकार का भी कष्ट नहीं देंगे, प्रत्युत दूसरे के कष्टों को दूर करने का भाव अपने अन्दर जाग्रत करेंगे। (2) सत्य का पालन करना और असत्य से दूर रहना सीखेंगे। (3) किसी भी प्रकार की चोरी की वृत्ति से पृथक्‌ रहना सीखेंगे। (4) मन और इन्द्रियों को वश में रखकर अपनी जननेन्द्रियों को वश में रखने वाले संयमी बनेंगे। (5) वे लोभ और लालच से परे रहने वाले और आवश्यकता से अधिक धन अपने पास न रखने की वृत्ति वाले बनेंगे। ये दशों बातें जिन छात्रों के जीवन में ढल जाएँगी उनके जीवन में आगे चलकर किसी प्रकार के पाप या बुरे कार्य नहीं होंगे और आज के समाज में जो घोर चरित्रभ्रष्टता पाई जाती है वह चरित्रभ्रष्टता इस प्रकार की शिक्षा-दीक्षा में पले युवकों से बने समाज में कभी दिखाई नहीं देगी। ऋषि दयानन्द ने अपनी शिक्षा-पद्धति में इन यम-नियमों का पालन एक आवश्यक अंग रखा है। - आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmpcg.com 

     

    When the gurus will have such deep intimacy with the disciples and they wish the disciples like their mother, the disciples will always obey their commands and the problem of indiscipline will not arise in the students today.

     

    Rishi Dayanand's Education | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Jalore - Jhalawar - Gwalior - Harda - Nagpur - Nanded | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Jalgaon - Jalna - Dholpur - Dungarpur - Damoh - Datia | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | साम्प्रदायिकता की समस्या और ऋषि दयानन्द | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • ऋषि दयानन्द की सफलता

    ऋषि दयानन्द की सफलता असन्दिग्ध है। कड़े समालोचक भी उससे इन्कार नहीं कर सकते। कोई उस सफलता से प्रसन्न है और कोई नाराज। परन्तु इन्कारी कोई भी नहीं हो सकता। निश्चित सफलता के कारणों पर जब विचार करने लगें तब मतभेद आरम्भ होता है। महात्मा गान्धी से पूछिये तो वह ऋषि की सफलता का एक मात्र कारण ब्रह्मचर्य को बतलायेंगे। एक कट्टर मुसलमान से प्रश्न कीजिये तो वह कहेगा कि एक ईश्वर में दृढ विश्वास ही स्वामी जी की विजय का कारण हुआ। एक आर्य समाजी से पूछिये तो वह वेद पर विश्वास को ही कारण बतलाएगा और एक मनोवैज्ञानिक से सवाल कीजिए तो वह उत्तर देगा कि ऋषि दयानन्द की अद्‌भुत सफलता का प्रधान कारण उनकी प्रतिभा थी। एक इतिहास लेखक सभी प्रकार के विचारकों की सम्मति पर विचार करता है और गुण तथा दोषों को तोलकर देखता है। उसे कोई भी प्रश्न इतना गहन नहीं दिखाई देता कि उसका उत्तर न दे सके और न इतना सरल ही दिखाई देता है कि उसका एक शब्द में चुभता हुआ जवाब दिया जा सके। वह सफलता के सभी कारणों को जोड़ता है और परिणाम निकालता है।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    शुभ गुणों के लिये दुर्गणोँ का त्याग आवश्यक, यजुर्वेद 30.3

    Ved Katha Pravachan _36 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    ऋषि दयानन्द जी की सफलता में तीन तरह के गुण कारण थे- 1. शारीरिक 2. मानसिक 3. आध्यात्मिक। शारीरिक गुणों हृष्ट-पुष्ट उन्नत शरीर, तेजस्वी चेहरा और सिंह सदृश आँखें। बतलाने की आवश्यकता नहीं कि ऋषि की सफलता में उनके शारीरिक गुणों का एक बड़ा हिस्सा था।

    मानसिक कारणों में से प्रतिभा और स्मृति प्रधान थे। प्रतिभा के कारण बड़े से बड़े वाद में सैकड़ों प्रतिपक्षियों के बीच भी उनकी वाणी अटूट अस्त्रों का प्रयोग करती थी। स्मृति की सहायता के बिना काशी के धुरन्धर पण्डितों को कौन चुप करा सकता था? किताब की विद्या शास्त्रार्थ में काम नहीं देती। वहॉं तो याद ही सबसे बड़ा हथियार है। प्रतिभा और स्मृति ये दोनों स्वामी जी की वशवर्ती होकर काम देती थीं।

    आध्यात्मिक गुणों में से योग, ब्रह्मचर्य और तप ये मुख्य थे। इन तीनों को संक्षेप से कहें तो एक ईश्वर विश्वास और संयम इन दो के अन्तर्गत  जाते हैं। ये दोनों भी एक दूसरे पर आश्रित हैं। ईश्वर विश्वास के बिना पूरा संयम नहीं हो सकता। कर्मशील उग्र आत्मिक भाव ही संयम, योग और तप का आधार है।

    rishi dayanand

    शरीर की पुष्टि, प्रतिभा और आत्मिकता यह तीन गुण थे, जिनसे ऋषि दयानन्द को अपूर्व सफलता प्राप्त हुई। किसी एक अकेले गुण को तलाश करने में दिमाग न लड़ाकर यदि हम ऋषि के चरित्र पर व्यापक नजर दौड़ायें तो हम इस परिणाम पर पहुँचेगे कि सर्वाङ्गीण उत्कृष्टता ही उनके गौरव का मूल हेतु थी। यही महापुरुष के महत्त्व की निशानी है। जिसमें केवल गुणों का एकदेशी विकास है, वह पूरे महत्व तक नहीं पहुंच सकता। सर्वदेशी विकास ही महत्व का हेतु है। जो केवल शारीरिक या केवल मानसिक गुणों पर भरोसा रखता है वह पूरी सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। 

    अपनी सर्वाङ्गीणता के लिए ऋषि का जीवन आदर्श रूप है। उसकी व्यापक ज्योति से सदियों तक प्रजा अपने-अपने दिये जलाया करेगी। (श्री इन्द्र विद्यावाचास्पति कृत दिव्य दयानन्द से साभार) - प्रो. धर्मेन्द्र धींग्रा

    Contact for more info.-

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmarriagehelpline.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

     


    Pratibha and Smriti Pradhan were among the mental causes. His voice used unbreakable weapons even among the hundreds of contestants in the biggest debate due to talent. Without the help of memory, who could have silenced the pandits of Kashi? The learning of the book does not work in scripture. There, memory is the greatest weapon. Both Pratibha and Smriti used to work under Swami ji.

     

    Success of Rishi Dayanand | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Dholpur - Dungarpur - Damoh - Datia - Jalgaon - Jalna | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore MP | Arya Samaj Mandir in Indore |  Arya Samaj Marriage | Arya Samaj in Madhya Pradesh - Chhattisgarh | Arya Samaj | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Hindu Matrimony | Matrimonial Service.

    Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | सत्यार्थप्रकाश की प्रासंगिकता | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • तस्य वाचकः प्रणवः का रहस्य

    १/२७ योग के इस सूत्र के वास्तविक अर्थ को समझने में अध्येता प्रायः मूल करते है और केवल शब्दार्थ मात्र को ही फालतार्थ समझ लेते है। यहाँ ओ३म् पर की जगह पुरुष विशेष ईश्वर पद का प्रयोग है। यह है कि उस ओ३म् का वाचक ''प्रणव'' शब्द है तदनुसार उस ईश्वर को ओ३म् कहे या प्रणव कहें बात एक ही है। यहाँ वाचक शब्द सापेक्ष है, वह किसी दूसरे पद की यानी वाच्य है ओ३म् शब्द।

    इस सूत्र में वाच्य ओ३म् पद है और वाचक प्रणव पद है। वाचक का अर्थ वाच्य के स्वरूप को विस्तार कहने वाला है। अतः प्रणव पद का सीमित अर्थ न लेकर, शब्दार्थ-पदार्थ मात्रा न लेकर फलिस्तार्थ - विस्तारित भावार्थ लेना चाहिये। यह विस्तृत भावार्थ यौगिक अर्थ द्वारा जाना जाता है।

    Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
    वेद कथा - 4 | Explanation of Vedas & Dharma | धर्म एवं सम्प्रदाय में अन्तर | धर्म लड़ना नहीं सिखाता

    इसी अभिप्रायः से प्रणव शब्द का प्रयोग महर्षि पतन्जलि ने किया है। प्रणव शब्द की व्युत्पति आदि भी यही बताती है। प्रकर्सेण नूयते स्तूयते अनेनेति प्रणवः, प्रकर्सेध नीति स्तौति इति वा प्रणवः'' प्र उपसर्गपूर्वक णु स्तुतौ अदादि धातु से प्रणव पद निष्पन्न होता है प्रणवैः- ओंकारैः यजुर्वेद १९/२५। यहाँ प्रणव शब्द का का प्रयोग बहुवचन में किया गया है। अमृतं वैप्रणवः गोपथ ब्राह्मण उतर भाग ३/११। ब्रहम वै प्रणवः कौषीत की ब्रहम वै प्रणवः कौषीत की ब्राहमण ११/४ ! इन अर्थो का तात्पर्य समझने का प्रयत्न कीजिये।

    स्तुति परम जिसमें शब्दों द्वारा नम्रता से स्तुति की जाये जिसकी वह प्रणव है। ओ३म् है। अथवा मन्त्र जिसकी उत्तमता से स्तुति करता है, वह प्रणव है। ओ३म् है इन अर्थो को प्रणव पद ही बता सकता है क्यांकि केवल प्रणव पद में ही णु स्तुतौ धामु का प्रयोग है।

    ओ३म् के वाचक अन्य जितने भी पद हैं, वे इस फलितार्थ को प्रकट नहीं करते। इस वाक्य से यहाँ वाक्य ओ३म् को समझना चाहिये। यही फलितार्थ महर्षि दयानन्द जी ने पन्च महायज्ञ विधि में गायत्री मन्त्र की व्याख्या करते समय ओ३म् पद से लिया है। संस्कार विधि में गायत्री मन्त्र की व्याख्या है। पद दो प्रकार के होते है व्युत्पन्न और अव्युत्पन्न ओ३म् शब्द। मैंने यहां ओ३म के साथ एक साथ एक जगह पद शब्द का तथा दूसरी जगह पद की शब्द का प्रयोग किया है ऐसा क्यों किया है यह व्याकरण जानने वाले विद्वाने ही समझ सकते है। अन्य नहीं। सामान्यतया पद की जगह शब्द का और शब्द की जगह पद का प्रयोग किया जाता है।

    rishi dayanand

    महर्षि दयानन्द ने अ, उ, म, से निष्पन्न ओ३म् शब्द की विस्तृत व्याख्या कि है और परमात्मा के समस्त गुण कार्य स्वभाव वाले सभी पदों से ओ३म् पद में से लिया है। जिसकी विस्तृत व्याख्या आप सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में पढ़ सकती है। यही बात प्रणव पद से भी कही गई है या यों कहिये कि ये सारी बाते कहने एक सामर्थ्य प्रणव पद में है। इसलिए पूर्व वर्णित उस समय ईश्वर का वाचक प्रणवः कहा है।

    यह व्युत्पन्न ओ३म् शब्द का वाचक है, इसी व्युत्पन्न ओ३म् शब्द का वाचक प्रणव शब्द है। इसीलिए सभी शास्त्रों का सार है कि ''ओ३म् इत्येकाक्षरं ब्रह्म'' ब्रहम - ओ३म् इति एक अक्षर वाला है। अ उ म् के संयोग से नहीं बना है। सयुक्त ओ३म् पद तो केवल एकाक्षर ओ३म् को समझने के लिए है।

    ओ३म् के गुणों को कहने वाला वाचक कोई एक पद नहीं है, क्योंकि अनंत गुणों के भंडार ओ३म् का वर्णन किसी एक पद से एक शब्द से किया जा सकता है। जितने भी गुण कथन करने वाले शब्द हैं, वे सब ''प्रणव'' पद में आ जाते है। अतः उस ईश्वर का ओ३म् का वाचक प्रणव पद है।

    यजुर्वेद के मन्त्र ४०/१५ में महर्षि दयानन्द ने लिखा है कि ''ओ३म् इति सनन्नाम वाच्य ईश्वरम् वाच्य तो केवल अव्युत्पन्न ओ३म् शब्द है अन्य जितने भी नासम परमात्मा के है व र्स्ववाचक है। स्वयम् ओ३म् से निष्पन्न व्युत्पन्न ओ३म् पद की वाचक है अव्युत्पन्न एकाक्षर ओ३म् वाच्य है।-प्रो. रमेशचन्द्र शास्त्री

    Contact for more info. -

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmpcg.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.allindiaaryasamaj.com 

     

    Maharishi Dayanand ji has taken the OM while explaining Gayatri Mantra in Panch Mahayagya method. Gayatri Mantra is explained in Sanskrit method. The terms are of two types, derivative and non-derivative. Here, along with OM, I have used the word 'Pad' in one place and the word 'Pad' in another place, only the scholars who know this grammar can understand it. No other. Generally, the word is used instead of the word and the word is used instead of the word. 

    Tasya Vachhak: Secret of Pranavah | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Pandit Indore | Arya Samaj Indore for Gobindpur - Alot - Nai Bazar - Bhagora - South Tukoganj Indore Madhya Pradesh | Official Website of Arya Samaj Indore | Indore Arya Samaj | Inter Caste Marriage Helpline Indore |  Inter Caste Marriage Promotion for Prevent of Untouchability | Arya Samaj All India | तस्य वाचकः प्रणवः का रहस्य | Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage Rules Indore | Arya Samaj Wedding Ceremony Indore | Documents Required for Arya Samaj Marriage Annapurna Indore | Arya Samaj Legal Marriage Service Bank Colony Indore | Arya Samaj Pandits Helpline Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore.. 

    Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Query for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Plan for marriage in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Sanskar Kendra Indore | pre-marriage consultancy | Legal way of Arya Samaj Marriage in Indore | Legal Marriage services in Arya Samaj Mandir Indore | Traditional Vedic Rituals in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Mandir Wedding | Marriage in Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Pandits in Indore | Traditional Activities in Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Traditions | Arya Samaj Marriage act 1937.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • दीवाली का देवता और वेद

    दीपमाला का पर्व प्रतिवर्ष आता है। भारतवासी देश में हैं अथवा विदेशों में, अपनी-अपनी भावना व धारणा के अनुरूप इसे अपने-अपने स्थानों पर मनाते हैं। पर्व व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र के विशाल शरीर व जीवन में समय-समय पर आने वाली न्यूनता अथवा त्रुटियों को पूर्ण करने का एक मौन सन्देश दे जाता है। इस दिन प्रत्येक अपने बही खाता की जांच पड़ताल करता है कि क्या पाया और गंवाया। जहॉं भी किसी प्रकार की हानि हो उसे नये वर्ष से लाभ में बदलने का संकल्प किया जा सकता है। पर्व जीवन में प्रेरणा व चेतना का सबसे बड़ा साधन है। इस की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। आर्यसमाज भी दीवाली का पर्व यत्र-तत्र-सर्वत्र समारोह से मनाता है।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    मनुष्य सबसे श्रेष्ठ है, मानव निर्माण के वैदिक सूत्र
    Ved Katha Pravachan -7 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    इस पर्व का सम्बन्ध आर्य समाज के महान्‌ संस्थापक महर्षि स्वामी दयानन्द जी सरस्वती के साथ है। इस दिन अजमेर नगर में भिनाय भवन में उस देवता ने अपने भौतिक जीवन की आहुति देकर विश्व को एक महान्‌ सन्देश दिया था। वेद में आता है- मा यज्ञादिन्द्र सोमिन:। हे मनुष्यो! उस वेद प्रचार व धर्म प्रसार के महान्‌ यज्ञ से विचलित मत होना। उस वेद प्रचार के पुनीत पथ पर निरन्तर बढते जाना तथा इस वेद प्रसार के महान्‌ यज्ञ में तन-मन-धन व जीवन की हर प्रकार की आहुति श्रद्धा भावना से भरकर देते चले जाना।

    उस देवता दयानन्द ने अपना सारा जीवन लगा दिया। गुरु दीक्षा के बाद वह एक ही व्रत के व्रती बन गये। संकल्प के संकल्पी बने। एक ही कल्प के कल्पकार तथा एक ही पथ के पथिक बनकर महान्‌ कार्य क्षेत्र में उतरे। अपने अन्तिम दिन भी सभी को यही दिव्य सन्देश दिया कि आर्यो ! मेरे पीछे खड़े हो जाओ। कभी-कभी ऋषि सरल सूत्र में सारा सन्देश दे जाते हैं। देव दयानन्द ने अपना जीवन जिस महान्‌ मिशन में अर्पित कियावह था वेद का विश्व में प्रचार और वैदिक धर्म का सर्वत्र प्रसार। मथुरा गुरुधाम से बाहर कार्यक्षेत्र में आकर वेद प्रचार का कार्य ही उनके जीवन का व्रत बन गया। इतो वेदा: ततो वेदा: सर्वत्र वेदा: एव। इस दिशा में वेद फैलेउस दिशा में वेद फैल जायेंसभी स्थानों पर वेदों का प्रचार होता जाये- यही उनके जीवन का एकमात्र ध्येय बन गया। यही निष्ठा थीइसी को व्रत का रूप दे दिया। प्रलोभन की चमकीली राहों में तथा लुभाने सुहाने दृश्यों मेंभीषण यातनाओंघोर विपदाओंभारी अपमान के वातावरण में भी उस वेद प्रचारकधर्म प्रसारकविश्व सुधारकव्रतधारकसर्वजीवोपकारकदीन दलितोद्वारक देव दयानन्द का पांव तनिक भी नहीं लड़खड़ाया। न्यायात्पथ: प्रविचलन्ति पदं न धीरा: - के अनुसार न्यायपथ के उस महान पथिक को किसी प्रकार भी विचलित न किया जा सका। ध्रुवस्तिष्ठाविचाचलि: - वेद के शब्दों के अनुसार वह देवता वेद प्रसार के कार्य में अविचल व अविकल अटल रहे।

    इस धरती पर समय-समय पर नानाविध व्यक्ति आयेकार्य क्षेत्र में भी उतरे तथा हलचल भी मचाई। किन्तु कुछ समय के बाद पथ से डांवाडोल हो गये। कोई सत्ता के सूत्रों में सम्बद्ध हो गया तो कोई सौन्दर्य का स्तोता बनकर सुन्दरियों का सेवक बन बैठा। कोई गुरुडम का डमरू बजाने लगा। कोई स्वर्ण के भण्डार का भण्डारी बनने में ही मस्त हो गया। कोई भय से ही भाग गया। पर धन्य हैं देव दयानन्द जीवन में जो व्रत लिया उसी पर अटल रहे। उनके सामने काम बेकाम बनकर भागा। सुन्दरियॉं दरियों में जा छिपी। धन का प्रभाव स्वयं प्रभावहीन हो गया। सत्ता अपनी महत्ता समाप्त कर बैठी। दीवाली का देवता दयानन्द अपने वेद प्रचार के महान्‌ पुनीत व्रत में निरन्तर अडिग रहा।

    उनका व्रत था वेद का प्रचार। आर्य समाज की स्थापना भी इस महान्‌ कार्य के लिए की गई। पहिले वेद का कोई नाम भी न जानता था। वेद की पवित्र पुस्तक कहीं होगी तो किसी के घर में पता नहीं कहॉं छिपाई थी। वेद मन्त्रों का पाठ व उच्चारण कौन करता थाइस बारे में तो एक धारणा बन गई थी कि वेद को वृत्रासुर ले गया है। अब वेद धरती पर हैं नहीं। अमेरिका में अपने प्रवचनों में स्वामी विवेकानन्द तक ने भी वहॉं की जनता को उत्तर दिया कि वेद तो अब हैं नहींशंकर ने अपने वेदान्त भाष्य में वेदों के सार्वजनिक पठन-पाठनश्रवण-श्रावण पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।

    दूसरी ओर वेदों को बदनाम करने में भी उस समय के विद्वानों ने कोई भी कसर नहीं उठा रखी थी। यज्ञों में क्या थावेदमन्त्रों को किस-किस प्रसंग में लगा रहे थे। सायण हो या महीधरइन लोगों ने मन्त्रों के भाष्य में वह पाप किया जो रहती दुनिया उनको कलंकित करता रहेगा। ऐसा पापमय भाष्य करते उनको तनिक भी लज्जा नहीं आई। सातों समुद्रों का जल भी उनके इस कलंक को धो नहीं सकेगा।

    स्वामी दयानन्द वेदों वाले थे। वेद उनको बहुत प्यारे थे। यह इनकी निष्ठा थी कि वेदों का सर्वत्र प्रचार हो। बाकी सभी बातें गौण थी, पर वेद प्रमुख था। दीवाली पर अन्तिम समय में भी यही सन्देश दिया कि मेरे पीछे खड़े हो जाओ। जो वेद प्रचार का कार्य मैं करता रहा हूँ, उसी को करते जाना। वेद पथ पर चलते रहना। अत: स्वामी दयानन्द जी का सबसे बड़ा यही प्रमुख सन्देश है कि वेदों को घर-घर जन-जन तक पहुँचा दो। वेद के बिना कोई परिवार, कोई संस्था, कोई प्रदेश, मनुष्य न रहे। यह उस देवता दयानन्द का सबसे प्रमुख दिव्य सन्देश है। - त्रिलोक चन्द्र शास्त्री

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajonline.co.in 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

     


    This festival is related to Maharishi Swami Dayanand Ji Saraswati, the great founder of Arya Samaj. On this day, in the Bhinay Bhawan in Ajmer city, that deity gave a great message to the world by sacrificing his physical life. Veda comes in- Ma Yajnadindra Somin:. Hey man Do not get distracted by the great yagya of propagating Vedas and spreading religion.

    God of Diwali and Vedas |  Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Mumbai Suburban - Jaipur - Jaisalmer - Dindori - Guna - Mumbai City | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore MP | Arya Samaj Mandir in Indore |  Arya Samaj Marriage | Arya Samaj in Madhya Pradesh - Chhattisgarh | Arya Samaj | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Hindu Matrimony | Matrimonial Service | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi.

    Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | दीवाली का देवता और वेद |  | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | When the conduct of religion or the relationship with the soul was severed, another great evil was born. On the basis of birth, people became the contractors of religion. Just by being born in a Brahmin's house, even a person like black letter buffalo started to worship Guruvat in the society and a scholar and a pious person born in the house of Shudra also became disrespectful of disrespect and abuse | Documents required for arya samaj marriage in indore | Divya Matrimony in Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of  | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • बोलना सिखाया जिन्होंने अब उनसे ही बोलते नहीं

    घर-परिवार

    शीर्षक में इंगित समस्या आज की ही नहीं, पुरातन काल से चली आ रही है, भले पहले अतिन्यून हो, अब अत्यधिक है। महर्षि दयानन्द सरस्वती से पूर्ण प्रभावित होकर छलेसर के रईस ठाकुर मुकुन्दसिंह ने उनको आग्रहपूर्वक अपने गॉंव में आमन्त्रित किया। हाथी-घोड़ा-पालकी-सैनिक व विशाल जन-समूह के साथ उनका स्वागत किया। उनके प्रवास के लिये नवीन भवन बनवाया। विशेष यज्ञ रचाया। पण्डित व प्रजाजन की वहॉं भीड़ लगी रही। इतने कोलाहल में भी ठाकुर मुकुन्दसिंह के पुत्र कुँअर चन्दनसिंह का मौन महर्षि को बहुत अखर रहा था। कारण कुछ भी हो, पिता-पुत्र की बोलचाल बन्द थी। ग्राम में कुम्भ जैसा मेला और उसका शोर, फिर भी पिता-पुत्र में मनोमालिन्य बना रहे, महर्षि इस पीड़ा को सहन नहीं कर सके। इन दोनों के सम्मुख वे बोले और ऐसा बोले कि पिता ने निज पुत्र के लिए अपनी बाहें फैला दी तथा उसे अपनी गोदी में बैठा लिया और मन का मैल सदा-सदा के लिये धुल गया।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    तेतीस कोटि देवताओं का स्वरूप-1

    Ved Katha Pravachan _65 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev 


    परमपिता परमात्मा अपने प्रतिनिधि पुत्र सन्तरूप में भेजकर समाज में श्रेष्ठ वार्तालाप का वातावरण बनाते रहते हैं। जब यही तथाकथित सन्त स्वार्थी हो जाते हैंतो समाज में संवाद समाप्त होकर विवाद-परिवाद की वायु बहकर सन्ताप उत्पन्न कर देती है।

    विवाह संस्कार के कारण श्रीमती सहित एक उस नगर में जाने का अवसर मिलाजहॉं हम कभी 49 वर्ष पहले गये थे। श्रीमती जी अपनी दूर की दादी से मिलना चाहती थी और मुझे अपने समवयस्क मित्र से मिलने का आकर्षण था। मित्र मिले। वे उतने ही प्रतिष्ठित व लोकप्रिय मिलेजितने राजासाहब सम्बोधन से जाने जाने वाले उनके पिता थे। जितनी अधिक उनकी भूमि-भवन-धन की सम्पदा थीउतनी ही उनकी सुकीर्ति मान्यता भी थी। उन्होंने सर्वत्र मुझको भ्रमण कराया और ले जाकर खड़ा कर दिया अपने एक पुत्र के प्रभूत प्रतिष्ठान पर और लगे उससे मेरा परिचय कराने। वह अच्छा खासा समझदार पुत्र न उनसे बोला और न मुझसे नमस्ते तक की। मित्र तो खड़े के खड़े ही रह गये। किन्तु मुझसे वहॉं नहीं रुका गया और मैं उनका हाथ पकड़कर आगे बढ़ा लाया। मार्ग में उन्होंने बताया कि इस पुत्र को मुझसे यह आपत्ति है कि पिता की इतनी उच्च मान-प्रतिष्ठा होेते हुए भी मेरे लिए कुछ नहीं किया।

    यह तो रही मेरी भेंट मित्र सेअब श्रीमती जी की दूर की दादी की कहानी सुनिये। मिलने पहुँची तो उनको घर से बाहर एक टूटी-टाटी खाट पर पड़ा पाया। देखकर उठी। इनको अपने हृदय से चिपटा लिया। दादी के स्वावलम्बी पुत्र का बाल-बच्चों वाला परिवार! किन्तु दादी से कोई बोलता नहीं।

    यह जो हमने दूर के नगर में जाकर देखावह हमारे नगर में आस-पास भी घटता दिखाई देता रहता है। हम दो ऐसे बच्चों को जानते हैं। एक दूसरे ही वर्ष में चलने और बोलने लगा तथा दूसरे बच्चे ने इन दोनों कार्यों में कई-कई वर्ष लगा दिए। जब यह चलता-बोलता नहीं थातो माता-पिता-परिजन सब व्याकुल रहते थे। उपचार-उपाय खोजते व चिन्तित रहते दिन कटते थे। जिन माता-पिता-अभिभावकों ने उन्हें बोलने में समर्थ बना दियाबड़े होकर वही बच्चे अन्य सबसे तो बोलते हैं पर अपनों से ही नहीं बोलते हैंतो उनका हृदय टूट जाता है। इसका दूरगामी दुष्प्रभाव ऐसी सन्तानों पर पड़ने से कोई रोक नहीं सकता है। माता-पिता ही क्या उस परमेश प्रभु के साथ भी ऐसे लोगों का यही व्यवहार होता हैजो माता-पिता दोनों के रूप में जन्म देकर पालन-पोषण करता है। प्रभुदेव सविता अग्नि के समक्ष शान्त शीतल जलाञ्जलि पूर्वक व्यक्ति मांग करता है- वाचस्पतिर्वाचं ना स्वदतु (यजुर्वेद 30.1) अर्थात्‌ हे वाणी के स्वामी परमेश्वर! आप हमारी वाणी को मधुर बना दीजिये।

    जीभ तो मानव-पशु सबके पास है। पशुओं की जीभ तो सदा समान रहती है, किन्तु मनुष्यों की जीभ अपने स्वाद बदलती रहती है। कभी कड़वी कभी मीठी। कड़वी हुई तो मानो कटार हो गयी। दिल के आर-पार हो गई। अतः इसका कोमल व मधुर रहना ही ठीक है। प्रभु से यही मांग है। इसी क्रम में अभिभावकों की उत्कट कामना द्रष्टव्य है-
    ओ3म्‌ उप नः सूनवो गिरः श़ृण्वन्त्वमृतस्य ये।
    सुमृडीका भवन्तु नः।। सामवेद 1595।।

    अर्थात्‌ हमारे पुत्रगण अविनश्वर परमेश्वर की वाणी सुनें और हम लोगों को सुखी करें। परमेश प्रभु की वाणी वेद का कितना मधुर सन्देश है-

    3म्‌ उत ब्रुवन्तु जन्तव उदग्निर्वृत्रहाजनि।
    धनज्जयो रणे रणे।। सामवेद 1382।।

     

    मन्त्र-भावार्थ देखिये-

    क्षण क्षण सम्मुख रण आते हैं।
    धन-जय प्रभु ही दिलवाते हैं।।

    प्रभु हमको शक्ति विमल देते,
    हम जिससे शत्रु मसल देते।

    प्रभु ने जीवन धाम दिया है,
    प्रभु ही इसको चमकाते हैं।।

    जीवन्त प्राणधारी आओ,
    प्रभु से सम्मति ले आओ।

    बैठो प्रभु से करो वार्ता,
    सन्मार्ग वही दिखलाते हैं।।

    जिसने निज को उत्कृष्ट किया,
    हर कष्ट सहन कर पुष्ट किया।

    वे नर जीवन संग्रामों में,
    प्रभु की सहाय पा जाते हैं।।

    क्षण क्षण सम्मुख रण आते हैं।
    धन-जय प्रभु ही दिलवाते हैं।।

    "सामश़्रद्धाके देवातिथि द्वारा रचित सामगीत में यही सन्देश निहित है कि जिस प्रभु से हम हर संग्राम में विजय व वैभव प्राप्त करने की कामना करते हैं और वह हमें सुलभ भी हो जाता है। इस ऋद्धि-सिद्धि-उपलब्धि के बाद अधिकांश व्यक्ति इसी में रम जाते हैं। इसकी ही बात करते रहते हैं। प्रभु से बात करने का उनके पास समय ही नहीं बचता है। मन्त्र का मृदुल आदेश है कि इसे मांगने व मिल जाने के बाद भी प्रभु से बात करते रहो। स्तुति करके धन्यवाद देते व आशीर्वाद लेते रहो।

    परमेश प्रभु की ही भॉंति हमारे पितरजन भी हमें सब कुछ देते हैं। तन देते हैंसुसंस्कृत मन देते हैंयथासम्भव धन देते हैंविद्या और गुण देते हैं। फिर भी हम सर्वसमृद्ध होकर जरा सी बात पर उनसे बोलना ही बन्द कर देते हैं। वे तो वयोवृद्ध हैं। अपने समस्त उत्तराधिकार देकर हमें समृद्ध करके चिर-विदा लेकर चले ही जाने वाले हैं। फिर हम उनसे बात न करें तो इसे हमारा अधर्माचरण ही कहा जायेगा। यहॉं पर हिन्दी के प्रसिद्ध रसिक कवि बिहारी जी का एक दोहा उद्‌धृत किया जा रहा हैजो इस प्रकार से दो अर्थ प्रस्तुत करता है कि एक ओर तो वे अपने आराध्य श्रीकृष्ण का तथा दूसरी ओर अपने वंश व पिता का स्मरण भी कर लेते हैं। लीजिए पढ़िये-

    प्रगट भए द्विजराज-कुलसुबस बसे ब्रज आइ।
    मेरे हरो कलेस सबकेसव केसवराइ।।

    दोहे में प्रयुक्त "द्विजराजशब्द द्वि-अर्थक है। एक चन्द्रमा व दूसरा ब्राह्मण। दोहे का एक अर्थ बनता है कि केशव कृष्ण चन्द्रकुल में जन्म लेकर ब्रज भूमि में बस रहे हैंवे मेरे सभी कष्टों को दूर करें। दूसरे अर्थ में वे अपने पिताश्री का आराध्यतुल्य स्मरण करते हुए कहते हैं कि मैं भी ब्राह्मण कुल भूषण ब्रजवासी हूँमेरे जन्मदाता केशवराय मेरे कष्टों को दूर करें।

    कभी-कभी ऐसा कुयोग भी आ जाता हैजब सन्तान से पितर वृद्धजन अपनी ओर से बोलना बन्द कर देते हैंवह भी जरा से भ्रम के कारण। एक माता के तीन-चार पुत्री एवं एक पुत्र था। किशोरावस्था में पुत्र नहीं रहा। उनका बड़ा दामाद उनका मातृवत सम्मान करने वाला है। एक बार अपना भोजन साथ लेकर वह दामाद के घर गयी। सदैव की भॉंति दामाद ने स्वागत-अभिवादन किया और उनसे भोजन करने के लिये जोरदार आग्रह करने लगा। माता मना करती रही। दामाद के मुख से निकले शब्द- "आपके कोई है नहींइसलिए मैं आपसे खाने के लिए कह रहा हूँकोई होता तो भला मैं क्यों कहता''- उस माता के हृदय में ऐसे चुभ गये कि कई महीनों से उस माता ने अपने दामाद से बोलचाल बन्द रक्खी। दामाद को स्थिति का आभास हुआ। अनेक प्रकार से उसने माता से बोलना चाहाकिन्तु माता का मुँह बन्द का बन्द ही रहा। माता ने यह स्थिति मुझे बताकर कुछ परामर्श चाहातो मैंने सन्त तुलसीदास के शब्दों को- क्षमा बड़न को चाहियेछोटन को उत्पातदोहरा दिया। तभी माताजी ने कहा कि अब तो वे मुझे अपने बच्चों के साथ तीर्थयात्रा पर ले जाना चाहते हैं। ठीक ही हैसुखद अन्तराल में दुःखद बात विस्मृत होना असम्भव नहीं है। धर्म के दस लक्षणों में "क्षमाविलक्षण है। और सभी एक पक्षीय हैंपर क्षमा द्विपक्षीय है। क्षमा मांगने वाला धर्म का पालन करता है और क्षमा करने वाला सद्धर्म का परिपालन करता है। बड़े लोग किसी भी कारण से बोलना बन्द करने के स्थान पर अपनी सकारात्मक सोच विकसित करके प्रकरण की नकारात्मकता को तिरोहित करके अपने छोटों को सन्मार्ग दिखाने का सत्प्रयास कर सकते हैं।

    उपरोक्त प्रकरण में घोर निराशा को घनघोर आशा में इन्हीं माताजी के शब्दों ने बदल दिया। वे बोली कि कुछ दिनों के लिए बाहर क्या चली गयीपड़ोसी बच्चों ने छत पर कूद-फॉंदकर सीमेण्ट उखाड़ दिया। जरा सी वर्षा में छतें टपकने लगती हैं। प्रयोग में न आने से हस्तचालित नल ने पानी देना बन्द कर दिया और शौचालय का पानी निकलता नहीं। एक अकेले के लिये हजारों रूपये व्यय करके ठीक करायेंफिर चलें जायें बाहर तीर्थयात्रा पर। लौटकर आयें तो वही "ढाक के तीन पात'। मैंने उनसे कहा कि यह सब अव्यवस्थायें इसीलिए हुई हैं कि आप दामाद का आमन्त्रण स्वीकार कर कुछ दिन बाहर तीर्थाटन कर आयें। जब लौटकर आएंगीतो तीन दिन में ही यह सब बिगड़े काम बन जाएंगे और सम्बन्ध स्नेहपूर्ण सामान्य हो जायेंगे। शायद प्रभु भी यही चाहते हैं। माता जी जो सुस्त-मुस्त आयीं थींमस्त-चुस्त मुस्काती चली गयीं।

    3म्‌ महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना।
    धियो विश्वा वि राजति।।ऋग्वेद 1.3.12।।

    इस मन्त्र अनुसार ज्ञान देवी सरस्वती की उपासना से ज्ञान के महासागर का आभास मिलता है। जो माता सरस्वती के ज्ञानध्वज के नीचे आ जाते हैंवे अपनी सब बुद्धियों को विशेषतया दीप्त करके जिस-जिस वस्तु की गहराई में जाना चाहते हैंउस-उस वस्तु के तत्वबोध को प्राप्त कर लेते हैं। गहराई में उतरने वालों को सबकुछ मिल जाता है और किनारे बैठे रहने वाले इधर-उधर ताकते रह जाते हैं। कहा भी है-

    सरस्वती के भण्डार की बड़ी अपूरब बात।
    खर्चे से घटती नहीं बिन खर्चे घटि जात।।

    शून्य से शिखर पर पहुँचने वाले व्यक्तियों की सन्तानें उनकी प्रतिष्ठा को तो देखती हैंउनकी त्याग-तपस्या-श्रम व पुरुषार्थ को नहीं देख पाती हैं। सन्तानों की अभिलाषा रहती है कि वे भी प्रतिष्ठा पायेंपरन्तु अपने बल पर नहीं पूर्वजों की प्रतिष्ठा के बल पर। उदाहरणस्वरूप एक कथानक प्रस्तुत है। पर्वतीय क्षेत्र से एक किशोर प्रयाग आया। श्रम-साधना एवं सद्‌भावना से प्रयाग विश्वविद्यालय में उच्च से उच्चतर शिक्षा प्राप्त की। अनी मेधा के श्रेयस्वरूप उसी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष बना और सेवानिवृत्त हो गया। इस लम्बे अन्तराल में उसके शिष्यों की श़ृंखलायें बढ़ती गयींऔर परिवार की पीढ़ियॉं भी बढ़ती गयीं। महानगर में शिक्षा-सांस्कृतिक व सामाजिक क्षेत्रों में वयोवृद्ध प्राध्यापक की अकूत मान्यता होने लगी। इस मध्य हुआ यह कि उनके पौत्र की उपस्थिति कम होने के कारण परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया। पौत्र व घर वालों ने जोर लगाकर देख लियापर उसको परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं मिली। थककर घर वालों ने प्रतिष्ठित पितामह से अनुशंसा करने को कहा। उन्होंने सुनी-अनसुनी कर दी। घर वालों ने उनसे बोलना बन्द कर दिया। अन्ततः प्राध्यापक पितामह पौत्र को लेकर विश्वविद्यालय के तत्सम्बन्धी विभाग में जा पहुँचे। तेजस्वी विभागाध्यक्ष अपने उच्चासन से उठे और वयोवृद्ध प्राध्यापक के चरणस्पर्श करके अपने आसन पर बैठाया। स्वागत करते हुए वे बोल पड़ेप्रोफेसर सर! आज मैं जो कुछ हूँआपके कारण हूँ। उस समय उपस्थिति कम होने पर आप मुझे परीक्षा में बैठने से रोकते नहींतो मैं विशद तैयारी नहीं करताशीर्ष स्थान न पाता और आज विभागाध्यक्ष न होता। वर्तमान विभागाध्यक्ष ने उनके आने का कारण पूछा। उन्होंने कोई अनुशंसा नहीं की। इधर से निकल रहा थासोचा मिलता चलूँ। अच्छा! अब चलता हूँ। पौत्र ने घर आकर सारी बात बतायी। घर वालों को समझाकर सन्तुष्ट कर दिया। आगे की तैयारी के लिये स्वयं को पुष्ट कर लिया। वयोवृद्ध प्राध्यापक से सबके प्रणाम चल निकले और पौत्र का सुनिश्चय उत्कृष्ट हो गया। उसका भी भविष्य समुज्ज्वल हो गया। देवनारायण भारद्वाज

    Contact for more info.- 

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.allindiaaryasamaj.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindorehelpline.com 

     

    According to this mantra, worship of the knowledge goddess Saraswati gives an impression of the ocean of knowledge. Those who fall under the enlightenment of Mother Saraswati, by lighting all their intellects, they attain the essence of the object of which they want to go in depth. Those who get into the depth get everything and those who sit on the sidelines are kept looking around.

     

    Who taught to speak, they speak not them now | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Jhunjhunu - Jodhpur - Hoshangabad - Indore - Nandurbar - Nashik | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Indore MP Address | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore | Arya Samaj in India | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Mandir | Arya Samaj | Arya Samaj Marriage Service | Arya Samaj in Indore Madhya Pradesh | Explanation of Vedas | Intercast Marriage | Hindu Matrimony in Indore , India | Intercast Matrimony | Marriage Bureau in Indore | Ved Mantra | Ved Saurabh.

     Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya  |  बोलना सिखाया जिन्होंने अब उनसे ही बोलते नहीं | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ | धर्म | दर्शन | संस्कृति | ज्ञान का अथाह भण्डार वेद

  • भारत-भाग्य विधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती - 1.2

    कुछ लोगों का कहना है कि हम मूर्त्तियों को ईश्वर नहीं मानते, हम उन्हें केवल मानसिक विकास का साधन मानते हैं। इस पर राजा राममोहन राय का कहना था-

    “Hindus of the present age have not the least idea that it is the attributes of the Supreme Being as figuratively represented by Shapes corresponding to the nature of those attributes, they offer adoration and worship under the denomination of gods and godesses.

  • भारत-भाग्य विधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती -1.4

    सन्‌ 1857 के संग्राम के बाद ब्रिटिश सरकार ने कूटनीति का सहारा लिया और महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणापत्र (Proclamation) जारी किया । उसकी भाषा बडी लुभावनी थी। उसमें कहा गया था-

    “When by the blessings of Providene, internal tranquility shall be restored, it is our earnest desire to stimulate the peaceful industry in India, to promote works of public utility and improvement and to administer its Government for the benifit of all our subjects residents therein.

  • भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-11

    लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

    वेदोद्धारक दयानन्द-वेदों के सम्बन्ध में भ्रान्तियॉं महाभारत-काल से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व उत्पन्न होने लगीं थीं। किन्तु तत्कालीन ऋषियों की जागरूकता के कारण अभी उनका विस्तार नहीं हुआ था। तत्पश्चात्‌ भी कुछ समय तक भगवान्‌ वेदव्यास और उनकी शिष्य-परम्परा वैदिक ज्ञान को कुछ काल तक अपने स्वरूप में सुरक्षित रखने में प्रयत्नशील रही। जैमिनि वेदव्यास के साक्षात्‌ शिष्य थे। शायद इसी कारण स्वामी दयानन्द ने अपने ग्रन्थों में अनेकत्र "ब्रह्मा से जैमिनि पर्यन्त" शब्दों का प्रयोग किया है। वैदिक वाड्‌मय के कतिपय महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ जो सम्प्रति उपलब्ध हैं, उसी काल के हैं। यह स्थिति जैसे-तैसे महाभारत-काल के सौ-दौ सौ वर्षों तक बनी रही। तत्पश्चात्‌ वैदिक युग तेजी से समाप्ति की ओर बढने लगा। परिणामत: मानवजाति शतश: मत-मतान्तरों में विभक्त होने लगी। सायणाचार्य से पूर्ववर्ती आचार्यो के वेदार्थ को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यास्क आदि आप्त ऋषियों के वेदार्थ की परम्परा न्यूनाधिक रूप में उन आचार्यों तक बनी रही। मध्यकाल तक आते-आते वेदों का प्रयोजन द्रव्यमय यज्ञों के अनुष्ठान तक सीमित हो गया और इस प्रकार आर्ष परम्परा धीरे-धीरे ह्रासोन्मुख होकर लुप्तप्राय-सी हो गई।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    मानवता ही मनुष्य का धर्म
    Ved Katha Pravachan -19 (Explanation of Vedas & Dharma) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    शताब्दियों तक वैदिक साहित्य याज्ञिक कीली के ईर्द-गिर्द घूमता रहा। सायण के काल तक ऐसी स्थिति हो गई कि आध्यात्मिक तत्त्वों का स्पष्ट निर्देश करनेवाले मन्त्रों को भी पकड़-पकड़कर बलात्‌ यज्ञप्रक्रिया में घसीटा जाने लगा। यहॉं तक कि शतपथ आदि वेद के व्याख्यान-ग्रन्थों तक में प्रक्षेप कर उन्हें दूषित करने की चेष्टा की जाने लगी। मांसभक्षण, मदिरापान, पशुबलि, गुप्तेन्द्रियपूजन आदि आसुरी दुष्प्रवृत्तियों का "ब्राह्मण" आदि ग्रन्थों में प्रक्षेप कर दिया गया और उन्हें भी "वेद" संज्ञा देकर अपनी मान्यताओं की वेद के नाम पर पुष्टि कर दी गई।

    राजा कालस्य कारणम्‌- "शासन-व्यवस्था का प्रभाव छोटे-बड़े सभी पर पड़ता है।" सायण विजयनगरम्‌ राज्य के प्रधानमन्त्री थे। वह यज्ञप्रधान युग था और यज्ञों में पशुबलि अनिवार्य मानी जाती थी। उसी के आधार पर उसने वेदों का भाष्य किया। जब सायणाचार्य के मन में यह धारणा काम कर गई कि वेदा यज्ञार्थं प्रवृत्ता:, अर्थात्‌ वेदमन्त्र याज्ञिक प्रक्रिया का ही प्रतिपादन करते हैं तो यह स्वाभाविक था कि वह अपना समस्त बौद्धिक वैभव याज्ञिक प्रक्रिया में समर्पित कर बैठते। वेदार्थ की त्रिविध प्रक्रिया में याज्ञिक प्रक्रिया भी एक है। तद्‌नुसार भी मन्त्रार्थ किया जा सकता है, पर सायणाचार्य ने पूर्ववर्ती आचार्यों की परम्परा का सर्वथा परित्याग करके वेदमन्त्रों का केवल याज्ञिक प्रक्रिया-परक अर्थ ही किया। अथर्ववेद के नवम काण्ड का चतुर्थ सूक्त बड़े-बड़े चौबीस मन्त्रों का है। इसमें गोवंश की उन्नति और उसके कृषि में उपयोग से सम्बन्धित अनेक बातों का विशेषत: उत्तम कोटि के बछडे उत्पन्न करने का उल्लेख हुआ है, परन्तु सायण आदि ने वेद के इस सूक्त को बैल को मारकर उसके मांस से यज्ञ करने में लगाया है। सूक्त के चतुर्थ मन्त्र में बैल को पिता वत्सानां पतिरघ्न्यानाम्‌, उत्तम बछड़े-बछड़ियों का पिता और गौओं का पति बतलाते हुए, त्वष्टा रूपाणां जनिता पशूनाम्‌, सुन्दर-सुडौल सन्तान पैदा करनेवाला और आज्यं बिभर्ति घृतमस्य रेत:, घी-दूध के घड़े भरनेवाला कहा है। जब किसी के घर में उत्तम कोटि का बछड़ा उत्पन्न हो जाए तो उसे ग्राम या नगर की उत्तम गौओं से उत्तम सन्तान उत्पन्न करने के लिए सॉंड के रूप में राष्ट्र के निमित्त दान कर देना चाहिए। मन्त्र-गत "जुहोति" क्रिया की "हु" धातु का अर्थ दान भी होता है। प्रकरणश एव तु निर्वक्तव्या:, यास्क के इस निर्देश के अनुसार, "प्रकरण के अनुकूल ही निर्वचन होने चाहिएँ।" कृषि के प्रसङ्ग में "हु" धातु का "दान" अर्थ ही संगत होगा। काटकर होम किये हुए बैल से न खेती होगी और न उसके द्वारा घी-दूध प्राप्त होगा, पर कर्मकाण्ड की भंवर में फॅंसे होने के कारण वेदार्थ-विषयक मूलभूत सिद्धान्तों की अवहेलना करके पूर्वापर प्रसङ्ग पर विचार किये बिना, यहॉं तक कि गौ के "अघ्न्या" नाम की चिन्ता किये बिना सायण ने होमपरक अर्थ करके बैल के विभिन्न अंगों को काट-काटकर आग में झोंकने का विधान कर डाला।

    सन्तप्त हृदयों की आन्तरिक ज्वाला को शान्त कर आत्म समर्पण द्वारा प्रभु प्रेम में असीम आस्था का अनूठा दृश्य उपस्थित करनेवाला ऋग्वेद का एक अत्यन्त हृदयग्राही मन्त्र है, यदङ्ग दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि। तवेत्तत्‌ सत्यमङ्गिर:। (1.1.6) हे प्रियतम देव ! शरणागत का कल्याण करना तुम्हारा नियम है। मन्त्र के इस भावनापूर्ण अर्थ का दर्शन न करके सायण यजमान के लिए "वित्त-गृह-प्रजा-पशुरूपं कल्याणम्‌" की प्रार्थना करते हैं और वह भी परमेश्वर से नहीं जड़ भौतिक अग्नि से। वस्तुत: यज्ञपरक उपर्युक्त मिथ्या धारणा के पूर्वाग्रह ने सायण को वेदमन्त्रों में निहित अर्थ तक पहुँचने ही नहीं दिया।

    इसमें सन्देह नहीं कि सायण ने अपने समय में वैदिक साहित्य में महान्‌ श्रम किया। वेदों, ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों और उपनिषदों पर भाष्य लिखे। अन्य अनेक विषयों पर भी बहुत से प्रौढ ग्रन्थ लिखे या लिखवाये। उनके वेदभाष्य में व्याकरण आदि का प्रयोग पर्याप्त मात्रा में हुआ है। सायण के इस प्रयास के लिए हम उन्हें साधुवाद दिये बिना नहीं रह सकते, परन्तु मूल धारणा के भ्रान्त होने के कारण उन्होंने स्वयं ही अपने किये-कराये पर पानी फेर दिया। महीधर आदि का भाष्य तो पूरी तरह वाममार्ग के रंग में रंगा है। इन भाष्यों को पढने के बाद कौन कणाद के बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिर्वेदे, वैशेषिक दर्शन 6.1.1 या मनु के सर्वज्ञानमयो हि स:, सर्वं वेदात्‌ प्रसिध्यति और प्रमाणं परमं श्रुति:, इत्यादि वचनों पर विश्वास कर सकता है? इन सबने मिलकर वेद के प्रति श्रद्धा के मार्ग में पथरीली चट्‌टानें खड़ी कर दीं। वेदार्थ के विषय में भ्रान्ति पैदा करके संसार को वेद से विमुख करने में सबसे बड़ा हाथ सायण का है। सायण का नाम बार-बार इसलिए आता है कि वेदों और ब्राह्मण ग्रन्थों पर सबसे अधिक भाष्य उन्हं के हैं और उन्हीं के आधार पर आगे लोगों ने अन्यान्य भाषाओं में अनुवाद आदि कार्य किया।

    क्या वेदों में वही कुछ है जो सायण, महीधर आदि ने बताया है? यदि इसका उत्तर "हॉं" में है तो महात्मा बुद्ध के स्वर-में-स्वर मिलाकर हम भी यही कहने को विवश होंगे कि ऐसे वेदों से दूर ही भले, हम ऐसे वेदों को नहीं मानते और यदि वे ईश्वरप्रदत्त हैं तो हम ऐसे ईश्वर को नहीं मानते। इन तथाकथित वेदाचार्यों द्वारा किये गये वेदभाष्यों के आधार पर होनेवाले कुकृत्यों को देखकर चारवाक चिल्ला पड़े, त्रयो वेदस्य कर्त्तारो, धूर्त्तभण्डनिशाचरा:। वेदों के नाम पर प्रसारित अधर्ममूलक दुष्प्रवृत्तियों से जनसाधारण में जो प्रतिक्रिया हुई उसी के फलस्वरुप चारवाक, जैन और बौद्ध मतों का प्रादुर्भाव हुआ। चारवाकों ने ईश्वर और वेदों के परित्याग के साथ-साथ आत्मा की सत्ता को भी नकार दिया। वेदों के नाम पर ब्राह्मणों द्वारा यज्ञों में मूक प्राणियों की हिंसा से दयार्द्र महावीर और बुद्ध ने परम धर्म के नाम पर अहिंसा को प्रतिष्ठित किया। वेद के नाम पर होने वाली हिंसा, पाखण्ड, जन्मना वर्ण-व्यवस्था को या ऊँच-नीच, मृतक श्राद्ध, स्त्रियों और शूद्रों पर होनेवाले अमानुषिक अत्याचार आदि को सहन न कर सकने के कारण चारवाकों, जैनों और बौद्धों ने वेदों पर भीषण प्रहार किये। साधारण जनता वेदानुयायी-ब्राह्मणों के कदाचारों से तंग आ चुकी थी। अत: महावीर और बुद्ध के उपदेशों से प्रभावित होकर वह जैन और बौद्ध मतों में दीक्षित होने लगी। वेदों से घृणा हो जाने के कारण वैदिक धर्म विलुप्त होने लगा।

    arya samaj dayanand saraswati

    ऐसी अवस्था में कुमारिल भट्‌ट और शंकराचार्य ने वेदों को पुन: प्रतिष्ठित करने का बीड़ा उठाया। किंवदन्ती प्रसिद्ध है कि बौद्ध मतानुयायियों द्वारा वेदों पर किये गये भीषण प्रहारों से त्रस्त कोई वेदानुयायी राजकुमारी अपने महल पर खड़ी आँसू बहा रही थी। महल के नीचे से जा रहे कुमारिल भट्‌ट के ऊपर गरम-गरम आँसुओं की बूदें पड़ीं तो उन्होंने सिर उठाकर ऊपर की ओर देखा और राजकुमारी से उसके रोदन का कारण पूछा। राजकुमारी बोली, किं करोमि क्व गच्छामि? को वेदानुद्धरिष्यति? इस करुणक्रन्दन को सुनकर राजकुमारी को ढाढस बॅंधाते हुए कुमारिल ने उच्च स्वर से कहा, मा बिभेषी वरारोहे! भट्टाचार्योस्ति भूतले, हे देवि ! रो मत। वेद के उद्धार के लिए इस धरती पर भट्टाचार्य विद्यमान है। परन्तु कुमारिल यज्ञिय कर्मकाण्ड की प्रतिपादक शाखाओं और ब्राह्मण ग्रन्थों में ही उलझकर रह गये। मूल संहिताओं का उन्होंने स्पर्श तक नहीं किया।

    शंकराचार्य वेद आदि शास्त्रों में निष्णात थे। उनकी तर्कशक्ति बड़ी प्रबल थी। उन्होंने अकेेले ही वेदविरोधी चारवाकों, जैनों और बौद्धों से लोहा लिया। बड़े-बड़े शास्त्रार्थ हुए। वे शंकर के प्रचण्ड तर्कों का सामना न कर सके। धीरे-धीरे इन मतों का वर्चस्व मन्द पड़ गया। शंकराचार्य के काल तक वैदिक शाखाओं, ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों और उपनिषदों की भी "वेद" संज्ञा प्रचलित हो चली थी। अध्यात्मप्रवण शंकर ने "वेदान्त" नाम से अध्यात्मप्रधान उपनिषदों पर अपने अद्वैत मत को स्थापित किया। इस मत का आधारभूत सिद्धान्त है, ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या। "जगमिथ्या" का आधार है शंकराचार्य के दादागुरु गौड़पादाचार्य द्वारा प्रतिपादित वह सिद्धान्त कि आदावन्ते च यन्नास्ति, वर्तमानेऽपि तत्तथा, अर्थात्‌ "यह जगत्‌ उत्पत्ति से पहले नहीं था और प्रलय होने पर नहीं रहेगा, इसलिए इस समय भी नहीं है।" मूल संहिताओं का स्पर्श शंकर ने भी नहीं किया। उनके सम्पूर्ण साहित्य में वेद के कहीं दर्शन नहीं होते। वैदिक संहिताओं की उपेक्षा उन्होंने इसलिए की क्योंकि उनके काल तक वेद केवल अपरा-विद्या के ग्रन्थ माने जाने लगे थो। वेदों का प्रयोजन केवल कर्मकाण्ड तक सीमित था। परा-विद्या अथवा ज्ञानकाण्ड के ग्रन्थों के रुप में उपनिषदों की मान्यता थी। प्रस्थान-त्रयी के जिन वचनों में द्वैतवाद का स्पष्ट प्रतिपादन किया गया है, उनका भी शंकराचार्य ने अद्वैतपरक व्याख्यान किया है।

    सर्वं खल्विदं ब्रह्म (छान्दोग्य) का नारा लगानेवाले शंकर को शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन:, (श्रीमद्‌भगवद्‌गीता) के अनुसार मनुष्यमात्र को ही नहीं प्राणिमात्र को आत्मवत्‌ समझना चाहिए था, परन्तु वेदान्तदर्शन के "अपशूद्राधिकरण" में मात्र वेद को सुनने के तथाकथित अपराधी शूद्र के कानों में गरम-गरम सीसा या लाख उँडलने का निर्देश करके "प्रश्नोत्तरी" में नारी को नरक का द्वार बतलाकर और काशी में सामने से आ रही शूद्रा को परे हटने का आदेश देकर अपने मनस्यन्यद्‌ वचस्यन्यत्‌ कर्मण्यन्यत्‌ का उदाहरण उपस्थित कर "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" के याथार्थ्य का भाण्ड़ा फोड़ दिया। डॉ. राधाकृष्णन्‌ द्वारा वेदान्तदर्शन का अंग्रेजी में किया गया भाष्य शंकराचार्य के भाष्य का अंग्रेजी में अनुवाद मात्र है, सर्वथा उसके अनुकूल है, परन्तु 1.3.38 श्रवणाध्ययनार्थप्रतिरोधात्‌ स्मृतेश्च के अपने भाष्य में वे शंकर से अपना मतभेद प्रकट किये बिना न रह सके। वहीं उन्होंने लिखा हैं-

    ‘But the restricitons imposed with regard to Vedic study cannot be defended. If we take our stand on the potential divinity of all human beings, whatever be their caste or class. race or religion, sex or occupation, the methods for gaining release should be open to all.’  

    अर्थात्‌ "वेदाध्ययन पर लगाये गये प्रतिबन्धों की वकालत असम्भव है। यदि हम अपना पक्ष सब मनुष्यों की निहित दिव्यता पर आधारित करते हैं, भले ही उनकी जाति या श्रेणी नस्ल या धर्म, लिङ्ग या धन्धा कुछ भी हो, तो मोक्षप्राप्ति के उपाय सबके लिए अगोप्य होने चाहिएँ।" परन्तु शंकर ने कलम की एक नोक से मानवसमाज के तीन चौथाई भाग (स्त्री-रूप आधा+शूद्र-रूप अन्य अर्द्ध) को वेदाध्ययन से वञ्चित कर दिया और रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य आदि सभी आचार्यों ने उनका आँख मून्दकर समर्थन कर दिया। यह कैसा वेदोद्धार था और कैसा अद्वैतवाद? वस्तुत: यह सब इन आचार्यों की वेदार्थ सम्बन्धी भ्रान्तियों से उत्पन्न अवैदिक विचारधारा का परिणाम था।

    अहं ब्रह्मास्मि के मिथ्या भूत के कारण शंकर के लिए वेद गौण हो गये और वेदान्त मुख्य। यही कारण है कि उनके ग्रन्थों में ढूँढने पर भी वेदमन्त्र नहीं मिलते। मनु के अनुसार श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेय:, "श्रुति से वेदों (मन्त्रसंहिताओं) का ही ग्रहण होता है", परन्तु शंकर "श्रुति" नाम से ब्राह्मण, उपनिषद्‌, स्मृति आदि को उद्धृत करते हैं। ऐसा लगता है कि शंकर ने केवल वेदविरोधी मतों का खण्डन करने के लिए ही  अद्वैत मत को अपनाया था। इसमें उन्हें सफलता भी मिली। यदि ऐसा न होता तो अपने से भी पहले वेदमत की प्रतिष्ठार्थ प्रयास करनेवाले, किन्तु द्वैतवादी कुमारिल भट्‌ट से शास्त्रार्थ करने प्रयाग न पहुँच जाते।

    इस प्रकार वेदमत के उद्धार के लिए कृतसंकल्प शंकर उपनिषदों से आगे नहीं बढे। ऐसी अवस्था में मनु आदि द्वारा वेद के लिए कहे गये सर्वज्ञानमयो हि स:, सर्वं वेदात्‌ प्रसिध्यति और नि:सृतं सर्व शास्त्रं तु वेदशास्त्रात्‌ सनातनात्‌, इत्यादि कथन जो वेद को सब विद्याओं का आकर ग्रन्थ बताते हैं, निरर्थक हो गये। वस्तुत: कमारिल और शंकर ने अपने वेदोद्धार के कार्य के निमित्त तेभ्य एतं तर्कमृषिं प्रायच्छन्मन्त्रार्थचिन्ताभ्यूहमभ्यूढम्‌, (निरुक्त 13.12) के "मन्त्रार्थ के सत्यमार्गदर्शक, ऋषिभूत तर्क" का आश्रय नहीं लिया। ऐसा न कर पाने के कारण वे वेदों को मनुष्य के लिए अपेक्षित सम्पूर्ण ज्ञान के भण्डार के रूप में प्रस्तुत न कर सके। पॉंच सहस्त्र वर्षों के पश्चात्‌ प्रज्ञाचक्षु गुरु विरजानन्द की प्रेरणा से प्राप्त इस दिव्यास्त्र का प्रयोग करके संसार में व्याप्त अविद्यान्धकार को दूर करने का श्रेय महर्षि दयानन्द को मिला।

    वेदोद्धार का जो महत्तम कार्य महर्षि स्वामी दयानन्द ने किया वह पूर्वकाल के कुमारिल और शंकर के काम से कहीं अधिक क्लिष्ट और दुरूह था। इन दोनों आचार्यों ने जिन चारवाक, जैन और बौद्ध मतों का खण्डन किया वे मूलत: वैदिक और भारतीय थे। स्वामी दयानन्द के काल में पूर्वोक्त अवैदिक मतों के अतिरिक्त कुकुरमुत्तों की भॉंति अनेक मत-मतान्तर उत्पन्न हो गये थे जो अपने को वैदिक मतानुयायी कहते हुए भी वास्तव में अवैदिक थे। स्वयं शंकराचार्य द्वारा प्रवर्तित अद्वैतवाद भी उन्हीं में से एक था। अवतारवाद, बहुदेवतावाद, मूर्तिपूजा, जन्मगत ऊँच-नीच आदि अनेकविध अवैदिक मान्यताअें से ग्रस्त समाज बड़ी तेजी से पतन की ओर बढ रहा था। जिस सच्चिदानन्दस्वरूप ब्रह्म की राम और कृष्ण उपासना करते थे, उसे छोड़कर उसके उपासक स्वयं राम और कृष्ण को उपास्य मानकर उन्हें वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कर उन्हीं की धूप और नैवेद्य आदि से पूजा करने लग गये थे। श्रीमद्भगवद्‌गीता ने कहा था, ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन! तिष्ठति। (17.61) परन्तु भक्तजनों ने उन्हें अपने हृदय-मन्दिरों से निकालकर गली-कूचों में बने ईंट-पत्थरों के मन्दिरों में कैद कर दिया था। "वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" की मनमानी व्याख्या करके ईश्वर के नाम पर निरीह पशुओं और कभी-कभी मानव-शिशुओं की बलि देकर तथाकथित भक्तजन खुशी में पागल होकर नाचते-कूदते थे। गुण-कर्म-स्वभाव पर आश्रित वर्णव्यवस्था का स्थान जन्ममूलक दूषित जातिप्रथा ने ले लिया था। दुधमुँहे बच्चों के विवाह कर दिये जाते थे। परिणामत: लाखों बाल-विधवाएँ अभिशप्त जीवन व्यतीत करने को विवश थीं। पुरोहित-वर्ग पति की मृत्यु पर पत्नी को स्वर्ग-प्राप्ति का प्रलोभन देकर अथवा सामाजिक दण्ड और अत्याचार का भय दिखाकर सती के नाम पर उसे जीवित ही आग में झोंक देता था। ब्राह्मणवर्ग तरह-तरह के पाखण्ड रचकर जनता को लूटता था। रोगों को भूत-प्रेत की लीला बताकर जहॉं एक ओर अपनी जेबें गरम की जाती थी वहॉं दूसरी ओर रोगी को समुचित चिकित्सा से वंचित कर मौत के मुँह में धकेल दिया जाता था। तीर्थस्थान व्यभिचार के अड्डे बने हुए थे। "स्त्रीशूद्रौ नाधीयाताम्‌" का मिथ्या प्रचार करके देश की आधी से अधिक आबादी को शिक्षा से वंचित कर दिया गया था। इस प्रकार भारत अनपढ, गॅंवारों का देश बनकर रह गया था और यह सब वेदों के नाम पर हो रहा था।

    founder of arya samaj

    उक्त भारतीय मत-मतान्तरों और अवैदिक मान्यताओं के पोषक पौराणिक वेदभाष्यों के अतिरिक्त मैक्समूलर आदि पाश्चात्य विद्वान्‌ जान-बूझकर वेदों को विकृ त रूप में प्रस्तुत करने के लिए कटिबद्ध थे। जैसे हम वेदों को कण्ठस्थ करनेवाले दाक्षिणात्य ब्राह्मणों के ऋणी हैं, वैसे ही पाश्चात्य विद्वानों के भी ऋणी हैं। भारतीय ब्राह्मणों ने यदि वेदों को नष्ट होने से बचाया तो पाश्चात्य विद्वानों ने वेदों को भारत में ही सीमित न रहने देकर उन्हें विश्व की सम्पत्ति बनाया। यूरोपीय विद्वानों के प्रयत्न से वेद सारे संसार में चर्चित होने लगे, किन्तु जैसे सायण आदि का दृष्टिकोण यज्ञपरक था और उनके अनुसार हर मन्त्र का लक्ष्य यज्ञ की किसी क्रिया को सामने रखकर मन्त्र का नियोजन करना था, वैसे ही पाश्चात्य विद्वानों का लक्ष्य वेदभाष्य करते समय ईसाई मतावलम्बी विदेशी सरकार के हितों को ध्यान में रखते हुए उन पर विकासवादी दृष्टिकोण से विचार करना था। मैक्समूलर के भाष्य पर सायण और डार्विन दोनों छाए हुए हैं और उसके भीतर मैकाले की आत्मा विद्यमान है मैक्समूलर ने विकासवाद को सामने रखकर सायण आदि के भाष्यों का अंग्रेजी में रूपान्तर किया। वस्तुत: पाश्चात्य भाष्यकारों की विचारधारा का आधारभूत सिद्धान्त विकासवाद का विचार है। उनके लिए विकासवाद का सिद्धान्त पहले था। उसके बाद जो कुछ आया उसे विकासवाद की कसौटी पर घटाकर देखा गया। विकासवाद की कसौटी पर परखकर ही ये लोग किसी बात को सही या गलत होने का निश्चय करते हैं। मैक्समूलर ने बहुदेवतावाद (पॉलीथीज्म) और एकेश्वरवाद (मोनोथीज्म) के मुकाबले में "हीनोथीज्म" नाम से एक नये मत की कल्पना सिर्फ इसलिए की क्योंकि वह विकासवाद के सिद्धान्त के विपरीत, यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि एकेश्वरवाद-जैसा उत्कृष्ट विचार मानव-संस्कृति के प्रारम्भिक काल में किसी मनुष्य के विचार में आ सकता था। जब एकेश्वरवार के विचार की पुष्टि में वेद से "एकं सद्‌ विप्रा बहुधा वदन्ति" वाक्य को उद्‌धृत किया जाता है तो कहते हैं कि यह बहुत बाद का विचार (ऑफ्टर थाट) है। मैक्समूलर के प्रमुख शिष्य मैकडानल ने अपनी पुस्तक "ए वैदिक ग्रामर फॉर स्टूडेण्ट्‌स"  में लिख दिया कि ऋग्वेद के 10 मण्डलों में से 8 मण्डल पहले लिखे गये, तत्पश्चात्‌ नवॉं और अन्त में दसवॉं। उनके कहने का अभिप्राय यह है कि पहले आठ और अगले दो (जिनमें एकेश्वरवाद का प्रतिपादन किया है) मण्डलों के लिखे जाने का समय भिन्न है। जब उन्हें यह बतलाया जाता है कि "एकं सद्‌ विप्रा बहुधा वदन्ति" तो पहले मण्डल में ही आया है, तो वे कहते हैं कि वहॉं यह प्रक्षिप्त है। परन्तु यह वाक्य तो वेद का अभिन्न अंग है जो भिन्न-भिन्न शब्दों में यत्र-तत्र-सर्वत्र ओत-प्रोत है। फिर इसे प्रक्षिप्त या बाद में डाला हुआ कैसे कहा जा सकता है? यह शीर्षासन केवल इसलिए किया जाता है, क्योंकि उनकी विकासवादी विचारधारा में यह फिट नहीं बैठता। इस विषय में योगी अरविन्द ने लिखा है-

    “We are aware how modern scholars twist away from the evidence. This hymn (Rg. 1.164.46), they say, was a later production; this loftier idea, which it expresses with so clear a force, rose up somehow in the mind or was borrowed by those ignorant fire-worshippers from their cultured and philosophic Dravidian enemies. But throughtout the Veda we have a large number of conformatory hymns and expressions..... Why should not the foundation of Vedic thought be natural monotheism, rather than this new fangled monstrocity of henothism? Well, because primitive barbarians could not possibly have so risen, you imperil our theory of evolutionary stages of human developmet. Truth must hide itself, common sense disappear from the field so that your theory may flourish. I ask in this point and it is the fundamental point, who deals most forwardly with the text, Dayanand or the Western Schoolars?

    इस उद्धरण का अभिप्राय यह है कि यदि "एकं सद्‌ विप्रा बहुधा वदन्ति" से विकासवाद खण्डित होता है तो पाश्चात्य विद्वानों को इसके लिए तैयार रहना चाहिए। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अपने अर्थ को स्पष्ट करने के लिए वेद की अन्त: साक्षी प्रमाण होगी या मैक्समूलर, कीथ, ग्रिफिथ आदि जो कहेंगे वह प्रमाण होगा? वेदों का अर्थ यदि वेदों से ही स्पष्ट होता हो तो उस प्रक्रिया का सर्वोच्च स्थान होना चाहिए। परन्तु यदि वेदों का स्वत:-प्रसूत अर्थ विकासवाद को पुष्ट नहीं करता तो पाश्चात्य विद्वान्‌ अर्थों को तोड-मरोडकर अपने अनुकूल बनाने की चेष्टा करते हैं। अरविन्द के अनुसार दयानन्द ऐसा नहीं करते।

    यद्यपि पाश्चात्य विद्वानों ने वेदों पर पर्याप्त कार्य किया तो भी वे उनमें निहित ज्ञान की थाह न पा सके। सच्चाई तक पहुँचने में विकासवाद के अतिरिक्त उनका पूर्वाग्रह और स्वार्थ आड़े आया। यूरोपियन समाज भारत में ब्रिटिश सााम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करने के लिए भारतीयों को ईसाइयत के सॉंचे  में ढालने के उद्‌देश्य से इस देश के साहित्य और इतिहास को विकृत करने में प्राणपण से जुटा हुआ था। इसीलिए उन्होंने वेदों का ऐसा भाष्य किया जिसे पढने के बाद इस देश के लोग अपनी सांस्कृतिक विचारधारा को घृणा की दृष्टि से देखने लगे। इस अभियान का आरम्भ मैकाले के क्रीतदास मैक्समूलर ने किया। स्वयं मैक्समूलर ने अपने पत्नी के नाम लिखे पत्र में इस तथ्य को स्वीकार किया-

    “This edition on mine and the translation of the Veda will, hereafter, tell to a great extent on the fate of India. It is the root of their religion and to show them what the root is. I feel sure, it is the only way of uprooting all that has sprung the last three thousand years.” (Life and Letters of Frederick Max Muller, Vol. I, Ch. XV, P.34)

    अर्थात्‌, मेरा यह भाष्य भारत के भाग्य को दूर तक प्रभावित करेगा। यह वेद उनके धर्म का मूल है और उन्हें यह दिखा देना कि उनका मूल कैसा है, उनकी गत तीन हजार वर्षों की उपलब्धि को समूल नष्ट कर देगा।

    इसका क्या परिणाम हुआ, यह भारत-सचिव के नाम 16 दिसम्बर 1868 को लिखे मैक्समूलर के निम्न पत्र से स्पष्ट हो जाता है-

    “The ancient religion of India is doomed. Now if Christinity does not step in whose fault will it be?” -Ibid, Ch. XVI, P. 378

    अर्थात्‌ "भारत का प्राचीन धर्म नष्टप्राय है। अब यदि ईसाइयत उसका स्थान नहीं लेती तो यह किसका दोष होगा?

    मैक्समूलर के प्रयासों की सराहना करते हुए उसके घनिष्ठ मित्र ई. बी. पुसे ने अपने एक पत्र में लिखा-

    ‘Your work will mark a new era in the efforts for the conversion of India.’
    अर्थात्‌ आपका कार्य भारतीयों को ईसाई बनाने की दिशा में नवयुग लानेवाला होगा।

    भारत को "यावच्चन्द्रदिवाकरौ"दासता की बेड़ियों में जकड़े रखने के लिए बोर्ड ऑफ एजुकेशन के अध्यक्ष लार्ड मैकाले द्वारा निर्धारित शिक्षा-नीति के अनुसार खोले गये स्कूलों और कॉलेजों के लिए जो पाठ्‌यक्रम नियत किया गया वह "मेड इन इंग्लैंड एण्ड फॉर इंगलैंड" था। उसका एकमात्र प्रयोजन पाश्चात्य विचारवाले ऐसे व्यक्ति तैयार करना था जो तन से भले ही काले हों, पर मन से गोरे अर्थात्‌ अंग्रेज बन जाएँ। उस शिक्षा पद्धति के सॉंचे में ढलकर जो भी निकले, डॉ. राधाकृष्णन के शब्दों में "दे वर मोर इंग्लिश दैन द इंग्लिश दैमसैल्व्ज्‌" (इंडियन फिलासफी, वाल्यूम II )। इस शिक्षा-नीति के फलस्वरूप लोकमान्य तिलक जैसे महान्‌ देशभक्त भी वेदों के आधार पर अपने को इस देश में विदेशी मान बैठे, और जब उनसे पूछा गया कि वेदों में यह कहॉं लिखा है तो भेंटकर्त्ता उमेशचन्द्र विद्यारत्न से उन्होंने सहजभाव से कह दिया, "आमि मूल वेद अध्ययन करि नाई, आमि साहिब अनुवाद पाठ करिये छे"। -मानवेर आदि जन्मभूमि पृष्ठ 124 

    ऐसे समय में सन्‌ 1824 में स्वामी दयानन्द का प्रादुर्भाव हुआ। उन्होंने बड़ी सूक्ष्मता से इस देश की समस्याओं पर विचार किया। उन्होंने समझ लिया कि रोगी वृक्ष के पत्तों को सींचने से वृक्ष नहीं पनप सकता। उसकी जड़ों में रोगनाशक दवाइयों का प्रयोग कर अपेक्षित खाद-पानी देने से ही वह फलीभूत होगा। विचार के पश्चात्‌ वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इस देश, जाति और समाज की दुर्दशा का मूलकारण वेदविद्या के प्रचार के अभाव में देश में व्याप्त अविद्यान्धकार है। इसलिए जब तक वेदों का उद्धार करके उनको अपने वास्तविक रूप में प्रस्तुत नहीं किया जाएगा तब तक अविद्यान्धकार दूर नहीं होगा। वेदों को पुन: प्रतिष्ठित करने के लिए दयानन्द को भारतीय अवैदिक मत-मतान्तरों के अनुयायियों, विदेश से आयातित अर्थ व बलपूर्वक आरोपित मतों (इस्लाम और ईसाइयत), पाश्चात्य और तद्‌नुयायी भारतीय विद्वानों द्वारा फैलाई गई विविध भ्रान्त धारणाओं से एक-साथ लड़ना पड़ा । वस्तुत: स्वामी दयानन्द भारतीय पुनर्जागरण (रिनेसेंस) के अग्रदूत थे। फ्रॉंस के महान्‌ लेखक रोम्यॉं रोलॉं ने लिखा है-

    “This man with the nature of a lion is one of those whom Europe is apt to forget when she judges India, but whom she will probably be forced to remember to her cost; for he was that rare combination, a thinker of action with a genius for leadership. He was a hero with the athletic strength of Herculese who thundered against all forms of thought other than his own, the only true one. He was so successful that in five years the whole of Northern India was completely changed. He possessed unrivlled knowledge of Sanskrit and the Vedas. Never since Shankara had such a prophet of Vedism appeared. Dayananda was not a man to come to understanding with religious philosophers imbued with Western ideas.”

    "यह सिंह-सदृश प्रकृतिवाला मनुष्य उनमें से एक था जिसे यूरोप प्राय: उस समय भुला देता है जब वह भारत के सम्बन्ध में अपनी धारणा बनाता है, किन्तु एक-न-एक दिन विवश होकर उसे अपनी भूल मानकर दयानन्द को स्मरण करना होगा, क्योंकि उसमें कर्मयोगी, चिन्तक तथा नेतृत्व के लिए अपेक्षित प्रतिभा का दुर्लभ मिश्रण था। शारीरिक बल में वह हरकूलीस के समान शक्तिशाली था जो सत्य के विपरीत हर प्रकार के विचार के विरुद्ध गर्जता था। अपने प्रयास में वह इतना सफल हुआ कि पॉंच वर्ष के भीतर सारा उत्तर भारत पूरी तरह बदल गया। संस्कृत और वेदों के ज्ञान में उससे बढकर कोई नहीं था। शंकर के बाद दयानन्द के समान वेदों का प्रवक्ता दूसरा नहीं हुआ। पाश्चात्य विचारों से प्रभावित किसी धार्मिक या दार्शनिक विचारधारावालों से उसने कभी समझौता नहीं किया।"

    पर शंकराचार्य ने वैदिक ज्ञान में निष्णात होते हुए भी वेदों के सम्बन्ध में कभी कोई बात नहीं की। प्रस्थानत्रयी में उलझकर वह वेदों को मानो भूल ही गये थे। वस्तुत: शंकर के लिए वेद आस्था की वस्तु थे। व्यवहार में उसके लिए कोई स्थान नहीं था। उसके विपरीत दयानन्द ब्रह्मा से लेकर जैमिनि-पर्यन्त जितने भी ऋषि-मुनि-आचार्य हुए और उनके द्वारा प्रोक्त जो वाङ़्‌मय इस समय उपलब्ध है तथा जो वेदानुकूल भारतीय शिष्टाचारान्तर्गत परम्परा है, उस सबको अपने भीतर समेटे हुए थे और उस सबको उन्होंने लोकार्पण करके यत्र-तत्र-सर्वत्र प्रसारित किया। जहॉं "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" के सिद्धान्त के अनुसार प्राणिमात्र को ब्रह्मरूप में माननेवाले शंकर ने वेदमन्त्रों को सुननेवाले शूद्र के कानों में सीसा भरने, पढनेवाले की जिह्वा काटने और याद करनेवालों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करने का आदेश दिया वहॉं दयानन्द ने "यथेमां वाचं कल्याणीमा वदानि जनेभ्य:" (यजुर्वेद 26.2) इत्यादि मन्त्रों के आधार पर मनुष्य-मात्र को वेद के पढने-पढाने और सुनने-सुनाने का अधिकार प्रदान किया। दयानन्द के मत में जैसे ईश्वर की सृष्टि में जल, वायु आदि सब पदार्थ सबके लिए हैं वैसे ही उसका ज्ञान भी सबके लिए है। वह किसी वर्ग-विशेष की धरोहर नहीं है। इस प्रसंग में रोम्यॉं रोलॉं के निम्नलिखित शब्द विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं-

    “It was in truth an epoch-making day for India when a Brahman not only acknowledged that all human beings have the right to know the Vedas, whose study had been previously prohibited by orthodox Brahmanas, but duty of every Arya”.

    अर्थात्‌, "भारत के इतिहास में वह दिन सचमुच युगान्तरकारी था, जब एक ब्राह्मण ने मनुष्यमात्र को वेदाध्ययन का अधिकारी ही घोषित नही किया, जिस पर पहले कट्‌टरपन्थी ब्राह्मणों ने रोक लगा रक्खी थी, अपितु प्रत्येक आर्य के वेदाध्ययन करने और वेद का प्रचार करने को अपना कर्तव्य समझने पर बल दिया।" इस प्रकार जहॉं तक वेद का सम्बन्ध है, स्वामी दयानन्द का स्थान हर दृष्टि से शंकराचार्य से कहीं ऊँचा है। दयानन्द ने जो किया शंकर उसका दशांश भी नहीं कर पाये।

    स्वामी दयानन्द के अनुसार मन्त्रसंहिताओं को छोड़कर सम्पूर्ण वैदिक वाङ्‌मय परत:प्रमाण है। केवल चार संहिताएँ ही स्वत: प्रमाण हैं। वेदार्थ प्रक्रिया में भी दयानन्द का अपना विशिष्ट योगदान है। वेद के सभी शब्दों को उन्होंने यौगिक या योगरूढ माना है। कोई भी शब्द रूढ या यदृच्छा-रूप नहीं है। प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा निर्दिष्ट त्रिविध प्रक्रिया को स्वीकार करते हुए भी उन्होंने वेदमन्त्रों का व्यावहारिक अर्थ करके वेदों को सर्वजनोपयोगी रूप में प्रस्तुत किया। वेदों के सर्वज्ञानमयत्व और "सर्वं वेदात्‌ प्रसिध्यति" आदि वचनों को सार्थक करनेवाला वेदों का एकमात्र भाष्य दयानन्द-कृत ही है। इसके निदर्शनार्थ उन्होंने "ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका" की रचना की। इस अद्‌भुत ग्रन्थ के अध्ययन का यह परिणाम हुआ कि जिस मैक्समूलर ने सन्‌ 1866 में स्वरचित "चिप्स्‌ फ्रॉम ए जर्मन वर्कशॉप" में लिखा था कि "वैदिक सूक्तों की एक बड़ी संख्या बिल्कुल बचकानी, जटिल, निकृष्ट और अत्यन्त साधारण हैं", उसी ने सन्‌ 1882 में "भारत से हम क्या सीखें?" में लिखा, "वेद में जैसी भाषा पाई जाती है, उसमें जैसा जीवनदर्शन है और जैसे धर्म का दर्शन होता है, उससे जो दृश्यावली दृष्टिगत होती है, वर्षों में तो उसे कोई माप नहीं सकता। वेद में ऐसी भावनाओं का प्रकाश हुआ है जो हम यूरोपियनों को 19वीं शताब्दी में आधुनिक प्रतीत होती हैं। मानव-विचारधारा के इतिहास के विषय में जो जानकारी हमें वेदों से मिलती है वह वेदों की खोज से पूर्व हमारी कल्पना से परे थी" (पृ.130)।

    arya samaj mandir marriage indore

    इतना ही नहीं जिस मैक्समूलर ने दयानन्द के सम्बन्ध में कभी यह लिखा था-

     “He (Dayanand) actually published a commentary in Sanskrit on Rigveda. But in all his writings there is nothing which can be quoted as original, beyond his somewhat strange interpretations of words and whole passages.”-A Real Mahatman.

    अर्थात्‌ दयानन्द ने ऋग्वेद पर संस्कृत में एक भाष्य प्रकाशित किया है, पर उसके समस्त लेखन में मौलिक रूप से उल्लेखनीय कुछ भी नहीं है, सिवाय शब्दों और पूरे-पूरे अंशों के उसके अजीब-से अर्थों के।

    उसी मैक्समूलर ने "ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका" पढने के बाद दिखा-

     “We may divide the whole of Sanskrit literature beginning with the Rigveda and ending with Dayananda’s ‘Rigvedadibhashya bhumika’ (‘Introduction to his commentary on the Rigveda’).

    अर्थात्‌ ऋग्वेद से आरम्भ होनेवाले और दयानन्द की "ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका" तक समूचे संस्कृत वाङ्‌मय को हम बॉंट सकते हैं।"

    इस प्रकार मैक्समूलर ने संस्कृत साहित्य के एक ध्रुव पर ऋग्वेद को रक्खा और दूसरे पर "ऋग्वेदिभाष्यभूमिका" को। ऋग्वेद का सम्बन्ध ब्रह्मा से है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिस प्रकार दयानन्द ने अनेकत्र "ब्रह्मा से जैमिनिपर्यन्त" शब्दों का प्रयोग किया है वैसे ही यहॉं "ब्रह्मा से दयानन्दपर्यन्त" कहा गया है।

    दयानन्द के वेदभाष्य को लक्ष्य करके श्री अरविन्द ने कहा-

    “There is nothing fantasfic in Dayananda’s idea that the Veda contains truths of science as well as truths of religion. I will even add my own conviction that the Veda contains the other truths of seience which the modern world does not at all possess and in that case Dayananda has rather understated than overstated the depth of the range of Vedic wisdom.” -Dayananda and the Veda

    "दयानन्द की इस धारणा में कि वेद में धर्म और विज्ञान दोनों सचाइयॉं पाई जाती हैं, कोई उपहासास्पद या कल्पना मूलक बात नहीं है। मैं इसके साथ अपनी यह धारणा भी जोड़ना चाहता हूँ कि वेदों में विज्ञान की वे सचाइयॉं भी हैं जिन्हें आधुनिक विज्ञान अभी तक नहीं जान पाया है। ऐसी अवस्था में दयानन्द ने वैदिक ज्ञान की गहराई के सम्बन्ध में अतिशयोक्ति से नहीं अपितु न्यूनोक्ति से ही काम लिया है।" -दयानन्द और वेद

     “In the matter of Vedic interpretatiohn, I am convinced, whatever may be the final and complete inerpretation of Vedas, Dayananda will be honoured as the first discoverer of the right clues. Amids the chaos and obscurity of old ignorance and agelong misunderstanding, his was the eye of direct vision that pierced to the truth and fastened on to that which was essential. He has found out the keys of the doors that time had closed and rent assunder the seals of the imprisoned fountains.”-Vedic Magazine, Lahore, Nov., 1916. 

    "वैदिक व्याख्या के सम्बन्ध में मेरा यह विश्वास है कि वेदों की अन्तिम और पूर्ण व्याख्या चाहे कुछ भी हो, यथार्थ निर्देशों के प्रथम आविर्भावक के रूप में दयानन्द का नाम सदा सम्मान के साथ लिया जाएगा। पुराने अज्ञान और पुराने युग की मिथ्या ज्ञान की अव्यवस्था और अस्पष्टता के बीच यह उनकी अन्तर्दृष्टि थी जिसने सचाई को खोजा और उसे वास्तविकता के साथ जोड़ दिया। समय ने जिन द्वारों को बन्द कर रक्खा था उनकी चाबियों को उसने ढूँढ निकाला और बन्द पड़ें फौवारे की मोहरों को तोड़ फेंका।" (वैदिक मैगजीन, लाहौर, नवम्बर 1916)

    यह ध्रुव सत्य है कि गत पॉंच सहस्त्र वर्षों में वेद के वास्तविक स्वरूप को पहचानकर उसे उसी रूप में पुन: प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्प, सर्वात्मना समर्पित व्यक्ति दयानन्द से अतिरिक्त अन्य कोई नहीं हुआ। मनु आदि ऋषियों के "सर्वज्ञानमयो हि स:", सर्वं वेदात्‌ प्रसिध्यति", "नि:सृतं सर्वशास्त्रं तु वेदशास्त्रात्‌ सनातनात्‌", "वेद: प्रमाणं लोकानाम्‌", इत्यादि वाक्यों का मानो भाष्य करते हुए दयानन्द ने "वेद को सब सत्य विद्याओं का पुस्तक" बताया और क्योंकि "धर्मजिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुति:" कहा गया है, इसलिए "वेद का पढना-पढाना और सुनना-सुनाना ही सब आर्यों का परम धर्म" निश्चित किया। जहॉं अन्य समाज-सुधारकों में से किसी ने सत्य को परम धर्म बताया, किसी ने अहिंसा को, किसी ने परोपकार को, वहॉं दयानन्द ने अपने अनुयायियों के लिए वेदाध्ययन को परम धर्म घोषित किया। 10 अप्रेल, 1875 (संवत्‌ 1931-32) को बम्बई में प्रथम आर्यसमाज की स्थापना करते समय उसका उद्‌देश्य इन शब्दों में निश्चित किया गया था- "आ समाजनो मुख्य उद्देश्य ए छे कि वेदधर्मतत्वो प्रत्येक सभासदे मान्य करवां अने देश-विदेश मा तेनो प्रसार करवाने यथाशक्ति प्रयत्न करवो।" इससे स्पष्ट है कि दयानन्द की दृष्टि में आर्यसमाज की स्थापना का प्रयोजन वेदों का प्रचार-प्रसार करना था।

    स्वामी दयानन्द ने अपने ग्रन्थों में जगह-जगह लिखा है, "वेदों की अप्रवृत्ति होने से अविद्यान्धकार के भूगोल में विस्तृत हो जाने से मनुष्यों की बुद्धि भ्रमयुक्त हो जाने के कारण जिसके मन में जैसा आया वैसा मत चलाया।" इस कारण दयानन्द ने प्रमुखरूप से वेदविद्या के पुन: प्रतिष्ठापन के लिए ही आर्यसमाज की स्थापना की। यही उनका मुख्य कार्य था, शेष सब कार्य उसी के अंग-प्रत्यंग-रूप थे। "श्रीमद्भगवद्‌गीता" की शैली में कहा जा सकता है कि "लुप्त हुए वैदिकधर्म संस्थापनार्थाय" ही दयानन्द का अवतरण हुआ था।

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.allindiaaryasamaj.com 

     

    That is, "The day in the history of India was truly epoch-making, when a Brahmin did not declare mankind to be the authority of Vedhyayana, which was previously forbidden by the Katharpanthi Brahmins, but to study every Arya and preach the Veda. Stressed to understand his duty. " Thus far as Vedas are concerned, Swami Dayanand's place is higher than Shankaracharya's in every respect. Shankar could not even tithe what Dayanand did.

    Bharata-Bhagyavarita Maharishi Dayanand Saraswati-11 | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Nandurbar - Nashik - Jhunjhunu - Jodhpur - Hoshangabad - Indore | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Contact for more info. | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Jalgaon - Jalna - Dholpur - Dungarpur - Damoh - Datia | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-11 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती-4

    लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती

    वस्तुत: विवेकानन्द का मूर्त्तिपूजा के प्रति आग्रह उनके अनेक प्रकार के अन्धविश्वासों के कारण था। इसीलिए एक स्थान पर उन्होंने लिखा है- "यदि मूर्त्तिपूजा में नाना प्रकार के कुत्सित विचार भी प्रविष्ट हो जाएँ तो भी मैं उसकी निन्दा नहीं करूँगा।" - (विवेकानन्द-चरित, पृष्ठ 146)

    मूर्त्तिपूजा की बात करते समय स्वामी विवेकान्नद विवेक को ताक पर रख देते थे,यह निम्नलिखित घटना से स्पष्ट हो जाता है-

    “When Miss noble came to India in January 1898 to work for the education of India, he gave her the name of Sister Nivedita. At first he taught her to worship Shiva and then made the whole ceremony eliminate in an offering at the feet of Buddha.” - Vivekanand A Biography by Swami Nikhilanand, P. 260

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    सुखी जीवन के रहस्य
    Ved Katha Pravachan _27 (Vedic Secrets of Happy Life & Happiness) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    शिक्षासम्बन्धी कार्य के लिए आने वाली विदेशी महिला को पहले शिवजी की पूजा सिखाना और उसकी विधि पूरी हो जाने पर शिव-पूजा के विरोधी महात्मा बुद्ध के चरणों पर चढानाइन दो परस्पर विरोधी कृत्यों का विधान कहॉं मिलता है और किस प्रकार इनकी संगति बिठाई जा सकती है?

    श्रीरामकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द की आराध्य देवी की निर्दोष प्राणियों की हत्या से पूजा होना और उनका खून पीकर उसका तृप्त होना सर्वविदित है। उसके भक्तों में दया-ममता की कल्पना कैसे की जा सकती हैउक्त-जीवनी में उसके विषय में लिखा है- “One day in the Kali temple of Calcutta a western lady shuddered at the sight of blood of goats, sacrificed before the mighty, and exclaimed- ‘Why is there so much blood before the Godess?’ Quickly the Swami (Vivekanand) replied- ‘Why not a little blood to complete the picture?” -Ibid. 261

    स्वामी विवेकानन्द की फ्रैंच भाषा में प्रकाशित जीवनी के लेखक रोम्यॉं रोलॉं के अनुसार रामकृष्ण एक मुसलमान से प्रभावित होकर अपना धर्मपरिवर्तन करने और गोमांस खाने के लिए तैयार हो गये थे। इस प्रसंग में मैक्समूलन ने लिखा है-“For long days the (Ramkrishna) subjected himself to various kinds of discipline to realise the Mohammadon idea of all powerful Allah. He let his beard grow, he fed himself on Muslim diet, he ocmpletely repeated the Koran.” - A Real Mahatman, P. 35. 

    स्वामी विवेकानन्द के इस्लाम के गीत गाने का कारण अपने गुरु के प्रति अन्धभक्ति का अतिरेक था। रामकृष्ण मिशन ने अपने हिन्दु न होने के पक्ष में जो तर्क और प्रमाण कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रस्तुत किये थेउनका एक अंश अहमदाबाद से प्रकाशित होनेवाले Times of Indiaके 23 जनवरी 1886 के अंक से यहॉं उद्‌धृत किया जा रहा है-“During his practice of Islam he repeated the name of Allah and said Namaz thrice daily. During this while he dressed and ate like a Muslim. Another biographical work ‘Ramkrishna Panth’ by Akshoy Sen, provides some more details. A Muslim cook was brought who instructed the brahman cook how to wear a lungi and cook like the Muslim way. We are also told that at this time Ramkrishna felt a great urge to take beef. However, this urge could not be satisfied openly. But one day as he sat on the bank of the Ganges, a carcase of a cow was floating by. He entered the body of a dog astrally and tasted the flesh of the cow. His Muslim Sadhana was now complete.

    All this is highly comic but it holds an important position in the mission. The lawyears of mission did not forget to argue in the court that Ramkrishna was on the verge of eating beef. This was meant to prove that he was an indifferent Hindu and not far from being a devout Muslim.” The mission won the case.

    उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि रामकृष्ण में इस्लाम और गोमांसभक्षण के प्रति ललक थी। इसी प्रयोजन से वे अल्लाह का नाम जपते थे और दिन में तीन बार नमाज पढते थे। मुसलमानों-जैसी वेशभूषा भी उन्होंने अपना ली थी। एक मुस्लिम रसोइया उनके ब्राह्मण रसोइये को मुस्लिम खाना बनाना सिखाता था। उस समय रामकृष्ण को गोमांस खाने की इच्छा हुई। इस इच्छा को खुलकर पूरा करना सम्भव नहीं था। कालान्तर में तो उनके परम शिष्य स्वामी विवेकानन्द ने खुलकर मांस खाया हीदूसरों को भी वैसा ही करने की प्रेरणा दी। इतना ही नहींवैदिक कालीन ब्राह्मणों पर गोमांस भक्षक होने का आरोप लगाया।

    एक दिन जब रामकृष्ण गंगातट पर बैठे थे तो उन्होंने एक गाय के शव को गंगा में बहते देखा। उसे देखते ही उनके मुँह से लार टपकने लगी। तभी उन्होंने पास ही एक मरे हुए कुत्ते को देखा। झट से उस कुत्ते के शरीर में प्रवेश करके उन्होंने गोमांस का रसास्वादन किया । इस प्रकार उनकी मुस्लिम साधना पूर्ण हुई।

    स्वामी विवेकानन्द एक स्थान पर लिखते हैं-“Too much faith in personality has a tendency to produce weakness and idolatory.” - II, 84-85

    व्यक्तिविशेष में श्रद्धा का अतिरेक बौद्धिक निर्बलता तथा मूर्त्तिपूजा को जन्म देता हैपरन्तु जब रामकृष्ण की बात आती है तो उनकी (विवेकानन्द की) श्रद्धा का अतिरेक सब अतिरेकों की सीमा को लॉंघ जाता है और तब वे कहते हैं-“Through thousands of years the lives of the great prophets of yore came down to us, and yet, none stands so high in brilliance as the life of Ramkrishna Paramhansa.” - II,312

    हजारों वर्षों में प्राचीनकाल के अनेक सिद्ध पुरुषों के जीवन हमारे सामने आयेपरन्तु उनमें से एक भी रामकृष्ण की ऊँचाई को न छू सका।

    इतना ही नहींपत्रावली भाग 1पृष्ठ 138 पर संस्कृत के एक श्लोक को उद्धृत कर विवेकानन्द जी अपने आराध्यदेव रामकृष्ण को ब्रह्माविष्णु और शिव तीनों से बढाकर साक्षात्‌ नारायण का अवतार कहते हैं। गुरु के प्रति श्रद्धा के इस अतिरेक ने उन्हें उनकी अपनी ही मान्यता के विपरीत मूर्त्तिपूजक और इतना निर्बल बना दिया कि वे विवेकशून्य हो गये और मन्दिरों में स्थापित मूत्तियों के स्थान पर वे रामकृष्ण की पादुकाओं को पुष्प अर्पित कर उनकी प्रतिमा पर क्षीरभोग चढाने लगे। -विवेकानन्दजी के सङ्ग मेंपृ. 139

    "भगवान्‌ रामकृष्ण परमहंस ईश्वर के अवतार थेइसमें मुझे तनिक भी सन्देह नहीं है। भगवान्‌ श्रीकृष्ण का जन्म हुआ ही थायह हम निश्चितरूप से नहीं कह सकते और बुद्ध व चैतन्य-जैसे अवतार पुराने हैंपर श्री रामकृष्ण सबकी अपेक्षा आधुनिक और पूर्ण है" (पत्रावली 256)। इस प्रकार रामकृष्ण और बुद्ध की ऐतिहासिकता को नकारते हुए उन्हें रामकृष्ण से हीन सिद्ध करने के लिए वे यह कहने में संकोच नहीं करते कि "उनकी (रामकृष्ण की) पवित्रताप्रेम और ऐश्वर्य का कणमात्र प्रकाश ही रामकृष्णबुद्ध आदि में था।" - पत्रावली भाग 1187

    स्वामी विवेकानन्द इतना भी नहीं सोच सके कि अन्य सभी महापुरुष रामकृष्ण के पूर्ववर्ती थे। पूर्ववर्तियों में पश्चाद्वर्ती का प्रकाश आएगा या पश्चाद्वर्ती में पूर्ववर्ती का।

    श्री रामकृष्ण के सम्बन्ध में विवेकानन्द जी के अधिकांश कथन सर्वथा हास्यास्पद तथा अविश्वसनीय हैं। अन्यान्य महापुरूषों की तुलना करने में तो वे औचित्य की सभी सीमाओं का अतिक्रमण कर जाते हैं और उन्हें चमत्कारी पुरुष सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं। उदाहरणार्थ- "उन-(रामकृष्ण)- पर जिनका विश्वास नहीं है और उनमें जिनकी भक्ति नहीं हैउनका कुछ नहीं होगा।" -पत्रावली भाग 1पृ.188

    रामकृष्ण को महिमामण्डित करने के लिए विवेकानन्द इतिहास को यदृच्छया बदलने और अपने को उपहास का पात्र बनाने में भी संकोच नहीं करते। उनके अनुसार "सत्ययुग का आरम्भ रामकृष्ण के अवतार की जन्मतिथि से हुआ।" - पत्रावली भाग 1पृ. 188

    विवेकानन्द को इतना भी ज्ञान नहीं कि सत्ययुग का आरम्भ और अन्त हुए लाखों वर्ष बीत चुकेजबकि कलयुग का आरम्भ हुए लगभग पॉंच हजार और रामकृष्ण को पैदा हुए केवल 60 वर्ष बीते थे।

    जैसाकि हम स्वयं विवेकानन्द के ग्रन्थों के सम्पादक के शब्दों में स्पष्ट करेंगेउनके लेखों तथा व्यक्तव्यों में परस्पर विरोधी वचनों की भरमार है। इस कारण उनकी कथनी और करनी में सामंजस्य का अभाव है। स्वामी जी लिखते हैं-

    “The dead never return, the past night does not reappear. Neither does man inhabit the same body ever again.” - II, 185

    अर्थात्‌ मरनेवाला वापस नहीं आता। मरने के बाद मनुष्य उसी शरीर में फिर नही आताकिन्तु रामकृष्ण को लोकोत्तर अवतारी पुरूष अथवा ईश्वर का अवतार सिद्ध करने के लिए विवेकानन्द रामकृष्ण के शव को भस्म करने के बाद भी उनका अपने उसी शरीर में दर्शन देना स्वीकार करते हैं-“Within a week of the Master’s passing away Narendra was one night strolling in the garden with a brother disciple, when he saw a luminous figure. There was no making. It was Shri Ramkrishna himself. Narendra remained silent, regaridng the phenomenon as an illusion. But his brother disciple exclaimed in wonder. ‘See, Naren! See?’ There was no room for further doubt. Narendra was convinced that he was Ramkrishna who appeared in a luminous body. As he called the other brother discipes to behold, the Master, disappeared. - Bio. 69

    श्री रामकृष्ण की मृत्यु के एक सप्ताह के बाद एक दिन वे अपने एक गुरुभाई के साथ बाग में घूम रहे थे कि उन्हें अपने सामने एक द्युतिमान शरीर दिखाई दिया। इसमें भ्रम की कोई गुंजाइश नहीं थी। निश्चय ही वे स्वयं रामकृष्ण थेपरन्तु हो सकता हैयह उनके मन का भ्रम ही होइसलिए वे मौन रहे। इतने में उनका गुरुभाई आश्चर्यचकित हो चिल्लाया-"देखो ! नरेन्द्र देखो।" अब सन्देह के लिए कोई स्थान नहीं था। नरेन्द्र को विश्वास हो गया कि द्युतिमान शरीर में प्रकट होनेवाले रामकृष्ण ही थे।

    जब स्वयं विवेकानन्द के अपने कथनानुसार आत्मा पुन: उसी शरीर में नहीं आती तो रामकृष्ण कैसे आ गयेशरीर के भस्म होने के बाद उसके परमाणु अथवा अन्य कोई परमाणु स्वत: रामकृष्ण का शरीर धारण कर सकते हैं तो सृष्टिरचयिता चेतन ब्रह्म की आवश्यकता क्या रहीऐसी ऊटपटाङ्ग बात विवेकानन्द-जैसे मस्तिष्क में ही आ सकती हैअन्यथा कोई अबोध बालक भी इसे स्वीकार नहीं करेगा।

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग, बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास, दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg, Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan, Annapurna
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 8989738486, 9302101186
    www.aryasamajindore.com

     

    One day when Ramakrishna was sitting on the Ganges, he saw the body of a cow flowing into the Ganges. Seeing him, saliva started dripping from his mouth. Then he saw a dead dog nearby. He quickly tasted the beef by entering the body of the dog. Thus his Muslim practice was completed.

     

    Bhagyavarita Maharishi Dayanand Saraswati | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Karauli - Kota - Jabalpur - Jhabua - Osmanabad - Parbhani | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती -5 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • महर्षि दयानन्द के देशभक्ति से परिपूर्ण विचार

    महर्षि दयानन्द अपने देश पर कितना अभिमान करते थे और उसको कितना ऊंचा स्थान देते थे, इसकी झलक उनके इन विचारों से मिलती है- "यह आर्यावर्त देश ऐसा है, जिसके सदृश भूगोल में दूसरा कोई देश नहीं है। इसीलिए इस भूमि का नाम सुवर्ण भूमि है, क्योंकि यही सुवर्ण आदि रत्न को उत्पन्न करती है। भूगोल में जितने देश हैं, वे सब इसी देश की प्रशंसा करते और आशा रखते हैं। पारसमणि पत्थर सुना जाता है, वह बात तो झूठी है, परन्तु आर्यावर्त देश ही सच्चा पारसमणि है, जिसको लोहेरूप दरिद्र विदेशी छूते के साथ ही सुवर्ण अर्थात्‌ धनाढ्‌य हो जाते हैं।'' (सत्यार्थ प्रकाश, एकादश समुल्लास)

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    सम्पूर्ण विश्व के सुख व कल्याण की कामना, यजुर्वेद मन्त्र ३०.३
    Ved Katha Pravachan _29 (Vedic Secrets of Happy Life & Happiness) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    इस देश के वासी होते हुए भी जो लोग अपनी भाषा और संस्कृति के स्थान पर विदेशी भाषा और संस्कृति को अपनाते हैं, उनकी महर्षि इन शब्दों में भर्त्सना करते हैं- "उन लोगों में स्वादेशाभिमान बहुत न्यून है। भला जब आर्यावर्त देश में उत्पन्न हुए हैं और इसी देश का अन्न-जल अब तक खाया-पीया है और अब भी खाते-पीते हैं, तब अपने माता-पिता व पितामह आदि को छोड़कर दूसरे विदेशी मतों पर अधिक झुक जाते हैं और इस देश की संस्कृत विद्या से रहित अपने को विद्वान प्रकाशित करना तथा इंग्लिश भाषा पढ़के पण्डिताभिमानी होकर झटित एक मत चलाने में प्रवृत्त होना मनुष्य का स्थिर बुद्धिकारक काम क्यों कर हो सकता है।'' स्वदेश, स्वभाषा तथा स्वधर्म से प्रेम और अपने पूर्वजों के लिए गौरव एवं अभिमान महर्षि दयानन्द में कूट-कूटकर भरा था। 

    कितने दुःख, व्यथा और वेदना के साथ आप लिखते हैं कि - "विदेशियों के आर्यावर्त में राज्य होने का कारण आपस की फूट, मतभेद, ब्रह्मचर्य का सेवन न करना, विद्या न पढ़ना-पढ़ाना, बाल्यावस्था में अस्वयंवर विवाह, विषयासक्ति, मिथ्याभाषण आदि कुलक्षण, वेद विद्या का अप्रचार आदि हमारी अधोगति के कारण हैं। जब आपस में भाई-भाई लड़ते हैं, तभी तीसरा विदेशी आकर पञ्च बन बैठता है। आपस की फूट से कौरव-पाण्डव और यादवों का सत्यानाश हो गया सो तो हो गया, परन्तु अब तक भी वह रोग पीछे लगा है। न जाने यह भयंकर राक्षस कभी छूटेगा या आर्यों को सब सुखों से छुड़ाकर दुःखसागर में डूबो मारेगा। उसी दुष्ट मार्ग से आर्य लोग अब तक भी दुःख बढ़ा रहे हैं। परमात्मा कृपा करेे कि यह राज रोग हम आर्यों में से नष्ट हो जाये। जब तक एक मत, एक हानि-लाभ, एक सुख-दुःख परस्पर न माने, तब तक उन्नति होना बहुत कठिन है। 

    स्वदेशी का महत्व- "देखो! अंग्रेज लोग अपने देश के बने हुए जूते को कार्यालय (ऑफिस) और कचहरी में जाने देते हैं तथा देशी जूते को नहीं। इतने से ही समझ लो कि वे अपने देश के बने जूतों की जितनी मान-प्रतिष्ठा करते हैं, उतनी अन्य देशस्थ मनुष्यों की भी नहीं करते। देखो! कुछ सौ वर्ष से ऊपर इस देश में यूरोपियनों को आये हो गए। आज तक वे लोग मोटे कपड़े आदि पहिनते हैं, जैसा कि स्वदेश में पहिनते थे। उन्होंने अपने देश का चाल-चलन नहीं छोड़ा। और तुममें से बहुत लोगों ने उनका अनुकरण कर लिया। इसी से तुम निर्बुद्धि और वे बुद्धिमान ठहरते हैं। अनुकरण करना किसी बुद्धिमानी का काम नहीं।'' 

    भारतीयों को उनके गत गौरव का बोध कराते हुए महर्षि ने लिखा था कि हमारा देश प्राचीन समय में विदेशी शासकों के अधीन नहीं रहा था, अपितु हमारे देश के शासकों का ही सर्वत्र सार्वभौम राज्य था और अन्य देशों में माण्डलिक अर्थात्‌ छोटे-छोटे राजा रहते थे। महर्षि ने इस विषयक विचार निम्न प्रकार से व्यक्त किए हैं- "स्वायम्भुव राजा से लेकर पाण्डवों पर्यन्त आर्यों का चक्रवर्ती राज्य रहा। तत्पश्चात्‌ परस्पर के विरोध से लड़कर नष्ट हो गये। क्योेंकि इस परमात्मा की सृष्टि में अभिमानी, अन्यायकारी, अविद्वान लोगों का राज्य बहुत दिन नहीं चलता।'' 

    स्मरण रहे कि महर्षि दयानन्द ने अंग्रेजों के विरोध में ये विचार उस समय व्यक्त किये थे, जब उनके शासन का सूर्य मध्याह्न तक पहुंचा हुआ था और उस समय के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम को दानवी दमन से दबाकर सर्वत्र भय और आतंक की अवस्था उत्पन्न कर दी गई थी। इसीलिए महर्षि दयानन्द सरस्वती को देश में राष्ट्रीयता का भाव भरने वाला प्रथम महापुरुष माना जा सकता है। आचार्य डॉ. संजयदेव

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmpcg.com 

    ----------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

     

    Maharishi Dayanand was so proud of his country and gave him a very high status, this is reflected by his thoughts - "This Aryavarta country is like no other country in the geography like it. That is why this land is called Golden Land. Is, because this is the gold that generates the initial gem.

     

    Maharishi Dayanand's Patriotic Idea | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus | Annapurna Road | Indore (MP) | Arya Samaj Mandir Helpline Indore (9302101186) for Jabalpur - Jhabua - Osmanabad - Parbhani - Karauli - Kota | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir | Divya Yug Campus, 90 Bank Colony | Annapurna Road | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony | Annapurna Road | Indore (Madhya Pradesh) | Official Website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony.

    Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | भारत-भाग्यविधाता महर्षि दयानन्द सरस्वती -5 | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • महर्षि दयानन्द में शिव के दर्शन

    शिव का सीधा-सादा अर्थ है कल्याणकारी। पुराणों की शिव की कल्पना भी कल्याण की भावना से ही प्रेरित है। शिव सबका कल्याण व हित चाहने वाला देवता है। दूसरों का शुभचिन्तक व हित चाहने वाला व्यक्ति अधिकतर शुद्ध-पवित्र हृदय का तथा भोलापन लिए होता है। इसीलिए शिव को भोला बाबा भी कहा जाता है, जो थोड़ी सी उपासना करने से ही प्रसन्न होकर काफी वरदान देने वाला देवता है। शिव के बारे में अनेकों कहानियॉं व किस्से प्रचलित हैं। वह किसी को दुखी देखता है तो उसे सुखी बना देता है। इसीलिये दुखी को सुखी बना देने वाला देवता ही शिव माना गया है। कल्याण व उपकार सब गुणों में श्रेष्ठ व ज्येष्ठ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी इसी बात को अपने शब्दों में कहा है- परहित सरिस धर्म नहिं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई। इसीलिये शिव को सब देवी देवताओं से बड़ा देवों का देव महादेव भी कहते हैं। 

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    वेद मन्त्र व्याख्या - यजुर्वेद मन्त्र 25.15

    Ved Katha Pravachan _34 (Vedic Secrets of Happy Life & Happiness) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    बिना स्वार्थ के देने वाले को देव या देवता कहते हैं। देवता दो प्रकार के होते हैं, चेतन और जड़। दूसरे शब्दों में जीवित देव और निर्जीव देव भी कहे जाते हैं। जीवित या चेतन देवों में माता, पिता, आचार्य, विद्वान, वृद्धजन व अतिथि आते हैं, जो हमें उपदेश, सद्‌ज्ञान, अनुभव व आशीर्वाद देकर हमारे जीवन को सुखी व शान्तिप्रद बनाने का प्रयत्न करते हैं। निर्जीव या जड़ देवों में सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी, अन्न, फल व वनस्पति हैं, जिनसे हमारे शरीर को भोजन, गर्मी व शक्ति मिलती है। तभी हमारे शरीर को गति मिलती है और रक्षा होती है। यानी जड़ देवता हमें जीवित रखने में परम सहयोगी हैं। यहॉं प्रसंगवश यह बता देना उचित है कि जैसे हम अपने शरीर के सब अंगों को भोजन व रस पहुँचाने के लिए मुख से भोजन करते हैं, फिर उस भोजन का रस बनकर हमारी नस-नाड़ियों द्वारा शरीर के सभी अंगों को पहुँच जाता है, वैसे ही सभी जड़ देवताओं का मुख अग्नि है। इसीलिये हम यज्ञ द्वारा अग्नि में आहुति देते हैं। यज्ञ में डाली हुई सामग्री व घृत की सुगन्ध हजारों गुणी होकर हवा में फैलकर सब जड़ देवताओं सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, जल, अग्नि व वनस्पतियों को पहुँच जाती है तथा वह शुद्ध व पवित्र होकर प्राणी मात्र का कल्याण करती है और यज्ञ से ही वायुमण्डल हल्का हो जाने से वृष्टि भी होती है। वृष्टि से अन्न, फल व वनस्पतियॉं पैदा होती हैं, जिनको खाकर प्राणीमात्र जीवित रहता है। इसीलिये वेदों में "यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्मः' कहकर यज्ञ की महिमा कही गई है। वेदों में यज्ञ को विश्व की नाभि यानि केन्द्र भी बताया गया है। 

    पुराणों में शिव को सात आभूषणों से विभूषित किया गया है, जो उनके गुणों को प्रदर्शित करते हैं। वे सभी गुण महर्षि दयानन्द सरस्वती के जीवन में भी पूर्णतः घटित होते हैं। शिव की भॉंति ही महर्षि दयानन्द का पूरा जीवन भी परोपकार के लिये बीता। उनको अपना कोई स्वार्थ नहीं था। उन्होंने अपने जीवन में जो ज्ञान, बल व तेज अर्जित किया, वह सब परहित में ही लगा दिया। महर्षि का एक-एक क्षण और एक-एक श्वास प्राणीमात्र की भलाई के लिये ही बीता। ऐसे महान्‌ व्यक्ति का प्रादुर्भाव संसार में युगों के बाद होता है। शिव ने तो देवताओं व राक्षसों के झगड़े को मिटाने के लिये तथा देवी-देवताओं की रक्षा के लिये विषपान किया था और उस विष को गले में ही रोककर पेट में नहीं जाने दिया, जिससे शिव का गला नीला हो गया। इसीलिये शिव का एक नाम नीलकण्ठ भी है। परन्तु महर्षि दयानन्द ने तो प्राणिमात्र के कल्याण के लिये एक बार नहीं, दो बार नहीं, अनेकों बार विषपान किया और उसको न्यौली क्रिया द्वारा बाहर निकालते रहे तथा विष का प्रभाव शिव की भॉंति ही शरीर पर नहीं होने दिया। इस प्रकार शिव ने जो कार्य बड़े रूप में एक बार किया, वही कार्य महर्षि दयानन्द अनेक बार छोटे रूप में करके शिव के तुल्य बनने के पूरे अधिकारी बने। शिव के सातों आभूषण महर्षि के जीवन में कैसे घटित होते हैं, इसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है- 

    गंगा को जटा में धारण करना- पौराणिक मान्यता के अनुसार भागीरथ की प्रार्थना पर गंगा के वेग को रोकने के लिये शिव ने पहले गंगा को अपनी जटा में धारण किया। फिर जटा से पृथ्वी पर प्रवाहित किया, जिससे पृथ्वीवासियों का कल्याण व हित हुआ। वैसे ही हजारों वर्षों से वेदों को न पढ़ने से वेद ज्ञान प्रायः लुत हो गया था। सिर्फ ग्रन्थों में ही बन्द था। महर्षि दयानन्द ने गुरु विरजानन्द के चरणों में बैठकर सत्य ज्ञान को जाना और अपने परिश्रम से वेद ज्ञान रूपी गंगा को पुनः धरती पर प्रवाहित किया। यानी वेद ज्ञान का प्रकाश किया। यह कार्य शिव के कार्य के समान था। 

    मस्तिष्क में चन्द्रमा का होना- चन्द्रमा शीतलता यानी धैर्य का प्रतीक है। महर्षि दयानन्द महान्‌ धैर्यवान्‌ व्यक्ति थे। इसके अनेकों उदाहरण ऋषि के जीवन में आते हैं। परन्तु यहॉं दो घटनाएं लिखना ही पर्याप्त होगा। एक बार ऋषि कहीं व्याख्यान  दे रहे थे। उस समय एक विरोधी ने कुछ शरारती बच्चों को बुलाकर यह कहा कि तुम स्वामी जी पर ईंटें, पत्थर व धूल फेंको, मैं तुम्हें मिठाई दूँगा। बच्चों ने वही काम किया। ऋषि के भक्तों ने उन बच्चों को पकड़ लिया और ऋषि के पास लाये। ऋषि ने बच्चों से पूछा कि तुम ईंट, पत्थर क्यों फेंक रहे थे? तब बच्चों ने उस व्यक्ति का नाम लेते हुए कहा कि उसने हमें मिठाई का लोभ देकर यह काम करवाया। स्वामी जी ने अपने भक्तों से मिठाई मगंवाकर उन बच्चों को दी और उन्हें पुचकारते हुए जाने को कहा। बच्चे खुशी-खुशी अपने-अपने घर चले गये। यह थी महर्षि की सहनशीलता व धैर्य। 

    दूसरी घटना इससे भी कहीं ज्यादा हृदय को छूने वाली है जो मानव में नहीं, किसी महामानव में ही पाई जा सकती है। वह घटना  उस समय की है, जब ऋषि पुणे में कई दिनों से अपने धारावाहिक प्रवचन कर रहे थे। प्रवचनों से खिन्न होकर उनका अपमान करने के लिए एक आदमी का मुँह काला करके गधे पर उल्टा बिठाकर और उसके गले में जूतों की माला पहनाकर पीछे बीस-तीस विरोधी ढोल बजाते हुए जुलूस निकाल रहे थे और उस व्यक्ति की पीठ पर लिखा था "नकली दयानन्द''। ऋषि के भक्तों को यह बड़ा अशोभनीय लगा और वे ऋषि के पास गए तथा सारा वृत्तान्त कह सुनाया। ऋषि मुस्कुराते हुए बोले कि वे जुलूस ठीक ही तो निकाल रहे हैं, नकली दयानन्द की तो यही दुर्गति होनी ही चाहिये। असली दयानन्द तो यहॉं बैठा है। यह सुनकर ऋषि के भक्तों को बड़ा आश्चर्य हुआ। यह धैर्य की पराकाष्ठा नहीं तो क्या है? शिव का धैर्य का गुण भी महर्षि में अत्यधिक था। इसलिए उनकी शिव से तुलना करना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

    गले में सर्पों की माला रखना- गले में सर्पों की माला रखने का भावार्थ यह है कि परोपकार के लिये जीवन को हर समय संकट में रखना और प्रसन्नचित्त रहना। इसका एक दूसरा भाव है, दुष्टों को भी आदर देकर गले से लगाना। यह दोनों ही गुण महर्षि के जीवन में बहुत अधिक देखने को मिलते हैं। शिव के गले में सर्पों का रहना तो एक उपमा मात्र है। परन्तु ऋषि के ऊपर तो कितनी ही बार दुष्टों ने मरे हुए सॉंप फेंके, ईंट, पत्थर मारे। लेकिन वाह रे देव ऋषि! तू कभी भी क्रोधित नहीं हुआ और शान्त चित्त से सभी सहन करते हुए वेदों का प्रचार और परोपकारी कार्य करता रहा। धरती पर अनेकों मत संस्थापक व सन्त, ऋषि, महात्मा आये, जिनको विरोधियों का विरोध सहना पड़ा। ऋषि का तो पूरा जीवन ही संकटों से घिरा था। उनके ऊपर कितनी ही बार विरोधियों ने घातक हमले किये, फिर भी उन्होंने विरोधियों से प्रेम का व्यवहार किया। यहॉं तक कि विष देने वाले पाचक जगन्नाथ को भी पॉंचसौ रुपयों की थैली देकर नेपाल भाग जाने को कहा। 

    हाथ में त्रिशूल- हाथ में त्रिशूल, दुष्टों  के संहार तथा वीरता का सूचक है। ऋषि में जितनी सहनशीलता थी, उससे कहीं ज्यादा दुष्टों व अन्यायियों के दम्भ को चूर करने की भी उनमें शक्ति थी। कर्णवास प्रवास के दौरान राव कर्णसिंह महर्षि के वेद प्रचार से रुष्ट होकर उन्हें गाली-गलौच करने लगा। स्वामी जी ने राव को समझाया कि विचारों का मतभेद बातचीत से प्रेमपूर्वक मिटाया जा सकता है। लेकिन राव तो ताकत के नशे में चूर था। गाली बकते हुए तलवार लेकर महर्षि पर लपका। उसे महर्षि के अतुल्य बल का अनुमान नहीं था। महर्षि ने झपटकर उसके हाथ से तलवार छीन ली तथा भूमि पर टेककर दो टुकड़े कर दिये और शान्त मुद्रा में कहा- "मैं संन्यासी हूँ। तुम्हारी किसी भी गलत हरकत से चिढ़कर, मैं तुम्हारा अनिष्ट कभी नहीं करूंगा। जाओ! ईश्वर तुम्हें सुमति प्रदान करें।'' 

    हाथ में डमरू- हाथ में डमरू धर्म प्रचार का सूचक है। ऋषि ने जो सबसे ज्यादा कार्य किया, वह वैदिक धर्म का प्रचार कार्य है। उस समय वेद सरलता से उपलब्ध नहीं थे। बहुत अधिक परिश्रम करके वेद की कुछ प्रतियॉं दक्षिण भारत से और कुछ जर्मनी से मंगवाकर चारों वेद उपलब्ध करवाये। उनके प्रचार के लिये विरोधियों से कितने ही शास्त्रार्थ किये। सारे भारत में घूम-घूमकर कितने ही व्याख्यान व भाषण दिये। अनेकों ग्रन्थ लिखे। वेदों के भाष्य भी किये और वेद प्रचार करने के लिये ही आर्यसमाज की स्थापना सन्‌ 1875 में मुम्बई में की, जिसका मुख्य उद्देश्य मानव मात्र की सेवा करते हुए वेद प्रचार करना ही है। डमरू का कार्य जितना महर्षि दयानन्द ने किया, उतना शायद ही किसी अन्य धार्मिक विद्वान्‌ ने किया हो। 

    शरीर पर राख रमाना- शिव शरीर पर राख रमाते थे। इसका तात्पर्य एक तो यह हो सकता है कि राख जैसी महत्वहीन वस्तु को भी महत्व देना यानि निम्न, कमजोर, अनाथ व असहाय व्यक्तियों को गले लगाना और उनको सहयोग व सम्मान देना। दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि परहित के कार्यों में अपने तन, मन, धन को समर्पित करके त्याग द्वारा स्वयं को राख के समान बना देना। ये दोनों ही काम महर्षि दयानन्द ने अपने जीवन में बहुत अधिक मात्रा में किये। उन्होंने वेद प्रचार के बाद यदि कोई दूसरा काम अधिक-से अधिक किया था, तो वह था दुखित, असहाय, व अनाथ लोगों का जीवन सुखी बनाने हेतु जन-समाज को प्रेरित करना तथा समाज में अपमानित व निन्दित शूद्र वर्ग जिसे अछूत कहा जाता था, उसको हिन्दू समाज का अभिन्न अंग बताकर उसको सम्मान दिलाना और पढ़ने व धार्मिक स्थानों में प्रवेश का अधिकार दिलाना। 

    नारी जाति की भी उस समय दुर्दशा थी। उन्हें पढ़ाना तो दूर रहा, घर से बाहर निकालना भी दुष्कर्म समझा जाता था। उनका जीवन एक कैदी के समान था, बाहर की हवा भी नहीं लगने दी जाती थी। नारी घर का काम करने की केवल मशीन मात्र थी। ऐसे समय में महर्षि ने मनुस्मृति के श्लोक "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः' के आधार पर उन्हें परिवार व समाज में सम्मान दिलवाया और गार्गी जैसी विदूषियों का उदाहरण देकर उन्हें लौकिक शिक्षा ही नहीं, वेद पढ़ने व पढ़ाने तक का अधिकार दिलाया। महर्षि ने विधवा-विवाह का समर्थन कर विधवाओें को सुखी जीवन प्राप्त कराया। 

    बाघाम्बर धारण- शिव वस्त्रों की जगह पहनने व बिछाने में बाघ की खाल (बाघ-छाल) का ही प्रयोग करते थे। इसका तात्पर्य यह है कि अपनी हिंसक प्रवृत्तियों का दमन करके अपने वश में करना। महर्षि दयानन्द इस विषय में सर्वोपरि और बेजोड़ थे। वे बाल ब्रह्मचारी तो थे ही साथ ही त्यागी, तपस्वी, परोपकारी और प्रकाण्ड वेदज्ञ विद्वान भी थे। कोई ऐसा मानवीय गुण जैसे दया, उदारता, सहृदयता, निर्भयता, निष्पक्षता, ईमानदारी, विनम्रता, अहिंसा आदि नहीं, जो उनमें नहीं हो और अमानवीय दुर्गुण जैसे ईर्ष्या, द्वेष, राग, घृणा व अहंकार आदि तो उनसे कोसों दूर रहते थे। यदि यह कहा जाए कि हिंसक प्रवृत्तियों के दमन का कार्य महर्षि ने बाल ब्रह्मचारी होने के कारण शिव से भी बढ़कर किया, तो यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस प्रकार शिव के सातों आभूषणों के प्रतीक के रूप में सभी गुण महर्षि दयानन्द सरस्वती के जीवन में पूर्णरूपेण देखे जा सकते हैं। - खुशहालचन्द्र आर्य

    Contact for more info.-

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajonline.co.in 

    ----------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindorehelpline.com 

     

     

    Shiva simply means welfare. Shiva's imagination of the Puranas is also inspired by the feeling of well-being. Shiva is the deity who wants the welfare and well-being of all. The person who wishes the well-wishers and interests of others is mostly of pure and pure heart and innocence. That is why Shiva is also called Bhola Baba, who is a deity who is very happy with only a little worship.

     

    Maharshi Dayanand and Shiva | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Pali - Katni - Khandwa - Pune - Raigad - Nagaur | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore |  Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi.

    Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | महर्षि दयानन्द में शिव के दर्शन | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • मानव-निर्माण में आर्यसमाज का महत्व-2

    संस्कारों का महत्व-व्यक्ति के निर्माण में सबसे बड़ा हाथ है संस्कारों का। यदि किसी समाज के व्यक्ति अच्छे हैं तो वह समाज निश्चय ही अच्छा होगा। किन्तु अच्छे समाज के निर्माण के लिए समाज के प्रत्येक घटक का निर्माण आवश्यक है और यह कार्य संस्कारों के द्वारा जितने सुन्दर रूप में सम्पादित हो सकता है, दूसरे किसी उपाय से नहीं। मानव के समुचित विकास के लिए आर्य समाज की दृष्टि में सोलह संस्कार आवश्यक हैं। इन संस्कारों के करने से शरीर और आत्मा सुसंस्कृत होने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त हो सकते हैं और सन्तान अत्यन्त योग्य होती है। आज संसार में जो सन्ताप दिखाई दे रहे हैं, उनका एक कारण यह भी है कि व्यक्ति संस्कार-विहीन हो गया है। जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी को चाक पर चढा कर उसे जैसा चाहता है, वैसा रूप दे देता है, उसी प्रकार संस्कारों की चाक पर चढाकर मनुष्य का यथोचित निर्माण किया जा सकता है। संस्कारों की अग्नि में तप कर व्यक्ति कुन्दन के समान भास्कर हो उठता हैं।

    व्यक्ति परिवार का अंग है। आदर्श व्यक्तियों के योेग से आदर्श परिवार का निर्माण होता है। परिवार का निर्माण होता है। परिवार की सुख-शॉंति के लिए एक दूसरे के प्रति त्याग का भाव और सामंजस्य आवश्यक है। स्वार्थ पर टिका सम्बन्ध कभी स्थायी नहीं हो सकता। प्रत्येक परिवार की सुख-समृद्धि के लिए आर्य समाज की पंच-महायज्ञों में आस्था है । यज्ञों के द्वारा व्यक्ति, परिवार और समाज का कल्याण निश्चित है।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    भारत की गुलामी का कारण
    Ved Katha Pravachan - 99 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    पारिवारिक जीवन का आधार पति-पत्नी और सन्तान हैं। गृहस्थी की गाड़ी सुचारु रूप से चले, इसके लिए इनमें उचित सहयोग और कर्त्तव्य-निष्ठा आवश्यक है। सन्तान के निर्माण में माता-पिता का बहुत बड़ा हाथ रहता है। यदि माता-पिता आदर्श हैं तो सन्तान भी आदर्श बनेगी। इस सन्दर्भ में ऋषिवर दयानन्द सरस्वती का यह कथन सर्वथा उपयुक्त है- "जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात्‌ एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो, तभी मनुष्य ज्ञानवान होता है। वह कुल धन्य! वह सन्तान बड़ी भाग्यवान! जिसके माता और पिता धार्मिक-विद्वान हैं। जितना माता से सन्तान को उपदेश और उपकार पहुंचता है, उतना किसी से नहीं।"(सत्यार्थ प्रकाश, द्वितीय समुल्लास)

    सामाजिक चिन्तन-आर्य समाज की सामाजिक चिन्तन धारा भी है। इस विचार-धारा को स्वीकार कर लेने पर आदर्श समाज का निर्माण सहज सम्भव है। आर्य समाज वर्णाश्रम व्यवस्था का आधार गुण-कर्म-स्वभाव को मानता है। आर्य समाज सभी मनुष्यों को समान मानकर छुआछूत का विरोध करता है। वह शूद्रों और स्त्रियों को भी वेदाध्ययन का अधिकार देता है। इस सन्दर्भ में स्वामी दयानन्द का तर्क है कि "जो परमेश्वर का अभिप्राय शूद्र आदि के पढाने-सुनाने का न होता तो इनके शरीर में वाक्‌ और श्रोत्र इन्द्रिय क्यों रचता? (सत्यार्थ प्रकाश, तृतीय समुल्लास)

    आर्य समाज ने कभी इस विचार धारा का समर्थन नहीं किया- स्त्री शूद्रौ नाधीयताम्‌। इसके विपरीत आर्य समाज ने "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:" का उद्‌घोष कर नारियों को समाज में उचित स्थान दिलाया, उनकी महत्व प्रतिष्ठा की। बाल-विवाह, वृद्ध-विवाह और बहु-विवाह का निषेध कर आर्य समाज ने विधवा विवाह का समर्थन किया। सती-प्रथा जो मानवता के नाम पर कलंक थी, का विरोध कर आर्य समाज ने समाज-सुधार का बहुत बड़ा कार्य किया। सामाजिक अभ्युत्थान की दृष्टि से यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपनी ही उन्नति से सन्तुष्ट न हो वरन्‌ सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझे। (देखिए : नियम 9) इसी प्रकार सामाजिक आचार-संहिता की दृष्टि से यह कथन भी उचित ही हे कि "सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतन्त्र रहें।

    मानव-निर्माण में आर्य समाज की धार्मिक दृष्टि का महत्वपूर्ण स्थान है। मानव का व्यावर्तक गुण धर्म ही है। धर्म के अन्तर्गत आर्य समाज ने नैतिकता के शाश्वत और सार्वभौम प्रतिमानों को स्वीकृति दी है। मनु की धर्म विषयक दृष्टि को स्वीकार कर आर्य समाज ने धर्म के निम्नांकित दस लक्षणों को मान्यता दी है-

    घृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रह:।
    घीर्विद्यासत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।।

    धर्म के इस स्वरूप को आत्मसात कर कोई भी मनुष्य अपने जीवन को आदर्शात्मक परिणति दे सकता है। सत्य, न्याय और पुरुषार्थ की महत्व प्रतिष्ठा कर आर्य समाज ने मनुष्य मात्र को आत्म-निर्माण का सीधा-सच्चा रास्ता दिखाया है।

    आर्य समाज की धार्मिक दृष्टि- धर्म के नाम पर फैली कुरीतियों, बुराइयों, अनाचारों और मिथ्याडम्बर का आर्य समाज ने उसी प्रकार आपरेशन किया, जैसे कि कोई कुशल सर्जन किसी फोड़े का करता है। धर्म के वास्तविक स्वरूप का उद्‌घाटन कर इस समाज ने एक ही ईश्वर की उपासना पर बल दिया। आर्य समाज की स्पष्ट दृष्टि में ईश्वर सच्चिदानन्द-स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान्‌, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है, उसी की उपासना करनी योग्य है। (नियम 2)

    आर्य समाज का आर्थिक और राजनीतिक चिन्तन भी धर्म-नियन्त्रित है। धर्म अर्थ और काम का नियामक है। अत: "सब काम धर्मानुसार, अर्थात्‌ सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिएं।" (नियम 5) "सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए" (नियम 4) क्योंकि सत्य से बड़ी शक्ति इस संसार में दूसरी नहीं है। अन्तिम विजय हमेशा सत्य की होती है- सत्यमेव जयते। सत्य की स्थापना के ही  लिए आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द ने वेद-विरुद्ध मत-मतान्तरों का "सत्यार्थ-प्रकाश" में खण्डन करते हुए वैदिक धर्म का पुनरुद्धार किया है। धर्म में क्षेत्र में व्याप्त पाखण्डों-श्राद्ध, तीर्थ, भूत-प्रेतादि विषयक धारणाओं के पारम्परिक रूप का निरसन कर ऋषिवर ने इनके वास्तविक स्वरूप का उद्‌घाटन किया है। ऋषि के इन क्रान्तिकारी विचारों से मनुष्य मात्र का निश्चय ही कल्याण हुआ है। पर दु:खकातर स्वामी दयानन्द ने परोपकार को धर्म का मूल माना है। अहिंसा और जीवदया के वे पक्षपाती हैं। यहॉं तक कि स्वयं को विष देने वाले अपराधियों को भी उन्होंने बन्धन-मुक्ति दी है। उनका विचार था कि "मैं संसार के प्राणियों को कैद कराने के लिए नहीं आया। कैद से छुड़ाने के लिए आया हूँ। यदि दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ता तो हम लोग अपनी सद्‌भावना क्यों छोड़े?" (महर्षि दयानन्द : जीवन और दर्शन, वैद्य नारायणदत्त सिद्धान्तालंकार) स्वामी जी के शिष्यों में अनेक मुसलमान भी थे। यह इस बात का साक्षी है कि आर्य समाज धर्म, जाति, सम्प्रदाय, कुल आदि की संकीर्ण भावनाओं से मुक्त एक व्यापक मानवतावादी आदर्श समाज का पक्षपाती है।

    महर्षि दयानन्द सरस्वती के जीवनादर्शों के अनुरूप आर्य समाज भी मानव निर्माण के रचनात्मक कार्य में अपनी पूरी शक्ति के साथ जुड़ा है। संसार के प्राणियों को दुर्गुणोंकुविचारों और संस्कारों से मुक्त कर आर्य समाज उनके अन्तस्‌ में सद्‌गुण  और सद्‌विचार भर रहा है। बौद्धिकता, तार्किकता और विवेक के आधार पर वह मनुष्य को अपने भीतर छिपी इन्सानियत को पहचानने की अद्‌भुत शक्ति दे रहा है। वर्ग, जाति, लिंग, देश, काल, सम्प्रदाय आदि की क्षुद्र दीवारों को गिरा कर वह एक ऐसे आदर्श समाज की रचना में लीन है, जो आर्य है, श्रेष्ठ है। आर्य समाज ने धरती के प्रत्येक मनुष्य को ऐसा रास्ता दिखाया है, जिस पर चल कर मनुष्य दु:ख और अशांति से छुटकारा पाकर प्रेम, शांति और आनन्द से हंसता हुआ अपनी जीवन-यात्रा पूरी कर सकता है।

    निश्चय ही पिछली लगभग डेढ शताब्दी में आर्य समाज ने मानव-निर्माण का अभूतपूर्व कार्य किया है। उसने मनुष्य को वास्तविक अर्थों में मनुष्य बनने का मार्ग दिखाकर भौतिक और आध्यात्मिक जीवन-मूल्यों में अद्‌भुत सामंजस्य स्थापित करने का वरेण्य प्रयास किया है। लेखक-डॉ.सुन्दरलालकथूरिया

    Contact for more info.-

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmarriagehelpline.com 

    ------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindore.org 

     

    The person is part of the family. The ideal family is formed by the involvement of ideal people. Family is formed. A sense of harmony and harmony towards each other is essential for the happiness and happiness of the family. Relations based on selfishness can never be permanent. The Arya Samaj has faith in the Five Mahayagas for the happiness and prosperity of every family. The welfare of the individual, family and society is ensured through Yajna.

    Importance of Arya Samaj for Human Development-2 | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj  Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Bharatpur - Balaghat - Barwani - Beed - Bhandara - Barmer | Official Web Portal of Arya Samaj Mandir Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Marriage Helpline Indore India | Aryasamaj Mandir Helpline Indore | inter caste marriage Helpline Indore | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Indore | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj indore Bharat | human rights in india | human rights to marriage in india | Arya Samaj Marriage Guidelines India | inter caste marriage consultants in indore | court marriage consultants in india | Arya Samaj Mandir marriage consultants in indore | arya samaj marriage certificate Indore | Procedure Of Arya Samaj Marriage in Indore India. 

    Arya samaj wedding rituals in indore | validity of arya samaj marriage Indore | Arya Samaj Marriage Ceremony Indore | Arya Samaj Wedding Ceremony | Documents required for Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Legal marriage service Indore Bharat | inter caste marriage for prevent of untouchability in India | Arya Samaj Pandits Helpline Indore India | Arya Samaj Pandits for marriage Indore | Arya Samaj Temple in Indore India | Arya Samaj Pandits for Havan Indore | Pandits for Pooja Indore | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction Without Demolition Indore, Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Indore | Vedic Pandits Helpline Indore | Hindu Pandits Helpline Indore | Arya Samaj Hindu Temple Indore | Hindu Matrimony Indore | Arya Samaj Marriage New Delhi – Mumbai Maharashtra – Surat Gujarat - Indore – Bhopal – Jabalpur – Ujjain Madhya Pradesh – Bilaspur- Raipur Chhattisgarh – Jaipur Rajasthan Bharat | Marriage Legal Validity | Arya Marriage Validation Act 1937 | Court Marriage Act 1954 | Hindu Marriage Act 1955 | Marriage Legal Validity by Arya samaj.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • सत्यार्थप्रकाश की प्रासंगिकता

    ऋषि दयानन्द जिस समय सन्‌ 1860 में गुरु विरजानन्द जी के पास विद्याध्ययन के लिये पहुँचे, उस समय उनकी आयु 36 वर्ष की थी। 1863 में उन्होंने अपने गुरु से दीक्षा ली और उनके पास से अध्ययन समाप्त कर जीवन-क्षेत्र में उतर पड़े। इस समय वे 39-40 वर्ष के हो चुके थे। विरजानन्द जी के पास उन्होंने जो कुछ सीखा वही उनकी वास्तविक शिक्षा थी। क्योंकि इससे पहले वे जो कुछ पढ आये थे, उसे विरजानन्द जी ने भुला देने की उनसे प्रतिज्ञा ली थी। इस प्रकार ऋषि दयानन्द जी की यथार्थ शिक्षा 1960 से 1963 तक अर्थात्‌ कुल तीन वर्ष हुई थी। उन्होंने पीछे चलकर अपने जीवनकाल में जितने व्याख्यान दिये, जितने ग्रन्थ लिखे, जितने शास्त्रार्थ किये, वह इन तीन वर्षों के अध्ययन का ही परिणाम था। इसी से स्पष्ट होता है कि इन तीन सालों में उन्होंने जो पाया था वह कितना मूल्यवान था।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    वेद सन्देश- विद्या एवं ज्ञान प्राप्ति के चार चरण
    Ved Katha Pravachan _35 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


    अपने गुरु विरजानन्द जी से ऋषि दयानन्द ने जो गुर पाया था वह आर्ष तथा अनार्ष ग्रन्थों में भेद करना था। 36 वर्ष की आयु से पहले उन्होंने जो कुछ पढा था वह अनार्ष ग्रन्थों का अध्ययन था। आर्ष ग्रन्थों के अध्ययन ने उनके जीवन, उनके विचारों में जो क्रान्ति उत्पन्न कर दी उससे भारत के पिछले वर्षों का इतिहास बन गया।

    इस क्रान्ति का मूल स्रोत सत्यार्थ प्रकाश है। सत्यार्थप्रकाश 1874 में लिखा गया। मुरादाबाद के राजा जयकृष्णदास जी काशी में डिप्टी कलेक्टर थे तब ऋषि दयानन्द काशी पधारे। राजा जयकृष्ण दास ने ऋषि से कहा कि आपके उपदेशामृत से वे ही व्यक्ति लाभ उठा सकते हैं जो आपके व्याख्यान सुनते हैं। जिन्हें आपके व्याख्यान सुनने का अवसर नहीं मिलता उनके लिए अगर आप विचारों को ग्रन्थ रूप में लिख दें, तो जनता का बड़ा उपकार हो। ग्रन्थ के छपने का भार राजा जयकृष्णदास ने अपने ऊपर ले लिया। यह आश्चर्य की बात है कि यह बृहत्कार्य तथा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ, जिसे पं. गुरुदत्त विद्यार्थी ने 14 बार पढकर कहा कि हर बार के अध्ययन से उन्हें नया रत्न हाथ आता है, कुल साढे तीन महीनों में लिखा गया।

    केवल साढे तीन मास में- सत्यार्थप्रकाश का गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि इसमें 377 ग्रन्थों का हवाला है। इस ग्रन्थ में 1542 वेद-मन्त्रों या श्लोकों के उद्धरण दिये गये हैं। चारों वेद, सब ब्राह्मण ग्रन्थ, सब उपनिषद्‌, छहों दर्शन, अट्‌ठारह स्मृति, सब पुराण, सूत्रग्रन्थ, जैन-बौद्ध ग्रन्थ, बायबल, कुरान इन सबके उद्धरण ही नहीं, उनके रेफरेंस भी दिये गये हैं। किस ग्रन्थ में कौन-सा मन्त्र या श्लोक या वाक्य कहॉं है, उसकी संख्या क्या है यह सब कुछ इस साढे तीन महीनों में लिखे ग्रन्थ में मिलता है। आज का कोई रिसर्च स्कालर अगर किसी विश्वविद्यालय की संस्कृत की अप-टु-डेट लायब्रेरी में, जहॉं सब ग्रन्थ उपलब्ध हों, इतने रेफरेंस वाला कोई ग्रन्थ लिखना चाहे तो भी उसे सालों लग जायें, जिसे ऋषि दयानन्द ने साढे तीन महीनों में तैयार कर दिया था। साधारण ग्रन्थ की बात दूसरी है। सत्यार्थप्रकाश एक मौलिक विचारों का ग्रन्थ है। ऐसा ग्रन्थ जिसने समाज को एक सिरे से दूसरे सिरे तक हिला दिया। जिन ग्रन्थों ने संसार को झकझोरा है उनके निर्माण में सालों लगे हैं। कार्ल मार्क्स ने 34 वर्ष इंग्लैण्ड में बैठकर "कैपिटल" ग्रन्थ लिखा था जिसने विश्व में नवीन आर्थिक दृष्टिकोण को जन्म दिया।  मार्क्स के ग्रन्थ ने यूरोप का आर्थिक ढॉंचा हिला दिया तथा ऋषि दयानन्द के ग्रन्थ ने भारत का सांस्कृतिक तथा सामाजिक ढॉंचा हिला दिया।

    क्रान्तिकारी विचारों का खजाना- सत्यार्थप्रकाश चुने हुए क्रान्तिकारी विचारों का खजाना है। ऐसे विचारों का जिन्हें उस युग में कोई सोच भी नहीं सकता था। समाज की रचना जन्म के आधार पर नहीं होनी चाहिए, सत्यार्थ-प्रकाश का यही एक विचार इतना क्रान्तिकारी है कि इसके व्यवहार में आने से हमारी 60 प्रतिशत समस्याएँ हल हो जाती हैं। ऐसे संगठन में जन्म से न कोई ऊँचा, न कोई नीचा, जन्म से न कोई गरीब, न कोई अमीर, जो कुछ हो कर्म हो। ऐसी स्थिति में कौन-सी समस्या है जो इस सूत्र से हल नहीं हो जाती।

    शिक्षा क्षेत्र में गुरुकुल शिक्षा- प्रणाली का विचार सत्यार्थप्रकाश की ही देन है, जिसे पकड़ कर उत्तर भारत में जगह-जगह गुरुकुलों का जाल बिछ गया। आज भी हमारी शिक्षा-प्रणाली की जो छीछालेदार हो रही है, उसका इलाज गुरुकुल शिक्षा-प्रणाली में ही निहित है।

    लोकमान्य तिलक ने कहा था-"स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।" दादा भाई नौरोजी ने भी "स्वराज्य" शब्द का प्रयोग किया था। इन सबसे पहले ऋषि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश के 8वें समुल्लास में लिखा था-"कोई कितना ही कहे, परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है, वह सर्वोपरि उत्तम होता है।" ऋषि दयानन्द के ये वाक्य उस जगत्‌-प्रसिद्ध अंग्रेजी वाक्य से जिसमें कहा गया था- “Good government is no substitute for self-government”  से इतने मिलते-जुलते हैं कि 1874 में अंग्रेजों के राज्य में कोई व्यक्ति यह लिखने का साहस कर सकता था, यह जानकर आश्चर्य होता है।

    आज जिन समस्याओं को लेकर हम उलझे हैं, हरिजनों की समस्या, स्त्रियों की समस्या, गरीबी की समस्या, शिक्षा की समस्या, राष्ट्र-भाषा की समस्या, चुनाव की समस्या, नियम तथा व्यवस्था की समस्या, गोरक्षा की समस्या आदि कौन सी समस्या है जिसका हल सत्यार्थप्रकाश में मौजूद नहीं है और कौन-सा ऐसा हल आज के राजनीतिज्ञों ने ढूँढ निकाला हे, जो सत्यार्थ प्रकाश में पहले से नहीं है।

    वेदों के नाम पर-हिन्दू-समाज की सबसे बड़ी समस्या वेदों की थी। यहॉं हर-कोई हर बात के लिए वेदों का नाम लेता था। स्त्रियों तथा शूद्रों को वेद पढने का अधिकार क्यों नहीं? क्योंकि वेदों में लिखा है- "स्त्री शूद्रौ नाधीयताम्‌।" बाल-विवाह क्यों नहीं होना चाहिए? क्योंकि वेदों में लिखा है- "अष्टवर्षा भवेत्‌ गौरी नववर्षा च रोहिणी। पिता चैव ज्येष्ठो भ्राता तथैव च, त्रयस्ते नरकं यान्ति दृष्टवा कन्यां रजस्वलाम्‌।" जन्म से वर्णव्यवस्था क्यों मानें? क्योंकि वेद में लिखा है- "ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत्‌" - ब्राह्मण परमात्मा के मुख और शूद्र उसके पॉंव से उत्पन्न हुए हैं। जैसे मुख बाहु और बाहु मुख नहीं बन सकता, इसी प्रकार  ब्राह्मण शूद्र तथा शूद ब्राह्मण नहीं बन सकता। जब ऋषि दयानन्द ने यह देखा कि वेदों का नाम लेकर हर संस्कृत वाक्य को वेद कहा जा रहा है और वेदों का उद्धरण देकर वेद-मन्त्रों का अनर्थ किया जा रहा है, तब उन्होंने निश्चय कर लिया कि वेदों को ही केन्द्र बनाकर हिन्दू-समाज की रक्षा की जा सकती है और वह रक्षा तभी की जा सकती है, जब जन-साधारण की समझ में आ जाये कि वेदों में क्या कहा गया है।

    वैदिक वाड्‌मय के सम्बन्ध में ऋषि दयानन्द की खोज यह थी कि हर संस्कृत वाक्य तथा हर संस्कृत ग्रन्थ वेद नहीं है। ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्‌, स्मृति, पुराण, सूत्र-ग्रन्थ ये सब वेद नहीं हैं। इन ग्रन्थों में जो कुछ लिखा है वह अगर वेद-विरुद्ध है तो वह त्याज्य है, जो वेदानुकूल है वही  स्वीकार करने योग्य है। ऋषि दयानन्द का हिन्दू-समाज को कहना यह था कि अगर वेद को तुम अपनी संस्कृति का आधार मानते हो, तो इस पैमाने को लेकर चलना होगा। तुम जो चाहो वह वेद नहीं है, वेद जो है वह मानना होगा। इस कसौटी पर कसने से हिन्दू-समाज की 60 प्रतिशत रुढियॉं अपने आप गिर जाती हैं। इस विचारधारा को प्रकट करने के लिए उन्होंने दो शब्दों का प्रयोग किया-आर्ष ग्रन्थ तथा अनार्ष ग्रन्थ। अब तक संस्कृत साहित्य में इस दृष्टि को किसी ने नहीं अपनाया था। संस्कृत के हर ग्रन्थ में जो कुछ लिखा मिलता था वह प्रामाणिक मान लिया जाता था। ऋषि दयानन्द ने इस विचार को ध्वस्त कर दिया।

    वेदों के शब्द रूढिज नहीं- वेदों के सम्बन्ध में ऋषि दयानन्द की दूसरी खोज यह थी कि वेदों के शब्द रूढिज नहीं, यौगिक हैं। यद्यपि यह विचार नया नहीं था, निरुक्तकार का भी यही कहना था। तो भी वेदों के सभी भाष्यकारों ने वैदिक शब्दों के रूढि अर्थ ही किये थे। सायण, उव्वट, महीधर तथा उनके पीछे चलते हुए पाश्चात्य विद्वानों मैक्समूलर, राथ, विल्सन, ग्रासमैन ने मक्खी पर मक्खी मार अनुवाद किया था। सायण आदि एक तरफ वेदों को ईश्वरीय ज्ञान मानते थे तो दूसरी तरफ उनमें इतिहास भी मानते थे, जो वेदों के ईश्वरीय ज्ञान होने के सिद्धान्त से टकराता था। इस बात की उन्हें कोई चिन्ता नहीं थी। असल में सायण का भाष्य किसी गम्भीर विद्वत्ता से नहीं किया गया था, वह एक विशिष्ट लक्ष्य को सामने रखकर किया गया था। दक्षिण के विजयनगर हिन्दू-राज्य के राजा हरिहर और बुक्का के वे मन्त्री थे। मुस्लिम संस्कृति राज्य में प्रतिष्ठित न हो जाये, इसलिए संस्कृत वाड्‌मय का प्रसार करना मात्र इस भाष्य का उद्देश्य था। यही कारण था कि सायण या महीधर के भाष्य गहराई तक नहीं गये और असंगत बातों के शिकार रहे। वह यज्ञों का समय था। इसलिए भाष्यकार समझते थे कि वेदों के अग्नि, वायु, इन्द्र आदि देवता सचमुच स्वर्ग से यज्ञों में पधारते हैं और दान-दक्षिणा आदि लेकर तथा यजमान को आशीर्वाद देकर स्वर्ग चले जाते हैं। पाश्चात्य विद्वानो को यह बात अपनी विचारधारा के अनुकूल पड़ती थी। उनका विचार विकासवाद पर आश्रित था। आदि में मानव जंगली था। जंगली आदमी सूर्य को, अग्नि को और वायु को देवता समझकर पूजे तो यह युक्तियुक्त प्रतीत होता है। पाश्चात्य विद्वान कहने लगे कि वैदिक ऋषि क्योंकि जंगली थे इसलिए अनेक देवताओं को पूजते थे। इस निष्कर्ष में सायण आदि के भाष्य उनके विचारों की पुष्टि करते थे।

    ऋषि दयानन्द ने इस विचार को भी ठोकर मार कर गिरा दिया। वेदों से ही उन्होंने सिद्ध किया कि अग्नि आदि नाम विभिन्न देवताओं के नहीं अपितु एक ही परमेश्वर के हैं।  ऋग्वेद में लिखा है-एकं सद्‌ विप्रा बहुधा वदन्ति अग्निं यमं मातरिश्वानमाहु। परमात्मा एक है, उसे अनेक नामों से स्मरण किया जाता है। इस एक मन्त्र से सारा का सारा विकासवाद कम-से-कम जहॉं तक वेदों का सम्बन्ध है, ढह जाता है।

    तीन प्रकार के अर्थ- ऋषि दयानन्द का कहना था कि वैदिक शब्दों के तीन प्रकार के अर्थ होते हैं- आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक। उदाहरणार्थ- इन्द्र का आधिभौतिक अर्थ अग्नि, विद्युत, सूर्य आदि है, आधिदैविक अर्थ राजा, सेनापति, अध्यापक आदि दैवीय गुणवाले व्यक्ति हैं, आध्यात्मिक अर्थ जीवात्मा, परमात्मा आदि हैं। इसी प्रकार अन्य शब्दों के विषय में कहा जा सकता है। इस कसौटी को सामने रखकर अगर वेदों को समझा जाये, तो न उनमें इतिहास मिलता है, न बहुदेवतावाद मिलता है, न जंगलीपन मिलता है, न विकासवाद मिलता है।

    वेदों के जितने भाष्यकार हुए हैं, इस देश के तथा विदेशों के उनमें सबसे ऊँचा स्थान ऋषि दयानन्द का है। अगर वेदों को किसी ने समझा तो ऋषि दयानन्द ने। अरविन्द घोष ने लिखा है-

     “In the matter of Vedic interpretation Dayanand will be honoured as the first discoverer of the right clues. Amidst the chaos and obscurity of old ingnorance and agelong misunderstanding, his was the eye of direct vision, that pierced the truth and fastened on that which was essential.”

    इस प्रकार इस युग के महायोगी श्री अरविन्द का कहना है कि जहॉं तक वेदों का प्रश्न है, दयानन्द सबसे पहला व्यक्ति था जिसने वेदों के अर्थों को समझने की असली कुञ्जी खोज निकाली। वेदों का अर्थ समक्षने के लिए सदियों से जिस अन्धकार में हम रास्ता टटोल रहे थे उसमें दयानन्द की दृष्टि ही इस अन्धकार को भेदकर यथार्थ सत्य पर जा पहुँचती थी।

    उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में अनेक समाज सुधारक हुए। ऋषि दयानन्द, राजा राममोहनराय, केशवचन्द्र सेन इसी युग की उपज थे। वे सब एक तरफ हिन्दू-समाज के पिछड़ेपन को देख रहे थे, दूसरी तरफ पश्चिमी देशों की प्रगतिशीलता को देख रहे थे। यह सब देखकर वे हिन्दू-समाज को रूढियों की दासता से मुक्त करना चाहते थे। ऋषि दयानन्द तथा दूसरों की विचारधारा में भेद यह था कि जहॉं दूसरे हिन्दू-धर्म, हिन्दू-संस्कृति तथा हिन्दुत्व को समाप्त करने पर तुल गये, वहॉं ऋषि दयानन्द ने हिन्दुओं को हिन्दु रखते हुए उन्हें नवीनता के नये रंग में रंग दिया। कोई वृक्ष जड़ के बिना नहीं खड़ा रह सकता है। जड़ कट जाये, तो वृक्ष गिर जाता है। जड़ को मजबूत बनाकर जो वृक्ष उठता है, वही टिका रहता है।

    कोई समाज अपने भूत के बिना नहीं जी सकता। भूत में पैर जमाकर भविष्य की तरफ बढना, पीछे भी देखना, आगे भी देखना यही किसी समाज के जीवन का गुर है। ऋषि दयानन्द ने इसी गुर को पकड़ा था। पीछे वेदों की ओर देखो, उसमें जमकर आगे भविष्य की ओर पग बढाओ। भूत को छोड़ दोगे तो वृक्ष की जड़ कट जाएगी। भविष्य की अनदेखी कर उठ नहीं सकोगे। यही सत्यार्थ प्रकाश का सन्देश है। - डॉ. सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार 

    Contact for more info.-

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org 

    ----------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

     

    The trick that Rishi Dayanand got from his Guru Virjanandji was to distinguish between joy and non-scripture. What he had read before the age of 36 was the study of non-human texts. The history of the last years of India became a history due to the revolution that arose in his life, his thoughts, by the study of the Aasha texts.

    The relevancy of Styarth Prakash the Light of Truth | Arya Samaj Indore - 9302101186 | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Katni - Khandwa - Pune - Raigad - Nagaur - Pali | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore MP | Arya Samaj Mandir in Indore |  Arya Samaj Marriage | Arya Samaj in Madhya Pradesh - Chhattisgarh | Arya Samaj | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Hindu Matrimony | Matrimonial Service.

    Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Contact for more info | Arya Samaj in India | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj in India | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | सत्यार्थप्रकाश की प्रासंगिकता | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Hindu Matrimony | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आर्य महापुरुष | महर्षि दयानन्द

  • समय के प्रवाह को बदलने वाले

    लोग कहते हैं कि बदलता है जमाना अक्सर।
    मर्द वो हैं जो जमाने को बदल देते हैं।

    समय के प्रवाह के साथ प्रायः सभी वह जाते हैं। कोई विरला ही ऐसा महामानव होता है, जो समय के प्रवाह को बदलने में समर्थ होता है। ऐसे महामानव इतिहास में अपना नाम अमर कर जाते हैं। "श्रीयुत स्वामी श्रद्धानन्द जी उन महामना मनुष्यधुरीणों में से थे, जो समय की उपज नहीं होते, अपितु समय को बनाया करते हैं। साधारणतया नेता लोकरुचि का प्रवाह देखकर उसमें वेग या प्रचण्डता पैदा करके ख्याति प्राप्त किया करते हैं। श्रद्धानन्द इसका अपवाद हैं।'' ये वाक्य एक अन्य संन्यासी स्वामी वेदानन्द जी तीर्थ के हैं, जो अक्षरशः सत्य हैं। अपने कथन की पुष्टि में श्री स्वामी वेदानन्द जी तीर्थ गुरुकुल स्थापना का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए लिखते हैं कि- "जिस समय महात्मा मुन्शीराम जी ने इसकी स्थापना का संकल्प किया, उस समय लोगों में इसके लिए कोई अनुकूल भावना न थी, कदाचित्‌ प्रतिकूल भावना भी जागृत न थी। श्रद्धानन्द जी को सत्यार्थप्रकाश से गुरुकुल शिक्षा प्रणाली का एक भाव मिला। उसको उन्होंने समय प्रवाह की परवाह न करते हुए मूर्तरूप दे ही डाला। यह  है उनकी निर्माण कुशलता और इसी कारण वे असाधारण महापुरुष की पंक्ति में समादृत हुए हैं और आचन्द्रदिवाकर होते रहेंगे।'' 

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए-
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    जीवन के बाधक दुरितों के निवारण से सुख

    Ved Katha Pravachan _74 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    प्रवाह के विरुद्ध - उस समय गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की विचारधारा को क्रियान्वित करना कोई बच्चों का खेल नहीं था। नई कालेजी शिक्षा के बढ़ते काल में प्राचीन गुरुकुल शिक्षापद्धति को प्रचलित करना स्वयं में एक समस्या थी। लोगों के मन में प्रायः यह शंका उठा करती थी कि केवल संस्कृत पढ़ा व्यक्ति अपनी आजीविका कैसे अर्जित कर पायेगा? कोई कहता था कि माता-पिता के बिना बच्चे गुरुकुल में कैसे रह पायेंगे? फिर उसके लिए धन जुटना कोई सरल बात नहीं थी। इस सम्बन्ध में पं. इन्द्र विद्यावचस्पति लिखते हैं कि- "आज तीस हजार रुपये इकट्‌ठा करना बच्चों का खेल मालूम होता है। परन्तु तब गुरुकुल के लिये तीस रुपये भी एकत्र करना असम्भव सा प्रतीत होता था। जब हितैषियों ने पिता जी की बात सुनी तो यह समझा कि इस व्यक्ति का दिमाग फिर गया है। लोग यह भी नहीं जानते थे कि "गुरुकुल' किस चिड़िया का नाम है?'' 

    आर्यसमाज लाहौर के वाषिकोत्सव पर आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब का भी अधिवेशन चल रहा था। उसमें गुरुकुल स्थापना का विषय उपस्थित हुआ। पक्ष-विपक्ष में अनेक वक्ता बोल चुके। किन्तु विवाद था कि समाप्त होने में ही न आ रहा था। इतने में एक सदस्य खोल उठा- "अच्छा प्रधान जी! अब आपकी भी सुननी चाहिए। प्रधान थे श्री स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज। वे अपने आसन से उठे और अति गम्भीर भाव से चारों ओर दृष्टि डालकर ब्रह्मचर्याश्रमपूर्वक गुरुकुल शिक्षा-पद्धति पर प्रकाश डालने लगे। इतने में जनता में से एक धीमी सी आवाज फिर उठी कि- "धन कहॉं से आयेगा?'' बस फिर क्या था, प्रधान जी गरज उठे- '"मुन्शीराम जब तक तीस हजार न जमा कर लेगा, घर में घुसना उसके लिये हराम होगा।'' बस इस घोषणा के साथ समय ने नया मोड़ लिया और यह विवाद कि गुरुकुल खोला जाये या नहीं समाप्त हो गया। फिर भी लोगों के मन में यह शंका बनी रही कि यह वकील साहब इतना धन कैसा इकट्‌ठा कर पायेंगे?

    इस सम्बन्ध में पं. सत्यदेव विद्यालंकार का कथन है कि तीस हजार रुपया इकट्‌ठा करना उस समय मामूली बात न थी। पर वह था धुन का पक्का। उसे यह सवाल हल करना ही था कि "कौमें पागलों के पीछे होती हैं।'' और वस्तुतः गुरुकुल-शिक्षा प्रणाली के लिए पागल उस महामानव ने यह कार्य कर दिखाया। गुरुकुल की स्थापना हुई। अब प्रश्न था कि बच्चे कहॉं से आयेंगे। तब उस दीवाने ने सबसे पहले अपने बच्चे इस कार्य के लिए समर्पित किये और शिक्षक के रूप में भी स्वयं को प्रस्तुत कर दिया। इस प्रकार जो विचार एक स्वप्न सा दिखाई देता था, वह साकार हो उठा और समय मुंह ताकता रह गया। 

    चुनौती का सामना - स्वामी जी के जीवन में एक अवसर और आया, जब उन्होंने समय की चुनौती को स्वीकारा और उसे पराजित करके रख दिया। जलियांवाला बाग में जनरल डायर द्वारा भयंकर नरसंहार के बाद अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन होना था, जिसकी अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू को करनी थी। परन्तु इस भयंकर नरसंहार के बाद अमृतसर की जनता इतनी भयभीत थी कि कोई कांग्रेस का नाम तक लेने को तैयार न था। परिणाम यह हुआ कि स्वागताध्यक्ष बनने को कोई तैयार न हुआ। अन्त में सबकी नजर स्वामी श्रद्धानन्द पर गई और स्वामी जी ने समय की इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। 

    एक बड़े से सूखे तालाब के बीचों-बीच गहरे स्थान पर ऊंचा सा मञ्च बनाया गया। चारों ओर दर्शक-दीर्घाएं बनाई गई। एक ओर प्रेस-प्रतिनिधियों के लिए स्थान निर्धारित किया गया । इस प्रकार एक बहुत बड़ा पण्डाल बनकर तैयार हो गया। प्रतिनिधियों और स्वयंसेवकों के निवास के लिए छोलदारियां और तम्बू लगाये गये। अधिवेशन में दो-तीन दिन ही शेष थे कि एक दिन भयंकर तूफान के साथ मूसलाधार वर्षा और आन्धी आ गई, जिससे सारा पण्डाल ध्वस्त हो गया और अधिवेशन स्थल पानी से भर गया। अब और पण्डाल बनाने के लिये न तो समय था और न ही स्थान। ऐसी विषम परिस्थिति में कांग्रेस के अधिकारियों ने यही उचित समझा कि इस वर्ष का अधिवेशन स्थगित कर दिया जाये। 

    पर आपदाओं के साथ टक्कर लेने में अभ्यस्त स्वामी जी इसके लिये तैयार न हुए। उन्होंने घोषणा कर दी कि कांग्रेस का अधिवेशन अवश्य होगा और पूर्व-निर्धारित तिथियों में ही होगा। सभी आश्चर्यचकित थे कि यह कैसा व्यक्ति है, जो परिस्थितियों के आगे झुकना जानता ही नहीं और हर असम्भव बात को सम्भव कर दिखाना बड़ा सहज समझता है। स्वामी जी ने अमृतसरवासियों के नाम एक अपील जारी की और ऐसी विषम परिस्थिति में हरसम्भव सहायता के लिए प्रेरित किया। 

    बस फिर क्या था, नगर के सैकड़ों व्यापारी एवं स्वयंसेवक एकत्र होकर सेवा करने के लिए आगे आये और सबके सब परस्पर कन्धे से कन्धा मिलाकर अधिवेशन को सफल बनाने के काम में जुट गये। 15-20 पम्पसैट लगाकर पण्डाल का सारा पानी निकाला गया, सारे मलबे का ढेर एक ओर हटाकर उस पर सूखी राख बिछा दी गई। दोबारा बृहत्‌ पण्डाल तैयार किया गया और पूरी तैयारी हो गई। लगता था कि जैसे कुछ हुआ ही न हो। केवल प्रतिनिधियों को ठहराने की व्यवस्था शेष रह गई। 

    स्वामी जी ने पुनः एक अपील जारी की कि प्रत्येक अमृतसर निवासी कम से कम एक अतिथि को अपने यहॉं ठहराने और भोजन आदि की व्यवस्था करें। स्वामी जी की इस अपील पर सैकड़ों आर्यसमाजी स्टेशन पर पहुंच गये और अपनी-अपनी सामर्थ्यानुसार अतिथियों को अपने घर लिवा ले गये। इस प्रकार हजारों अतिथियों के निवास, भोजन आदि की व्यवस्था की समस्या का चुटकियों में समाधान हो गया। यह कार्य स्वामी श्रद्धानन्द जी जैसे दृढ़संकल्प वाले व्यक्ति के ही बस का था और उन्होंने इसे करके भी दिखा दिया। लक्ष्य है-

    बहादुर कब किसी का अहसान लेते हैं?
    वही वो कर गुजरते हैं, जो दिल में ठान लेते हैं।

    वस्तुतः स्वामी श्रद्धानन्द समय की हर चुनौती का सामना करने के लिए सदैव समुद्यत रहते थे। वे समय के दास नहीं थे, समय के निर्माता थे। -आचार्य डॉ.संजयदेव

    स्वामी श्रद्धानन्द 

    चरण स्पर्शों से उन्हीं के पूत गंगाधर थी।
    वाणियों से वेद सरिता प्रेम की आगार थी।। 

    ज्ञान से था बुद्ध आत्मा, सत्य से मन शुद्ध था।
    मानवी कल्याण तप से, आत्म तेज प्रबुद्ध था।। 

    सब जनो की उन्नति में, एक उनका ध्यान था। 
    आर्य होवे जगत्‌ सारा, मनुज मात्र समान था।। 

    परम श्रद्धानन्द थे वे, ओज की इक मूर्ति थे। 
    त्याग और बलिदान में भी, आहुति की मूर्ति थे।। 

    देश सेवा जाति सेवा ध्येय था, इक लक्ष्य था। 
    दलित सेवा में बताओ, कौन जो समकक्ष था।। 

    आर्य संस्कृति धर्म वैदिक में उन्हें विश्वास था। 
    दास थे जो मनुजता के, जग उन्हीं का दास था।। 

    - डॉ. इन्द्रसेन जेतली

     

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmpcg.com 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajindorehelpline.com 

     

    Almost all of them go with the flow of time. There is a rare human who is able to change the flow of time. Such great human beings immortalize their names in history. "" Shriyut Swami Shraddhanandji was one of those great people who do not produce time, but make time. Generally, leaders get fame by seeing the flow of public interest and creating velocity or intensity in it. Shraddhanand is an exception to this.

    Change Flow of Time | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Helpline for Jabalpur - Jhabua - Osmanabad - Parbhani - Karauli - Kota | Official Web Portal of Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Indore MP | Arya Samaj Marriage Indore |  Arya Samaj Mandir Indore address | Arya Samaj and Vedas | Arya Samaj in India | Arya Samaj and Hindi | Marriage in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Ved Puran Gyan  | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi.

     Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | समय के प्रवाह को बदलने वाले | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ | धर्म | दर्शन | संस्कृति | प्रेरक-प्रसंग

  • सामाजिक उत्थान और आर्यसमाज

    उन्नीसवीं शताब्दी में भारत का अंग्रेजों द्वारा धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक शोषण अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया था। भारतीय समाज दोहरे संकट से गुजर रहा था। एक उसकी स्वयं की दयनीय दशा और दूसरा इस्लाम तथा ईसाइयत का तेजी से बढता हुआ सर्वग्रासी रूप। धर्म का वास्तविक स्वरूप लुप्त हो चुका था। पाखण्ड, आडम्बर, अन्धविश्वास आदि ने धर्म को आच्छादित कर लिया था। धर्म के नाम पर पापाचार पनप चुके थे। जात पांत, छुआछूत, बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसी कुरीतियॉं समाज को जर्जर कर रही थीं। सत्ती प्रथा तथा बहुविवाह, दहेज जैसी क्रूरताएं समाज में विद्यमान थीं। समाज में नैतिक अध:पतन हो जाने के कारण स्त्रियों की दशा अत्यन्त दयनीय थी। राजनीतिक स्वतन्त्रता के अभाव में तत्कालीन आर्थिक स्थिति जर्जर हो गई थी। अंग्रेजों की शोषण नीति के फलस्वरूप भारतीय कृषि व्यवस्था और कुटीर उद्योग धन्धे नष्ट हो गए थे। आर्थिक कठिनाइयों से त्रस्त निम्न वर्ग को ईसाई बनाया जा रहा था।

    जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
    वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
    वेद ज्ञान के आचरण से ही कल्याण।

    Ved Katha Pravachan - 101 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev

    राष्ट्र का पुनर्जागरण- ऐसे समय में पुनर्जागरण की लहर समाज में आयी। पुनर्जागरण का अर्थ है कुछ समय निद्रा के उपरान्त राष्ट्र के मानस एवं आत्मा का जाग्रत होना। धार्मिक और सुधारवादी आन्दोलनों में ब्रह्मसमाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, प्रार्थना समाज एवं थियोसोफिकल सोसाइटी प्रमुख हैं। राजा राममोहन राय ने पर्दा प्रथा, बहु विवाह, स्त्रियों में अशिक्षा, सती प्रथा आदि कुरीतियों के निराकरण का प्रयास किया। प्रार्थना समाज ने अवतारवाद, बहुदेववाह, मूर्ति पूजा, पुजारियों की सत्ता के विरोध के साथ-साथ धार्मिक एवं सामाजिक सुधार का प्रयत्न किया, जिससे हिन्दू समाज जाग्रत हो सके । रामकृष्ण परमहंस ने सभी धर्मों को समान बता कर धार्मिक समन्वय पर बल दिया। इसके पश्चात्‌ थियोसोफिकल सोसाइटी ने भारतीय संस्कृति के गौरव ग्रन्थों वेदों, उपनिषदों के अध्ययन एंव धर्माचरण की प्रेरणा दी।            

    वैदिक हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान- धार्मिक नवजागरण का सबसे प्रभावशाली कार्यक्रम आर्यसमाज द्वारा संचालित किया गया। आर्य समाज ने निराकार ब्रह्म की उपासना एवं भारतीय संस्कृति पर आधारित शिक्षा व्यवस्था सुलभ कराने पर बल दिया। धार्मिक पुनर्जागरण में आर्य समाज आन्दोलन ने महत्वपूर्ण कार्य सन्पादित किये। स्वामी दयानन्द सरस्वती उस सुधार और पुनर्गठन के समर्थक थे, जो विभिन्न मजहबों के समन्वय पर आधारित न हो कर शुद्ध हिन्दू परम्पराओं की मान्यताओं पर आधारित था। स्वामी दयानन्द का उद्देश्य धर्म निरपेक्षता अथवा ईसाई, इस्लामी धर्मों की मान्यताओं की एकता की खोज न करके वैदिक धर्म का पुनरुन्नयन करना है। स्वामी जी का विचार था कि हिन्दू धर्म में नवजीवन तभी आ सकता है, जब समाज में व्याप्त रूढियों, अन्धविश्वासों तथा निर्मूल परम्पराओं को समाप्त करके वैदिक धर्म की स्थापना की जाए।        

    वेद ज्ञान का मूल स्रोत- महर्षि दयानन्द ने हिन्दू समाज को संगठित करने का प्रयास किया। महर्षि दयानन्द के प्रेरणास्रोत वेद एवं अन्य प्राचीन ग्रन्थ थे। उन्होनें वेदों को समस्त ज्ञान का भण्डार सिद्ध किया और वैदिक ज्ञान के आलोक में भारतीय जनमानस में व्याप्त अज्ञानजनित अन्धकार को दूर करने का सार्थक प्रयास किया। स्वामी दयानन्द मुख्यत: धार्मिक सुधारक थे। उन्होंने स्त्री और शूद्रों को वेदाध्ययन का अधिकारी बनाया और निम्न वर्ग पर हो रहे अत्याचारों की निन्दा की। अपनी वाणी, लेखनी, व्याख्यान, शास्त्रार्थ द्वारा हिन्दू समाज को जाग्रत करने का प्रयास किया ।

    पाखण्डों का खण्डन- आर्य समाज आन्दोलन ने व्यापक आन्दोलन का रूप लिया और समाज को नवीन प्रकाश प्रदान किया। महर्षि दयानन्द के अनुसार धर्म का अभिप्राय कर्मकाण्ड के जटिल क्रिया जाल का पालन ही नहीं, अपितु धर्म उन उदात्त गुणों की समष्टि का नाम है, जो मनुष्य के नैतिक संवर्धन तथा आध्यात्मिक उत्थान में सहायक होते हैं। स्वामी दयानन्द ने वेद को धर्म का मूलाधार बताया है। अपने ग्रन्थों द्वारा पाखण्ड एवं अन्धविश्वास दूर करने का प्रयत्न किया।

    आर्य समाज के प्रचार प्रसार में अनेक वीतराग तपस्वी, संन्यासियों, विद्वानों और उत्साही प्रचारकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज आर्य समाज की अनेक शाखाएं वैदिक संस्कृति का प्रचार कर रही हैं।

    dayanand saraswati

    सामाजिक सुधार- सामाजिक क्षेत्र में स्वामी दयानन्द और आर्य समाज आन्दोलन का अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान है। तत्कालीन समाज में अल्पायु में बालक व बालिकाओं का विवाह कर दिया जाता था। महर्षि दयानन्द ने ब्रह्मचर्य पर बल दिया। विवाह की आयु न्यूनतम 24 वर्ष पुरुष एवं 16 वर्ष कन्या के लिए निर्धारित की। स्वस्थ स्त्री-पुरुष के विवाह से उत्तम सन्तान प्राप्त होती है। महर्षि ने वर एवं कन्या के गुण-कर्म-स्वभाव मिलने पर ही परस्पर विवाह करने का विधान बताया है।     

    आर्य समाज ने विधवाओं के लिए विधवाश्रम, अनाथों के लिए अनाथालयों की स्थापना की। तत्कालीन समाज में व्याप्त भूत प्रेत की पूजा, जादू टोनें में विश्वास, सन्तान प्राप्ति के लिए विविध कर्म, तन्त्र, मन्त्र आदि अन्धविश्वासों को महर्षि ने दूर करने का प्रयास किया। महर्षि ने जन्मगत जाति प्रथा का विरोध करते हुए गुण-कर्म के आधार पर वर्ण-व्यवस्था का पुन: निर्धारण किया। दलितों के उद्धार के लिए दलितोद्धार सभा, अछूतोद्धार सभा, दलितोद्धार संगठन आदि स्थापित किए गए, जिससे निम्न जातियों का उत्थान हो सके।

    वेदाध्ययन का अधिकार- महर्षि दयानन्द ने वेदों के प्रमाण द्वारा सभी को वेदाध्ययन का अधिकार दिया है। नर-नारी शूद्र सहित सभी को वेद पढने का अधिकार प्राप्त है। आर्य समाज के सुधार आन्दोलनों का भारतीय समाज और संस्कृति पर बहुमुखी प्रभाव पड़ा। आर्य समाज के प्रादुर्भाव के समय भारत धार्मिक और नैतिक दृष्टि से पतन की ओर अग्रसर था। समाज में बहुदेवतावाद, अवतारवाद, मूर्तिपूजा के प्रचलन के साथ-साथ धर्मों के नाम पर अनेक कुकर्म हो रहे थे। महर्षि ने निराकार, अजन्मा, परमात्मा की पूजा, आराधना, उपासना तथा सन्ध्या हवन करने की सलाह दी।

    राष्ट्रवादी शिक्षा- भारतवर्ष में राष्ट्रीय शिक्षा के अग्रदूतों में महर्षि दयानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा गान्धी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, मदनमोहन मालवीय और अरविन्द घोष प्रमुख हैं। भारतवर्ष में राष्ट्रीय शिक्षा के प्रर्वतक और उन्नायक महर्षि दयानन्द हैं। उन्होंने प्राचीन संस्कृति पर बल देते हुए गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति की आधारशिला रखी। उन्होंने आदर्शवाद, प्रकृतिवाद, समाजवादी दर्शन को समन्वित करते हुए सत्य, सदाचार एवं ब्रह्मचर्य पर बल दिया। शिक्षा वैयक्तिक एवं सामाजिक उन्नति के लिए है।        

    भारतवर्ष में स्त्री शिक्षा के उन्नायक महर्षि दयानन्द को माना जा सकता है। उन्होंने जाति भेदमूलक शिक्षा व्यवस्था का विरोध किया और स्त्रियों तथा शूद्रों को वेद पढने का अधिकार प्रदान किया। संस्कृत भाषा के ज्ञान के बिना शिक्षा अपूर्ण है। स्वामी जी का विचार है कि स्वावलम्बन की भावना शिक्षा के मूल में होनी चाहिए। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति के शिक्षित होने पर बल दिया। वर्तमान समय में गुरुकुल, कन्या गुरुकुल, डी.ए.वी. कालेज, आर्य बाल विद्या मन्दिर, आर्य माडल स्कूल, आर्य पब्लिक स्कूल आदि में परम्परागत भारतीय संस्कृति और नवीन पाश्चात्य ज्ञान के समन्वय के आधार पर इस समय शिक्षा दी जा रही है। पांच हजार से भी अधिक शिक्षा संस्थाएं देश विदेशों में आर्य समाज द्वारा संचालित की जा रही हैं।            

    स्वराज्य का मन्त्र- महर्षि ने राजनीतिक और आर्थिक सुधारों पर बल दिया। स्वराज्य का मन्त्र सर्वप्रथम महर्षि द्वारा उद्‌घोषित किया गया। महर्षि दयानन्द ने भारत को राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक रूप में एक सूत्र में बान्धने का प्रयास किया। उन्होंने स्वदेश, स्वधर्म, स्वजाति, स्वसंस्कृति और स्वभाषा का प्रबल समर्थन करके भारतवासियों में राष्ट्रीय भावना का संचार किया।   

    आर्थिक चिन्तन- आर्य समाज ने आर्थिक सुधारों पर भी ध्यान दिया। स्वामी जी का मत है कि करों का उद्देश्य प्रजा का सुख है। महर्षि ने बीस प्रतिशत बजट शिक्षा, बीस प्रतिशत धन स्थिर कोष, बीस प्रतिशत राज्य, तीस प्रतिशत रक्षा व्यवस्था के लिए निर्धारित किया है। महर्षि द्वारा प्रतिपादित अर्थव्यवस्था आज भी प्रासंगिक है। आर्य समाज ने सामाजिक, धार्मिक, नैतिक सुधार, जातिवादी परम्पराओं में सुधार, शिक्षा के क्षेत्र में सुधार तथा राजनीतिक, आर्थिक सुधारों द्वारा हिन्दुओं की क्षीण शक्ति को पुनजीर्वित किया और समाज को नई दिशा प्रदान की। महर्षि दयानन्द का स्पष्ट मत है कि मानसिक, सामाजिक, राजनीतिक सभी प्रकार की दासता से मुक्ति प्राप्त होनी चाहिए। अपने स्थापनाकाल से आज तक आर्य समाज विविध सुधार कार्यों में सफलतापूर्वक अग्रसर होता रहा है। इसके प्रगतिशील विचार और मानवतावादी सन्देश समाज को नई दिशा प्रदान करते हैं। महर्षि दयानन्द को भारत के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सुधार के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। लेखक- डा. आर्येन्दु द्विवेदी

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

    ----------------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajmarriagehelpline.com 

     

    Renaissance means awakening the psyche and soul of the nation after sleeping for some time. Among the religious and reformist movements, Brahmas Samaj, Arya Samaj, Ramakrishna Mission, Prarthana Samaj and Theosophical Society are prominent. Raja Rammohun Roy attempted to remove the evil practices like purdah, polygamy, illiteracy in women, sati etc. The Prarthana Samaj tried incarnation, polytheism, idol worship, opposition to the authority of priests as well as religious and social reforms to awaken the Hindu society.

    Arya Samaj Sanskar Kendra & Arya Samaj Marriage Service- Contact for intercast marriage & arrange marriage. Marriage by Arya Samaj is Legal and Valid under Hindu Marriage Act. 1954-1955 & Arya Marriage Validation Act. 1937. Also contact for all religious services- havan, grah-pravesh,vastu-poojan, namkaran-mundan vivah, pravachan, katha etc. Arya Samaj Sanskar Kendra & Arya Samaj Marriage Service, Arya Samaj Mandir, Divyayug Campus, 90 Bank colony, Annapurna Road,Indore (MP) 0731-2489383, Mob.: 9302101186Social Development and Arya Samaj | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj  Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for for Barwani - Beed - Bhandara - Barmer - Bharatpur - Balaghat | Official Web Portal of Arya Samaj Mandir Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Marriage Helpline Indore India | Aryasamaj Mandir Helpline Indore | inter caste marriage Helpline Indore | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Indore | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj indore Bharat | human rights in india | human rights to marriage in india | Arya Samaj Marriage Guidelines India | inter caste marriage consultants in indore | court marriage consultants in india | Arya Samaj Mandir marriage consultants in indore | arya samaj marriage certificate Indore | Procedure Of Arya Samaj Marriage in Indore India. 

    Arya samaj wedding rituals in indore | validity of arya samaj marriage Indore | Arya Samaj Marriage Ceremony Indore | Arya Samaj Wedding Ceremony | Documents required for Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Legal marriage service Indore Bharat | inter caste marriage for prevent of untouchability in India | Arya Samaj Pandits Helpline Indore India | Arya Samaj Pandits for marriage Indore | Arya Samaj Temple in Indore India | Arya Samaj Pandits for Havan Indore | Pandits for Pooja Indore | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction Without Demolition Indore, Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Indore | Vedic Pandits Helpline Indore | Hindu Pandits Helpline Indore | Arya Samaj Hindu Temple Indore | Hindu Matrimony Indore | Arya Samaj Marriage New Delhi – Mumbai Maharashtra – Surat Gujarat - Indore – Bhopal – Jabalpur – Ujjain Madhya Pradesh – Bilaspur- Raipur Chhattisgarh – Jaipur Rajasthan Bharat | Marriage Legal Validity | Arya Marriage Validation Act 1937 | Court Marriage Act 1954 | Hindu Marriage Act 1955 | Marriage Legal Validity by Arya samaj.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore |  Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर

  • स्वतंत्रता के महान योद्धा नेताजी सुभाषचंद्र बोस - २

    भिखारिन की सहायता करना - एक दिन सुभाष की माता प्रभावती ने सुभाष के कमरे में प्रवेश किया। क्या देखती है कि कुछ चींटियां सुभाष की पुस्तकों की अलमारी में प्रवेश कर रही हैं। माता जी ने अलमारी खोली, दो रोटियां एक कागज में लिपटी हैं, उन रोटियों को खाने के लिए चींटियां आ रही हैं। इतनी देर में सुभाष ने अपने कमरे में प्रवेश किया। माँ ने पूछा- यह रोटियाँ किसलिए रख रखी हैं? सुभाष ने कहा- माँ, इन रोटियों को अब बाहर फेंक दो। माँ इन ने पूछा- सुभाष, क्या बात है? इन रोटियों को देखकर दुःखी क्यों हो रहा है? सुभाष ने उत्तर दिया- माँ, अपने खाने से बचाकर दो रोटियाँ मैं प्रतिदिन एक भिखारिन को देता था। आज वह मिली नहीं थी, इसलिए मैंने यह रोटियाँ इसी आशा में अलमारी में रख दी थी कि थोड़ी देर के पश्चात यह रोटीया दे आऊंगा। परन्तु अभी-अभी मैं इस भिखारिन को देखने गया था तो पता चला कि बेचारी का स्वर्गवास हो गया है। 

    Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
    Different Types Names of one God | एक ही ईश्वर के अनेक नाम और वेद


    अपनी बात समाप्त कर सुभाष इस प्रकार दुःखी हो गये मानों न होकर कोई आत्मीय की मृत्यु हो गई हो। सुभाष ने सहज भाव से कहा- माँ, हमें निर्धनों की सहायता करनी चाहिए। यह उन की एहसान नहीं है, हमारा कर्तव्य है। माँ ने सुभाष को गले से लगते हुए कहा- सुभाष, इतनी संवेदनायें कहाँ से लाते हो? यह पुरे संसार का दुःख कहाँ समेटे रहते हो? यह कहकर माँ-पुत्र दोनों गले लग गये। माँ इस लिए हैरान थी कि इतना छोटा-सा बच्चा और इतनी बड़ी-बड़ी बातें और सुभाष इसलिए रो रहा है कि मेरे भारत में कितनी निर्धनता है, मैं इसे कब समाप्त करूँगा ? ऐसी ही घटना महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के जीवन में भी आती है।

    एक दिन ऋषि दयानन्द सांयकाल के समय ध्यान में बैठे थे। बाहर जल में बहाने के लिए एक माँ अपने पुत्र के शव को तैयार खड़ी थी। ऋषि दयानन्द जी ने देखा कि उस बच्चे के शव से कफन को इसलिए अलग रही थी कि वह अपने तन को ढक सके। ऐसी निर्धनता देखरक ऋषि दयानन्द का ह्रदय तड़प उठा और कहा- है प्रभु! इस देश की एक माँ अपने पुत्र के शव को कफन तक भी उपलब्ध नहीं करा सकती। इस देश की निर्धनता का मूल कारण यह आततायी अंग्रेज ही हैं। जाजपुर में हैजे का प्रकोप- समाचार-पत्र में एक समाचार छापा-जाजपुर में हैजे का भीषण प्रकोप। नीचे हैजे के होने वाली क्षति का वर्णन पढ़कर सुभाष की आँखे फटी की फटी-सी रह गई। सुभाष पर उस दुःखद समाचार की गहरी प्रतिक्रिया हुई। बस इन पीड़ित रोगियों की सेवा करने का संकल्प कर लिया। वह भी नहीं जानते थे कि उसे पिता ह्रदय तथा विचारों से महान होते हुए भी अपने जीवन स्तर के सम्बन्ध में अत्यन्त सजग हैं। वे कभी नहीं चाहेंगे कि उनका बेटा इन रोगियों के बीच जाकर उनकी सहायता करे। प्रत्येक व्यक्ति के अपने-अपने कर्म होते हैं, भावनाएँ और संवेदनाएँ भी अलग-अलग होती हैं। अपनी भावनाओं और संवेदनाओं, स्वभाव को प्रमुखता देते हुए भूख-प्यास की चिंता किए बिना जाजपुर के हैजा पीड़ितों की सेवा में जुट गया। उसकी सादगी, विनम्रता, निष्ठा, लगन और सेवा तत्परता को देखकर किसी को अनुमान भी न हो सका कि वह कटक के सम्मानित सरकारी वकील रायबहादुर श्री जानकीनाथ का पुत्र होगा। जब लोगों को ज्ञात हुआ तो वे विस्मित रह गये।

    सुभाष लौटा, पिता को प्रणाम किया। पिता से अत्यन्त विनम्र भाव से कहा- पिताजी, क्षमा कीजिये। मैं आपका आदेश लिए बिना जाजपुर अपनी भावनाओं की वशीभूत होकर सेवाकार्य के लिए चला गया। पिता ने कहा- क्षमा का तो प्रश्न ही नहीं उठता परन्तु जो तुमने किया है वह सर्वथा मेरी प्रतिष्ठा के विरुद्ध है। क्या एक तुम्हारी ही सेवा की आवश्यकता थी ? यदि तुम्हारा यही रंग-ढंग रहा तो तुम अपना भविष्य अंधकारमय बना लोगे। इतनी देर में समाचार मिला कि सुभाष ने मेट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की है। सुभाष ने हँसते हुए कहा-अच्छा हुआ कि किसी अंगेजी कालेज में पढ़ने के स्थान पर किसी भारतीय कॉलेज में पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा। - कन्हैयालाल आर्य 

    राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
    अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
    आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
    नरेन्द्र तिवारी मार्ग
    बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
    दशहरा मैदान के सामने
    अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
    दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
    www.akhilbharataryasamaj.org 

    --------------------------------------

    National Administrative Office
    Akhil Bharat Arya Samaj Trust
    Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
    Narendra Tiwari Marg
    Near Bank of India
    Opp. Dussehra Maidan
    Annapurna, 
    Indore (M.P.) 452009
    Tel. : 0731-2489383, 9302101186
    www.aryasamajannapurnaindore.com 

     

    Subhash returned, bowed to father. Said to father very politely - Father, forgive me. I took Jajpur without taking your orders and went for service after subjugating my feelings. The father said - the question of forgiveness does not arise, but what you have done is completely against my reputation. Was only a service required? If you remain this same color, then you will make your future bleak. The news got so long that Subhash passed the matriculation examination in the second class. Subhash smilingly said that it is good that instead of studying in an English college, you will get an opportunity to study in an Indian college. - Kanhaiyalal Arya 

    Netaji Subhash Chandra Bose, the great warrior of freedom - 2 | Arya Samaj Indore| Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore | Arya Samaj Pandit Indore | Arya Samaj Indore for Gaura Barhaj - Achabal - Mumbai suburban - AB Bypass Road - Yashwant Nagar Indore M.P. | Arya Samaj Mandir Marriage Annapurna Indore | Official Website of Arya Samaj Indore | Indore Arya Samaj | Inter Caste Marriage Helpline Indore |  Inter Caste Marriage Promotion for Prevent of Untouchability | Arya Samaj Mandir | Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage Rules Indore | Documents Required for Arya Samaj Marriage Annapurna Indore | Arya Samaj Legal Marriage Service Bank Colony Indore | Arya Samaj Pandits Helpline Indore | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore.

     Arya Samaj | Contact for more info | Arya Samaj in Madhya Pradesh | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Havan for Vastu Dosh Nivaran | Vastu in Vedas | Vedic Vastu Shanti Yagya | स्वतंत्रता के महान योद्धा नेताजी सुभाषचंद्र बोस - २ | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj Online | Arya Samaj helpline | Hindi Vishwa | Intercast Marriage | Arya Samaj and Vedas | Vedas | Maharshi Dayanand Saraswati | Arya Samaj and Hindi | Vaastu Correction Without Demolition | Arya Samaj Mandir Marriage Indore Madhya Pradesh | Arya Samaj helpline Indore Madhya Pradesh Bharat | Arya Samaj Mandir in Madhya Pradesh | Arya Samaj Marriage Guidelines | Procedure Of Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Marriage helpline Indore | Hindi Vishwa | Intercast Marriage in Arya Samaj Mandir Indore.

    Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Arya Samaj Details in Hindi | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | वेद | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | वैदिक संस्कृति एवं वर्तमान सन्दर्भ | धर्म | दर्शन | संस्कृति | प्रेरक-प्रसंग

     

     

Copyright © 2021. All Rights Reserved