आज धर्म से मानव-समाज को घृणा हो रही है। इस समय धर्म विश्व के लिए अभिशाप बन गया है। हमारा तात्पर्य धर्म के मौलिक नियमों से नहीं है, इन्हें तो सब मानते हैं। दया, करुणा, मैत्री आदि को तो सब स्वीकार करते हैं। किन्तु यहॉं हमारा प्रयोजन व्यक्ति विशेष द्वारा संचालित मत, मजहब अथवा फिरका से है, जिनके कारण विश्व में सुखपूर्वक जीवन-यापन करना दूभर हो गया है। इस्राइल (यहूदी) और फिलिस्तीनी (मुसलमानों) की लड़ाई धार्मिक है। तेल अबीब के हवाई अड्डे पर गोली मारकर निरीह लोगों की हत्या की गई, इसलिए कि वे यहूदी थे, मूसा को अपना पैगम्बर मानते थे, तौरेत इनकी धर्म पुस्तक है। लीबिया के छापामार दस्ते ने इस्रायल के गांवों में घुसकर 10-11 वर्ष के बच्चों की मार्मिक हत्या की, जिसे सुनकर मानवता कांप उठती है। बेरुत में ईसाई और मुसलमानों के रक्त से सड़क गीली हो गई थी। उसी प्रकार पाकिस्तान मेें शिया-सुन्नी का द्वन्द्व तथा बेचारे अहमदिया मुसलमान, गैर मुस्लिम घोषित हो गये हैं। क्योंकि उनका अपराध यह है कि उन्होंने हजरत मुहम्मद को अन्तिम "नबी" नहीं स्वीकार किया है। अमेरिका में राष्ट्रपति कैनेडी की हत्या भी मजहबी जहर था।
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
गायत्री उपासना से प्रभु का सन्मार्गदर्शन एवं प्रेरणा
Ved Katha Pravachan _45 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
उपर्युक्त घटनाए तो इस युग की हैं। सेमेटिक विचारधारा का पुराना इतिहास तो निरीह मानव के रक्त से रंजित है, जो बिना कारण धर्म के नाम पर मारे गए। यह मतमतान्तर विज्ञान की प्रगति में भी बाधक रहा है। ब्रूनो, गैलेलियो आदि को निर्मम यातनाएं सत्य का प्रकाश करने के कारण हुई। अरब के खलीफा ने रेखागणित की पढाई इसलिए बन्द कर दी, क्योंकि पाइन्ट (बिन्दु) की परिभाषा खुदा से मिलती है। स्पेन के कारडोवा विश्व विद्यालय में बीज गणित की पढाई बन्द कर दी गई, क्योंकि यह जादू-टोना मालूम पड़ता है। उस समय स्पेन में जादू-टोना कानून के विरुद्ध था।
इन सबों का कारण व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित "मत" या "मजहब" है। यद्यपि इन मजहबों के संस्थापकों का उद्देश्य पवित्र था। वे उस समय की परिस्थिति में मानवता का उपदेश कर चले गए। किन्तु पश्चात उनके अनुयायियों ने उपदेश को न समझकर व्यक्ति पूजा में विरत हो अनके प्रकार के अत्याचार तथा अनाचार का सृजन किया।
इसका कारण व्यक्ति पूजा (पर्सनल कल्ट) ही है। तर्कबुद्धि को तिलांजलि देकर व्यक्ति-विशेष को अतिमानव मानना तथा विज्ञान विरुद्ध चमत्कारों में विश्वास करना है। विश्व के सम्पूर्ण धर्म प्रचारकों ने यद्यपि स्वीकार किया है कि मैं कोई नयी शिक्षा का उपदेश नहीं दे रहा हूँ, तथापि अपने अनुयायियों को अपना भक्त बनाने का प्रयास किया है।
श्री कृष्ण ने कहा है- मद्याजी मां नमस्कुरु। अर्थात् मेरे साथ चलो, मेरी पूजा करो- अहम् त्वा सर्वं पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच। अर्थात् मैं तुम्हारे सारे पापों को धो डालूंगा, मत चिन्ता करो। ईसामसीह की भी यही घोषणा थी- तुम्हारे सारे पापों को लेकर सूली पर चढ रहा हूँ । मुझ पर विश्वास करो, स्वर्ग का राज मिलेगा। भगवान गौतमबुद्ध ने मृत्यु के समय रोते हुए अपने प्रिय शिष्य आनन्द से कहा कि मेरे मरने के बाद मेरा उपदेश ही तुम लोगों के लिए दीपक का काम करेगा। मूसा और जरथुस्त ने भी इसी प्रकार का आदेश अपने अनुयायियों को दिया था। सिख गुरुओं के अनुयायी तो उनके ग्रन्थों को ही साक्षात् गुरु मानकर पूजा करते तथा पंखा झलते हैं। बाइबिल कहती है- धन्य वे हैं, जो अपने वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के पेड़ के पास आने का अधिकार मिलेगा और वे फाटकों से होकर नगर में प्रवेश करेंगे। पर कुत्ते, टोन्हे और व्यभिचारी तथा हत्यारे और मूर्ति पूजक व हर एक झूठ चाहने वाला और गढने वाला बाहर रहेगा। "प्रकाशित वाक्य"
किन्तु आज ईसाई सबसे अधिक मूर्तिपूजक हैं, किन्तु केवल ईसा मसीह की मूर्ति के। हजरत मुहम्मद ने एक खुदा का उपदेश दिया, बुतपरस्ती का प्रबल विरोध किया। एक अल्लाह का उपदेश दिया, किन्तु कलमा में अल्लाह के साथ अपना नाम जोड़ दिया। बिना मुहम्मद के कलमा पूर्ण नहीं माना जाएगा। उसका परिणाम यह हुआ कि नई मूर्तिपूजा कब्र की पूजा होने लगी । मुहम्मद के कब्र पर सबसे अधिक रतू चढाये गये हैं।
इनमें महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ऐसे हैं जिन्होंने कहा कि हमारा कोई अपना मत नहीं है, तुम से कोई पूछे कि तुम्हारा क्या धर्म है, तब कहो मेरा धर्म वेद है। वेद का अर्थ ज्ञान होता है, वैदिक धर्म का अर्थ ज्ञान का धर्म अर्थात वैज्ञानिक धर्म है।
महाभारतकार कहते हैं-
सर्व विदु: वेद विदो, वेदे सर्वं प्रतिष्ठितम्।
वेदे हि निष्ठा सर्वस्य यद् यदस्ति च नास्ति च। (शान्ति पर्व)
मनु ने कहा है- सर्व वेदाद् हि निर्ममौ।
वैदिक धर्म विज्ञान का विरोधी कभी न रहा, न वह विज्ञान की प्रगति में बाधक ही बना। गणित, ज्योतिष, रेखागणित, बीजगणित, वैशेषिक (रसायन, भौतिकी), आयुर्वेद आदि शास्त्रों का उद्गम वेद ही है, ऐसा शास्त्रकार प्रतिपादन करते हैं।
नारद ने सनत्कुमार से कहा- ऋग्वेदं भगवोध्येमि, यजुर्वेदं सामवेदमाथर्वणाम् चतुर्थमितिहासं पुराणं पंचमं वेदानां वेदं पित्रम् राशिं दैवं निधिं, वाकोवाक्यम् एकायनम् देवविद्याम् ब्रह्मविद्याम्, भूतविद्याम्, क्षत्रविद्याम्, नक्षत्रविद्याम्, सर्पदेव जन विद्याम् एतद् भगवोऽध्येमि सोऽहं भगवो मन्त्र विदेवोस्मि नात्मवित्। श्रुत ह्येव मे भगव: शोचामि तं मा भगवान् शोकस्य पारं तारयत्विति तं हो वाच। यद्वै किंचैतद् अध्यगीष्ठा नामवैदद्। (छान्दोग्य उपनिषद्)
यहॉं पर नारद ने 14 विद्याओं का उल्लेख किया, जिन्हें वे जानते हैं। किन्तु सनत्कुमार से प्रार्थना करते हैं कि महाराज! मैं मन्त्रविद् हूँ किन्तु आत्मविद्या जानना चाहता हूँ। अत: मुझे आत्मविद्या का उपदेश कीजिए।
स सर्वविद्या प्रतिष्ठा मधवीय ज्येष्ठ पुत्राय प्राह-मुराऽकोपहि। अर्थात् अन्होंने सारी विद्याओं का आधार ब्रह्मविद्या का उपदेश किया। यहॉं पर ब्रह्मविद्या को सारी विद्या का आधार कहा गया है। इससे सिद्ध होता है कि वैदिक धर्म विज्ञान की प्रगति का बाधक नहीं रहा है। और मजहबों का कहना है कि मजहब में अकल का दखल नहीं है। वैदिक धर्म तो तर्क द्वारा खरा उतरने वाले को ही धर्म मानता है।
मनु महाराज कहते हैं- यस्तर्केणानुसन्धत्ते, स धर्म वेद नेतर:। अर्थात् जो तर्क से अनुसंधान करता है, वही धर्म को जानता है।
गीताकार की उक्ति है- तं विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। अर्थात् तुम उस तत्व को प्रश्न पर प्रश्न कर समझो। विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु। अर्थात् विचार कर जैसा चाहो वैसा करो।
विज्ञान का उद्देश्य सत्य की खोज है। वैदिक धर्म का भी उद्देश्य सत्य की खोज एवं उसकी प्राप्ति है। अत: वैदिक धर्म विज्ञान का विरोधी नहीं अपितु पूरक है।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि वैदिक युग में काफी तर्क व विचार विमर्श के बाद तत्व का निर्णय होता था। वृहदारण्यक उपनिषद् में याज्ञवल्क्य एवं मैत्रेयी का सम्वाद सर्वविदित है, जिसमें प्रत्येक जनपद के दार्शनिक एकत्र हो तत्व का निर्णय करते थे।
निरुक्त में लिखा है कि ऋषियों के दिवंगत हो जाने के बाद तर्क ही ऋषि हैं। अत: धर्म और विज्ञान में साम्य है।
स्वामी दयानन्द ने इसी वैदिक धर्म की ओर लौटने का आदेश दिया। जहॉं पर जात-पांति, काला-गोरा, देश अथवा विदेश का भेद नहीं है। मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षान्ताम्। मित्र की दृष्टि से सारे प्राणियों को देखो।
स्वामी जी ने इसी वैदिक धर्म के प्रचारार्थ आर्य समाज की स्थापना की। आर्य का अर्थ होता है, प्रगतिशील, ज्ञानी। आर्य समाज का अर्थ ही प्रगतिशीलों तथा ज्ञानियों का समाज है। - आचार्य रामानन्द शास्त्री (सन्दर्भ : सार्वदेशिक दिल्ली, 29 अक्टूबर 1995)
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The reason for all this is the "vote" or "religion" established by the individual. Although the purpose of the founders of these religions was sacred. He went on preaching humanity under the circumstances of that time. But after that, his followers did not understand the teachings and the person should be engrossed in worship and created many types of atrocities and incest.
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जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...