महर्षि के कार्य क्षेत्र में आने के समय यद्यपि भारत में कई छोटे बड़े सम्प्रदाय काम कर रहे थे, परन्तु सबके सब अपने पुराने आदर्शों से गिर चुके थे। विचार स्वातन्त्र्य का ऐसा तिरोभाव था, मानो उसका कभी प्रादुर्भाव ही नहीं हुआ हो। धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक पराधीनता ने भारत सन्तान को मुर्दा बना दिया था। किसी क्षेत्र में भी भारतवासियों को दासता की जंजीरें काटने का साहस नहीं होता था। ऐसे समय में किसी ऐसे महापुरुष की आवश्यकता थी जो धार्मिक संशोधन के क्षेत्र में मायावाद, प्रकृतिवाद और नैष्कर्म्यवाद तथा शून्यवाद के विभिन्न जालों को छिन्न-भिन्न करके कर्मवाद तथा त्रैतवाद की स्थापना करके समकालीन सब सम्प्रदायों की कमियों को पूरा कर सके।
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
मनुष्य सबसे श्रेष्ठ क्यों और कैसे है
Ved Katha Pravachan - 8 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
ईश्वरीय नियम में अनुसार जब-जब धर्म पर भारी आपत्ति आती है, तब-तब किसी महान आत्मा का प्रादुर्भाव होकर उसके द्वारा धर्म को शक्ति और बल प्रदान करने वाले अखण्ड स्रोत का मार्ग फिर से बतलाया जाता है, जैसा कि श्रीमद्भगवद्गीता के निम्नलिखित श्लोक में कहा है-
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
इसी के अनुसार सन् 1824 में गुजरात स्थित मौरवी राज्य के टंकारा ग्राम में एक औदीच्य ब्राह्मण के घर मूलशंकर नामक एक पुण्य नक्षत्र का उदय हुआ। बाल्यावस्था में ही मूलशंकर ने देखा तथा समझ लिया कि उनके स्वजन झूठे देवों की उपासना करते हैं तथा हानिकारक अन्धश्रद्धा तथा सिद्धान्तों में फंसे हुए हैं। गौतम बुद्ध की भांति मृत्यु आदि के दु:खों को देखकर उन्होंने सच्चे शिव की खोज तथा अपने देश एवं संसार सेवा करने की तैयारी करने के लिए ऐसे स्थान से भागना चाहा जहॉं जीवनावस्था एक मिथ्या कृत्रिम तथा संकीर्ण प्रणाली के सांचे में ढली थी।
महर्षि ने सत्य की खोज के लिए कठोर परिश्रम किया। देश के भिन्न-भिन्न भागों में उन्होंने भ्रमण कर साधुओं के आश्रमों तथा तीर्थस्थानों को खोजा। एकान्त गुफाओं व निर्जन स्थानों को खोजा। ऋषियों और योगियों की तलाश में वे इस अभिप्राय से घूमे कि उनके सत्संग से अपने को अपने देश तथा संसार की सेवा के योग्य बना सकें। उन्होंने दृढ संयम और वेद विहित सच्चे ब्रह्मचर्य व्रत का पालन अपने गुरु विरजानन्द सरस्वती की अभिलाषा की पूर्ति, अपनी मातृभूमि के पुनरुत्थान, सत्य के प्रचार, ज्ञान के प्रसार और धर्म की वृद्धि के निमित्त अपना जीवन अर्पण कर दिया। उन्होंने असत्य के साथ तन-मन से संग्राम करने, रोशनी फैलाने, बुराई की जड़ काटने तथा न्यायाचार और धर्म का झण्डा ऊंचा गाड़ देने का पवित्र प्रण किया था।
महर्षि दयानन्द केवल सुधारक ही नहीं थे। वरन् संसार भर के शिक्षक भी थे। उनकी शिक्षा मनुष्य मात्र के कल्याण और सुधार के लिए थी। न किसी से द्वेष था और न किसी से प्रेम था। आपने देखा कि सत्य ज्ञान के बिना संसार अविद्या और अन्धविश्वास में डूबा हुआ, स्वार्थ परायणता और पक्षपात में टुकड़े-टुकड़े हो रहा है। व्यक्ति, देश व जाति को अपने उद्धार का मार्ग बतलाने की आवश्यकता है तथा उसकी पूर्ति केवल वेदों का ज्ञान ही कर सकता है। क्योंकि केवल यही ग्रन्थ सत्य विद्याओं का स्रोत है। आपने इसका भाष्य हिन्दी में किया, ताकि उस पुष्टिकर, प्राणपद, बलवर्धक अमृत कुण्ड के आस-पास जो घास-पात उग आया है तथा जिन सड़े-गले प्रक्षिप्त पदार्थों की वृद्धि ने उसे ढांप लिया है, वह हट जावे और उस अमृत कुण्ड तक सबकी पहुँच हो सके। संसार के इतिहास में यह प्रथम अवसर था कि स्वामी जी की कृपा से अमीर-गरीब, उच्च-नीच, संस्कारी तथा असंस्कारी सबकी पहुँच वेदों तक हो गई। वेद भाष्य के अतिरिक्त महर्षि ने महान ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश, संस्कार विधि, गौ करुणानिधि, आर्याभिविनय, ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका आदि अनेकानेक ग्रन्थ लिखे तथा देश भर में भ्रमण करके उन्होंने सत्य और ज्ञान के प्रकाश को फैलाया। जहॉं कहीं वे गये वहॉं वैदिक सत्य और वैदिक भावों को सार्वजनिक वक्तृताओं, व्यक्तिगत सम्भाषणों एवं प्रेमपूर्वक वाद विवादों द्वारा पादरियों, मौलवियों और अन्य मतावलम्बियों पर प्रकट किया। ऐसे ही उन विद्वान ब्राह्मणों को भी समझाया जो कि अन्धविश्वास, मूर्ति पूजा, हानिकारक प्रथाओं, असदाचार और प्रतिष्ठाहीन बनाने वाले व्यवहारों का आचरण करते थे, जिन्होंने कि हिन्दू जाति को इस दीन दशा में पहुँचाकर निर्बल बना दिया था।
हिन्दू जाति की शक्ति का ह्रास करने वाली अनेक बुराइयॉं उस समय समाज में फैली थीं। महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने उन सबको दूर करने का संकल्प किया। मनुष्यों के उद्धार का कार्य यथेष्ठ रीति से चलाने और अपने प्रचलित किए हुए सुधारों को स्थाई और शाश्वत रूप देने के लिये स्वामी जी ने आर्य समाज का स्थापन किया।
स्वामी जी संसार को कैद से छुड़ाने आये थे। मानवमात्र की कल्याण कामना के इच्छुक महर्षि जीवन भर सत्य ज्ञान का उपदेश देते रहे।
महान् पुरुषों का जैसे जीवन अद्भुत होता है मृत्यु भी वैसी ही अद्भुत होती है। संसार के ऐसे हितैषी, वैदिक संस्कृति के पोषक, महान समाज सुधारक, राष्ट्र की स्वतन्त्रता के स्वप्नद्रष्टा को विधर्मी मतों के प्रचारकों व फिरंगी शासकों ने एक वेश्या से मिलकर महर्षि के पाचक द्वारा इस युग पुरुष को विष दिलवा दिया। धन्य है क्षमाशील भगवान् दयानन्द जिन्होंने ज्ञात होने पर अपने विष दाता को भी रुपया देकर भगा दिया व फांसी के फन्दे से बचा लिया।
एक मास तक तीक्ष्ण पीड़ा के पश्चात् कार्तिक संवत 1940 की अमावस्था के सायं दीपावली को ईश्वर प्रार्थना के पश्चात हर्ष सहित गायत्री मन्त्र का पाठ करने लगे। फिर प्रफुल्लित बदन समाधि में रहकर आँखें खोली और प्रेम भरे शब्दों में कहा-
हे दयामय ! हे सर्व शक्तिमान् ईश्वर ! तेरी यही इच्छा है, तेरी इच्छा पूर्ण हो, अहा तैने अच्छी लीला की। इतना कहकर करवट ली और श्वांस रोककर एक बार ही प्राण त्याग दिये। संसार का प्रकाश स्तम्भ, प्यारा ऋषि जो कि विष पान कर अमृत दान करने आया था, हमसे अलग हो गया।
आओ उनके पावन आदर्शों पर चलकर सत्य का प्रचार करते हुए हम ऋषि की धरोहर से लाभ उठावें व उनके भारत को जगद्गुरु बनाने के स्वप्न को साकार करें । - जगदीश प्रसाद आर्य
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Hey Day! O all powerful God! This is your wish, may your wish be fulfilled, aha leela well. Having said this, he took a turn and stopped breathing once and gave up his life. The pillar of light of the world, the lovely sage who came after drinking poison and donating nectar, broke away from us.
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जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...