हम सब याचक हैं, मांगते हैं। मांगना, याचना करना हमारी आदिम मनोवृत्ति है। परमपिता परमात्मा से, परमशक्ति से मांगना मानव की आदिम प्रवृत्ति स्पष्ट रूप से सिद्ध है। हम आपस में मांगते हैं तो छोटे-बड़े आदि का भेद होता है। पर परमात्मा से मांगने में हम सब एक हैं। वहॉं ऊँच-नीच, अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं। सब अपने-अपने स्तर के अनुसार अपनी मनोकामना याचना के रूप में प्रभु के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। चूँकि प्रभु चैतन्य हैं, अन्तर्यामी हैं अत: सबकी याचनाएँ उनके द्वारा प्रस्तुत करने के पूर्व ही जान लेते हैं। सरल भाषा में कहें तो सबकी प्रार्थनाएँ सुन लेते हैं।
Ved Katha Pravachan _103 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
सृष्टि रचयिता, नियन्ता एवं सर्वशक्तिमान प्रभु की सत्ता समझने से पहिले जरा कुछ दृश्य देखिए । विश्व की अथाह सम्पदा के ज्ञात धनाढ्यों में बिल गेट्स, अरब अमीरात के सुल्तान, लक्ष्मी मित्तल और भारत के अम्बानी बन्धु, टाटा, बिड़ला। इनमें से कोई एक धनपति प्रात: कालीन सूर्योदय की स्वर्णिम प्रभा का आनन्द उठाने कन्याकुमारी के तट पर भ्रमण कर रहा है। शीतल मन्द समीर ने वातावरण को बहुत ही सुखद बना दिया है। इस वातावरण ने कुछ समय के लिये ही सही, उसकी चिन्ताओं का भार हल्का कर दिया है। मन प्रफुल्ल है। इतने में ही एक भिखारी टकरा गया। बाबा, भीख दो? बाबा नाम से सम्बोधित धनिक ने पूछा, क्या चाहिए? उत्तर मिला, चवन्नी का जमाना चला गया। एक रूपया लूंगा। बाबा ने कहा- कुछ और? भिखारी समझा कुछ नहीं देना चाहता इसलिए कुछ और कह रहा है। कहा- मैं एक रुपया मांगता हूँ, देना हो तो दे दो। लक्ष्मी-मित्तल, बिल गेट्स सोचता है कि इस अज्ञानी को मालूम नहीं कि मैं कौन हूँ? क्या कुछ दे सकता हूँ? और यह एक रुपया ही मांग रहा है। यह तो आज की स्वर्णिम बेला में कुछ भी, लाख दो लाख मांगता तो भी, मैं एक क्षण सोचे बिना इसे दे देता। बाबा ने एक रुपया दे दिया। मांगने वाला खुश, देने वाला नाखुश। प्रभु से मांगने में हम समस्त मानवों की यही स्थिति रहती है। हम सब अपनी-अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिये ही प्रभु से याचना करते हैं और नहीं जानते कि वह क्या कुछ दे चुका है अथवा दे सकता है।
प्रभु के समक्ष हम मानव क्या याचना करते हैं, जरा देखिए तो-
कुम्हार याचना करेगा, सूरज तपता रहे। जितना ज्यादा तपेगा उतनी जल्दी उसके मिट्टी के बर्तन सूखेंगे। किसान प्रभु से मांगेगा कि घनघोर वर्षा हो, उसकी जोती-बोई फसल लहलहा जावे। मुकदमे के दोनों पक्षधर मांगेंगे उसकी विजय हो। हत्या, बलात्कार, जघन्य सामूहिक हत्याओं के जिम्मेदार निरंकुश तानाशाह भी अपनी जिन्दगी की भीख मांगते होंगे? आजकल के राजनेता बड़े जोश-खरोश से यज्ञ-याग, भजन-पूजन कर याचना करते हैं कि प्रभु उनकी पार्टी की जीत हो और उन्हें जनता का खून-चूसने का मौका एक बार और मिले। सन्तानहीन महिला लड़ाई होने पर पड़ोसन की नवागता पुत्रवधु को शाप देती हुई प्रभु से प्रार्थना करेगी कि यह निपूती मर जाये, इसके वंश का नाश हो जाये। विद्यार्थी अध्ययन न करने पर भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने की मांग रखेंगे। हिन्दू मंगतों की स्थिति बड़ी दयनीय है । वह यह भी नहीं देखते कि किस देवता से क्या मांगना चाहिए। यदि युवतियॉं हनुमान जी से प्रेम में सफलता या उत्तम वर पाने की मांग रखें तो हनुमान जी ऐसे संकट में पड़ेंगे कि संकटमोचन उपाधि तत्काल उतारने को जी चाहेगा। यही स्थिति तब भी होगी जब कोई विवाहिता महिला उनसे पुत्र मांग बैठे।
यही नहीं किसी एक देवता पर भी हिन्दू भक्त को विश्वास नहीं है। यदि हनुमान जी प्रसन्न नहीं होंगे तो राम जी, यदि राम जी भी नहीं तो सीता, राधा, कृष्ण, शिव-पार्वती कोई तो होगा, तैंतीस करोड़ हैं। यदि इनसे भी काम नहीं बना तो पीर साहब हैं, वह (हिन्दू भक्त) यह भी नहीं सोचता कि जिन पीर साहब से वह मांग रहा है, उनका शव तो खुद कब्र में पड़ा कयामत का इन्तजार कर रहा है। बहुतायत हिन्दू मूर्तिपूजक तो हैं ही, शव पूजक भी सिद्ध हैं। गुरुद्वारे में भी तो अरदास लगाई जा सकती है। जालंधर के एक गुरुद्वारे में विदेश यात्रा के इच्छुक भक्तों को सौ रुपये से लेकर पांच सौ तक का वायुयान चढावे में देने पर गुरुग्रन्थ साहिब अवश्य मनोकामना पूरी करेंगे- आश्वासन दिया जा रहा है। प्रेम-प्रसंगों की बात ही छोड़िए ऐसी असंख्य मांगें प्रभु के सामने प्रस्तुत की जाती हैं।
ऐसी मांगों की पूर्ति के करने के लिये भगवान को रिश्वत देने का प्रस्ताव भी बड़ी सुन्दरता से किया जाता है। यह तो आम प्रार्थना है। हे प्रभु ! यदि आप मेरी याचना स्वीकार कर लेंगे तो, मांग पूरी कर देंगे तो आपको सवा किलो का प्रसाद चढाऊँगा/चढाऊँगी। यह सवा किलो से सवा मन, फिर प्रसाद का प्रकार परिवर्तन चढावा-चादर से लेकर चांदी, अपार सम्पत्ति इकट्ठी होती जा रही है। भगवान के पास पहुँचती नहीं दिखती। ठीक, उसी प्रकार जिस प्रकार श्राद्ध पक्ष में पण्डितों, कौवों को खिलाया हुआ पितरों तक स्वर्ग पहुँचता नहीं दिखता।
हमारे में से कुछेक की मनोकामना पूरी हुई तो हजार मुख से प्रचारित होगा कि ऐसी उल्टी-सीधी मनोकामना की पूर्ति भी भगवान करता है, यदि यह कामना/याचना "सच्चे मन" से की जावे। "सच्चे मन का तत्व" इसलिये प्रविष्ट करा दिया जाता है कि यदि कामना की पूर्ति नहीं हुई तो आरोप जड़ा जा सकता है कि तुम्हारा मन "सच्चा" नहीं था। गणेश जी ने भी दुग्धपान किसी आर्यसमाजी से नहीं किया होगा, क्योंकि इस काम के लिये उसका मन सच्चा नहीं माना जायेगा। यह व्यक्ति आर्यसमाजी है, जानकर किसी गणेश भक्त ने उस आर्यसमाजी से अनुरोध भी नहीं किया होगा कि वह गणेश प्रतिमा को दुग्धपान करावे। गणेश जी ने दुग्धपान किया था, इसका कारण र्डीीषरलश ींशपीळेप को बताते हुए वैज्ञानिक आधार प्रदान करने का प्रयास जिस भारतीय वैज्ञानिक ने किया था वह भी संस्कारवश पौराणिक परिवार में ही उत्पन्न हुआ होगा।
थोड़ा व्यतिरेक हो गया दिखता है, लेकिन ऊटपटांग कामनाओं की पूर्ति ईश्वर करता है या नहीं, इसका स्पष्ट विवेचन आवश्यक प्रतीत हुआ। वास्तविकता ऐसी नहीं है। वेद का ईश्वर यदि पौराणिकों के ईश्वर की तरह किया करता तो मुस्कराता और कहता- ये याचक न मुझे समझते हैं और न मेरी रचना सृष्टि को। इस सम्पूर्ण सृष्टि, केवल यह पृथ्वी ही नहीं, चॉंद-सितारे, असंख्य सूर्य, असंख्य आकाश गंगाएँ, इन सबका रचयिता, नियन्ता मैं, सर्वशक्तिमान, निराकार परब्रह्म हूँ। समस्त कार्य-व्यापारों का नियम न्यायपूर्वक करता हूँ। ईश्वर के इस स्वरूप को न समझते हुए हम मांगते हैं- धन-दौलत, मोटर, मकान, पुत्र-पुत्री, मुकदमे में जीत, शत्रु का विनाश, दैहिक प्रेम में सफलता आदि- आदि।
ईश्वर कहता है - सुख-समृद्धि और ये समस्त याचना की गई वस्तुओं को देने का एक मैकेनिज्म, एक विधि समस्त मानवों के लिये मैंने निर्धारित कर दी है। मेरे अनन्त वैभव से, अपार क्षमता से, सर्वशक्तिमत्ता से तुम भरपूर लाभ उठा सकते हो। लेकिन माध्यम वही तरीका होगा जिसे विद्वान लोग "कर्मफल सिद्धान्त" के रूप में निरूपित करते हैं। और इसी सिद्धान्त के अनुसार तुम्हारे अनन्त जन्मों के, अनन्त पाप-पुण्यों के कर्मों के लेखे अनुसार जो तत्व शेष रहता है उसे "प्रारब्ध" के रूप में परिभाषित करते हैं। सौभाग्य ऐसी कुछ चीज नहीं है जिसे मैं कुछ को देता हूँ और कुछ को नहीं देता।
महाकवि तुलसीदास का यह वचन सत्य नहीं है- "रहिए जिस विध राम रचि राखा"। रचा तुमने है, कर्म तुमने किए हैं, केवल फल का निर्धारण राम (परमात्मा) ने अपने पास सुरक्षित रखा है। और उस कर्मफल-भाग्य के सहारे मनुष्य कैसे-कैसे नाच नाचता है। इस कर्मफल सिद्धान्त का नियमन परम दयालु परमात्मा अत्यन्त कठोर प्रतीत होने वाली न्याय प्रक्रिया द्वारा करता है।
मानव, तू मेरी रचना है। मैंने तुझे देह देकर सृष्टि के समस्त भौतिक सुखों का आनन्द लेने के लिए, मेरी रचना सामर्थ्य देखने के लिये तेरा निर्माण किया है । पर तेरी यह देह भौतिक सुखों के उपभोग के अतिरिक्त और कुछ कर्म-सुकर्म करने के लिये भी दी है। दिए हैं तुझे कुल सौ वर्ष। भोगयोनि से पृथक् करने के लिये "बुद्धि" दी है। तू मुझे व मेरी रचना को समझ। सत् चित्त से आनन्द की ओर अग्रसर करने के लिये ही यह "धी" तुझे दी है। तुझे स्वत: ज्ञान नहीं दिया, परन्तु समस्त ज्ञान-विज्ञान के भण्डार वेद तुझे उपलब्ध करा दिए हैं।
तू अल्पज्ञ है, इसलिये मैं तुझे यह भी बताता हूँ कि तुझे मुझसे क्या मांगना चाहिए। हे देहधारी मनुष्य ! काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर में तू सभी अन्य जीवधारियों के सदृश है। इनसे युक्त कार्य-व्यवहार में अन्य जीवधारियों से तुझमें रंचमात्र भी भेद नहीं रखा। इनसे जनित कामनाओं, वासनाओं की पूर्ति भी इन जीवधारियों के समान ही तू भी करेगा- पर, तुझे दी है बुद्धि और विवेक। यही अच्छे-बुरे कर्म का निर्णय करेगी। तेरी सहायता के लिये ही तो मैं तेरे हृदय स्थल में विराजमान हूँ। बुरा काम करने के पहिले चेतावनी दूँगा- भय, शंका व लज्जा तेरे मन में उत्पन्न करुँगा- अच्छा काम-सत्कार्य करने पर तेरा मन आनन्द, अल्हाद से भर दूँगा। होगा यह क्षण मात्र में ही। मान या न मान तेरी मर्जी। और इस प्रकार विवेक/अविवेक से किए गए कर्म, तेरा कर्मफल-भाग्य या दुर्भाग्य निर्धारित करेंगे और तदनुसार ही तुझे सुख-दु:ख मिलेंगे।
इसलिए तुझे बताता हूँ कि तू मुझसे क्या मांग-
1. धियो यो न: प्रचोदयात्।
2. दुरितानि परासुव।
3. उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
4. सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्।
5. द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिब्रह्म शान्ति: सर्वं शान्ति:। शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि।
सम्पूर्ण वेद में अपनी तथा समस्त सृष्टि के कल्याण की कामना के अनेक मन्त्र मिल जायेंगे, वही मांग और कुछ मांगने योग्य नहीं। - अभिमन्यु कुमार खुल्लर
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In order to fulfill such demands, a proposal to bribe God is also made with great beauty. This is a common prayer. Oh God ! If you accept my petition, then if you fulfill the demand, then I will offer you a prasad of 1.25 kg. This change from a quarter to a quarter to a quarter to a quarter, then from offerings to silver, immense wealth is being collected. Do not appear to reach God. Exactly, in the same way that heaven does not appear to the ancestors and crows fed to the fathers in the Shraddha Paksha.
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जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...