उल्लेखनीय है कि हण्टर कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार वहाँ १६५० राउण्ड की गोलियां चलाई गई और ५१३ व्यक्ति मौत के घाट देखते -देखते उतार दिये गये। वह अपने साथ २५ गोरखा जवान, २५ बलूची जवान जो राइफलों लैंस थे, तथा ४० खुकरी लिए गोरखे और बख्तरबन्द गाड़ियां ले गया था। उसके कुकृत्य की सराहना ले० गवर्नर सर माइकेल ओ डायर ने की थी। वह सैनिकों में आत्म विश्वास बढ़ा रहा था। पर परिणाम स्वरूप जालियाँ वाला बाग के ३ प्रमुख खलनायक थे- १. पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकेल ओ डायर २. सैनिक अधिकारी ब्रिगेडियर जनरल ई.एच.डायर और भारत का सैक्रेटरी ऑफ़ स्टेट ३. लार्ड जैटलैंड। स्मरण रहे, ऊधम सिंह ने जलियाँवाला बाग का हत्याकाण्ड अपनी आँखों से देखा था।
Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
वेद कथा - 6 | राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता - 2 | राष्ट्र धर्म हेतु बलिदान देश भक्त क्रांतिकारी
वीर ऊधम सिंह ने इन तीनों खलनायकों से खून का बदला लेने की प्रतिज्ञा की। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वे सर्वप्रथम दक्षिण अफ्रीका गए और फिर वहां से अमेरिका पहुँचे, वहाँ पहुँचकर उन्होंने भारत की आजादी के लिए संघर्षरत क्रांतिकारियों से भेंट की। वे सन् १९२३ में इंग्लैंड गए। सन् १९२८ में भगत सिंह को तुरन्त बुलाये जाने पर वह भारत लौट आये। लौहार पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें आयुध नियम के उल्लघन के में ४ वर्ष की कठोर सजा दी गई। २३ मार्च १९३१ को जब भगत सिंह को फाँसी की सजा दी गई, तब ऊधम सिंह वहीँ दूसरी जेल में थे। वे १९३१ में जेल से रिहा हुए, तो उन्होंने अमृतसर में एक दुकान खोली जिसके साइन बोर्ड पर उनका नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद' लिखा हुआ था।
वे सन् १९३३ में पुलिस को चकमा दे कर जर्मनी चले गये वहाँ से बर्लिन होते हुए लन्दन पहुँचे। यहाँ उन्होंने अपने कई नाम बदले। उनके मन-मस्तिक में जलियाँवाला बाग छाया हुआ था और वह प्रतिशोध की आग में जलते रहे। तब तक जनरल डायर मर चुके थे। परन्तु सर माइकेल ओ डायर और लार्ड जैट अभी जिन्दा थे। बस फिर के क्या था? ऊधम सिंह इन दोनों के पीछे लग गये। उन्होंने एक रिवाल्वर खरीदा और उसकी सफाई करते रहे। वे उसमे बराबर तेल डालते रहते थे। उसे गोलियों से भरकर सदा पास रखते और मौके की ताक में रहते थे।
३१ मार्च १९४० का वह महान दिन आ ही गया, जब वह अपने उद्देश्यों में सफल हो गये। कहते है कि मौत अपना भोजन स्वयं ढूँढ लेती है। इस दिन सर माइकेल ओ डायर और लार्ड जैट लैन्ड को कन-स्टन हॉल में रॉयल सेन्ट्रल एशिया सोसाइटी तथा ईस्ट इंडिया एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में भाग लेना था। इसकी अध्यक्षता लार्ड जेट लैण्ड को करनी थी। ऊधम सिंह चुपके से जाकर मंच से कुछ दुरी पर जाकर बैठ गए। सर माइकेल ओ डायर ने एक उत्तेजक भाषण दिया। उसने भारत के विरुद्ध विष वमन किया और कठोर नीति अपनाए जाने की वकालत की। जैसे ही वह बैठने के लिए मुड़ा और सचिव धन्यवाद करने के लिए खड़ा हुआ ऊधमसिंह ने रिवाल्वर ने निकाल कर माइकेल पर गोली दाग दी। वह वही ढेर हो गया। उस समय शाम के साढ़े चार बज रहे थे। लार्ड जेट लैण्ड का भाग्य अच्छा था कि वह घायल हो कर रह गया। बस फिर क्या था, हॉल में भगदड़ मच गई और ऐसे में ऊधम सिंह वहाँ से बच निकलने में सफल हो सकते थे परन्तु वे वहाँ सीना तान कर खड़े रहे। उन्होंने गरजते हुए कहा- ''माइकेल को मैंने मारा है, दूसरों को घबराने की जरूरत नहीं है।''
उन्हें वहीँ गिरफ्तार कर लिया गया तथा २ अप्रैल १९४० को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। ऊधम सिंह के जीवन का वह स्वर्णिंम दिन था, जब उन्होंने ब्रिटिश मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया- ''यह काम मैंने इसलिए किया, क्योंकि मुझे उस व्यक्ति से चिढ थीं। वह असली अपराधी था, उसके साथ ऐसा ही किया जाना चाहिए था। वह मेरे देश की आत्मा को कुचल देना चाहता था। इसलिए मैंने उसे कुचल दिया। (टिट फोर टैट) पूरे २१ वर्ष तक मैं बदले की आग में जलता रहा। मुझे खुशी है कि मैंने यह काम पूरा किया। मैं अपने भाइयों के लिए मर रहा हूं, मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ। क्या लार्ड जेटलैंड मर गया। मैंने उसे भी गोलियां मारी थीं। मैंने ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन भारत में अपने देशवासियों को भूखा मरते देखा है। यह मेरा कर्तव्य था। और क्या सम्मान हो सकता है कि मैं मातृ भूमि के लिए मरा।''
जब मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा तो कहा कि - मेरा नाम ऊधम सिंह नहीं है, मेरा नाम राम मोहम्मद सिंह आजाद है। राम हिन्दू, मोहम्मद मुसलमान, सिंह सिक्ख और आजाद का अर्थ है- भारत की आजादी। फिर ऊधम ने कहा कि ''मुझे किसी भी सजा पर अफसोस न होगा।'' उन्हें मृत्यु दण्ड दिया गया।
ऊधम सिंह को लन्दन में ब्रिस्टन जेल में रखा गया। ब्रिस्टन जेल से उन्हें पेंटोविले जेल भेज दिया गया और ३१ जुलाई १९४० को उन्हें फांसी दे दी गई। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पंजाब सरकार और केन्द्र सरकार के लगातार प्रयत्नों के फलस्वरूप उनके अवशेषों को ससम्मान उतारा गया। ५ दिन तक दिल्ली में रखने के पश्चात् उन्हें गंगा में हरिद्वार के निकट प्रवाहित कर दिया गया। भारत माता के इस महान सपूत, को इस नर-नाहर को हम सब देशवासियों सहित सादर विनम्र प्रणाम। - मनुदेव 'अभय' विद्यावाचस्पति
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When the magistrate asked his name, he said - My name is not Udham Singh, my name is Ram Mohammad Singh Azad. Ram Hindu, Mohammed Musalman, Singh Sikh and Azad means freedom of India. Udham then said, "I will not regret any punishment." He was given the death penalty.
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जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...