जिन बुद्धिजीवियों ने ब्रिटिश कालीन भारतीयों इतिहास का अध्ययन गहरई से किया है वे भली-भांति जानते हैं कि भारत-माता को दासता से मुक्त करने हेतु कुछ लोगों ने संवैधानिक मार्ग अपनाया तो कुछ उत्साहित लोगों ने हिंसात्मक मार्ग अर्थात् ''कांटे को कांटे से ही निकालने'' की नीति के अनुसार इन लोगों ने व्यक्तिगत रूप से ही यह मार्ग स्वीकार कर अपना कार्य स्वयं आरम्भ कर दिया। सर्वधर्म के समभाव के प्रतीक 'राम मोहम्मद सिंह आजाद' नाम धारी प्रसिद्ध क्रांतिकारी भाई ऊधमसिंह आतंक का उत्तर आंतक की भाषा में देते थे। यही एक ऐसे जवां मर्द क्रान्तिकारी थे, जिन्होंने भारत में अत्याचार कर रहे ब्रिटिश अधिकारीयों को उनके गृह-नगर में घुसकर उनके अत्याचार का बदला लेकर यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय युवा भी किसी से कम नहीं हैं।
''यह काम मैंने इसिलए किया, क्योंकि मुझे उस व्यक्ति से चिढ थी। वह असली अपराधी था, उसके साथ ऐसा ही किया जाना चाहिए था। वह मेरे देश की आत्मा को कुचल देना चाहता था। इसलिए मैंने उसे कुचल दिया। पूरे २९ वर्ष तक मैं बदले की आग में जलता रहा। मुझे खुशी है कि भाइयों के लिए मर रहा हूं। मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ। क्या लार्ड जेटलैंडर मर गया। मैंने उसे भी गोलियां मारी थीं। मैंने अपने देशवासियों को भूखा मरते देखा है। यह मेरा कर्तव्य था। और क्या सम्मान हो सकता है कि मैं मातृ भूमि के लिए मरा।''
Motivational speech on Vedas by Dr. Sanjay Dev
वेद कथा - 5 | Rashtra | राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष नहीं होता -1 | क्रांतिकारी वीरों का धर्म हेतु बलिदान
हमारे प्रिय चरित्रनायक ऊधम सिंह का जन्म २९ दिसम्बर १८९९ को पंजाब के संगसूर जिले में स्थित सुनाम गाँव में हुआ था। इनके पिता श्री का नाम सरदार टहल सिंह था। दुर्भाग्य वश ऊधम सिंह के बाल्यकाल में ही इनके पिता की मृत्यु हो गई और इनकी सहायता के लिए कोई भी सगा-सम्बन्धी आगे नहीं आया। ये अपने छोटे भाई साधूसिंह के साथ भटकते हुए अमृतसर के पुतलीबर अनाथालय के द्वार के आकर ठिठक गये। यही इनकी एक समाजसेवी ने सहायता की अरु उन्हें ऊतक अनाथालय में रहकर इन्होंने मामूली पंजाबी भाषा एक साथ ही साथ हिन्दी और उर्दू लिखना-पढ़ना सीखा। किशोरावस्था में इन्होंने कुछ शिल्प सीखकर एक कारीगर के रूप में अपना स्वावलंबी जीवन व्यतीत करना प्रारम्भ कर दिया। इसी अवधि में इन्होंने अंगेजी भाषा का ज्ञान प्राप्तकर लिखना-पढ़ना सीख लिया।
सन् १९१९ की बैसाखी-पर्व इनके जीवन में एक नया मोड़ लाया। उस समय इनकी आयु १९-२० वर्ष की रही होगी। १३ अप्रैल १९१९ को बैसाखी पर मनाने हेतु अमृतसर में हजारों नागरिक इकट्ठे हुए थे। वे सभी नई फसल का उत्सव मनाने हेतु वहां बड़ी धूम-धाम से नाच-गा रहे थे। अमृतसर के जलियावाला बाग में उस दिन प्रायः २० हजार लोगों में श्री हंसराज, डा० सत्यपाल और डा० सैफुद्दीन किचलू के गिरफ्तारी की चर्चा हो रही थे। बड़े जोर शोर से वक्तागण इन नेताओं की गिरफ्तारी के परिणामों की व्याख्या कर रहे थे। ज्ञातव्य है कि जलियांवाला बाग वास्तव में कोई बाग नहीं था वरन् एक विशाल मैदान था। इस मैदान में न तो कोई पेड था और न पानी भरा तालाब था। यहा चारों ओर खूब लम्बी घास उगी हुई थी। सभी लोग वक्ताओं के भाषण सुन रहे थे, सभा में गजब का अनुशासन था।
जब यह सब कुछ शांत भाव से चल रहा था, तभी जलियांवाला बाग बाजार की तंग गलियों से होते हुए ब्रिटिश सिपाहियों के दो दस्ते बाग एम् पहुँचे। उन्होंने मोर्चा लगाकर भीड़ की ओर राइफलें (बंदूकें) तान लीं और गोली चलाना प्रारम्भ कर दिया। इतने में ब्रिगेडियर जनरल ई०एच०डायर ने सैनकों को और तेजी के साथ फायरिंग करने का आदेश दिया। ऊधम सिंह उस समय वहां उपस्थित थे और उन्होंने डायर को यह आदेश देते समय अपने कानों से सुना था। उस समय शाम के साढ़े पाँच बजे थे और सूर्य आकाश में चमक रहा था। दस मिनट तक ब्रिटिश सैनिकों की गोलियाँ सतत् चलती रहीं। मिनटों में इस बाग में खून की नदियाँ बह निकली और चारो ओर लाशें बिखरी पड़ी थी। थोड़ी देर में रात्रि का काला अंधियारा फैल गया। और..।
इस नरसंहारक का नायक जनरल डायर था। उसने हण्टर आयोग को बताय कि ''उसने यह फैसला तब लिया, जब वह अपनी मोटरकार से वहाँ पहुँचा, उसने मन में सोचा और देखते-देखते हजारों को मौत की नींद सुला दिया।'' उसने लोगों को चेतावनी भी नहीं दी तथा जिले के डिप्टी कमिश्नर से सलाह लेना भी उचित नहीं समझा। उसने आयोग को बताया कि ब्रिटिश राज्य की जड़ों को मजबूत करना उसका कर्तव्य था। एक भीषण अरु खून भरा निणर्य। वह अमृतसर के लोगों को एक सबक सीखना चाहता था। - मनुदेव 'अभय' विद्यावाचस्पति
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The famous revolutionary brother Udham Singh used to answer terror in the language of terror. It was such young men who revolutionized the British officers who were being tortured in India by entering their hometown and taking revenge for their atrocities, proving that Indian youth are also no work for anyone.
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जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...