आर्य समाज के प्रवर्तक, युगनिर्माता, वैदिक धर्म के पुनरुद्धारक, भारतीय संस्कृति के संवाहक, महर्षि दयानन्द सरस्वती का नाम राष्ट्र निर्माताओं में सदैव आदरपूर्वक लिया जाएगा। महर्षि दयानन्द ने आध्यात्मिक, धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में जागृति का शंखनाद तो फूंका ही था, उन्होंने देशवासियों को स्वराज्य के महत्त्व से भी अवगत कराया था। उस समय की राजनैतिक दासता की स्थिति से उनका हृदय विह्वल था। उन्होंने अपने महान ग्रंथ "सत्यार्थप्रकाश" के आठवें समुल्लास में लिखा है- "अब अभाग्योदय से और आर्यो के आलस्य, प्रमाद, परस्पर विरोध से अन्य देशों के राज्य करने की तो कथा ही क्या कहनी, किन्तु आर्यावर्त्त में भी आर्यों का अखण्ड, स्वतन्त्र, स्वाधीन, निर्भय राज्य इस समय नहीं है। जो कुछ भी है सो भी विदेशियों से पादाकान्त हो रहा है। दुर्दिन जब आता है तब देशवासियों को अनेक प्रकार का दु:ख भोगना पड़ता है। कोई कितना ही करे, परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है, वह सर्वोपरि उत्तम होता है। अथवा मत-मतान्तर के आग्रह रहित, माता-पिता के समान कृपा, न्याय औय दया के साथ विदेशियों का राज्य भी पूर्ण सुखदायक नहीं है।
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
गौरवशाली महान भारत - 3
Ved Katha 1 part 3 (Greatness of India & Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
परन्तु भिन्न-भिन्न भाषा, पृथक्-पृथक् शिक्षा, अलग-अलग व्यवहार का छूटना अति दुष्कर है। बिना इसके छूटे परस्पर का पूरा उपकार और अभिप्राय सिद्ध होना कठिन है।"महर्षि दयानन्द सरस्वती के हृदय में भारत को स्वाधीन कराने की इच्छा उत्कृष्ट रूप में थी। "स्वराज्य" की उनकी अवधारणा नितान्त मौलिक थी। वे आपसी वैमनस्य को समाप्त करके समान पूजा पद्धति, समान शिक्षा और एक भाषा के पक्षधर थे। आर्यसमाज ने उनके सन्देश का निर्वहन किया। आर्यसमाज ने जहॉं बड़े-बड़े विद्वान, पण्डित, संन्यासी, कवि, लेखक, पत्रकार तैयार किए, वहॉं बमों और गोलियों में आस्था रखने वाले, स्वाधीनता की बलिवेदी पर प्राण निछावर करने वाले बलिदानी, क्रान्तिकारी भी तैयार किए। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने वाले क्रान्तिकारियों में 80 प्रतिशत व्यक्ति आर्यसमाज के ही थे। आर्य समाज ने अकेले जितने देशभक्त उत्पन्न किए, उतने और कोई नहीं कर सका।सन् 1857 की स्वतन्त्रता क्रान्ति को निर्ममतापूर्वक कुचलने के बाद देश में अंग्रेजों की क्रूरता का असह्य साम्राज्य सबसे स्तब्ध करने वाला था। सभी भारतीय निराश, किंकर्त्तव्यविमूढ और परास्त से हो गए थे। उस समय साम्राज्ञी विक्टोरिया की ओर से एक विज्ञप्ति प्रजा में बांटी गई थी-"अब ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथ से शासन हमने ले लिया है। अब प्रजा के साथ पक्षपातरहित, न्याययुक्त, माता-पिता के समान दयापूर्ण शासन होगा।" विज्ञप्ति पढकर प्रजा फूली न समायी। सभी ने घुटने टेक दिए। चारों ओर अंग्रेजी शासन का जय-जयकार था। सारे देश पर भय का साम्राज्य छाया था। ऐसे कठिन समय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में गम्भीर गर्जना करते हुए लिखा था- "मत-मतान्तर के आग्रह रहित, अपने और पराए का पक्षपात शून्य प्रजा पर माता-पिता के समान कृपा न्याय और दया के साथ भी विदेशियों का राज्य पूर्ण सुखदायी नहीं है।" उत्तम से उत्तम विदेशी शासन भी शासितों में आत्महीनता पैदा कर देता है। जाति में जड़ता आ जाती हैं। उनमें अत्याचारों के विरोध की शक्ति भी नहीं रहती।ऐसे समय में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने विद्या और धर्म की अपेक्षा स्वराज्य की स्थापना को सर्वाधिक प्राथमिकता दी। कांग्रेस का जन्म तो आर्यसमाज की स्थापना के 10 वर्ष बाद हुआ। तब कांग्रेस की प्राथमिकताओं में स्वराज्य का जिक्र भी नहीं था। कांग्रेस के दादाभाई नौरोजी ने पहली बार 1906 में "स्वराज्य" शब्द का प्रयोग किया। यह शब्द उन्होंने "सत्यार्थप्रकाश" से ही लियाथा। बाल गंगाधर "तिलक" ने लखनऊ कांग्रेस में 1916 में स्वराज्य की घोषणा की। 1919 में पं. मोतीलाल नेहरू और स्वामी श्रद्धानन्द ने अमृतसर में एकजुट होकर स्वाधीनता के लिए कार्य करने का आह्वान किया। 1928 में लाहौर कांग्रेस ने पूर्ण स्वाधीनता को अपना ध्येय माना, जबकि महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आधी शताब्दी पहले सीधे सपाट शब्दों में कहा था- "जो स्वदेशी राज्य होता है, वह सर्वोपरि उत्तम होता है।" वे वेदमन्त्र की व्याख्या करते हुए लिखते हैं-"जब कर्मयोगी प्रजागण सबसे प्रथम संगठित होता है, तब वह स्वराज्य प्राप्त करता है, जिससे श्रेष्ठ दूसरा कोई भी राज्य नहीं है।"
1857 की असफल क्रान्ति के बाद भारत का अग्रगामी समाज कुछ करना चाहता था, पर कुछ कर नहीं पा रहा था। उस समय गान्धी जी का जन्म नहीं हुआ था। अरविन्द घोष का भी जन्म नहीं हुआ था। स्वामी श्रद्धानन्द, बाल गंगाधर तिलक, मोतीलाल नेहरू, रवीन्द्रनाथ टैगोर, लाला लाजपतराज शैशवावस्था में थे। ऐसे समय में महर्षि दयानन्द ने देश के कोने-कोने में घूमकर अंग्रेजी सरकार की कब्र खोदनी शुरू कर दी। स्थान-स्थान पर सभाएं, गोष्ठियॉं करके स्वाधीनता आन्दोलन की एक प्रशस्त पृष्ठभूमि तैयार की। अपने क्रान्तिकारी विचारों द्वारा जन-जन में स्वाधीनता का मन्त्र फूंक दिया। केवल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे क्रान्तिकारियों को भेजकर प्रवासी भारतीयों के हृदय में स्वराज्य स्थापना के लिए वैचारिक क्रान्ति का सूत्रपात किया। आर्य समाज ने देशवासियों के हृदय में सर्वप्रथम स्वाभिमान की ज्योति जगाई।
1857 की क्रान्ति के समय महर्षि दयानन्द कहॉं थे? यह गम्भीर प्रश्न है। श्री पृथ्वीसिंह मेहता विद्यालंकार ने "हमारा राजस्थान" में लिखा है कि 1857 की तैयारियों से महर्षि दयानन्द का निकटता का सम्बन्ध था। देश की दशा पर गुरु-शिष्य में भी एकान्त में वार्तालाप होता रहता था, जहॉं तीसरा कोई नहीं रहता था। एक बार हरिद्वार में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने कहा था-"मेरी आंखें उस दिन को देखने के लिए तरस रहीं हैं, जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक तथा अटक से कटक तक आर्यों का एकछत्र राज्य स्थापित होगा, पं. जयचन्द्र विद्यालंकार ने "राष्ट्रीय इतिहास का अनुशीलन" में बनारस के उदासी मठ के सत्यस्वरूप शास्त्री के इस कथन को उद्धृत किया है- "साधु सम्प्रदाय में तो बराबर यह जनश्रृति चली आ रही है कि दयानन्द ने 1857 के संघर्ष में महत्वपूर्ण भाग लिया था। सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें समुल्लास में 1857 के संघर्ष में बाघेरों की वीरता का उल्लेख यह सिद्ध करता है कि महर्षि ने उस संघर्ष को साक्षात तथा निडरता से देखा था। सन् 1866 में अजमेर में कर्नल ब्रुक्स की विदाई के समय महर्षि के ये शब्द थे- "आप लन्दन जाकर महारानी विक्टोरिया को कह दें कि यदि भारतीयों के धार्मिक जीवन में शासन का हस्तक्षेप इसी प्रकार रहा और गाय जो कि अर्थ व्यवस्था की रीढ और सांस्कृतिक जीवन का प्रतीक है, उसका वध जारी रहा तो 1857 की क्रान्ति फिर दोहरायी जा सकती है। ये शब्द उनके योगदान को प्रमाणित करते हैं। उन्होंने लक्ष्मीबाई तथा तात्या टोपे और अन्य बहादुरों को क्रान्ति में कूच करने का सत्परामर्श हरिद्वार के चण्डी मन्दिर में बैठकर दिया था । देश की दुर्दशा पर उन्होंने कहा था- "जब से विदेशी इस देश में आकर राज्याधिकारी हुए, तबसे क्रमश: आर्यों के दु:ख की बढोत्तरी होती जाती है।" उनकी प्रार्थनाओं में ये शब्द मिलते हैं- "हे कृपा सिन्धो भगवन्, हमारा स्वराज्य अत्यन्त बढे" स्वाधीनता की बलिवेदी पर आर्य समाज के अनेक अनुयायियों ने अपना जीवन निछावर कर दिया। विदेशों में स्वाधीनता की ज्योति जलाने वाले श्यामजी कृष्ण वर्मा महर्षि दयानन्द के शिष्य थे। लन्दन में अंग्रेज को गोली का निशाना बनाने वाले वीर क्रान्तिकारी मदनलाल ढींगरा आर्यसमाज की ही देन थे। अंग्रेज पर गोली चलाकर फांसी पर चढने वाले चापेकर बन्धुओं को दिशा देने वाले श्यामजी कृष्ण वर्मा ही थे। वीर सावरकर, सुभाष चन्द्र बोस, लाल हरदयाल, लाला लाजपत राय, अजीत सिंह, महादेव, गोविन्द रानाड़े, भाई परमानन्द, भाई बाल मुकुन्द, पं. रामप्रसाद "बिस्मिल", चन्द्रशेखर आजाद, उधमसिंह, महात्मा हंसराज के सुपुत्र बलराज, प्रताप सिंह आदि महान विभूतियॉं सभी तो आर्यसमाज की प्रेरणा से स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े थे। स्वामी श्रद्धानन्द ने संगीनों की नोक पर सीना तानकर स्वराज्य संगीत सुनाया था। उनकी मृत्यु पर महात्मा गान्धी ने कहा था- "जैसी शानदार मौत स्वामी श्रद्धानन्द को मिली है, काश! मुझे भी वैसी ही प्राप्त होती।" आर्यवीर सोहनलाल पाठक को फांसी दी गई, अमर हुतात्मा खुशीराम को गोलियों से भून दिया गया। सरदार भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव को असेम्बली में बम फेंकने के लिए फांसी दी गई। इस पर पं. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था- "जब हम अंग्रेजों के साथ संधिवार्ता करेंगे तो हमारे और उनके बीच शहीद भगतसिंह की लाश पड़ी होगी कि हम उसे भूल न जाएं...भूल न जाएं।" अमर हुतात्मा ठाकुर रोशनसिंह, पं. सीताराम, पं. मनसाराम जी वैदिक तोप, चन्द्रसिंह गढवाली सभी वैदिक धर्म में दीक्षित आर्य थे। स्वामी अभेदानन्द जी, नरदेव शास्त्री, चौ. चरणसिंह, चन्द्रभानु गुप्त, महात्मा आनन्द स्वामी के सुपुत्र श्री रणवीर ने अंगे्रजी जेलों की यातनाएं सहीं। महात्मा नारायण स्वामी, स्वामी स्वतन्त्रतानन्द, चान्दकरण शारदा, भाई वंशीलाल, महात्मा आनन्द स्वामी तथा महाशय कृष्ण ने हैदराबाद सत्याग्रह के समय यातनाएं सहीं। आर्य समाज के नेतृत्व में सत्याग्रह विजय पर सभी ने हर्ष मनाया था।
हजारों शत-शत नमन उन वीरों को, जिन्होंने स्वतन्त्रता हेतु अपना जीवन मातृभूमि की बलिवेदी पर उत्सर्ग कर दिया। लेखक-डॉ. धर्मपाल
Contact for more info.-
राष्ट्रीय प्रशासनिक मुख्यालय
अखिल भारत आर्य समाज ट्रस्ट
आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर
नरेन्द्र तिवारी मार्ग
बैंक ऑफ़ इण्डिया के पास
दशहरा मैदान के सामने
अन्नपूर्णा, इंदौर (मध्य प्रदेश) 452009
दूरभाष : 0731-2489383, 9302101186
www.akhilbharataryasamaj.org
--------------------------------------
National Administrative Office
Akhil Bharat Arya Samaj Trust
Arya Samaj Mandir Annapurna Indore
Narendra Tiwari Marg
Near Bank of India
Opp. Dussehra Maidan
Annapurna, Indore (M.P.) 452009
Tel. : 0731-2489383, 9302101186
www.aryasamajindore.org
80 percent of the revolutionaries who participated in the Indian freedom struggle were Aryasamaj. No one else could have produced as many patriots as the Arya Samaj alone. After the brutal crushing of the Independence Revolution of 1857, the unbearable empire of British brutality in the country was the most shocking.
Freedom Movement and Arya Samaj | Arya Samaj Indore | Arya Samaj Mandir Indore | Arya Samaj Marriage Indore | Arya Samaj Mandir Marriage Indore | Arya Samaj Annapurna Indore | Arya Samaj Mandir Helpline Indore for Betul - Bhind - Buldhana - Chandrapur - Bhilwara - Bikaner | Arya Samaj Mandir Bank Colony Indore MP | Arya Samaj Mandir in Indore | Arya Samaj Marriage | Arya Samaj | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Hindu Matrimony | Matrimonial Service | Arya Samaj Marriage Procedure | Arya Samaj in Madhya Pradesh - Chhattisgarh | Arya Samaj | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony | Hindu Matrimony | Arya Samaj Marriage Service | Matrimonial Service | Official Web Portal of Arya Samaj Mandir Indore | Maharshi Dayanand Saraswati | Vedas | Arya Samaj Marriage Helpline Indore India | Aryasamaj Mandir Helpline Indore | inter caste marriage Helpline Indore | inter caste marriage promotion for prevent of untouchability in Indore | inter caste marriage promotion for national unity by Arya Samaj indore Bharat | human rights in india | human rights to marriage in india | Arya Samaj Marriage Guidelines India | inter caste marriage consultants in indore | court marriage consultants in india | Arya Samaj Mandir marriage consultants in indore | arya samaj marriage certificate Indore | Procedure Of Arya Samaj Marriage in Indore India.
freedom movement aryasamaj | Promoter of arya samaj | Revival of vedic religion | Conductors of Indian culture | Chain of awakening | Indian freedom struggle | Kingdom of Fear | The state of foreigners is not fully prosperous | Aim at freedom | Self-respect light | Governance intervention in life | Your life goes on sacrificing the motherland | Torture at Satyagraha | Freedom Movement inspired by Arya Samaj | Dixit in Vedic Religion | Political slavery |
Arya samaj wedding rituals in indore | validity of arya samaj marriage Indore | Arya Samaj Marriage Ceremony Indore | Arya Samaj Wedding Ceremony | Documents required for Arya Samaj Marriage | Arya Samaj Legal marriage service Indore Bharat | inter caste marriage for prevent of untouchability in India | Arya Samaj Pandits Helpline Indore India | स्वाधीनता आन्दोलन और आर्य समाज | Arya Samaj Pandits for marriage Indore | Arya Samaj Temple in Indore India | Arya Samaj Pandits for Havan Indore | Pandits for Pooja Indore | Arya Samaj Pandits for vastu shanti havan | Vastu Correction Without Demolition Indore, Arya Samaj Pandits for Gayatri Havan Indore | Vedic Pandits Helpline Indore | Hindu Pandits Helpline Indore | Arya Samaj Hindu Temple Indore | Hindu Matrimony Indore | Arya Samaj Marriage New Delhi – Mumbai Maharashtra – Surat Gujarat - Indore – Bhopal – Jabalpur – Ujjain Madhya Pradesh – Bilaspur- Raipur Chhattisgarh – Jaipur Rajasthan Bharat | Marriage Legal Validity | Arya Marriage Validation Act 1937 | Court Marriage Act 1954 | Hindu Marriage Act 1955 | Marriage Legal Validity by Arya samaj.
Indore Aarya Samaj Mandir | Indore Arya Samaj Mandir address | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Intercast Marriage | Intercast Matrimony in Indore | Arya Samaj Wedding in Indore | Hindu Marriage in Indore | Arya Samaj Temple in Indore | Marriage in Indore | Arya Samaj Marriage Rules in Indore | Hindu Matrimony in Indore | Arya Samaj Marriage Ruels in Hindi | Ved Puran Gyan | Arya Samaj Details in Hindi | Ved Gyan DVD | Vedic Magazine in Hindi | Aryasamaj Indore MP | address and no. of Aarya Samaj Mandir in Indore | Aarya Samaj Satsang | Arya Samaj | Arya Samaj Mandir | Documents required for Arya Samaj marriage in Indore | Legal Arya Samaj Mandir Marriage procedure in Indore | Aryasamaj Helpline Indore Madhya Pradesh India | Official website of Arya Samaj Indore | Arya Samaj Bank Colony Indore Madhya Pradesh India | महर्षि दयानन्द सरस्वती | आर्य समाज मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश भारत | वेद | वैदिक संस्कृति | धर्म | दर्शन | आर्य समाज मन्दिर इन्दौर | आर्य समाज विवाह इन्दौर
जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...