वैदिक काल के इतिहास से प्रकट है कि हिमाचल प्रदेश कभी देवलोक या देवभूमि के रूप में था। वहॉं देवराज्य था। देवजाति में भी यक्ष, किन्नर, गन्धर्व आदि अनेक वर्ग थे। देवराज्य के सभापति का नाम विष्णु, प्रशासक का नाम इन्द्र, कोषाध्यक्ष का कुबेर और सेनापति का नाम रुद्र या शिव था।
रुद्र और शिव समानार्थक हैं। रुद्र का अर्थ है- पापियों को रुलाने वाला और शिव का अर्थ है कल्याण करने वाला। जिस राज्य का सेनापति अपने कर्त्तव्य के प्रति सजग होकर दृष्टों को रुलाता हैं, उसी राष्ट्र का कल्याण होता है।
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वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
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Ved Katha Pravachan _50 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
शिवरात्रि का सम्बन्ध शिवजी के जीवन की एक विशेष घटना से है। युवा सेनापति शिव का विवाह सौन्दर्य और सद्गुणों की प्रतिमूर्ति पार्वती देवी के साथ सम्पन्न हुआ था। सुहाग रात्रि के दिन अनायास ही सूचना मिलती है कि असुरों ने देवराज्य पर आक्रमण कर दिया। देव सेनापति शिव के लिए यह सब कुछ अप्रत्याशित था। वे ठगे से रह गये। पर वे योगी थे। कुछ क्षणों को वे समाधिस्थ हुए। उन्होंने अपना तृतीय नेत्र=विवेक नेत्र (ज्ञान नेत्र) खोला और कामदेव की वाण वर्षा को निरस्त करके उसे भस्मसात् कर दिया। रात्रि का अन्धकार गहन था। पर उस निबीड़ अँधियारी रात्रि में शिवजी का आत्मा जागरूक था, वह निरन्तर जागरूक रहा और अन्तत: वासना पर विवेक की विजय हुई। देव सेनापति ने घोषणा की- "जब तक असुर सेना पर हम विजय नहीं प्राप्त कर लेंगे तब तक हमारी अखण्ड ब्रह्मचर्य साधना चलेगी।" देवसेना एक प्रकार के जादू से सम्मोहित हो उत्साह से भर उठी। शिव का डमरू बज उठा, पग थिरक उठे, प्रलयङ्कर ताण्डव नृत्य का दृश्य उपस्थित हो उठा।
पार्वती श़ृंङ्गार-सज्जित बैठी रही और जब उसे वास्तविकता का ज्ञान हुआ तो उसने भी "पति लोकं गमेयम्" इस आदर्श को चरितार्थ करते हुए शिवजी के इस रात्रि जागरण के व्रत में दीक्षा ले ली। यों संयम और साधना द्वारा देवत्व प्राप्ति के लक्ष्य को सार्थकता प्रदान की और भारतीय देवियों में अमर पद प्राप्त किया। तभी से यह रात्रि "महाशिरात्रि" बन गई।
वाम मार्ग काल में तो सभी कुछ उलट गया। शिव का डमरु-वादन, ताण्डव, नृत्य, रात्रि जागरण, त्रिनेत्र, भाल में चन्द्र स्थिति आदि सभी अलङ्कारिक प्रयोगों का सौष्ठव नष्ट कर दिया गया। शिवलिङ्ग पूजा का महाभ्रष्ट क्रम चल पड़ा। कामारि शिव के नाम पर घोर घिनौनी कथायें घड़ ली गई, भाङ्ग-धतूरा आदि को शिवजी की प्रिय वस्तु बना दिया गया। मानव पतन की यह पराकाष्ठा थी। ईश अनुकम्पा से इसी शिवरात्रि को फिर एक बालक ने अज्ञान की अँधियारी रात्रि में जागरण की साधना की और अखण्ड ब्रह्मचर्य की साधना का व्रत लेकर बालक मूलशङ्कर ने भोगवाद और असंयम से संतप्त विश्र्व पर दया और आनन्द की वर्षा कर "दयानन्द" संज्ञा को सार्थक किया।
यों शिवरात्रि और बोध रात्रि का एक ही सन्देश है- हम जागते रहें। जागने का अर्थ प्रकृति नियम विरुद्ध, स्वास्थ्य नियम विरूद्ध रात्रि भर जागने का नाटक करना नहीं है। वरन् जागने का अर्थ है अपने विवेक को जागरूक रखना, जिससे हम मानव-जीवन के उद्देश्य के प्रति जागरूक रहें। हममे प्रतिक्षण यह जागरूकता रहे कि जीवन का उद्देश्य प्रकृति के सदुपयोग द्वारा सच्चिदानन्द स्वरूप परमेश प्रभु कि प्राप्ति है। हमें बोध रहे कि भौतिक सुख साधन तो हैं पर साध्य परमात्मा है। हमें बोध रहे कि हम त्यागपूर्वक भोगें, संयमशील बनें। इसका अर्थ है कानों से वही सुनें जो सुनना चाहिए, आंखों से वही देखें जो देखना चाहिये, हाथों से वही करें जो करणीय है आदि। हमें बोध रहे कि प्रभु की प्रजा की सेवा ही सच्ची ईश्वर आराधना है। हमें बोध रहे कि स्वयं अपने प्रति, परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्र्व मानव और प्राणिमात्र के प्रति कर्त्तव्य पालन ही प्रभु का प्यार पाने का साधन है। तो आयें हम शिव रात्रि को बोध रात्रि बनायें, बोध रात्रि को शिव रात्रि बनायें और आत्म-कल्याण के साथ ही अन्यों के कल्याण का साधन बनें। अब तक जो कुछ भी हुआ सो हुआ, पर अब आगे हम बोध पर्व पर इस विवेचन के प्रकाश में आत्म-जागरण और परिवार के वैदिकीकरण का व्रत लें। यही शिवरात्रि व्रत का रहस्य है। यही बोधपर्व का सन्देश है। -महात्मा प्रेमभिक्षु (तपोभूमि, फरवरी 1997)
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The history of Vedic period reveals that Himachal Pradesh was once in the form of Devaloka or Devbhoomi. He was the kingdom of Dev. In Devajati also there were many classes like Yaksha, Kinnar, Gandharva etc. The name of the Chairman of Devrajya was Vishnu, the administrator's name Indra, the treasurer's Kubera and the commander's name was Rudra or Shiva.
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जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...