लेखक- स्वामी विद्यानन्द सरस्वती
गोपाल दयानन्द- दो अन्य विषय जो दयानन्द के अन्तराल और कार्यों में दूध में मक्खन की तरह व्याप्त थे और जिन्हें उन्होंने सार्वजनिक आन्दोलन का रूप दिया, वे थे गौ और संस्कृतनिष्ठ हिन्दीं। वर्तमान में पाश्चात्य देशों की भॉंति भारत में भी हरितक्रान्ति ("ग्रीन रेवोल्यूशन") के नाम पर कृषि की उन्नति की ओर ध्यान दिया जा रहा है, परन्तु आज से डेढ सौ वर्ष पूर्व स्वामी दयानन्द ने हरितक्रान्ति और श्वेत-(दुग्ध)-क्रान्ति, दोनों को एक साथ जोड़कर "गोकृष्यादिरक्षिणी सभा" की स्थापना की थी और उसके लिए नियमोपनियम भी बनाये थे।
"गोकरुणानिधि" के प्रकाशकों और अन्य भाषाओं में उसके अनुवादकों ने उन्हें अनावश्यक अथवा अप्राङ्गिक समझकर "गोकृष्यादि रक्षिणी सभा" के नियमोपनियमों को छापना बन्द कर दिया, परन्तु स्वामीजी गोरक्षा और कृषि में चोली-दामन का सम्बन्ध मानते थे।
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Ved Katha -18 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
सत्यार्थप्रकाश विविधविषयविभूषित ग्रन्थ है। उसमें एक विषय गौ है, किन्तु इस विषय को लेकर स्वामीजी ने "गोकरुणानिधि" नाम से एक पृथक ग्रन्थ की रचना की। दयानन्द ने अपने जीते जी अपने ग्रन्थों का अंग्रेजी में अनुवाद किये जाने की अनुमति नहीं दी, परन्तु "गोकरुणानिधि" का अंग्रेजी में अनुवाद कराके विलायत भेजना और समय-समय पर गौरांग महाप्रभुओं से वार्ता करते रहना स्वीकार किया। ये दोनों बातें दयानन्द के गोवंश के प्रति प्रेम के अतिशय की द्योतक हैं।
दयानन्द वास्तव में दयासागर थे। एक बार दशहरे के अवसर पर चढाई जानेवाली पशुबलि से द्रवीभूत होकर उन्होंने उदरयुपर नरेश महाराजा सज्जनसिंह से कहा, "आप राजा हैं, न्यायासन पर विराजमान हैं। मैं इन मूक प्राणियों का वकील बनकर आपके सामने अभियोग लेकर उपस्थित हूँ। बताइए, इनका क्या अपराध है जो देवताओं के नाम पर इन्हें प्राणदण्ड दिया जा रहा है? "महाराजा ने चिरकाल से चली आ रही प्रथा को तुरन्त बन्द करने का आदेश दे दिया।
"गोकरुणानिधि" में स्वामीजी लिखते हैं, "हे परमेश्वर! तू क्यों इन पशुओं पर दया नहीं करता जो निरपराध मारे जाते हैं? क्या इनपर तेरी प्रीति नहीं है? क्या इनके लिए तेरी न्यायसभा बन्द हो गई? क्यों नहीं इनकी पीड़ा छुड़ाने के लिए ध्यान देता? क्यों नहीं इनकी पुकार सुनता?" यहॉं खुल्लम-खुल्ला ईश्वर की न्यायव्यवस्था को चुनौती दी जा रही है। उस पर क्रूरता, निर्दयता, पक्षपात और अत्याचार के आरोप लगाये जा रहे हैं। उसे बहरा बताया जा रहा है और यह सब कौन कह रहा है? वह जिसने बडी-से-बड़ी आपत्ति आने पर भी कभी प्रभु से शिकायत नहीं की। वह जिसका परमेश्वर की दया और न्याय पर इतना विश्वास है कि मृत्यु के समय असह्य वेदना से पीड़ित अवस्था में भी यही कहता है, "हे दयामय! तेरी इच्छा पूर्ण हो, तैने अच्छी लीला की।" गोहत्या के कारण कितना दुखी होगा दयानन्द का मन जब उसने अपने प्रियतम के प्रति इतने कठोर शब्दों का प्रयोग किया होगा। दयानन्द के अनुसार परमेश्वर दुष्कर्म में प्रवृत्त होनेवाले के मन में भय, शङ्का और लज्जा का भाव उत्पन्न करता है। -"सत्यार्थप्रकाश", समुल्लास 7
इसलिए दयानन्द परमेश्वर को अपने इस कर्त्तव्य का स्मरण कराते हुए उससे जवाब-तलबी करता है, "क्यों तू इन मांसाहारियों के आत्माओं में दया का प्रकाश कर निष्ठुरता, कठोरता, स्वार्थपन, मूर्खता आदि दोषों को दूर नहीं करता जिससे वे इन बुरे कार्यों से बचें?" तत्पश्चात् पशुओं के माध्यम से प्रभु से दया की भाख मॉंगता है, "हम इस समय अतीव कष्ट में हैं, क्योंकि कोई भी हमको बचाने में उद्यत नहीं होता और जो कोई होता है, तो मांसाहारी द्वेष करते हैं।" जब इन दीन वचनों को निष्फल जाते देखता है तो मानो, प्रतिशोध की भावना से धमकी दिलवाता है, "हम तुम्हारी भाषा में अपना दु:ख नहीं समझा सकते और आप लोग हमारी भाषा नहीं समझते। नहीं तो क्या हममें से किसी को कोई मारता तो हम भी आप लोगों के सदृश अपने मारनेवालों को न्यायव्यवस्था से फॉंसी न चढवा देते? इसलिए आज तक जो हुआ सो हुआ, आगे आँख खोलकर सबके हानिकारक कर्मों को न कीजिए, न करने दीजिए।" जब कोई नहीं सुनता तेा दयानन्द अपने प्रभु की शरण में जाकर प्रार्थना करता है, "इन सब बातों को सुन मत डालना, किन्तु सुन रखना। इन अनाथ पशुओं के प्राणों को शीघ्र बचाना। हे महाराजाधिराज जगदीशवर! जो इनको कोई न बचावे तो आप इनकी रक्षा करने और हमसे कराने में उद्यत हूजिए।"
जिसने विदेशी शासकों द्वारा अपनी रक्षार्थ की जानेवाली व्यवस्था को ठुकरा दिया, वही दयानन्द गोमाता के प्राणों की भीख मॉंगने के लिए उनके द्वार खटखटाने में संकोच नहीं करता। कभी वह अजमेर के कमिश्नर डैविडसन के पास जाता है, कभी कर्नल ब्रुक्स को हाथ जोड़ता है। इसी क्रम में वह सन् 1873 में संयुक्त प्रान्त (उत्तरप्रदेश) के गवर्नर म्योर से मिलने दौड़कर फर्रूखाबाद जा पहुँचता है और याचना के स्वर में उससे कहता है, "यदि इंग्लैंड लौटने पर आपको वहॉं इण्डियन कौंसल का सदस्य बना दिया जाए तो क्या आप भारत में गोवध बन्द कराने का यत्न करेंगे?" गोरक्षा के लिए तो दयानन्द दीवाना था। एतदर्थ उसने हस्ताक्षर अभियान का आश्रय लिया। उनकी योजना थी कि इस निमित्त दो करोड़ हस्ताक्षरयुक्त एक ज्ञापन गवर्नर जनरल और वायसराय लार्ड रिपन के द्वारा महारानी विक्टोरिया को भेजा जाए। इस ज्ञापन की वैधानिकता के सम्बन्ध में उन्होंने उच्च कोटि के वकीलों से भी परामर्श किया, किन्तु अभी कुछ लाख ही हस्ताक्षर हो पाये थे कि स्वामीजी का निधन हो गया।
स्वामीजी ने उदयपुर नरेश महाराणा सज्जनसिंह से जोधपुर नरेश को पत्र लिखवाकर अपने राज्य में गौवध बन्द करने को कहा था। उसके उत्तर में जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्तसिंह ने लिखा, "म्हारी प्रजा 14, 61, 156 हिन्दू ने 1,37119 मुसलमान हैं। या तीन पशु गाय, बैल और भैंस नहीं मारिया जावणरा प्रबन्ध में खुशी है और मैं पिण रजामन्द हां।""सवंत् 1939 पोष बदि 5"(खास मुहर) "हस्ताक्षर-राजराजेश्वरमहाराजाधिराज जसवन्तसिंह जोधपुर
स्वामीजी के प्रयत्न से उदयपुर, जयपुर और जोधपुर राज्यों में गोहत्या बन्द हो गई थी। भारत के इतिहास में रेवाड़ी में स्वामीजी की प्रेरणा से राव युधिष्ठिरसिंह (राव वीरेन्द्रसिंह के दादा एवं वर्तमान केन्द्रीय मन्त्री राव इन्द्रजीत सिंह के परदादा) द्वारा स्थापित गोशाला आधुनिक भारत की पहली गोशाला है।
किन्तु भारत के संविधान की धारा 48 में सरकार को गोहत्या को प्रतिबन्धित करने का स्पष्ट निर्देश देते हुए भी इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया।
विधायिका ("लैजिस्लेचर") का मुख्य कार्य कानून बनाना है। मैं उन्हीं को आर्यसमाजी सांसद मानता हूँ जिन्होंने सांसद बनने पर आर्यसमाज की किसी मान्यता को कानूनी मान्यता दिलाई है। इस आधार पर मैं ढाई सांसदों को आर्यसमाजी मानता हूँ। 1. दीवान हरबिलास सारडा जिन्होंने सन् 1929 में बचपन की शादियों पर रोक लगानेवाला "सारडा ऐक्ट" नाम से प्रसिद्ध "चाइल्ड मैरिज रैस्ट्रेण्ट ऐक्ट" बनवाया था। 2. श्री धनश्यामसिंह गुप्त जिन्होंने सन् 1937 में जन्मगत जाति को तोड़कर होनेवाले विवाहों को वैधता प्रदान करनेवाला "आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट" बनवाया था। 3. श्री ओमप्रकाश त्यागी को मैं आधा सांसद मानता हूँ। आधा इसलिए कि उन्होंने धर्मपरिवर्तन पर रोक लगाने के लिए सन् 1978-79 में एक बिल पेश किया था, किन्तु लोकसभा की अकाल मृत्यु हो जाने से वह "पास" नहीं हो सका था। अपने को स्वामी दयानन्द जैसे गौभक्त का अनुयायी कहनेवाला कोई आर्यसमाजी सांसद गोहत्या निषेधक कानून आज तक नहीं बनवा सका।
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With the efforts of Swamiji, cow slaughter in the states of Udaipur, Jaipur and Jodhpur was stopped. Gaushala is the first Gaushala of modern India established by Rao Yudhishthira Singh (grandfather of Rao Virendrasinh and great-grandfather of the present Union Minister Rao Indrajit Singh) in the history of India with the inspiration of Swamiji.
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जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...