मनुष्य कार्य करने में स्वतन्त्र है, अच्छे या बुरे जैसे चाहे करे - महाभारत काल के समय से ही हमारा पतन हो चुका था। ईश्वर और धर्म के नाम पर हिंसा ने अच्छाइयों पर आधिपत्य कर लिया था। उस समय महात्मा बुद्ध, महात्मा गौतम, फिर शंकर और काफी समय के बाद महर्षि दयानन्द और महात्मा गान्धी ने धर्म-कर्म पर प्रभावी हिंसा का घोर खण्डन कर "अहिंसा परमो धर्म:" का नारा देकर समाज को संस्कारवान बनाने का पाठ पढाया था। ऐसे महापुरुषों के सत्य सिद्धान्त आज भी कहीं-कहीं पर देखने-सुनने को मिलते हैं।
Ved Katha 1 part 1 (Greatness of India & Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
दृश्य है राजतंरगिणी के लेखक कल्हण के देश कशमीर का जहॉं की विद्वत्ता-पाण्डित्य का विश्व में एक अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है। आज उस देश के अन्य इन्सानों की क्या बात कहें, हा ! काशमीर का ब्राह्मण भी मांसाहारी बन चुका है। समय का फेर ही तो है।
कशमीरी पंडित की वरयात्रा- प्रसंग था देश की राजनीति के जाने माने नेता श्री पण्डित माखनलाल फोतेदार के सुपुत्र का शुभ विवाह पाणि ग्रहण संस्कार का।
मुझे भी उनके यहॉं सम्मिलित होने का सुअवसर मिला। बारात दिल्ली से गुड़गांवा जनपद में जानी थी। मैं चौधरी लक्ष्मीचन्द के साथ गुडगांवा पहुंचा। धीरे-धीरे छोटे-बड़े स्त्री-पुरुषों, नेताओं का आगमन शुरू हुआ। द्वाराचार के बाद जब भोजन पर गये तो तरह-तरह के व्यञ्जनों को देखकर सोचा कि कशमीरियों के भोजन में सभी कुछ होगा। मैं एक तरफ हटकर खड़ा था। श्री फोतेदार जी मुझे कुछ न खाते देख समझ गये कि मैं भोजन क्यों नहीं कर रहा हूँ । मेरे पास आये और बोले शास्त्री जी आप भोजन कीजिए। सभी भोजन शुद्ध-सात्विक है। विवाह जैसे पवित्र समय में हिंसा का क्या काम?
उनके पवित्र विवाह बेला पर अहिंसा का साम्राज्य, मैंने रुचिकर भोजन किया। मैंने क्या, न जाने कितने महानुभावों ने अहिंसा आचरण पर फोतेदार जी को बधाई दी। मैं इतने से सन्तुष्ट नहीं हुआ।
तृतीय दिवस दिल्ली में श्री फोतेदार जी ने विवाह के उपलक्ष्य में प्रीतिभोज दिया। मैं चौधरी लक्ष्मीचन्द्र के साथ पण्डित रामचन्द्रराव वन्देमातरम् सहित प्रीतिभोज में भी सम्मिलित हुआ । हजारों की भीड़ में मैंने सोचा कि गुड़गांव में भोजन सात्विक था, पर यहॉं का भोजन मिला जुला होगा।
इतने में श्री गुलाब नवी आजाद भी आ गये और बोले-कशमीरियों का भोजन है, यहॉं तो सब प्रकार का खान-पान होगा। परन्तु महान् आश्चर्य देखकर हुआ कि घर पर भी शुद्ध-सात्विक आहार पेय पदार्थ दिये जा रहे थे।
मैंने मन में सोचा कि फोतेदार जी आप महान हैं। इस पावन बेला पर जिसमें पुत्रवधू ने अपने सोलहों श्रृंगार से घर सजाया हो और यह कल्पना की हो कि इस घर को अपने वैभव से भरपूर करने आई हूँ, ऐसे समय ये जीव की हिंसा मेरे लिये अभिशाप न बने, अहिंसा का पावन सन्देश वरदान बनकर मेरे जीवन को सुखी एवं समृद्धिशाली बनायें।
स्वर्ग से देवता भी ऐसे समय में अपना आशीर्वाद बिखेर रहे होंगे कि आप चक्रवाकीव दम्पती, चकवा-चकवी की भांति घर आगन में क्रीड़ा करें। पण्डित माखन लाल जी ! आपने अपने को उदाहरण रूप में प्रस्तुत किया। हमारा भी पूरे परिवार को शुभाशीर्वाद ।
उदाहरण बनने का प्रयास करो? कभी चर्चा जब चलती है तो सहसा यह वाक्य सुनने को मिलता है कि पहले आर्यसमाज का व्यक्ति अदालत में कुछ कहता था तो उदाहरण माना जाता था कि आर्यसमाजी झूठ नहीं बोलता है । उसके कथन को सत्य मानकर ही निर्णय कर दिये जाते थे।
सहारनपुर की अदालत में इलाहाबाद के अच्छे वकील आये थे। जज ने उनसे पूछा कि क्या आप लाला राम गोपाल शालवाले को जानते हो? यदि हॉं, तो बोलो वह कैसे व्यक्ति हैं? वकील साहब ने बड़े निर्लेप भाव से कहा कि वह एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति हैं। जज ने पूछा क्या आप उन्हें जानते हो? उन्होंने कहा कि मैंने सुना है देखा नहीं है, वह जो कहते हैं वह मनसा-वाचा कर्मणा सत्य पर आधारित होता है। जज साहब ने कहा कि देखो यह हैं लाला रामगोपाल शालवाले। वकील साहब तुरन्त उनके पैरों में हाथ लगा नतमस्तक हुए। आज भी ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें ईमानदार मानकर उदाहरण रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
उदाहरण बनने में बड़ी साधना और साहस को बटोरना पड़ता है। मैंने यह विषय क्यों प्रस्तुत किया है? कुछ समय पूर्व दो-चार विवाहों में जाने का अवसर मिला। दोनों अवसरों में जमीन-आसमान का अन्तर था। समय-समय पर ऐसे अनाचार के दृश्य देखने को अवश्य मिल जाते हैं, जिनको देखकर मस्तक शर्म के मारे झुक जाता है।
जिन समारोहों की बात मैं करने जा रहा हूँ वह बड़े भले व्यक्तियों के यहॉं सम्पन्न हुए हैं। पण्डित जी ! विवाह वैदिक रीति से किया जायेगा। बड़ी अच्छी बात है। परन्तु जब व्यवहार में देखा तो संस्कार तो गौण है । पण्डित जी समय थोड़ा है, जल्दी निपटाइये। जिस बात का महत्त्व था वह गौण हो गया। संस्कार समय पर नहीं- क्यों? आने वाले बिना भोजन किये चले जायेंगे। भोजन-स्वागत का महत्त्व है।
लोगों का आगमन। भारी स्वागत का आयोजन। चलिये आप लोग भोजन कीजिये। भोजन भी दो प्रकार का है। शाकाहारी लोगों के लिए अलग शुद्ध शाकाहारी है। मांसाहारियों के लिए उनकी रुचि अनुसार बकरे का गोश्त तथा मुर्गे-मछली आदि बनाया गया है। शराब का दौर अलग चल रहा है।
हमने पूछा- यह क्या हो रहा है? बोले क्या करें सभी तरह के व्यक्ति आएंगे। उनके लिए वैसा ही व्यञ्जन बनाया है। सभी का सत्कार करना है।
पूजा-पाठ, धर्म-कर्म-संस्कार सभी को एक किनारे रखकर अहिंसा को घोर तिलाञ्जलि दी जा रही है। आप जो चीज नहीं खाते हो फिर उसे विशेष भोजन के नाम पर जीवों की हत्या करके सुस्वादु स्वरुचि भोजन का जामा पहनाकर परोसा जा रहा है। ऐसे उदाहरण बड़े-बड़े महान आत्माओं के द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं। बड़प्पन इसी का नाम है कि जिसमें धर्म के रूप में अहिंसा-सत्य-प्रेम की बलि दी जा रही है। फिर हम कहते हैं कि हम बड़े धर्मात्मा हैं। हिन्दुत्व की रक्षा का दायित्व ओढे हुए हैं। संस्कारवान जाति संस्कार हीन बनती जा रही है।
गिरने की भी कोई सीमा है और उच्चादर्श बनने हेतु महात्मा बुद्ध, महात्मा गौतम, आचार्य शंकर, महर्षि दयानन्द, महात्मा गान्धी बन कर सत्य सिद्धान्तों की रक्षा भी कर सकते हैं। इसीलिये कहा है कि उदाहरण बनने का प्रयास करो। - डॉ.सच्चिदानन्द शास्त्री (पूर्व महामन्त्री, सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली)
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जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...