ओ3म् यः पौरुषेयेण क्रविषा समङ्क्ते यो अश्व्येन पशुना यातुधानः।
यो अघ्न्याया भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्च।। (ऋ. 10.87.16)
शब्दार्थ- (यः यातुधानाः) जो राक्षस, दुष्ट (पौरुषेयेण) पुरुष सम्बन्धी मांस से (सम् अङ्क्ते) अपने शरीर को पुष्ट करते हैं (यः) जो क्रूर लोग (अश्व्येन) घोड़े के मांस से और (पशुना) पशु के मांस से अपना उदर भरते हैं (अपि) और भी (यः) जो (अघ्न्यायाः) अहिंसनीय गौ के (क्षीरम्) दूध को (भरति) हरण करते हैं (अग्ने) हे तेजस्वी राजन्! (तेषां) उन सब राक्षसों के (शीर्षाणि) शिरों को (हरसा) अपने तेज से (वृश्च) काट डाल।
Ved Katha Pravachan _87 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
भावार्थ - मन्त्र में राजा के लिए आदेश है कि जो मनुष्यों का मांस खाते हैं, जो घोड़ों का मांस खाते हैं, जो अन्य पशुओं का मांस खाते हैं और जो बछड़ों को न पिलाकर गौ का सारा दूध स्वयं पी लेते हैं, हे राजन्! तू अपने तीव्र शस्त्रों से ऐसे दुष्ट व्यक्तियों के सिरों को काट डाल। इस मन्त्र के अनुसार किसी भी प्रकार के मांस-भक्षण का सर्वथा निषेध है।
"अघ्न्याया क्षीरं भरति' का यही अर्थ सम्यक् है कि जो बछड़े को न पिलाकर सारा दूध स्वयं ले लेते हैं। इस मन्त्र से गोदुग्ध पीने वालों को मार दे ऐसा भाव लेना ठीक नहीं है। क्योंकि वेद में अन्यत्र कहा गया है "पयः पशूनाम्' (अथर्व. 19.31.5) हे मनुष्य! तुझे पशुओं का केवल दूध ही लेना है। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
मद्य निषेध
ओ3म् हृत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।
ऊधर्न नग्ना जरन्ते ।। (ऋग्वेद 8.2.12)
शब्दार्थ - (न) जिस प्रकार (दुर्मदासः) दुष्टमद से युक्त लोग (युध्यन्ते) परस्पर लड़ते हैं उसी प्रकार (हृत्सु) दिल खोलकर (सुरायाम् पीतासः) सुरा, शराब पीने वाले लोग भी लड़ते और झगड़ते हैं तथा (नग्नाः) नङ्गों की भॉंति (ऊधः) रातभर (जरन्ते) बड़बड़ाया करते हैं।
भावार्थ - मन्त्र में बड़े ही स्पष्ट शब्दों में शराब पीने का निषेध किया गया है । मन्त्र में शराब की दो हानियॉं बताई गई हैं-
1. शराब पीने वाले परस्पर खूब लड़ते हैं ।
2. शराब पीने वाले रातभर बड़बड़ाया करते हैं।
मन्त्र में शराबी की उपमा दुर्मद से दी गई है। जो शराब पीते हैं वे दुष्टबुद्धि होते हैं। मद्यपान से बुद्धि का नाश होता है और "बुद्धिनाशात् प्रणश्यति' (गीता 2.63) बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य समाप्त हो जाता है। "शराब' शब्द दो शब्दों के मेल से बना है - शर+आब। इसका अर्थ होता है शरारत का पानी। शराब पीकर मनुष्य अपने आपे में नहीं रहता । वह शरारत करने लगता है, व्यर्थ बड़बड़ाने लगता है।
मद्य पेय पदार्थ नहीं है। शराब पीने की निन्दा करते हुए किसी कवि ने भी सुन्दर कहा है-
गिलासों में जो डूबे फिर न उबरे जिन्दगानी में।
हजारों बह गए इन बोतलों के बन्द पानी में।। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
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Charity - In the mantra, there is a command for the king that those who eat the flesh of humans, who eat the flesh of horses, who eat the flesh of other animals, and who drink all the milk of the cow themselves without feeding the calves, O king! You cut off the heads of such evil persons with your sharp arms. According to this mantra, eating meat of any kind is strictly prohibited.
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जनप्रतिनिधियों की असीमित सुविधाएं जहाँ गरीब देश की अधिकांश जनता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता, वहाँ जनप्रतिनिधियों के लिए इतने शानशौकत के महल और उसके साथ-साथ अनेक लग्जिरियस तामजाम अलग। इनकी यह व्यवस्था शहनशाहों व राजाओं से भी अधिक भड़कीली होती है। सुविधा इनकी, परन्तु नाम देश की प्रतिष्ठा का लिया जाता है। जिस प्रतिष्ठा का ये बहाना जिनके लिए दे...