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जागते रहने वाले को वेद चाहते हैं

ओ3म्‌ यो जागार तमृचः कामयन्ते यो जागार तमु सामानि यन्ति।
यो जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः।। ऋग्वेद 5.44.14।।

अर्थ - (ऋचः) ऋग्वेद के मन्त्र (तम्‌) उसको (कामयन्ते) चाहते हैं (यः) जो (जागार) जागता रहता है (उ) और (तम्‌) उसी के पास (सामानि) समावेद के मन्त्र (यन्ति) जाते हैं (यः) जो (जागार) जागता रहता है (यः) जो (जागार) जागता रहता है (तम्‌) उसी को (अयम्‌) यह (सोमः) शान्ति और आनन्द का धाम भगवान्‌ (आह) कहता है कि (अहम्‌) मैं (तव) तेरी (सख्ये) मित्रता में (न्योकाः) नियत रूप से रहने वाला (अस्मि) होता हूँ।

Ved Katha Pravachan _97 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev


मन्त्र में आये 'ऋचः' और 'सामानि' पदों का सामान्य अर्थ ऋग्वेद के मन्त्र और सामवेद के मन्त्र होता है। इन पदों से सूचित होने वाले 'ऋग्वेद' और 'सामवेद' यहॉं शेष दोनों वेदों यजुर्वेद और अथर्ववेद के भी उपलक्षण हैं। अर्थात्‌ ऋग्वेद और सामवेद के निर्देश से चारों वेदों का ही निर्देश समझ लेना चाहिए। वस्तुतः चारों वेदों के मन्त्रों की रचना तीन प्रकार की है। जो मन्त्र छन्दोवद्ध हैं और छन्दों में होने वाली पादव्यवस्था से युक्त हैं उन्हें 'ऋच्‌' या 'ऋचा' कहा जाता है- यत्रार्थवशेन पादव्यवस्था सा ऋक्‌। (जैमिनीयसूत्र 2.1.35) ऋग्वेद में ऐसे मन्त्रों का बाहुल्य है इसलिए उसे ऋग्वेद कहा जाता है। जब ऋचाओं को ही गीति के रूप में गाया जाता है तो उन्हें 'साम' कहा जाता है- गीतिषु सामाख्या (जैमिनीयसूत्र 2.1.36)। सामवेद में जितने मन्त्र हैं वे भक्तिरस में भरकर गीतिरूप में गाये जाते हैं, इसलिए उसका नाम सामवेद है। जो मन्त्र छन्दोबद्ध नहीं हैं और गीतिरूप में गाये नहीं जा सकते अर्थात्‌ जो मन्त्र पद्य नहीं हैं गद्य हैं, उन्हें 'यजुः' कहते हैं- शेषे यजुः शब्दः (जैमिनीयसूत्र 2.1.37)। यजुर्वेद में ऐसे 'यजुः' मन्त्र अधिक हैं इसलिए उसका नाम यजुर्वेद है। अथर्ववेद में तीनों प्रकार के मन्त्र हैं। क्योंकि चारों वेदों के मन्त्रों की रचना ही तीन प्रकार की है, इसलिए चारों वेदों को त्रयी या तीन वेद कह दिया जाता है। यों वेद चार ही हैं। केवल तीन प्रकार की रचना के कारण उन्हें तीन वेद भी कह दिया जाता है। इन तीन प्रकार की रचनाओं में भी प्राधान्य ऋग्‌ मन्त्रों और साम मन्त्रों का ही है, चारों वेदों की अधिकांश रचना इन्हीं में है। इसलिए इस मन्त्र के 'ऋचः' और "सामानि' ये पद यों भी चारों वेदों का निर्देश करने वाले हो जाते हैं।

मन्त्र कहता है कि ऋग्वेद उसी की कामना करता है और सामवेद उसी के पास जाता है, जो जागता रहता है। ऋग्वेद और सामवेद से उपलक्षित होने वाले चारों वेदों का अध्ययन कौन कर सकता है ? उनका अध्ययन करके उन्हें भली-भॉंति कौन समझ सकता है ? और उन्हें भली-भॉंति समझकर उनके अनुसार आचरण करके क्रियात्मक जीवन में उनसे लाभ कौन उठा सकता है ? वह जो कि जागता रहता है।

जो जागता रहता है, जो मुस्तैद और चौकन्ना रहता है, जो सावधान और सतर्क रहता है, जो सोता नहीं रहता, जो आलसी और प्रमादी नहीं बनता, वेद उसी की कामना करते हैं, उसे ही चाहते हैं, उसी के पास जाते हैं। जो व्यक्ति आलस्य और प्रमाद को परे फैंककर, सतर्क और सावधान होकर वेद को पढ़ने और उसका मर्म समझने के लिये भरपूर परिश्रम करता है, वेद उसी के पास जाता है। वेद का गूढ़ रहस्य उसी की समझ में आता है। वेद के गूढ़ रहस्य को समझकर और फिर उसके अनुसार आचरण करके उसके क्रियात्मक जीवन में सब प्रकार के लाभ वही जागरूक वृत्ति वाला व्यक्ति ही उठा सकता है। वेद तो सब प्रकार के वरदानों की, सब प्रकार के मंगलों की खान है। पर वेद से मिलने वाले इन मंगलों को प्राप्त वह कर सकता है, जो जागता रहता है। सोते रहने वाले को वेद के ये मंगल प्राप्त नहीं होते।

और जो व्यक्ति जागरूक होकर वेद का अध्ययन करता है, उसके मर्म को समझ लेता है और फिर तद्‌नुसार आचरण करके अपने आपको पूर्ण पवित्र और ज्ञानवान्‌ बना लेता है, उसी जागते रहने वाले को भगवान्‌ के भी दर्शन होते हैं। वेद के ऐसे जागरूक विद्यार्थी के आगे भगवान्‌ अपने पट खोल देते हैं और कहने लगते हैं- "हे जागकर वेद का स्वाध्याय करने वाले स्वाध्यायी! मैं सदा तेरी मित्रता में रहूंगा, मेरा निवास सदा नियत रूप से तेरे हृदय में रहेगा।'' भगवान सोम हैं। उनमें चन्द्रमा की-सी शान्तिदायकता और आह्लादकता है। वे शान्ति और आनन्द के धाम हैं। जब वेद के स्वाध्याय से हमें परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान हो जायेगा, जब वेदानुकूल शुभ आचरण से हमारे हृदय निर्मल हो जायेंगे और जब उसके परिणामस्वरूप हमारे हृदयों में प्रभु की ज्योति झलकने लगेगी, तब उस शान्ति और आनन्द के धाम के हमारे हृदयों में निवास से हम भी अवर्णनीय शान्ति और आनन्द के समुद्र में गोते लगाने लगेंगे। तब शान्ति और आनन्द के धाम, रस के समुद्र, भगवान्‌ के इस दर्शन, इस साक्षात्कार से हमें जीवन का चरम लक्ष्य, एकमात्र लक्ष्य प्राप्त हो जायेगा। वेद भी जागते रहने वाले को ही चाहते और प्राप्त होते हैं।

हे मेरे आत्मा! तू भी जाग और वेद को प्राप्त कर। हे मेरे आत्मा! तू भी जाग तथा 'सोम' के, शान्ति और आनन्द के निधि वेदपति भगवान्‌ को प्राप्त कर। आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति

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The mantra says that the Rigveda wishes for the same and Samveda goes to him, who remains awake. Who can study the four Vedas arising from the Rigveda and the Samveda? Who can understand them well by studying them? And considering them well and behaving according to them, who can benefit from them in a functional life? The one who keeps awake.

 

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